नदी

Submitted by admin on Fri, 10/04/2013 - 16:08
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काव्य संचय- (कविता नदी)
हमने घी और दूध से भरी नदियों का स्मरण किया
और उन्हें मल और मूत्र से भर दिया
नदी की सतह पर अब सिर्फ कालिख और तेल है
सूरज तक नहीं देख पाता उसमें अपना चेहरा
मछलियों का दम कब का घुट चुका
मर चुकी है नदी
माझी तुम किस खुशी में
ट्रांजिस्टर बजा रहे हो इस लाश के किनारे
गा सको तो गाओ हइया ओ हइया वाला गीत
याद आएँ दृश्य
बचपन में देखी हुई फिल्म के

चमकदार लहरों पर डोलती एक नाव
हमें अपनी ओर आती दिखाई दे।