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शिवमपूर्णा, अक्टूबर 2014

नदी शीर्ष क्षेत्रों के संरक्षण और उचित प्रबंधन की दिशा में सबसे पहला कदम है ऐसे क्षेत्रों को मानचित्रों में अंकित करना तथा मौके पर चिन्हांकित किया जाना। अमरकण्टक में नर्मदा उद्गम स्थल के निकट सम्भावित नदी शीर्ष संरक्षण क्षेत्र की एक अनुमानित सीमा मानचित्र पर दिखाने का प्रयास किया गया है। यह नदी शीर्ष क्षेत्र की सीमा रेखा को विधिवत सर्वेक्षण के बाद पक्के मुनारे बनाकर मौके पर भी चिन्हांकित किया जा सकता है।
नदी शीर्ष क्षेत्र की पहचान व सीमांकन के पश्चात निम्नानुसार कदम उठाए जा सकते हैं:-
1. नदी शीर्ष प्रबंधन के कार्य को व्यवस्थित रूप से निरन्तरता में जारी रखने के लिए प्रदेश की मुख्य नदियों के लिए दीर्घकालिक नदी शीर्ष प्रबंधन योजना बनाई जानी चाहिए जिसमें उक्त क्षेत्र की स्थानीय भौगोलिक बनावट, मिट्टी, पेड़-पौधों, समस्याओं और सम्भावनाओं के आधार पर सर्वाेत्तम रणनीति विकसित करके उस पर अमल किया जा सके।
2. वन विदोहन की प्राथमिकताओं का पानी की दृष्टि से पुनर्निर्धारण ताकि उक्त क्षेत्र का अतिरिक्त संरक्षण व बेहतर प्रबंधन किया जा सके जिससे जल उत्पादन की निरन्तरता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
3. जैविक दबाव के कारण बिगड़ गए वनक्षेत्रों में निम्न वितान तथा वन धरातलीय वनस्पति के सुधार हेतु कदम उठाए जाने चाहिए तथा आवश्यकतानुसार स्थानीय, मिश्रित प्रजातियों का रोपण करके उसका अच्छा रख-रखाव किया जाना चाहिए।
4. नदी शीर्ष में वृक्षों की अवैध कटाई, अनियंत्रित चराई और वन अग्नि पर नियंत्रण पक्की तौर पर सुनिश्चित करने की व्यवस्था हर हालत में करनी चाहिए।
5. रासायनिक उर्वरकों व विषैले कीटनाशकों के प्रभाव से नदी उद्गम को मुक्त रखने के लिए प्रतिबन्धात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।
6. नदी शीर्ष क्षेत्र में मौजूद स्थलीय व जलीय जैव विविधता का विशेष संरक्षण किया जाना चाहिए।
7. जन जागरण तथा जन भागीदारी नदी शीर्ष क्षेत्रों के संरक्षण के लिए अपरिहार्य है। ग्राम सभाएँ तथा वन समितियाँ इस काम में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। इस काम में स्थानीय जन समुदाय को जोड़ने के लिए क्षेत्र के गाँवों में चिन्तर-गोष्ठियाँ, जनजागरण शिविर तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए तथा विद्यालयों/महाविद्यालयों में इस विषय पर अनौपचारिक रूप से शिक्षण व अध्ययन प्रवास जैसे कार्यक्रम आयोजित कराना चाहिए।
8. नदी शीर्ष क्षेत्रों के संरक्षण व प्रबंध की सतत मॉनीटरिंग के लिए मापदण्ड व सूचक विकसित किए जाने चाहिए और सम्बन्धित ग्राम पंचायतों के सहयोग से इन क्षेत्रों पर सतर्क नजर रखनी चाहिए।
उपरोक्तानुसार कदम उठाते हुए प्रदेश की प्रमुख नदियोंं के नदी शीर्ष क्षेत्रों की पहचान व सीमांकन करके उनके संरक्षण तथा विकास का कार्य किया जा सकता है। वैसे तो यह कार्य लगभग सभी प्रमुख नदियों और उनकी मुख्य सहायिकाओं के नदी शीर्ष क्षेत्रों में अविलम्ब किए जाने की जरूरत है परन्तु प्रथम चरण में नर्मदा, सोन, महानदी, चम्बल,जोहिला जैसी प्रमुख नदियों तथा उनकी मुख्य सहायक नदियों के लिए तो यह कार्य तत्काल शुरू किया जा सके तो उत्तम होगा।
नदी तटीय वन बफर
नदी तटीय वन बफर वृक्षों, झाड़ियों, शाकीय पौधों, बाँस और घास से आच्छादित एक हरित पट्टी के रूप में होते हैं। यह हरित बफर पट्टी मिट्टी के क्षरण से पैदा अवसाद के कणों, खेतों में प्रयोग होने वाले रासायनिक उर्वरकों तथा विषैले कीटनाशकों जैसे हानिकारक पदार्थों को जलधारा में मिलने से पहले ही छान कर रोक लेती है और इनका प्रयोग पौधों के ऊतकों में करके उन्हें अहानिकारक तत्वों में बदल देती है। ऐसे वन बफर नदी के कगारों के कटाव पर प्रभावी नियंत्रण रखने में भी मददगार होते हैं। सघन प्राकृतिक वनों में तो ये बफर कुदरती ढंग से अपना काम करते ही हैं, परन्तु जिन क्षेत्रों में ये न हों वहाँ वृक्षारोपण करके ऐसी हरित बफर पट्टी विकसित भी की जा सकती है।
- वन संरक्षक, खण्डवा (म.प्र.), मो. 09425174773