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काव्य संचय- (कविता नदी)
नावों ने खिलाए हैं फूल मटमैले
क्या उन्हें याद है कि वे कभी पेड़ बनकर उगी थीं
नावें पार उतारती हैं
खुद नहीं उतरतीं पार
नावें धार के बीचोंबीच रहना चाहती हैं
तैरने ने दे उस उथलेपन को समझती हैं ठीक-ठाक
लेकिन तैरने लायक गहराई से ज्यादा के बारे में
कुछ भी नहीं जानतीं नावें
बाढ़ उतरने के बाद वे अकसर मिलती हैं
छतों या पेड़ों पर चढ़ी हुई
नावें डूबने से डरती हैं
भर-भरकर खाली होती रहती हैं नावें
सुनसान तटों पर चुपचाप
खूँटों से बँधी रहती हैं नावें।
क्या उन्हें याद है कि वे कभी पेड़ बनकर उगी थीं
नावें पार उतारती हैं
खुद नहीं उतरतीं पार
नावें धार के बीचोंबीच रहना चाहती हैं
तैरने ने दे उस उथलेपन को समझती हैं ठीक-ठाक
लेकिन तैरने लायक गहराई से ज्यादा के बारे में
कुछ भी नहीं जानतीं नावें
बाढ़ उतरने के बाद वे अकसर मिलती हैं
छतों या पेड़ों पर चढ़ी हुई
नावें डूबने से डरती हैं
भर-भरकर खाली होती रहती हैं नावें
सुनसान तटों पर चुपचाप
खूँटों से बँधी रहती हैं नावें।