
इसी मीटिंग में गांव की एक उम्रदराज महिला ने अपने कान पकड़े और माफी के साथ संकल्प लिया कि अब वह लोग खुले में शौच नहीं जायेंगी। लेकिन गरीब वर्ग की इन महिलाओं के सामने सबसे बड़ा संकट इस बात का खड़ा हो गया कि शौचालय बनवाने के लिये आखिर रुपये कहां से आयेंगे। इस बात पर वहां उपस्थित महिलाओं का उत्साह ठंडा होता जान पड़ा। तभी पार्वती नाम की एक महिला के दिमाग में एक आइडिया क्लिक किया और वह खुशी से उछल पड़ी। वह आइडिया था चंदे का। पार्वती ने महिलाओं को समझाया कि शौचालय बनवाने में जो भी खर्च आयेगा उसे चंदे से एकत्रित किया जाय तो किसी एक पर भार नहीं पड़ेगा। हालांकि यह निभाना थोड़ा कठिन हो सकता है, लेकिन इससे अच्छा कोई दूसरा उपाय भी नहीं। कारण सरकारी सहायता तत्काल मिलने से रही। दूसरे सरकारी सहायता से बने शौचालयों की हकीकत के बारे में हम सभी भली-भांति परिचित भी हो चुके हैं। इन सब बातों पर विचार-विर्मश से गांव की एक दर्जन से अधिक महिलायें चंदा एकत्रित कर शौचालय बनवाने के पार्वती के प्रस्ताव पर राजी हो गयीं।
चंदे पर आम सहमित के बाद सबसे पहले शौचालय किसका बने, बात इस मोड़ पर आकर रुक गई। थोड़ी देर के लिये वहां सन्नाटा पसर गया। कोई भी मुंह खोलने को तैयार नहीं था। इस बार समझदारी की बात किया वर्तमान पार्षद आरती उर्फ राजकुमारी ने। पार्षद ने कहा कि सबसे पहले मदद तो उसी कि होनी चाहिये जो इसके काबिल हो। इसके लिये हम गांव की सबसे गरीब रामकली का शौचालय बनवाने का प्रस्ताव रखते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इसी क्रम से दर्जनों घरों में एक के बाद एक शौचालय बना लिये जायेंगे। पार्षद की इस बात में सौ फीसदी सच्चाई थी, यही कारण था तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी और सभी ने हाथ उठाकर इसका स्वागत किया। चंदा देने की शुरुआत पार्षद आरती ने की, इसके बाद तो रामकली के घर को पास शौचालय बनवाने के 3000 रुपये से अधिक एकत्रित हो गये। आनन-फानन में जमीन नापी गयी और मेटेरियल एकत्रित कर कार्य प्रारंभ करा दिया गया।
लेखक इंडिया वाटर पोर्टल के फेलो हैं