मेंटेनेंस फ्री है बायो-डायजेस्टर टॉयलेट

Submitted by birendrakrgupta on Fri, 10/03/2014 - 15:40
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प्रजातंत्र लाइव, नोएडा, 3 अक्टूबर 2014
नई दिल्ल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘स्वच्छ भारत’ अभियान की शुरुआत के मौके पर नई दिल्ली के मंदिर मार्ग पर जिन बायो-डायजेस्टर शौचालयों का उद्घाटन किया है। उनमें विशेष तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इनमें मल को शत-प्रतिशत खत्म करने की क्षमता के साथ यह मेंटेनेंस फ्री हैं। खास बात यह है कि इन्हें नदियों के किनारे, गांव-शहर कहीं भी स्थापित किया जा सकता है। यह पूरी तरह से ईको फ्रेंडली हैं।

सीवेज सिस्टम की नहीं होगी जरूरत, गंदे पानी से प्रदूषित नहीं होगा ग्राउंड वाटरप्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान के तहत देश भर में ऐसे करीब 50 हजार बायो-डायजेस्टर टॉयलेट्स बनाए जाने का प्रस्ताव है। पूरी परियोजना पर करीब 62 हजार करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। इसमें टॉयलेट्स का निर्माण भी शामिल है। जिस टॉयलेट्स ब्लॉक का उद्घाटन गुरुवार को प्रधानमंत्री ने किया, इसका निर्माण महज सात दिन में पूरा होगा। यह तकनीक डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) द्वारा स्वीकृत है। खास बात यह है कि इनमें प्रकाश व्यवस्था के लिए सौर ऊर्जा और एलईडी लाइट का उपयोग होगा। इनका निर्माण करने वाली कंपनी ग्रेंडयोर बिजनेस सोल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक मुकेश सखूजा ने बताया कि इस तरह के टॉयलेट्स के लिए किसी सीवेज सिस्टम की जरूरत नहीं है।

सखूजा ने बताया कि यह शौचालय डी-कंपोजीशन व्यवस्था पर आधारित है। इसमें दो हिस्से होते हैं। पहला एनाइरोबिक माइक्रोबाइल कंसोर्टियम फर्मेटेशन टैंक के रूप में विशेष रूप से तैयार किया जाता है। माइक्रोबाइल कंसोर्टियम को मल के बायोडिग्रडेशन के अनुकूल बनाया जाता है। इसमें मौजूद कोल्ड एक्टिव बैक्टीरिया गंदगी का बायोडिग्रेशन कर देते हैं। यह बैक्टीरिया तेजी से अपना काम करते हैं, इसकी वजह से मलबा के टैंक की सफाई या इसे खाली नहीं करना पड़ता। बैक्टीरिया की वजह से ऐसे टॉयलेट्स में से बदबू नहीं आती और इनका मेंटेनेंस भी नहीं करना पड़ता। ऐसे टॉयलेट्स को पहाड़ियों और ग्लेशियर पर भी स्थापित किया जा सकता है।

कंपनी के दूसरे निदेशक आदित्य सखूजा का कहना है कि बायो-डायजेस्टर टॉयलेट्स से निकलने वाले गंदे पानी से ग्राउंड वाटर के प्रदूषित होने का खतरा भी नहीं रहता। अब भी भारत मे करीब 60 फीसदी के पास शौचालय की सुविधा नहीं है। इसलिए वह खुले में शौच करने के लिए मजबूर हैं। स्वयंसेवी संगठन ‘पहल इंडिया फाउंडेशन’ इस तकनीक को आगे बढ़ाने में काफी मदद कर रहा है। प्रधानमंत्री की स्वच्छ भारत परियोजना में इस तरह के टॉयलेट्स बनाने से न केवल वायु प्रदूषण में तेजी से कमी आएगी, बल्कि अन्य तरह के प्रदूषण में भी कमी आएगी।