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हिमालयी पर्यावरण शिक्षा संस्थान मातली, उत्तरकाशी
गांवों-गांवों में नई किताब लेके रहो
कहीं पे आग कहीं पर नदी बहा के रहो
हर आंख में सवाल चिखता रहेगा क्या
जवाब अब टोपियों में बंद रहेगा क्या
गांव-गांव में अब पैर को जमा के रहो
कहीं पे आग कहीं पर नदी बहा के रहो
भ्रष्ट अंधकार का समुद्र आयेगा
सूर्य झोपड़ी के द्वार पहुंच जाएगा
आंधियों के घरों में भी जरा जा के रहो
कहीं पे आग कहीं पर नदी बहा के रहो
तेरी जुबान का कागज तो आज बोलेगा
ये गांव में गली के राज सभी खोलेगा
दिलों की कापियों पर गीत एक बहा के रहो
कहीं पे आग कहीं पर नदी बहा के रहो।
कहीं पे आग कहीं पर नदी बहा के रहो
हर आंख में सवाल चिखता रहेगा क्या
जवाब अब टोपियों में बंद रहेगा क्या
गांव-गांव में अब पैर को जमा के रहो
कहीं पे आग कहीं पर नदी बहा के रहो
भ्रष्ट अंधकार का समुद्र आयेगा
सूर्य झोपड़ी के द्वार पहुंच जाएगा
आंधियों के घरों में भी जरा जा के रहो
कहीं पे आग कहीं पर नदी बहा के रहो
तेरी जुबान का कागज तो आज बोलेगा
ये गांव में गली के राज सभी खोलेगा
दिलों की कापियों पर गीत एक बहा के रहो
कहीं पे आग कहीं पर नदी बहा के रहो।