नदी जोड़ योजना
तिथिः 06 अगस्त 2016
सायं काल 3:00 बजे, हाईटी
सायं काल 4:00 बजे, कार्यक्रम की शुरुआत
स्थानः कान्स्टीट्यूशन क्लब, रफी मार्ग, नई दिल्ली
भारत जल और भूमि संसाधनों से सम्पन्न देश है। विश्व में भारत की भूमि 2.5 प्रतिशत है, जल संसाधन वैश्विक उपलब्धता का 4 प्रतिशत है और जनसंख्या 17 प्रतिशत है। उपलब्ध क्षेत्र 165 मिलियन हेक्टेयर है जो दुनिया में दूसरा सबसे अधिक क्षेत्र है, उसी तरह जैसे भारत का स्थान जनसंख्या के मामले में भी दुनिया में दूसरा है। नब्बे के दशक में भारत में 65 प्रतिशत किसान और कृषि मजदूर थे जिससे स्पष्ट होता है कि हमारा देश कृषि यानि जमीन और जल पर निर्भर रहा है। इसलिए इस बात को शुरुआत से ही माना जाता रहा है कि देश के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिये जल संसाधनों का विकास अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
दुनिया में जल संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं। अगर विश्व की आबादी बढ़कर 25 अरब हो जाएगी तो भी उपलब्ध पानी पर्याप्त होगा। भारत में कुल उपलब्ध पानी 16500 लाख की आबादी के लिये पर्याप्त है (1500 घन मीटर/प्रति व्यक्ति/प्रतिवर्ष)।
इन परिस्थितियों में कुछ विचारकों का यह मानना है कि भारत सरकार उपलब्ध पानी का उपयोग करने के लिये नदियों (19 करोड़ 50 लाख हेक्टेयर मीटर) को आपस में जोड़ने का कार्य तुरंत करें। जैसा कि पहले ही कहा गया है, देश में काफी पानी उपलब्ध है लेकिन उसका वितरण असमान है, इसलिए देश जल संकट का सामना कर रहा है- विशेष रूप से दक्षिण और पश्चिम में। हमें समुद्र में व्यर्थ बहने वाले 65 प्रतिशत पानी का उपयोग करना चाहिए और जिन स्थानों पर अतिरिक्त पानी है, उन स्थानों से संकट ग्रस्त इलाकों में पानी पहुँचाया जाना चाहिए।
जल विपुलता वाले क्षेत्रों में बाढ़ नियंत्रण सहित अतिरिक्त लाभों के अलावा नदी जोड़ परियोजना द्वारा नहरों के विस्तृत जाल के माध्यम से अरबों घनमीटर की विशाल जल धाराओं से 35 मिलियन हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि को सिंचित करने और 34,000 मेगावाट ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य है। जो मौजूदा सिंचाई परियोजनाओं के पूरे उपयोग के लिये पर्याप्त है। यह भी उल्लेखनीय है कि मानसून के मौसम में गंगा, ब्रह्मपुत्रा, मेघना नदियों के बेसिन में बाढ़ आ जाती है, जबकि पश्चिमी भारत और प्रायद्वीपीय बेसिनों में पानी की कमी हो जाती है।
इन तमाम बेसिनों में पानी की उपलब्धता बनाए रखने, बाढ़ से बचने और खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिये नदी जोड़ कार्यक्रम ही एकमात्र उत्तम और सरल उपाय है। नई कृषि प्रौद्योगिकी और नये प्रकार के बीज मिलने के बाद भी खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिये सरकार को सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करना ही होगा। अन्यथा, खाद्यान्न आयात पर बढ़ती निर्भरता से पीछा नहीं छूटेगा। बदलते हुए जलवायु के परिपेक्ष में खाद्य सुरक्षा और जल सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय नदी जोड़ परियोजनाओं का क्रियान्वयन नितांत आवश्यक है। हालाँकि नदी जोड़ने की इस परियोजना में भारी खर्च आने का अनुमान है।
बढ़ता हुआ औद्योगीकरण व शहरीकरण स्थानीय जल संसाधनों पर दबाव डाल रहे हैं। ऐसे में एन.जी.ओ. और नागरिक समूहों ने ऐसे उद्योगों का विरोध तेज कर दिया है जिनमें पानी की अधिक मात्रा में खपत होती है। इसके अलावा नदी जोड़ परियोजना के द्वारा नहरों के माध्यम से नदियों को जोड़ा जाना है और इसके लिये एक बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण की आवश्यकता होगी और वो भी विभिन्न प्रदेशों के मध्य सामंजस्य बनाते हुए। कुछ राज्य जैसे तमिलनाडु, जहाँ कोई बड़ी नदी नहीं निकलती है और जो पड़ोसी राज्यों की नदियों पर निर्भर है, इस परियोजना का भरपूर समर्थन कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ राज्य, जैसे असम, सिक्किम और केरल आदि, अपने जल संसाधनों पर अपने कोई भी अधिकार प्रभावित नहीं होने देना चाहते हैं। पानी की कमी को दूर करने के लिये नदियों को जोड़ने से हटकर हमारे पास ज्यादा सार्थक तरीके हैं।
सौभाग्य से, नदियों को जोड़ने के इस मामले पर पुनर्विचार करने के लिये अभी भी समय है कि नदियों को जोड़ने का विचार कितने मजबूत आधार पर टिका है? उसकी उपयुक्तता कितनी है? क्या वह अपरिहार्य है, और क्या उसका कोई विकल्प नहीं है? इन सभी बिन्दुओं पर विचारार्थ नदी जोड़ो योजना : एक संवाद नामक परिसंवाद का आयोजन आई.एस.आर.एन., अरण्या एवं डिवाईन इंटरनेशनल फाउंडेशन की ओर से दिनांक 6 अगस्त, 2016 को कान्स्टीट्यूशन क्लब, रफी मार्ग, नई दिल्ली में किया गया है।
आपकी सादर सहभागिता की आवश्यकता है एवं आपके विचार भी आमंत्रित हैं।
सम्पर्क
आई.एस.आर.एन.
के-13, साउथ एक्स पार्ट- 2, नई दिल्ली – 110049, फोन नं. 011-41045160
6 अगस्त, 2016 सायं काल 4 बजे कान्स्टीट्यूशन क्लब, रफी मार्ग, नई दिल्ली