सूखेंगी नदियां तो, रोयेगी, सदियां

Submitted by Hindi on Sat, 12/15/2012 - 14:39
Source
हिमालयी पर्यावरण शिक्षा संस्थान मातली, उत्तरकाशी
तुम हो पर्वत पर,
या हो घाटी में।

है अपना दर्द एक, एक ही कहानी,
सूखेंगी नदियां तो, रोयेगी, सदियां,

ऐसा न हो प्यासा, रह जाये पानी।
हमने जो बोया वो काटा है, तुमने,
मौसम को बेचा है बांटा है, तुमने,
पेड़ों की बांहों को काटा है, तुमने।

इस सूनी घाटी को,
बांहों में भर लो,
सूखे पर्वत की धो डालो, वीरानी।

प्रार्थना सभाओं से चलते हैं, धंधे,
जलूसों की भीड़ों में बिके हुए, कंधे,
सूरज को जाली बताते हैं, अंधे,

मंदिर में उगते संगिनों के जंगल,
उगती आस्थाओं से कहते मनमानी।