मनरेगा कार्यक्रम की सफलता

Submitted by birendrakrgupta on Sun, 02/15/2015 - 23:22
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योजना, अगस्त 2011
मनरेगा का मुख्य लक्ष्य है देश के ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों का आर्थिक उत्थान। यह अधिनियम सभी ग्रामवासियों को अपने परिश्रम से निजी जीवन को ऊपर उठाने का वैधानिक अधिकार देता है। इस योजना में हर गाँव के इच्छुक सभी स्त्री-पुरुषों को साल भर में 100 दिन का रोजगार निश्चित रूप से मिलता है। इसके लिए उन्हें 112 रुपए प्रतिदिन की दर से मजदूरी दी जाती है।केन्द्र सरकार ने 2 अक्तूबर, 2009 को देश के ग्रामीण क्षेत्रों के समग्र विकास के लिए मनरेगा नामक योजना आरम्भ की थी। रोमन लिपि के अक्षरों एमजीएनआरईजीआई से बने इस शब्द का अर्थ है महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम।

यह योजना मूल रूप से 7 सितम्बर, 2005 को शुरू की गई थी। तब इसका नाम था राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम अर्थात नरेगा। मनरेगा के परिवर्तित नाम से इस योजना को ग्रामीण विकास मन्त्रालय देशव्यापी स्तर पर चला रहा है।

मनरेगा कार्यक्रम की सफलतामनरेगा का मुख्य लक्ष्य है देश के ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों का आर्थिक उत्थान। यह अधिनियम सभी ग्रामवासियों को अपने परिश्रम से निजी जीवन को ऊपर उठाने का वैधानिक अधिकार देता है। यह योजना उनके सामूहिक सशक्तीकरण का एक अद्वितीय माध्यम बना है।

मनरेगा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस योजना में हर गाँव के इच्छुक सभी स्त्री-पुरुषों को साल भर में 100 दिन का रोजगार निश्चित रूप से मिलता है। इसके लिए उन्हें 112 रुपए प्रतिदिन की दर से मजदूरी दी जाती है।

सभी प्रतिभागियों को इस कार्यक्रम के अन्तर्गत उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में बताया जाता है। मनरेगा के लक्ष्यों का क्रियान्वयन ग्राम पंचायतों के स्तर पर होता है। इसके ऊपर प्रखण्ड और जिला पंचायत आते हैं। प्रशासनिक स्तर पर जिलाधिकारी और मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्गदर्शक होते हैं। सारा खर्च केन्द्र से आता है। लेकिन कार्यक्रम को क्रियान्वित करने और खर्चों का लेखा-जोखा रखना राज्य सरकार का उत्तरदायित्व है।

मनरेगा समाज के निर्धन और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित है। उन्हें गरीबी से उबारना इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य है। ऐसे लोगों को जीविका का अवसर उनके घरों के पास ही सुनिश्चित कर भारत-निर्माण का काम हो रहा है। लाभार्थी अपने परिश्रम से बंजर भूमि को खेती योग्य बनाते हैं। वर्षा का पानी जमा करने के लिए जलाशय और नहरें खोदते हैं। दूर-दराज के क्षेत्रों में पहुँचने के लिए सड़कें बनाते हैं। गाँवों में सभा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए सेवा केन्द्रों तथा चौपालों का निर्माण करते हैं। सड़कों के किनारे पेड़ लगाकर वातावरण को हरा-भरा बनाते हैं।

जीविका का आधार यदि सहज रूप से गाँवों में ही उपलब्ध हो तो किसी को भी काम के लिए बाहर भटकने की आवश्यकता नहीं रह जाती। मनरेगा का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है कि लोग जीविका के लिए शहरों या दूसरे स्थानों की ओर पलायन न करें।

मनरेगा समाज के निर्धन और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित है। उन्हें गरीबी से उबारना इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य है।योजना के इन सभी उद्देश्यों की पूर्ति छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में देखी जा सकती है। राजधानी रायपुर से 70 किलोमीटर दूर, महानदी की स्वच्छ जलधारा के दोनों किनारों पर स्थित इस जिले में 4 प्रखण्ड हैं। इनके नाम हैं— धमतरी, कुरूद, नगरी और मगरलोड। इन स्थानों में मनरेगा की सफलता देखी जा सकती है।

धमतरी जिले के सभी पंचायतों में मनरेगा के लाभार्थियों ने दूर-दराज के गाँवों तक पहुँचने के लिए सड़कें बनाई हैं। सड़कों के दोनों किनारों पर उन्होंने व्यापक रूप से पेड़ लगाए हैं। साथ ही बंजर भू-खण्डों पर छोटे-बड़े जलाशय बनाए हैं जिनकी मेड़ों पर दलहन, तिलहन, उपयुक्त साग-सब्जियाँ और फलों के वृक्ष दिखाई देते हैं। जलाशयों में मछली पालन हो रहा है। जल्दी ही इन स्थायी सार्वजनिक सम्पत्तियों का लाभ सम्बद्ध पंचायतों के माध्यम से सभी को मिलने लगेगा। स्पष्ट है कि आने वाले वर्षों में धमतरी के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी हो जाएगी कि वे समृद्ध कहलाने लगेंगे।

अपना काम सुचारू रूप से करने के लिए धमतरी जिले के मनरेगा श्रमिकों को प्रशासन से आवश्यक सुविधाएँ मिलती हैं। कार्यस्थलों पर उनके लिए तम्बू लगाए गए हैं। वहाँ पीने का पानी, प्राथमिक चिकित्सा और बच्चों की देखभाल की व्यवस्था है। बही-खातों में प्रतिदिन होने वाले काम का ब्यौरा लिखा जाता है और श्रमिकों की उपस्थिति दर्ज की जाती है।

जिले के सभी पंचायतों में मनरेगा चौपाल चल रहे हैं। शाम में बरगद के पेड़ के नीचे बने चबूतरों पर पंचायत सभाएँ होती हैं। वहाँ सभी ग्रामीण अपने सरपंच और दूसरे प्रतिनिधियों से मिलते हैं। वहाँ सामूहिक हितों पर चर्चाएँ होती हैं। सामाजिक स्तर पर सभी लोग एक-दूसरे के निकट आते हैं। समस्याओं का हल बातचीत से होता है। किसी को थाना या न्यायालय जाने की आवश्यकता नहीं होती।

अपनी धमतरी यात्रा के दौरान जंगलों से गुजरते हुए मुझे एक स्थान पर कुछ हलचल दिखाई दिया। मालूम हुआ कि कमार नामक अनुसूचित जनजाति के लोग वर्षा के पानी को जमा करने के लिए वहाँ एक बाँध बना रहे थे। पहले यह पानी बह जाता था। उन लोगों के पास 700 एकड़ बंजर भूमि थी जहाँ खेती नहीं हो सकती थी। इस बाँध के बन जाने पर अब वहाँ वर्षा का पानी जमा होगा और पूरे साल उन्हें सिंचाई की सुविधा मिल जाएगी। मनरेगा श्रमिकों के रूप में काम करने वाले इस समुदाय के लोग उत्साहित थे कि उन्हें जीविका के लिए अब दूर-दूर तक भटकना नहीं होगा।

छत्तीसगढ़ की अनेक अनुसूचित जनजातियों में कमार जाति के लोग बहुत गरीब माने जाते हैं। उनकी संख्या भी लगातार घट रही है। लेकिन अब उन्हें विश्वास है कि जल्दी ही धान की खेती आरम्भ कर वे गरीबी रेखा से ऊपर उठ जाएँगे। छत्तीसगढ़ को देश में ‘चावल का कटोरा’ कहा जाता है क्योंकि वहाँ के अधिकतर स्थानों में धान की दो फसलें होती हैं।

धमतरी के बारे में एक रोचक तथ्य यह है कि वहाँ के 52 प्रतिशत भाग में सदाबहार जंगल है। वहाँ हरियाली दूर-दूर तक दिखाई देती है। वहाँ के इस प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाने में मनरेगा का भी योगदान दिखाई देता है। पौधों की उचित देखभाल सुनिश्चित होने के कारण वहाँ भाँति-भाँति की वनस्पतियाँ दिखाई देती हैं। राज्य का वन विभाग पौधशालाओं में फलदार वृक्षों और घर बनाने में काम आने वाली लकड़ियों के पौधे निःशुल्क बाँटता है। इन पौधशालाओं में मनरेगा के श्रमिक काम करते हैं और भिन्न-भिन्न स्थानों पर वे ही इन पौधों को लगाकर उन्हें बड़ा करते हैं।

एक पौधशाला नगरी प्रखण्ड के डोकाल नामक स्थान पर देखी। इस पौधशाला से जिन फलों के पौध पूरे धमतरी जिले में रोपण के लिए भेजे जाते हैं उनमें प्रमुख हैं— आम, आँवला, कटहल, काजू, नीम्बू और इमली। वहाँ बांस, सागवान और अन्य इमारती लकड़ियों के पौध भी तैयार होते हैं। अगले कुछ वर्षों में इन विकसित पेड़ों से फलों का प्रचुर उत्पादन होने लगेगा। उपभोक्ताओं को स्वादिष्ट फल मिलेंगे और किसानों को उचित मूल्य।

ग्रामीण विकास की जो सफलता धमतरी में दिखाई देती है उसका एक बड़ा कारण है पारदर्शिता। वहाँ जो लोग मनरेगा कार्यक्रम से जुड़े हैं उनका विश्वास है कि सारा काम पूरी ईमानदारी से हो रहा है। हर श्रमिक को निर्धारित समय पर मजदूरी मिलती है। इसलिए सभी सन्तुष्ट हैं। किसी के मन में कोई शंका हो तो वह कभी भी कम्प्यूटर से सारी जानकारी ले सकता है। इस कार्यक्रम से सम्बद्ध वहाँ के लोगों का मानना है कि सामूहिक रूप से काम कर वे धमतरी को जल्दी ही इतना विकसित कर लेंगे कि वे पर्यटकों को आकर्षित करने लगेंगे।

(लेखक स्वतन्त्र पत्रकार हैं)
ई-मेल : connectshail@gmail.com