मशरूम कवक वर्ग का एक पौधा है जिसे भ्रमवश कुछ लोग कुकुरमुत्ता समझ बैठते हैं। वास्तव में कुकुरमुत्ता मशरूम की ही एक विषैली जाति है जो खाने योग्य नहीं होती। प्रस्तुत लेख में लेखक ने मशरूम के औषधि गुणों की चर्चा के साथ-साथ इसे एक उद्योग के रूप में अपनाये जाने की सम्भावना पर बल दिया है और मशरूम की खेती को बेरोजगारी दूर करने एवं गरीबी हटाने का एक अच्छा साधन बताया है।
मशरूम कवक वर्ग का एक पौधा है। इसका कवक जाल ही इसका फलभाग होता है जिसे मशरूम कहा जाता है। कुछ लोग मशरूम का अर्थ कुकुरमुत्ते से लगाते हैं। यह गलत है। वास्तव में कुकुरमुत्ता तो मशरूम की ही एक विषैली जाति होती है तो खाने योग्य नहीं होती। बीजों द्वारा उगाया गया मशरूम सौ फीसदी खाने योग्य होता है। आज इसकी गणना भरपूर विटामिनों वाली सब्जियों में की जाती है।मशरूम की खेती बहुत सस्ती और फायदेमन्द है। इसकी खेती के लिये अलग से भूमि की आवश्यकता नहीं होती। मूलतः इसकी खेती कृषि अवशिष्टों में की जाती है। इस खेती में लागत कम लगती है और लाभ लागत का लगभग चौगुना होता है।
एक मशरूम वैज्ञानिक का कथन है कि मशरूम उत्पादन एक खेती है क्योंकि यह कृषि आधारित है, यह एक उद्योग भी है क्योंकि इसे उद्योग के रूप में अपनाया जा सकता है, एक विज्ञान भी है क्योंकि इसमें वैज्ञानिक तथ्यों का समावेश है, एक कला भी है क्योंकि इसकी खेती में कलात्मकता है, एक संस्कृति भी है क्योंकि इसका उपयोग प्राचीनकाल से चला आ रहा है।
एक आधुनिकता भी है क्योंकि इसकी प्रौद्योगिकी में कुछ नयापन है, यह व्यापार भी है और व्यवसाय भी क्योंकि इसका व्यापार कर इसे एक अच्छे व्यवसाय के रूप में अपनाया जा सकता है, आज की आवश्यकता भी है क्योंकि यह कुपोषण, प्रदूषण व कृषि अवशिष्टों की समस्या का बेहतर हल है, यह औषधि भी है क्योंकि यह साधारण से गम्भीर बीमारियों की रोकथाम में सहायक है। यही कारण है कि मशरूम की खेती एक अच्छा एवं फायदेमन्द व्यवसाय है।
औषधीय गुण
मशरूम एक अच्छे किस्म का खाद्य पदार्थ तो है ही, साथ ही यह एक अच्छी औषधि भी है। इसके सेवन से अनेक बीमारियाँ स्वतः ठीक हो जाती हैं। इसमें एंटीबायोटिक तत्व पाये जाते हैं जो शरीर की जीवाणुओं से रक्षा करते हैं। इसमें एंटीवायरल तत्व मिलते हैं जो हमारे शरीर को वायरल बुखार से बचाते हैं। इसमें ऐसे तत्व पाये जाते हैं जो खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ने नहीं देते। अतः इसके सेवन से हृदय रोग से रक्षा होती है।
इसमें फोलिक एसिड पाया जाता है जो रक्ताल्पता के शिकार व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं के लिये बहुत लाभकारी है। इसके सेवन से कब्ज दूर होती है, पेट साफ होता है और खुलकर भूख लगती है। यह प्रोटीन और विटामिन बी-12 का एक अच्छा स्रोत है। मात्र तीन ग्राम मशरूम के सेवन से एक व्यक्ति की विटामिन बी-12 की दैनिक आवश्यकता पूरी होती है। इस प्रकार मशरूम स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत गुणकारी खाद्य पदार्थ है।
इसकी औषधीय गुणवत्ता के कारण ही विकसित देशों में इसकी खपत बढ़ रही है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी माँग 10 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ रही है। गत तीन दशकों में मशरूम की अन्तरराष्ट्रीय खपत में 10 गुना वृद्धि हुई है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मशरूम की सब्जी इतनी लोकप्रिय हुई है कि आज विश्व में मशरूम का जितना उत्पादन है, उससे कहीं ज्यादा उसकी माँग है।
मशरूम की खेती
भारत में सबसे पहले 1961 में हिमाचल प्रदेश में मशरूम की खेती शुरू की गई थी। तब से इसका प्रचार-प्रसार बढ़ता ही गया है। 1995-96 में मशरूम का उत्पादन 35,000 टन हुआ जबकि 1969-70 में यह मात्र 100 टन था। वर्तमान दशक में इसके उत्पादन में और भी तेजी आई है।
तालिका-1 मशरूम का उत्पादन (टन में) | |
वर्ष | उत्पादन |
1969-70 | 100 |
1974-75 | 400 |
1980-81 | 1000 |
1985-86 | 4000 |
1989-90 | 7000 |
1991-92 | 12000 |
1992-93 | 11500 |
1993-94 | 20000 |
1994-95 | 26135 |
1996-97 | 35000 |
1980 के पूर्व मशरूम की खेती मात्र पर्वतीय क्षेत्रों तक सीमित थी परन्तु अब इसकी खेती मैदानी क्षेत्रों में भी व्यापारिक स्तर पर की जाने लगी है। 1995-96 में तमिलनाडु में 4800 टन, पंजाब में 4500 टन, हिमाचल प्रदेश में 4000 टन, उत्तर प्रदेश में 3800 टन, हरियाणा में 3500 टन, पश्चिम बंगाल में 1550 टन, मध्य प्रदेश में 1400 टन मशरूम का उत्पादन हुआ। आन्ध्र प्रदेश, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और उड़ीसा में उत्पादन 700 एवं 900 टनों के बीच हुआ। विगत तीन-चार वर्षों में सभी राज्यों के उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है।
कृषि प्रधान देश होने के नाते भारत में मशरूम की खेती के विस्तार की पर्याप्त सम्भावनाएँ हैं क्योंकि इसकी खेती के लिये कृषि अवशिष्टों की जरूरत होती है तथा भारत में कृषि अवशिष्ट पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। अनुमान लगाया गया है कि भारत में प्रतिवर्ष 27 करोड़, 33 लाख टन कृषि अवशिष्ट उत्पन्न होता है। यदि इसका मात्र पाँच प्रतिशत भाग मशरूम की खेती के काम में लाया जाए तो प्रतिवर्ष तीन लाख टन मशरूम उत्पन्न किया जा सकता है।
तालिका-2 राज्यवार मशरूम का उत्पादन (टन में) | ||
राज्य | 1992-93 | 1995-96 |
तमिलनाडु | 1200 | 4800 |
पंजाब | 1200 | 4500 |
हिमाचल प्रदेश | 2000 | 4000 |
उत्तर प्रदेश | 2500 | 3800 |
हरियाणा | 1650 | 3500 |
पश्चिम बंगाल | 50 | 1530 |
मध्य प्रदेश | 200 | 1400 |
केरल | 300 | 900 |
दिल्ली | 500 | 800 |
जम्मू-कश्मीर | 300 | 800 |
कर्नाटक | 500 | 800 |
महाराष्ट्र | 250 | 800 |
उड़ीसा | 50 | 800 |
आन्ध्र प्रदेश | 300 | 700 |
भारत | 11520 | 35000 |
प्रजातियाँ
संसार में खाने योग्य मशरूम की लगभग 10,000 प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें 70 प्रजातियाँ कृत्रिम खेती के लिये उपयुक्त हैं। भारत में भी मशरूम की कई प्रजातियों की खोज की जा चुकी है परन्तु भारतीय वातावरण में तीन प्रकार की प्रजातियाँ अधिक उपयुक्त मानी गई हैं। ये हैं- आयस्टर मशरूम, बटन मशरूम और पैडी-स्ट्रॉ मशरूम।
आयस्टर मशरूम की खेती बड़ी आसान एवं सस्ती है। इसमें दूसरे मशरूम की तुलना में औषधीय गुण भी अधिक हैं। दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई एवं चेन्नई जैसे महानगरों में इसकी बड़ी माँग है। इसीलिये विगत तीन वर्षों में इसके उत्पादन में 10 गुना वृद्धि हुई है। तमिलनाडु और उड़ीसा में तो यह गाँव-गाँव में बिकता है। कर्नाटक राज्य में भी इसकी खपत काफी है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, केरल, राजस्थान और गुजरात राज्यों में भी आयस्टर मशरूम की कृषि लोकप्रिय हो रही है।
बटन मशरूम निम्न तापमान वाले क्षेत्रों में अधिक उगाया जाता है। परन्तु अब ग्रीन हाउस तकनीक द्वारा यह हर जगह उगाया जा सकता है। सरकार द्वारा बटन मशरूम की खेती के प्रचार-प्रसार को भरपूर प्रोत्साहन दिया जा रहा है। फलस्वरूप अब इसका उत्पादन 20 कि.ग्रा. प्रति वर्गमीटर से अधिक है जबकि तीन दशक पूर्व प्रति वर्ग मीटर मात्र 3 कि.ग्रा. था।
पैडी-स्ट्रॉ मशरूम की खेती भारत के पूर्वी राज्यों में अधिक लोकप्रिय है। इसकी कृषि गर्मी के तीन महीने में की जाती है। पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में यह बहुतायत से उगाया जाता है। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी इसकी खेती लोकप्रिय हो रही है।
अन्तरराष्ट्रीय बाजार में मशरूम की बहुत माँग है। यह ताजे रूप में सुखाकर व प्रसंस्कृत कर बंद डिब्बों में विदेशों को भेजा जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस व अन्य यूरोपीय देश भारतीय मशरूम के बड़े ग्राहक हैं। वर्ष 1994-95 एवं 1995-96 में क्रमशः 4000 एवं 5000 लाख रुपये मूल्य का मशरूम विदेशों को निर्यात किया गया।
विकास का आधार
मशरूम कम निवेश पर कम समय पर अधिक लाभ देने वाली खेती है। इसलिये भारत सरकार ने इसके विकास के लिये कई कारगर कदम उठाये हैं। आठवीं पंचवर्षीय योजना में भारत सरकार के कृषि मंत्रालय ने मशरूम की खेती को बढ़ावा देने एवं इसका उत्पादन बढ़ाने के लिये एक करोड़ रुपये का प्रावधान किया था।
देश के कई राज्यों में मशरूम की खेती में वृद्धि के लिये शोध कार्य हो रहे हैं जिनके परिणाम आ जाने पर मशरूम की खेती का व्यापक विस्तार होगा। मशरूम को प्रसंस्कृत करने की नई-नई इकाईयाँ खुल रही हैं। वर्तमान समय में राष्ट्रीय मशरूम प्रशिक्षण और अनुसंधान केन्द्र तथा अखिल भारतीय समन्वित मशरूम विकास परियोजना मशरूम की कृषि के विकास और खोज के क्षेत्र में सहायता प्रदान कर रही है।
मशरूम की खेती को स्वरोजगार के रूप में अपनाने के लिये हमारे देश के कुछ बैंकों के द्वारा वित्त पोषण की व्यवस्था की गई है। ये बैंक हैं- भारतीय स्टेट बैंक की कृषि विकास शाखा, भारतीय सेंट्रल बैंक की कृषि विकास शाखा, और पंजाब नेशनल बैंक। ये बैंक सस्ती ब्याज दर पर प्रोजेक्ट के अनुसार लघु एवं दीर्घावधि की ऋण सुविधा प्रदान करते हैं।
शहरी क्षेत्र के बेरोजगार युवक नेहरू रोजगार योजना और ग्रामीण क्षेत्र के युवक प्रधानमंत्री रोजगार योजना का लाभ लेकर बिना किसी दिक्कत के मशरूम की खेती प्रारम्भ कर अपनी बेरोजगारी दूर कर सकते हैं। समय-समय पर मशरूम की खेती का प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाया जाता है।
प्रशिक्षण कार्यक्रम में सम्मिलित होकर मशरूम की खेती की विधि जानी जा सकती है। वैसे मशरूम की खेती की विधि बड़ी आसान है। यह बहुत तकनीकी नहीं है। बिना पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी इसकी खेती कर सकता है।
गरीबों के लिये तो मशरूम की खेती बहुत बढ़िया व्यवसाय है क्योंकि उसमें लागत कम आती है, आय अधिक है लाभ भी कम समय में हो जाता है। अतः बेरोजगार नवयुवकों, भूमिहीनों एवं गरीबों को मशरूम की खेती अपनानी चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि आज मशरूम की खेती रोजगार प्रदान करने एवं गरीबी दूर करने का सबसे अच्छा साधन है।
(लेखक पी.जी. कॉलेज, अतर्रा, बांदा (उत्तर प्रदेश) के भूगोल विभाग में रीडर हैं।)