लेखक
आस्था के कारण आज भी उत्तरकाशी जनपद के अन्तर्गत गौलगाँव के निकट मड़ैक नामक स्थान पर 2200 मी. की ऊँचाई पर स्थित मण्डकेश्वर जलकुण्ड जिन्दा है। भले लोग इस जलकुण्ड से रोज पानी को आचमन नहीं कर सकते मगर इसके कारण निचले स्तर पर जो प्राकृतिक जलस्रोत रिचार्ज रहते हैं वही इस जलकुण्ड की मिसाल है। स्थानीय लोग बार-बार यह मिसाल देते हैं कि यदि मण्डकेश्वर जलकुण्ड सूख जाएगा तो ठकराल पट्टी के दर्जनों गाँव में सूखा पड़ जाएगा। सिर्फ अक्टूबर-नवम्बर में ही जनता के लिये मण्डकेश्वर मन्दिर खोला जाता है। पर मन्दिर में पुजारी के अलावा अन्य लोग प्रवेश नहीं करते हैं। इस मन्दिर के बाहर से ही लोग जल को ग्रहण करके अपने को पुण्य मानते हैं।Mandkeshwar Bawdi - The amazing confluence of faith and horror
समुद्र तल से लगभग 2200मी. की ऊँचाई पर स्थित यदि कोई बावड़ी हो तो निश्चित रूप से शोध का विषय बन जाता है। यह बावड़ी भी एक मन्दिर के भीतर ही है। बारहमास इस बावड़ी में जल की उपलब्धता बनी रहती है। यहीं पर सीमान्त जनपद उत्तरकाशी के ठकराल पट्टी के दो दर्जन गाँव के लोगों का ईष्ट देव ‘मण्डकेश्वर’ विराजमान रहते हैं। इसी मण्डकेश्वर मन्दिर के अन्दर बावड़ी है। जिसके पानी को लोग विशेष बर्तन में भरकर अपने घर ले जाकर पूजा स्थल पर रखते हुए साल भर तक इस पानी का इस्तेमाल पूजा के रूप में करते हैं।
घनघोर देवदार के जंगल के बीच स्थापित मण्डकेश्वर देव स्थल की महत्ता तब और बनती है, जब लोग मंगसीर (अक्टूबर-नवम्बर) माह के मध्य में यहाँ आयोजित मेले में एकत्रित होकर मण्डकेश्वर बावड़ी से पानी भरने के लिये उत्साहित रहते हैं। आश्चर्य यह है कि बावड़ी का पानी पुजारी द्वारा ही लोगों को दिया जाता है। क्योंकि लोग मन्दिर में प्रवेश नहीं कर सकते। कुल मिलाकर इस ‘जल आस्था’ के कारण ही मण्डकेश्वर के निचले क्षेत्रों में जलापूर्ति की कमी लोगों को कभी भी महसूस नहीं हुई है।
मण्डकेश्वर को स्थानीय भाषा में मड़ैक कहते हैं। यह स्थान निकट गौलगाँव से एक किमी के फासले पर लगभग 2200 मी. की ऊँची पहाड़ी व घनघोर देवदार के जंगल में है। यहाँ प्रकृति का अद्भुत दृश्य है। बताया जाता है कि इस मन्दिर में अन्दर प्रवेश करते समय सात दरवाजेे पार करने पड़ते हैं। सात द्वारों के तत्पश्चात मन्दिर के अन्दर ही पत्थरों द्वारा निर्मित विशाल पानी का कुण्ड (बावड़ी) है। ताज्जुब इस बात का है कि इतनी गहरी आस्था के बावजूद भी स्थानीय लोंगों ने इस ‘जलकुण्ड’ को कभी नही देखा। इस मन्दिर के श्रेष्ठ पुजारी शिव प्रसाद गौड़ भी वर्ष में एक बार यानि मंगसीर माह में इसकी पूजा करते हैं। वे ही अकेले इस मन्दिर के अन्दर प्रवेश करते हैं। किन्तु वे भी मन्दिर के अन्दर की बात को प्रचारित करने में डरे हुए रहते हैं।
इस मन्दिर का परिसर लगभग 15 नाली यानि एक हेक्टेयर से भी अधिक के आस-पास है और इसकी पूरी चकबन्दी कर रखी है। इस चकबन्दी के भीतर घास, झाड़ी कण्डाली का वृहद जंगल बना हुआ है। लोग बताते हैं कि जो भी इस परिसर में प्रवेश करना चाहेगा वह वापस नही आ पाएगा, सिवाय पुजारी के।
आश्चर्य यही है कि लोगों में एक तरफ इस मन्दिर और जल से आस्था कूट-कूटकर भरी है तो वहीं दूसरी तरफ इस मन्दिर और जल कुण्ड के दर्शन करने पर खौफ का डर कमतर नहीं है। यहाँ पर लोगों के दिलों में आस्था इस कदर भर रखी है कि मन्दिर की चकबन्दी के बाहरी दीवार से ही लोग मण्डकेश्वर देवता के दर्शन करने जाते हैं। जहाँ से सिर्फ मन्दिर की छत ही दिखाई देती है। मन्दिर दर्शन के पश्चात लोग निकट गौलगाँव के समीप निकलने वाली जलधाराओं से पानी आचमन करते हैं।
हालांकि मन्दिर के 200 मीटर नीचे से एक जलधारा निकलती है जो बाद में बिखर भी जाती है। जिसका लोग कोई महत्त्व नहीं समझते। चूँकि, इसके अलावा मन्दिर से लगभग 800 मी. दूर निचले स्थान अर्थात गौलगाँव के समीप दो जल धाराएँ नकासीदार पत्थरों के मुखनुमा आकृति से बाहर निकलती है। लोग इन जलधाराओं को मडैक देवता (मण्डकेश्वर देवता) की देन मानते हैं।
कहते हैं कि ये जलधाराएँ भी अनादिकाल से हैं। लोग इस स्थान को भी पूजनीय मानते हैं। स्थानीय परम्परानुसार शुभ कार्य के शुभारम्भ में मड़ैक पन्यारा से पानी को ले आते हैं। जिसे लोग पवित्र जल के रूप में ग्रहण करते है।
गाँव के हरदेव सिंह चौहान का कहना है कि यदि मड़ैक स्थित में मण्डकेश्वर जलकुण्ड का पानी सूख जाएगा तो ठकराल पट्टी के सैकड़ों परिवार एक तरफ पेयजल संकट से जूझेंगे और दूसरी तरफ सिंचाई और अन्य पानी की समस्या से लोग घर छोड़ने को बाध्य होंगे। उनके क्षेत्र में यह कहावत विद्यमान है कि मण्डकेश्वर का जलकुण्ड यदि थोड़ा सा भी सूखने की स्थिति में आता है तो इस क्षेत्र में आपात की स्थिति पैदा हो सकती है। यही नहीं लोक मान्यता है कि मण्डकेश्वर जलकुण्ड अनादिकाल से है जो जिसकी कोई कहानी नहीं है। इसलिये लोग इस जलकुण्ड को देवशक्ति मानते हैं।