महासागरों के लिए वरदान बन सकता है कोविड-19

Submitted by Shivendra on Fri, 05/15/2020 - 15:24

फोटो - Adobe Spark

एक तरफ दुनिया भर में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की बात की जा रही है, तो वहीं दूसरी तरफ विश्व का समुद्री प्रदूषण जगजाहिर है। हर साल समुद्र में 8 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा फेंका जाता है। लगातार बढ़ते प्रदूषण के कारण जलीय जीवों और समुद्र की जैव विविधता पर संकट मंडराने लगा है। इससे एक मिलियन समुद्री पक्षी और एक लाख समुद्री स्तनपायी जीव हर साल मरते हैं। कई शोधों में पाया गया है कि यदि ऐसी ही स्थिति बनी रही तो, वर्ष 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा। इसके अलावा कैमिकल वेस्ट, सीवरेज गिरने के साथ-साथ तेल रिसाव, न्यूक्लियर कचरा भी समुद्रों को प्रदूषित कर रहा है। इन्हीें महासागरों में शामिल है, ‘‘हिंद महासागर’’, जिसे भारत की ‘ब्लू इकोनाॅमी’ भी कहा जाता है। हिंद महासागर के ही एक द्वाप पर कुछ समय पहले 238 टन प्लास्टिक कचरा पाया गया था। 

समुद्र में सबसे ज्यादा प्लास्टिक प्रदूषण तेजी से बढ़ता जा रहा है, लेकिन एशिया और प्रशांत महासागर के क्षेत्र के लिए समुद्र काफी महत्वपूर्ण है। इन क्षेत्रों में मत्स्य पालन से करीब 20 लाख लोग जुड़े हैं। समुद्र ही इन लोगों की आजीविका और कमाई का एकमात्र ज़रिया है। लागत कम होने के कारण 80 प्रतिशत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार शिपिंग के माध्यम से ही होता है। दो तिहाई शिपिंग सिर्फ एशियाई समुद्रों के रास्ते ही होती है। द्वीपों पर बसे दुनिया के कई देश तो ऐसे हैं, जिनकी अर्थव्यवस्था के केवल समुद्र पर ही निर्भर करती है। इससे अपने आप में ही समुद्र की महत्ता का अंदाजा लगाया जा सकता है। साथ ही ये व्यापार प्रदूषण को भी बढ़ावा दे रहे हैं। जिसमें प्लास्टिक कचरा सबसे अधिक है। लंबे समय तक पानी में पड़ा रहने के कारण प्लास्टिक छोटे छोटे टुकडों में विभाजित हो जाता है, जिसे ‘माइक्रो प्लास्टिक’ भी कहा जाता है। ये माइक्रो प्लास्टिक नमक आदि सहित सी-फूड में पाया जाने लगा है। ऐसे ये हमारे भोजन के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर विभिन्न बीमारियों को जन्म दे रहा है। इसलिए समुद्र में बढ़ता प्लास्टिक कचरा सभी के लिए चिंता का विषय बन गया है। 

समुद्र में कचरे को बढ़ाने में सबसे बड़ा योगदान नदियों का है। समुद्र में 95 प्रतिशत कचरे के लिए दुनिया की दस प्रमुख नदियां जिम्मेदार हैं, जिनमें से आठ नदियां एशिया से बहती हैं। प्रदूषण फैलाने वाली इन नदियों में भारत की प्रमुख नदी गंगा दूसरे नंबर पर है, लेकिन हाल में आई  यूनाइटेड नेशंस इकोनॉमिक एंड सोशल कमिशन फॉर एशिया एंड द पैसिफिक (ईएससीएपी) की रिपोर्ट काफी राहत प्रदान करती है। रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 के कारण मानवीय गतिविधयां कम हो गई है। ऊर्जा की मांग में कमी आई है, तो वहीं कार्बन उत्सर्जन चार दशक के सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। ये कमी एक प्रकार से अस्थायी है, किंतु इसने हम सभी को पर्यावरण संरक्षण के लिए उपाय तलाशने में मदद की है। 

रिपोर्ट जारी किए जाने के मौके पर यूनाइटेड नेशंस की अंडर सेक्रेटरी जनरल और ईएससीएपी की एक्जीक्यूटिव सेक्रेटरी आर्मिदा सालसिया एलिसजहबाना ने कहा ‘‘महासागरों के बेहतर स्वास्थ्य का सीधा संबंध एशिया और पैसिफिक क्षेत्र के सतत विकास से है। कार्बन उत्सर्जन और ऊर्जा मांग में कमी के रूप में, कोविड-19 महामारी ने समुद्री पर्यावरण की रक्षा के लिए हमारे सामने अवसर पेश किया है। हमें इस अवसर का लाभ उठाना होगा।’’ रिपोर्ट के मुताबिक, पोस्ट कोविड-19 वर्ल्ड (कोरोना संकट के बाद की दुनिया) में इस क्षेत्र की सरकारों को समुद्री पर्यावरण संरक्षण के लिए दीर्घकालिक उपायों, मसलन ग्रीन शिपिंग, डी-कार्बनाइजेशन और हानिरहित फिशरीज, एक्वाकल्चर और टूरिज्म को अपनाना होगा। रिपोर्ट को चेंजिंग सैल्सः एक्सेलेरेटिंग रिजनल एक्शन फॉर सस्टेनेबल ओसियंस इन एशिया एंड द पैसिफिक नाम से प्रकाशित किया गया है। दरअसल, समुद्र में प्लास्टिक कचरा काफी गंभीर समस्या है। ये न केवल हमारे भोजन से जुड़ा माला है, बल्कि जल प्रदूषण की एक गंभीर समस्या है, जो हर साल करोड़ों जीव-जंतुओं और इंसानों की जान ले रही है। ऐसे में कोविड-19 भले ही दुनिया के लिए परेशानी बना है, लेकिन ये सभी के लिए सुनहरे भविष्य हेतु आशा की एक किरण भी लाया है। अब देखना ये होगा कि भारत सरकार प्रकृति के इस संदेश को किस प्रकार समझती है और ‘ब्लू इकोनाॅमी’ को बचाने केे क्या प्रयास किए जाते हैं। 



 

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