मुगालते में लोग : बाढ़, भूस्खलन बनाम जलविधुत परियोजनाएँ

Submitted by RuralWater on Sun, 09/06/2015 - 10:36

हिमालय दिवस 9 सितम्बर 2015 पर विशेष


पहाड़ों के नीचे लम्बी-लम्बी सुरंगों का निर्माण ही गाँव के लिये खतरा बनकर आया है। कहते हैं कि पहाड़ में सुरंगों के निर्माण से निकलने वाले मलबे ने ही आपदा को और बढ़ाया है। ये डम्पिंगयार्ड नदी की प्राकृतिक धारा को अवरोध कर रहे थे। कालीमठ पूरा धँस रहा है। कहा कि यहाँ फाटा-ब्यूँगाड़ जलविद्युत परियोजना के निर्माण से प्रभावित क्षेत्र के कई गाँव भारी दहशत में हैं। वर्तमान में जो प्रकृति के साथ अनियोजित तरीके से छेड़छाड़ हो रही है उसका श्रेय भी वर्तमान में यहाँ रह रहे लोगों को ही जाता है, क्योंकि उन्होंने ही आपदा को पैदा किया है। उत्तराखण्ड राज्य 53,484 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में बसा है। पर्यटन व तीर्थाटन का यह अद्भुत केन्द्र भी है। यहाँ की जीवनरेखा कही जाने वाली सदानीरा नदियों में भागीरथी, अलकनन्दा मन्दाकिनी, सरयू, महाकाली जैसी पवित्र नदियों के उद्गम स्थान होने कारण इसे देव भूमि भी कहा जाता है।

राज्य का प्राकृतिक स्वरूप धीरे-धीरे बदलता नजर आ रहा है। बर्फीली चोटियों की जगह पिघलते ग्लेशियर, प्राकृतिक वनस्पतियों के स्थान पर पहाड़ी क्षेत्र उजाड़ एवं वीरान घाटियों में तब्दील होते दिखाई दे रहे हैं।

अब तो साल 2010 से इस राज्य में आपदा रुकने का नाम नहीं ले रही है। यहाँ कभी बाढ़, कभी भूकम्प, कभी भूस्खलन जैसी आपदा के कारण लोगों के दिलों में चौबीसों घंटे भय बना रहता है। जैसे ही फिर से लोग कुछ दिनों बाद अपनी गुजर-बसर करने लगते हैं तो दूसरी आपदा आ जाती है।

उत्तराखण्ड राज्य को राज्य भर के जनप्रतिनिधी ऊर्जा प्रदेश कहकर खूब वकालत करते हैं। उन्हें इस बात का कतई मलाल नहीं कि यदि ये सभी जलविद्युत परियोजनाएँ बन जाएगी तो राज्य के लोग इस पहाड़ी राज्य में रह पाएँगे या नहीं?

आजकल गंगोत्री, यमनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ क्षेत्र के लोग हू-ब-हू कह रहे हैं कि जून 2013 की आपदा को निमार्णाधीन जलविद्युत परियोजनाओं ने ही न्यौता दिया है।

ग़ौरतलब हो कि देहरादून स्थित केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति ने भी एक हास्यस्पद बयान देकर कहा था कि उत्तराखण्ड राज्य में बड़े बाँध बनेंगे तो आपदा रुक जाएगी। ग़ौरतलब हो कि केदारनाथ से आ रही मन्दाकिनी नदी पर निर्माणाधीन फाटा-ब्यूँग और सिंगोली-भटवाड़ी जल विद्युत परियोजना एवं इसके आगे श्रीनगर जल विद्युत परियोजना किसी बड़े बाँध से कम हैं?

मन्दाकिनी और अलकनन्दा नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र में बसे हुये गाँव का इतिहास-भूगोल इन जलविद्युत परियोजनाओं ने बदल दिया है। यही नहीं गरीब और छोटे किसानों और भूमिहीनों को चौराहे पर खड़ा कर दिया है। सिंगोली- भटवाड़ी जल विद्युत परियोजना का निर्माण कर रही एल.एन.टी. कम्पनी के सहायक प्रबन्धक एस.के. भारद्वाज बताते हैं कि इस निर्माण पर अब तक 666 करोड़ खर्च हो चुके हैं। आपदा से मात्र 200 करोड़ का ही नुकसान हुआ है।

कहते हैं कि सम्पूर्ण परियोजना को कुल 900 करोड़ का घाटा 2013 की आपदा के ही कारण हुआ है। बाढ़ के कारण 25,000 घनमीटर वाले मलबे का डम्पिंगयार्ड भी मन्दाकीनी ने बहा के ले गई थी। स्थानीय लोग बताते हैं कि इस डम्पिंगयार्ड के बहने के कारण चन्द्रापुरी गाँव का नामो निशान ही समाप्त हुआ है। उधर सिंगोली-भटवाड़ी परियोजना की टनल 8 किमी बन चुकी थी जो अब मलबा से पट चुकी है।

आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट के अनुसार नए निर्माण पर प्रतिबन्ध होने के बावजूद भी न्यायालय के आदेश की कॉपी तक परियोजना निर्माण कर रहे संचालकों के पास नहीं है। बताया गया कि आपदा से पूर्व सिंगोली-भटवाड़ी जलविद्युत परियोजना निर्माण में 800 लोग कार्यरत थे जो आपदा आने के बाद अब अपने आपदा प्रभावित गाँव में वापस चले गए हैं।

एल.एन.टी. कम्पनी के सहायक प्रबन्धक एस.के. भारद्वाज ने एक सवाल के जवाब में कहा कि उन्होंने पहाड़ के कटान और पहाड़ में सुरंग निर्माण के लिये ड्रिलिंग और ब्लास्ट का प्रयोग किया है। इसके लिये उनके पास पाँच जम्बो ड्रिलिंग मशीनें एटलस कैप्को कम्पनी की है। जिसमें एक मशीन की कीमत 4 करोड़ रु. के लगभग है। जबकि स्थानीय लोग बताते हैं कि बाँध का निर्माण डायनामाइट व बलास्ट से ही हुआ है। कहा कि कई बार ग्रामीणों को बलास्ट की भयंकर आवाज़ से इधर-उधर होना पड़ा।

रयाड़ी गाँव की सुशीला भण्डारी बताती है कि पहले सिंगोली-भटवाड़ी जलविद्युत परियोजना 66 मेगावाट की थी, जिसको सिंगोली-भटवाड़ी नामक स्थान के बीच में बनना था। बाद में यह कुण्ड से बेड़ूबगड़ तक पूर्व स्वीकृति के उल्टी दिशा में बनाई जा रही है, जो अब 99 मेगावाट की हो गई है। उनका आरोप है कि परियोजना का नाम अब तक सिंगोली-भटवाड़ी ही है।

उन्होंने कहा कि इस परियोजना की निर्मित आठ किमी सुरंग के ऊपर 33 ग्राम सभाओं की लगभग 20 हजार जनसंख्या निवास करती है, जो वर्तमान में आपदा से पूरी तरह ग्रस्त है। लोगों के आवासीय भवन जर्जर हो चुके हैं। कहा कि एल.एन.टी. कम्पनी की कोई पुनर्वास नीति तक नहीं है और सरकार है कि बिना लोगों को विश्वास में लिये ही कम्पनी को निर्माण करने की स्वीकृति दे रही है।

दूसरी ओर यह परियोजना नवम्बर 2015 में पूर्ण होनी थी जो 16, 17 जून 2013 की विनाशकारी आपदा के कारण परियोजना का लगभग पूरा कार्य प्रभावित हो गया।

उधर नरायणकोटी के मदन सिंह बताते हैं कि मद्महेश्वर घाटी में कुणजेठीगाँव, ब्यौंखी, कालीमठ गाँव सर्वाधिक खतरे की जद में है। उनके गाँव में भू-धँसाव और बाढ़ की समस्या तथा आवासीय भवनों में खतरनाक दरारों का दौर पिछले पाँच वर्षों से अधिक बढ़ा है। जब से जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण शुरू हुआ, तब से क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएँ तेजी से होने लगी हैं। उन्होंने कहा कि सड़कों का चौड़ीकरण भी भारी ब्लास्टिंग से हो रहा है। जिससे पहाड़ों की छाती छलनी हो रही है।

पहाड़ों के नीचे लम्बी-लम्बी सुरंगों का निर्माण ही गाँव के लिये खतरा बनकर आया है। कहते हैं कि पहाड़ में सुरंगों के निर्माण से निकलने वाले मलबे ने ही आपदा को और बढ़ाया है। ये डम्पिंगयार्ड नदी की प्राकृतिक धारा को अवरोध कर रहे थे। कालीमठ पूरा धँस रहा है। कहा कि यहाँ फाटा-ब्यूँगाड़ जलविद्युत परियोजना के निर्माण से प्रभावित क्षेत्र के कई गाँव भारी दहशत में हैं।

जयनारायण नौटियाल मानते हैं कि उनकी भविष्य की पीढ़ी उन्हें माफ नहीं करेगी। क्योंकि वर्तमान में जो प्रकृति के साथ अनियोजित तरीके से छेड़छाड़ हो रही है उसका श्रेय भी वर्तमान में यहाँ रह रहे लोगों को ही जाता है, क्योंकि उन्होंने ही आपदा को पैदा किया है। वे कहते हैं कि मनुष्यों ने ही हिमालय पर आक्रामक विकास को स्वीकृति दी है। फाटा से सीतापुर तक सीमा सड़क संगठन द्वारा मोटर मार्ग का चौड़ीकरण किया जा रहा है।

इस निर्माण के प्रयोग में लाई जा रही भारी ब्लास्टिंग से शेरसीगाँव काँप रहा है। निर्वतमान क्षेत्र पंचायत सदस्य विजय सिंह ने बताया कि केदारनाथ के निकट त्रियुगीनारायण के पास सीतापुर से ब्यूंगाड़ तक 9 किमी. बाँध की सुरंग बनाई गई थी। इस सुरंग निर्माण से गाँव के भवनों में काफी दरारें आईं और इसके चलते भड़ियाता तोक पर बहुत बड़ा गड्ढा बन गया था। इसको ढँकने के लिये बाँध निर्माण कम्पनी ने रातों-रात सैकड़ों सीमेंट के कट्टे गड्ढे में भरे दिये।

कुछ दिन बाद रुड़की से आई इंजीनियरों की टीम को निर्माण कर रही कम्पनी ने बताया कि वे यहाँ वृक्षारोपण कर रहे हैं। बताया जाता है कि लैंको कम्पनी ने कभी भी निर्माणाधीन फाटा-ब्यूँग जलविद्युत परियोजना के सम्बन्ध में स्थानीय प्रभावितों से कोई सलाह व संस्तुति तक नहीं ली है।

लोग हैरान है कि इस कम्पनी को यहाँ निर्माण करने की संस्तुति किसने दी? जलविद्युत परियोजना की सुरंग में जब 16 जून की सुबह की बाढ़ का मलबा फँसा तो मन्दाकिनी नदी तीन मिनट तक बड़ासू से सीतापुर तक झील में तब्दील हो गई थी। जिस कारण बडासू गाँव की जखोली, वैला, चाली नामे तोक में 400 नाली से अधिक कृषि भूमि तबाह हुई। ग्रामीणों ने बताया कि केवलानन्द थपलियाल का मकान जब लैंको कम्पनी के सुरंग निर्माण के दौरान दरारनुमा हो गया तो कम्पनी ने आनन-फानन में उनके लिये दूसरा मकान लगभग पाँच लाख रु. की लागत से बनवा दिया।

उत्तराखण्ड में भूस्खलन की समस्या बढ़ती जा रही हैइसी तरह गाँव के शारदानन्द, जशोधर सहित 15 परिवारों को कम्पनी ने मुआवजा दिया था। ग्रामीणों के मुताबिक सुरंग बनने के बाद तरसाली गाँव का पेयजल स्रोत सूख गया है। अब ग्रामीण पानी के लिये तरस रहे हैं। ऐसी तमाम समस्याओं को लेकर ग्रामीण तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश से दिल्ली में जाकर मिले थे। श्री रमेश ने ग्रामीणों को आश्वस्त किया था कि वे बाँध निर्माण क्षेत्र में जाँच करवाएँगे। जाँच हुई भी थी, लेकिन जाँच रिपोर्ट कहाँ गायब हुई जो अब तक सन्देहास्पद है।

यहाँ भी सुरंग निर्माण के लिये लैंको कम्पनी के पास सवा करोड़ रुपए का एक मात्र बूमर, एक जैकहोल, एक मेनहोल बताया जाता है। इसके प्रयोग के बाद भी सुरंगों के ऊपर के गाँव विस्फोटों से हिल गए हैं। गाँव और सुरंग का फासला 500 मीटर के बीच बताया जाता है। कम्पनी संचालकों का कहना है कि सुरंग के डायमीटर से दुगुना कवर है जिसके ऊपर का हिस्सा सुरक्षित है। इसके बाद भी यहाँ मकानों में दरारें आ रही हैं।

केदारनाथ जाने वाले मार्ग पर स्थित खुनेरा गाँव की सामाजिक कार्यकर्ता अर्चना बहुगुणा ने कहा कि फाटा में नौ कम्पनियों के हैलीपैड हैं। यात्राकाल में एक दिन में 24 चक्कर एक कम्पनी का हेलीकॉप्टर केदारनाथ में आने-जाने के लिये उड़ान भरता है।

अर्चना का यह मानना है कि जब लोगों की साँस से ग्लेशियर पिघलने को खतरा बना रहता है तो फाटा से केदारनाथ के लिये नौ कम्पनियों के हेलीकॉप्टरों की प्रतिदिन 216 उड़ाने ग्लेशियरों पर कितना प्रभाव डालती होगी? वे मानती हैं कि जब से केदारनाथ के लिये हवाई यात्रा आरम्भ हुई है तब से ग्लेश्यिरों के पिघलने की खबरे भी बड़ी तेजी से बढ़ी है।

कोई नहीं सुनता


नदी बचाओ अभियान के संयोजक सुरेश भाई कहते हैं कि लोगों के उजड़ते और सम्भलते इस राज्य की एक कहानी ही बनती जा रही है। इस विपरित परिस्थितियों में भी सरकार में बैठे हुक्मरान कब जनता के प्रति जवाबदेही बनेंगे यह बड़ा सवाल है। सरकार को पुनर्विचार करना पड़ेगा कि राज्य के निवासियों और पर्यावरण संरक्षण के लिये लोगों के साथ कैसी रणनीति बने जिसके लिये राज्य सरकार को समय-समय पर सुझाव दिये भी गए हैं।

फाटा-ब्यूंगाड़ जलविद्युत परियोजना की टनल के ऊपर बसे गाँव

1-सीतापुर, 2-रामपुर, 3-नियालसु, 4-शेरसी, 5-बड़ासू, 6-तरसाली, 7-जामू, 8-धारगाँव, 9-रविग्राम, 10-खाटगाँव, 11-खड़िया, 12-धानी, 13-नैखण्डा, 14-ब्यूँगाँव जबकि अकेले सिंगोली-भटवाड़ी जलविद्युत परियोजना की सुरंग की ऊपर 33 ग्राम सभाएँ आ रही हैं।

हालात ये फाटा-ब्यूँगाड़ जलविद्युत परियोजना


निशीथ शर्मा डीजीएम व राजेश रॉय आईआर लैंको कम्पनी के अनुसार फाटा- ब्यूँगाड़ जलविद्युत परियोजना अक्टूबर 2014 में सम्पन्न होनी थी। बाँध की सुरंग नौ किमी. पूर्ण बन चुकी थी। पावर हाऊस भी बन चुका था। अब स्थिति इतनी विपरीत हो गई है कि एचआरटी में नौ किमी तक मलबा भर चुका है। बाँध कई स्थानों पर टूट गया है।

बाँध बनने के बाद जहाँ पाँच लाख घनमीटर पानी भरना था वहाँ वर्तमान में 20 लाख घनमीटर मलबा भर गया है। निर्मित सुरंग से डेढ़ लाख घनमीटर मलबा आया था। इस बाँध निर्माण पर अब तक 500 करोड़ रुपए खर्च हो चुके थे। जहाँ परियोजना की लागत 2004 में 490 करोड़ थी। अब यदि पुर्ननिर्माण होगा तो 600 करोड़ का खर्चा आ सकता है।

सुरंग में भरा हुआ सात लाख घनमीटर मलबा निकालना पड़ेगा इसके लिये नये सिरे से बजट की आवश्यकता है। कम्पनी के वरिष्ठ कर्मचारियों ने कहा कि आपदा के कारण बांध का जो नुकसान हुआ है ऐसी घटना पहली बार हुई है। इस आपदा से बाँध परियोजना को मात्र 200 करोड़ का नुकसान हुआ है। बाँध निर्माण के लिये कम्पनी ने 40 नाली भूमि 1 लाख 50 हजार रु. प्रति नाली के हिसाब से खरीदी है। आपदा के बाद केवल 315 लोगों को ही मानदेय दिया जा रहा है। बाँध निर्माण का कार्य आपदा के कारण बन्द पड़ा है।

डमार गाँव भूस्खलन की चपेट में


गाँव की तलहटी से सिंगोली-भटवाड़ी जलविद्युत परियोजना की सुरंग गुजर रही है। जब 19 जुलाई 2013 को गाँव भयानक रूप से नीचे खिसकने लगा तो प्रशासन ने ग्रामीणो से गाँव खाली करवाया। डमार गाँव में 18 नवम्बर को सर्वे ऑफ इण्डिया के वैज्ञानिकों के साथ डीडीओ और एसीएफ रुद्रप्रयाग आये थे। उनकी रिपोर्ट क्या है उन्हें अब तक नहीं बताया गया है।

टेमरिया पंचायत के शिवानन्द सेमवाल का कहना है कि जहाँ-जहाँ से बाँध की सुरंग जा रही है वहाँ-वहाँ इस दौरान की आपदा ने अत्यधिक नुकसान किया है। सिंगोली-भटवाड़ी परियोजना का निर्माण कर रही एल.एन.टी. कम्पनी ने वन विभाग को 12 करोड़ रु. पर्यावरण के नुकसान की भरपाई के लिये दिये हैं। जिसमें से अकेला टेमरिया गाँव में 35 लाख रु. से पर्यावरण संरक्षण का कार्य होना था जो अब तक नहीं हुआ है। इसके बदले पूरा गाँव लैण्ड स्लाइड जोन बन गया है, जहाँ भविष्य में रहना खतरे से खाली नहीं है।

मन्दाकिनी घाटी के सर्वाधिक भूस्खलन जोन


1-कुण्ड, 2-काकड़गाड़, 3-पठालीगांड़, 4-चन्द्रापुरी, 5-विजयनगर, 6-सिल्ली, 7-तिलवाड़ा, 8-रामपुर के अलावा जिन-जिन गदेरो (प्राकृतिक नाले) में भूस्खलन ने तबाही मचाई वे इस प्रकार से हैं- 1-सिंगोली-भटवाड़ी, 2-पल्ला टिमरिया, 3-वल्ला टिमरिया, 4-डमारगाड़, 5-बिरौंगाड़, 6-अरखुण्डहाट गाड़, 7-सिल्लागाड़, 8-अगस्तमुनी के पास सिल्लीगाड़, 9-बेंजीगाड़, 10-सुमाड़ी। यह भूस्खलन के जोन केदारनाथ जाने वाले मार्ग पर हैं जो रुद्रप्रयाग से ही शुरू हो जाते हैं।