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हिमालयी पर्यावरण शिक्षा संस्थान मातली, उत्तरकाशी
पर्वत की चिट्ठी ले जाना, तू सागर की ओर,
नदी तू बहती रहना।
एक दिन मेरे गांव में आना, बहुत उदासी है,
सबकी प्यास बुझाने वाली, तू खुद प्यासी है,
तेरी प्यास बुझा सकते हैं, हम में है वो जोर।
तू ही मंदिर तू ही मस्जिद तू ही पंच प्रयाग,
तू ही सीढ़ीदार खेत है तू ही रोटी आग
तुझे बेचने आए हैं ये पूँजी के चोर।
नेता अफ़सर गुंडे खुद को कहते सूरज चाँद
बसे बसाए शहर, डुबाने बड़े-बड़े ये बांध
चाहे कोई भी आये, चाहे मुनाफा खोर
नदी तू बहती रहना, नदी तू बहती रहना
नदी तू बहती रहना।
एक दिन मेरे गांव में आना, बहुत उदासी है,
सबकी प्यास बुझाने वाली, तू खुद प्यासी है,
तेरी प्यास बुझा सकते हैं, हम में है वो जोर।
तू ही मंदिर तू ही मस्जिद तू ही पंच प्रयाग,
तू ही सीढ़ीदार खेत है तू ही रोटी आग
तुझे बेचने आए हैं ये पूँजी के चोर।
नेता अफ़सर गुंडे खुद को कहते सूरज चाँद
बसे बसाए शहर, डुबाने बड़े-बड़े ये बांध
चाहे कोई भी आये, चाहे मुनाफा खोर
नदी तू बहती रहना, नदी तू बहती रहना