6 नवम्बर 2014
श्रद्धेय प्रधानमंत्री जी
आप अवगत् हैं कि बिहार राज्य के 81 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। विशेष भौगोलिक स्थिति के कारण, एक तरफ राज्य का उत्तरी भाग देश का सर्वाधिक बाढ़ प्रवण क्षेत्र है और प्रत्येक बर्ष बाढ़ की चपेट में रहता है, तो वहीं दक्षिणी भाग सूखा की मार से त्रस्त रहता है। बिहार में कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 6880 लाख हेक्टेयर है जो भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 73 प्रतिशत तथा देश के कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र (400 लाख हेक्टेयर) का (17.20 प्रतिशत है। उत्तर बिहार के सभी प्रमुख नदियों (बुढ़ी गण्डक का छोड़कर) का उद्गम स्थल नेपाल एवं तिब्बत में स्थित है तथा इन नदियों का तीन चौथई जलग्रहण क्षेत्र नेपाल एवं तिब्बत में ही पड़ता है। बाढ़ के शमन हेतु दीर्घकालीन स्थायी निदान के उपाय में अन्तरराष्ट्रीय पहलू निहित है क्योंकि बाढ़ शमन हेतु जलाशय का निर्माण नेपाल में ही सम्भव है। सूखा प्रवण दक्षिण बिहार क्षेत्र में सिंचाई उपलब्ध कराने एवं बाढ़ प्रवण उत्तर बिहार की जनता को बाढ़ से सुरक्षा प्रदानकरने की महती जिम्मेदारी पूरा करने के लिए केन्द्र सरकार के सकारात्मक सहयोग की आवश्यकता है। साथ ही गंगा नदी के अविरल प्रवाह बहाल किए जाने हेतु भगीरथ प्रयास की आवश्यकता है।
बिहार में जल संसाधन के समेकित विकास के लिए अनेक सिंचाई, जल निस्सरण तथा बाढ़ शमन की योजनाओं का कार्यान्वयन प्रगति में है और कुछ प्रस्तावित है, परन्तु भारत सरकार द्वारा राज्यों के लिए AIBP, FMP, एवं RMWBA कार्यक्रम के तहतयोजनाओं के चयन एवं वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने हेतु निर्गत मार्गदर्शिका से प्रावधानित जटिल प्रक्रिया बिहार के जल संसाधन विकास में बाधा उत्पन्न कर रही है। इस सन्दर्भ में दिनांक 25/6/2014 को भेजे गए पत्र के माध्यम से भारत सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया गया था। उक्त पत्र में उल्लेखित बिन्दुओं के अलावे महत्वपूर्ण मुद्दों पर आपका ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहना है कि :-
उत्तर बिहार के बाढ़ शमन के दीर्घकालीन समाधान हेतु नेपाल में सप्तकोशी हाईडैम बहुद्देशीय परियोजना तथा सनकोशी स्टोरेज सह डायवर्सन योजना, बागमती नदी के नूनथोर एवं कमला नदी के चीसापानी स्थान पर डैम का निर्माण आवश्यक है। इन योजनाओं के विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन (DPR) तैयार करने हेतु संयुक्त परियोजना कार्यालय की स्थापना वर्ष 2004 में हुई थी जिसे तीस महीनों के अन्दर सर्वेक्षण कर प्रतिवेदन तैयार करना था, जो आज तक पूर्ण नहीं हो सका है एवं अब इसका नया लक्ष्य वर्ष 2015 रखा गया है। इसके अतिरिक्त, बिहार भू-भाग में डैम के लिए उपयुक्त एकमात्र स्थल, बूढ़ी गण्डक नदी पर मसान डैम के निर्माण में वन भूमि की स्वीकृति मुख्य बाधा है। इन योजनाओं के शीघ्र कार्यान्वयन हेतु केन्द्र सरकार के स्तर पर गम्भीर प्रयास की आवश्यकता है।
वर्तमान में 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए बाढ़ प्रबन्धन कार्यक्रम (FMP) के अन्तर्गत योजनाओं को सम्मिलित करने हेतु एक नई मार्गनिर्देशिका निर्गत हुई है, उसके अनुसार राज्य सरकार के स्तर पर तकनीकी सलाहकार समिति/योजना पुनरीक्षण समिति/राज्य बाढ़ नियन्त्रण पर्षद से अनुशंसित होने के पश्चात् केन्द्र सरकार के स्तर पर गंगा बाढ़ नियन्त्रण आयोग/एडवाईजरी कमिटी/योजना आयोग/इन्टरमिनिस्ट्रियल कमिटी की स्वीकृति आवश्यक है। इतने प्रक्रियाओं को पूरा करने में कम-से-कम 4-6 माह का न्यूनतम् समय लगता है और तब तक मौनसून की अवधि प्रारम्भ हो जाती है तथा योजनाओं का कार्यान्वयन समय पर प्रारम्भ नहीं होने से आम जनमानस को बाढ़ की विभीषिका झेलनी पड़ती है।
इतना ही नहीं, FMP के अन्तर्गत वर्ष 2012-13 में कराए गए तथा RMAWBA (River Management Activities And Works Related to Border Areas) के अन्तर्गत वर्ष 2013 में कार्यान्वित योजनाओ के लिए केन्द्राश की विमुक्ति हेतु गंगा बाढ़ नियन्त्रण आयोग, जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा अनुशंसा किए जाने के पश्चात् भी अब तक क्रमशः 171.29 करोड़ रुपए तथा 44.2 करोड़ की राशि राज्य सरकार को प्राप्त नहीं हुई है। इसी प्रकार AIBP (त्वरित लाभ सिंचाई योजना) के अन्तर्गत सिंचाई योजनाओं के लिए वर्ष 2011-12, वर्ष 2012-13 एवं वर्ष 2013-14 में राज्य सरकार का कोई केन्द्रीय सहायता प्राप्त नहीं हुई है। इस मद में कार्यान्वित किए गए योजनाओं के विरुद्ध 1213.62 करोड़ रुपए की राशि केन्द्र सरकार के यहाँ लम्बित है। साथ ही योजनाओं को सम्मिलित करने हेतु 12वीं पंचवर्षीय योजना में 50 प्रतिशत भौतिक एवं वित्तीय प्रगति के शर्त को संशोधित कर 10 प्रतिशत किया जाना अपेक्षित है।
उत्तर बिहार में बाढ़ की विभीषिका का प्रमुख कारण नेपाल से आने वाली नदियाँ हैं, जो अपने प्रवाह के साथ अत्यधिक गाद (Silt) लाती हैं जिसके कारण उत्तर बिहार के समतल भूमि में गाद जमा हो कर नदियों को अपने प्रवाह मार्ग से विचलित करती है। इसके अतिरिक्त गंगा नदी पर फरक्का बराज के निर्माण से इस नदी के Morphology में बदलाव तथा अपस्ट्रीम में सिल्ट जमा होने के फलस्वरूप गंगा नदी की जल निस्सरण क्षमता में कमी के कारण भी उत्तर बिहार में बाढ़ की प्रबलता बढ़ी है। इस सम्बन्ध में बिहार का ठोस मत है कि बाढ़ के शमन हेतु एक प्रभावकारी राष्ट्रीय गाद प्रबन्धन (National Silt Management Policy) सूत्रित की जाय, ताकि गंगा, कोसी एवं अन्य नदियों में गाद (Silt) प्रबन्धन सुनिश्चित ढँग से हो सके। गाद प्रबन्धन नीति (Silt Management Policy) बनाने की दिशा में भारत सरकार के स्तर पर सार्थक पहल की आवश्यकता है।
बिहार में कई योजनाएँ अन्तरराज्यीय पहलू के समाधान के बिना कई वर्षों से लम्बित पड़ी हैं। कुछेक योजनाओं पर भारी निवेश के बावजूद अधूरी लम्बित पड़ी हुई है, जिससे निवेशित राशि का लाभ नहीं मिल पा रहा है। उदाहरण के तौर पर उत्तर कोयल जलाशय परियोजना पर सात सौ करोड़ से अधिक राशि व्यय हो चुकी है और मात्र डैम में गेट अधिष्ठापन का कार्य बाकी है जो झारखण्ड सरकार के सकारात्मक सहयोग के अभाव में सम्पन्न नहीं हो पा रहा है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश एवं झारखण्ड सरकार से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने के कारण 140 साल से अधिक पुरानी सोन नहर प्रणाली को स्थायित्व प्रदान करने के साथ-साथ 450 मेगावाट बिजलीजनित करने वाली बिहार सरकार की महत्वाकांक्षी इन्द्रपुरी जलाशय योजना की स्वीकृति केन्द्रीय जल आयोग में काफी समय से लम्बित पड़ी है। ठीक उसी प्रकार बिहार-पश्चिम बंगाल एकरारनामा 1979 के तहत् प्रस्तावित अपर महानन्दा सिंचाई योजना पश्चिम बंगाल से सहमति के अभाव में केन्द्रीय जल आयोग में स्वीकृति हेतु लम्बित है एवं इसी एकरारनामा के तहत् प्रस्तावित एक अन्य योजना तिलैया ढाढर अपसरन योजना, जिसमें दामोदर नदी घाटी निगम के अन्तर्गत निर्मित तिलैया जलाशय योजना से दो लाख एकड़ फीट जल को ढाढर नदी में अपसरित (Divert) कर सूखाग्रस्त गया तथा नवादा जिला में सिंचाई सुविधा दिया जाना प्रस्तावित है, पर भारी निवेश के बावजूद झारखण्ड सरकार की सहमति के अभाव में अधूरा पड़ा है। अन्तरराज्यीय योजनाओं की स्वीकृति हेतु भारत सरकार द्वारा प्रभावी पहल कर समस्याओं का समाधान कराया जाना अपेक्षित है।
वर्ष 1986 में भारत सरकार द्वारा नौ-परिवहन हेतु गंगा नदी के हल्दिया से इलाहाबाद रिच को राष्ट्रीय जल मार्ग-1 घोषित किया गया था, जिसमें 45 मीटर रिच में 3 मीटर गहरा जल की उपलब्धता सुनिश्चित किया जाना था। हाल के दिनों में समाचार पत्रों एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में यह खबर प्रमुखता से छापी गई है कि भारत सरकार नौ-परिवहन हेतु इलाहाबाद से हल्दिया के बीच अनेक बराज बनाने की योजना बना रही है। उल्लेखनीय है कि पश्चिमी बंगाल में गंगा नदी पर फरक्का बराज के निर्माण के कुप्रभाव का खामियाजा बिहार को वहन करना पड़ रहा है। इस पृष्ठभूमि में आशंका है कि भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद से हल्दिया के बीच नौ-परिवहन हेतु उपर्युक्त प्रस्तावित बराज-शृंखला के निर्माण से गंगा की अविरल धारा अवरुद्ध होगी तथा फलस्वरूप यह पावन नदी मात्र बड़े-बड़े तालाबों के रूप में परिणत होकर रह जायेगी जो पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी संतुलन के दृष्टिकोण से अत्यन्त विनाशकारी होगा। गंगा नदी की निरंतरता, अविरलता एवं निर्मलता के दृष्टिगत इलाहाबाद से हल्दिया के बीच गंगा नदी पर बराज श्रृंखला निर्माण की परिकल्पना के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले विस्तृत impact study कराए बिना एतत्सम्बन्धी किसी प्रकार का निर्णय स्थगित रखा जाना चाहिए।
गंगा नदी उत्तर भारत की जीवन रेखा तो है ही, यह बिहार की वर्षों से सभ्यता के विकास का माध्यम रही है, परन्तु आज ये मृतप्राय सी हो गई है जिसे जीवन्त बनाना हमारा कर्तव्य एवं धर्म है। ज्ञात हो कि गंगा नदी पर उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड में अनेक बाँध एवं बराज तथा ऊपरी भाग में अनेक सहायक नदियों पर जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण कर इसे मृत अवस्था में परिवर्तित कर दिया गया तथा बिहार में आकर नदी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। गंगा नदी के लगभग 75 प्रतिशत जलग्रहण क्षेत्र बिहार के ऊपरी राज्यों में पड़ता है, और बांग्लादेश को वर्ष 1996 के एकरारनामा के अनुसार जल उपलब्ध कराने हेतु फरक्का बराज पर 1500 Cumec जल की बाध्यता बिहार सरकार पर थोपी जाती है और इसी कारणवश गंगा जल के उपयोग हेतु बिहार की कोई योजना स्वीकृत नहीं की जाती है। बिहार सरकार द्वारा गंगा में अविरल धारा प्रवाह हेतु ऊपर के राज्यों के हिस्सेदारी तय करने हेतु भारत सरकार से वर्ष 1995 से ही अनुरोध किया जाता रहा है। वर्ष 2009 में भी गंगा नदी घाटी प्राधिकरण की बैठक में ऊपरी सहघाटी राज्यों के जल प्रवाह में प्रमुख बिन्दुओं पर हिस्सेदारी सुनिश्चित करने हेतु भारत सरकार से आग्रह किया गया था। आपके द्वारा भी गंगा में अविरल प्रवाह सुनिश्चित करने की बात प्रमुखता से कही जा रही है। इस सम्बन्ध में यह अनिवार्य है कि गंगाजल की अविरल धारा में सभी सहघाटी राज्यों की हिस्सेदारी तय करने हेतु अविलम्ब एक बैठक आहूत की जाय।
भवदीय से यह अपेक्षा है कि अपना निजी ध्यान देकर वर्णित सभी समस्याओं के समाधान हेतु आवश्यक निर्देश करने की कृपा करेंगे।
सादर
जीतन राम मांझी
(मुख्यमंत्री, बिहार)
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श्रद्धेय प्रधानमंत्री जी
आप अवगत् हैं कि बिहार राज्य के 81 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। विशेष भौगोलिक स्थिति के कारण, एक तरफ राज्य का उत्तरी भाग देश का सर्वाधिक बाढ़ प्रवण क्षेत्र है और प्रत्येक बर्ष बाढ़ की चपेट में रहता है, तो वहीं दक्षिणी भाग सूखा की मार से त्रस्त रहता है। बिहार में कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 6880 लाख हेक्टेयर है जो भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 73 प्रतिशत तथा देश के कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र (400 लाख हेक्टेयर) का (17.20 प्रतिशत है। उत्तर बिहार के सभी प्रमुख नदियों (बुढ़ी गण्डक का छोड़कर) का उद्गम स्थल नेपाल एवं तिब्बत में स्थित है तथा इन नदियों का तीन चौथई जलग्रहण क्षेत्र नेपाल एवं तिब्बत में ही पड़ता है। बाढ़ के शमन हेतु दीर्घकालीन स्थायी निदान के उपाय में अन्तरराष्ट्रीय पहलू निहित है क्योंकि बाढ़ शमन हेतु जलाशय का निर्माण नेपाल में ही सम्भव है। सूखा प्रवण दक्षिण बिहार क्षेत्र में सिंचाई उपलब्ध कराने एवं बाढ़ प्रवण उत्तर बिहार की जनता को बाढ़ से सुरक्षा प्रदानकरने की महती जिम्मेदारी पूरा करने के लिए केन्द्र सरकार के सकारात्मक सहयोग की आवश्यकता है। साथ ही गंगा नदी के अविरल प्रवाह बहाल किए जाने हेतु भगीरथ प्रयास की आवश्यकता है।
बिहार में जल संसाधन के समेकित विकास के लिए अनेक सिंचाई, जल निस्सरण तथा बाढ़ शमन की योजनाओं का कार्यान्वयन प्रगति में है और कुछ प्रस्तावित है, परन्तु भारत सरकार द्वारा राज्यों के लिए AIBP, FMP, एवं RMWBA कार्यक्रम के तहतयोजनाओं के चयन एवं वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने हेतु निर्गत मार्गदर्शिका से प्रावधानित जटिल प्रक्रिया बिहार के जल संसाधन विकास में बाधा उत्पन्न कर रही है। इस सन्दर्भ में दिनांक 25/6/2014 को भेजे गए पत्र के माध्यम से भारत सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया गया था। उक्त पत्र में उल्लेखित बिन्दुओं के अलावे महत्वपूर्ण मुद्दों पर आपका ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहना है कि :-
उत्तरी बिहार के बाढ़ शमन के स्थाई निदान :
उत्तर बिहार के बाढ़ शमन के दीर्घकालीन समाधान हेतु नेपाल में सप्तकोशी हाईडैम बहुद्देशीय परियोजना तथा सनकोशी स्टोरेज सह डायवर्सन योजना, बागमती नदी के नूनथोर एवं कमला नदी के चीसापानी स्थान पर डैम का निर्माण आवश्यक है। इन योजनाओं के विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन (DPR) तैयार करने हेतु संयुक्त परियोजना कार्यालय की स्थापना वर्ष 2004 में हुई थी जिसे तीस महीनों के अन्दर सर्वेक्षण कर प्रतिवेदन तैयार करना था, जो आज तक पूर्ण नहीं हो सका है एवं अब इसका नया लक्ष्य वर्ष 2015 रखा गया है। इसके अतिरिक्त, बिहार भू-भाग में डैम के लिए उपयुक्त एकमात्र स्थल, बूढ़ी गण्डक नदी पर मसान डैम के निर्माण में वन भूमि की स्वीकृति मुख्य बाधा है। इन योजनाओं के शीघ्र कार्यान्वयन हेतु केन्द्र सरकार के स्तर पर गम्भीर प्रयास की आवश्यकता है।
केन्द्रीय योजनाओं के कार्यान्वयन को सरलीकृत किया जाना
वर्तमान में 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए बाढ़ प्रबन्धन कार्यक्रम (FMP) के अन्तर्गत योजनाओं को सम्मिलित करने हेतु एक नई मार्गनिर्देशिका निर्गत हुई है, उसके अनुसार राज्य सरकार के स्तर पर तकनीकी सलाहकार समिति/योजना पुनरीक्षण समिति/राज्य बाढ़ नियन्त्रण पर्षद से अनुशंसित होने के पश्चात् केन्द्र सरकार के स्तर पर गंगा बाढ़ नियन्त्रण आयोग/एडवाईजरी कमिटी/योजना आयोग/इन्टरमिनिस्ट्रियल कमिटी की स्वीकृति आवश्यक है। इतने प्रक्रियाओं को पूरा करने में कम-से-कम 4-6 माह का न्यूनतम् समय लगता है और तब तक मौनसून की अवधि प्रारम्भ हो जाती है तथा योजनाओं का कार्यान्वयन समय पर प्रारम्भ नहीं होने से आम जनमानस को बाढ़ की विभीषिका झेलनी पड़ती है।
इतना ही नहीं, FMP के अन्तर्गत वर्ष 2012-13 में कराए गए तथा RMAWBA (River Management Activities And Works Related to Border Areas) के अन्तर्गत वर्ष 2013 में कार्यान्वित योजनाओ के लिए केन्द्राश की विमुक्ति हेतु गंगा बाढ़ नियन्त्रण आयोग, जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा अनुशंसा किए जाने के पश्चात् भी अब तक क्रमशः 171.29 करोड़ रुपए तथा 44.2 करोड़ की राशि राज्य सरकार को प्राप्त नहीं हुई है। इसी प्रकार AIBP (त्वरित लाभ सिंचाई योजना) के अन्तर्गत सिंचाई योजनाओं के लिए वर्ष 2011-12, वर्ष 2012-13 एवं वर्ष 2013-14 में राज्य सरकार का कोई केन्द्रीय सहायता प्राप्त नहीं हुई है। इस मद में कार्यान्वित किए गए योजनाओं के विरुद्ध 1213.62 करोड़ रुपए की राशि केन्द्र सरकार के यहाँ लम्बित है। साथ ही योजनाओं को सम्मिलित करने हेतु 12वीं पंचवर्षीय योजना में 50 प्रतिशत भौतिक एवं वित्तीय प्रगति के शर्त को संशोधित कर 10 प्रतिशत किया जाना अपेक्षित है।
राष्ट्रीय गाद प्रबन्धन नीति
उत्तर बिहार में बाढ़ की विभीषिका का प्रमुख कारण नेपाल से आने वाली नदियाँ हैं, जो अपने प्रवाह के साथ अत्यधिक गाद (Silt) लाती हैं जिसके कारण उत्तर बिहार के समतल भूमि में गाद जमा हो कर नदियों को अपने प्रवाह मार्ग से विचलित करती है। इसके अतिरिक्त गंगा नदी पर फरक्का बराज के निर्माण से इस नदी के Morphology में बदलाव तथा अपस्ट्रीम में सिल्ट जमा होने के फलस्वरूप गंगा नदी की जल निस्सरण क्षमता में कमी के कारण भी उत्तर बिहार में बाढ़ की प्रबलता बढ़ी है। इस सम्बन्ध में बिहार का ठोस मत है कि बाढ़ के शमन हेतु एक प्रभावकारी राष्ट्रीय गाद प्रबन्धन (National Silt Management Policy) सूत्रित की जाय, ताकि गंगा, कोसी एवं अन्य नदियों में गाद (Silt) प्रबन्धन सुनिश्चित ढँग से हो सके। गाद प्रबन्धन नीति (Silt Management Policy) बनाने की दिशा में भारत सरकार के स्तर पर सार्थक पहल की आवश्यकता है।
बाढ़ पूर्वानुमान हेतु आवश्यक संरचना का अधिष्ठापन
उत्तर बिहार में बाढ़ के पूर्वानुमान सूचना हेतु नेपाल भाग में अधिक संख्या में हाइड्रो मेट्रोलोजिकल स्टेशन एवं रीयल टाइम डाटा ट्रांसमीशन की योजना पर कार्रवाई किया जाना, भारत सरकार के स्तर से अपेक्षित है। इसके अलावे प्रमुख नदियों के नेपाल भाग के जलग्रहण क्षेत्र में प्रति घण्टे गेज/डिस्चार्ज के उपलब्ध आंकड़े को बिहार सरकार को उपलब्ध कराने हेतु भारत सरकार द्वारा नेपाल से सार्थक सहयोग की आवश्यकता है। ताकि बाढ़ के पूर्वानुमान का सही आकलन किया जा सके।सिंचाई योजनाओं के अन्तरराज्यीय पहलू का समाधान
बिहार में कई योजनाएँ अन्तरराज्यीय पहलू के समाधान के बिना कई वर्षों से लम्बित पड़ी हैं। कुछेक योजनाओं पर भारी निवेश के बावजूद अधूरी लम्बित पड़ी हुई है, जिससे निवेशित राशि का लाभ नहीं मिल पा रहा है। उदाहरण के तौर पर उत्तर कोयल जलाशय परियोजना पर सात सौ करोड़ से अधिक राशि व्यय हो चुकी है और मात्र डैम में गेट अधिष्ठापन का कार्य बाकी है जो झारखण्ड सरकार के सकारात्मक सहयोग के अभाव में सम्पन्न नहीं हो पा रहा है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश एवं झारखण्ड सरकार से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने के कारण 140 साल से अधिक पुरानी सोन नहर प्रणाली को स्थायित्व प्रदान करने के साथ-साथ 450 मेगावाट बिजलीजनित करने वाली बिहार सरकार की महत्वाकांक्षी इन्द्रपुरी जलाशय योजना की स्वीकृति केन्द्रीय जल आयोग में काफी समय से लम्बित पड़ी है। ठीक उसी प्रकार बिहार-पश्चिम बंगाल एकरारनामा 1979 के तहत् प्रस्तावित अपर महानन्दा सिंचाई योजना पश्चिम बंगाल से सहमति के अभाव में केन्द्रीय जल आयोग में स्वीकृति हेतु लम्बित है एवं इसी एकरारनामा के तहत् प्रस्तावित एक अन्य योजना तिलैया ढाढर अपसरन योजना, जिसमें दामोदर नदी घाटी निगम के अन्तर्गत निर्मित तिलैया जलाशय योजना से दो लाख एकड़ फीट जल को ढाढर नदी में अपसरित (Divert) कर सूखाग्रस्त गया तथा नवादा जिला में सिंचाई सुविधा दिया जाना प्रस्तावित है, पर भारी निवेश के बावजूद झारखण्ड सरकार की सहमति के अभाव में अधूरा पड़ा है। अन्तरराज्यीय योजनाओं की स्वीकृति हेतु भारत सरकार द्वारा प्रभावी पहल कर समस्याओं का समाधान कराया जाना अपेक्षित है।
गंगा नदी में नौ-परिवहन की योजना
वर्ष 1986 में भारत सरकार द्वारा नौ-परिवहन हेतु गंगा नदी के हल्दिया से इलाहाबाद रिच को राष्ट्रीय जल मार्ग-1 घोषित किया गया था, जिसमें 45 मीटर रिच में 3 मीटर गहरा जल की उपलब्धता सुनिश्चित किया जाना था। हाल के दिनों में समाचार पत्रों एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में यह खबर प्रमुखता से छापी गई है कि भारत सरकार नौ-परिवहन हेतु इलाहाबाद से हल्दिया के बीच अनेक बराज बनाने की योजना बना रही है। उल्लेखनीय है कि पश्चिमी बंगाल में गंगा नदी पर फरक्का बराज के निर्माण के कुप्रभाव का खामियाजा बिहार को वहन करना पड़ रहा है। इस पृष्ठभूमि में आशंका है कि भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद से हल्दिया के बीच नौ-परिवहन हेतु उपर्युक्त प्रस्तावित बराज-शृंखला के निर्माण से गंगा की अविरल धारा अवरुद्ध होगी तथा फलस्वरूप यह पावन नदी मात्र बड़े-बड़े तालाबों के रूप में परिणत होकर रह जायेगी जो पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी संतुलन के दृष्टिकोण से अत्यन्त विनाशकारी होगा। गंगा नदी की निरंतरता, अविरलता एवं निर्मलता के दृष्टिगत इलाहाबाद से हल्दिया के बीच गंगा नदी पर बराज श्रृंखला निर्माण की परिकल्पना के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले विस्तृत impact study कराए बिना एतत्सम्बन्धी किसी प्रकार का निर्णय स्थगित रखा जाना चाहिए।
गंगा नदी में अविरल धारा का प्रवाह सुनिश्चित किया जाना
गंगा नदी उत्तर भारत की जीवन रेखा तो है ही, यह बिहार की वर्षों से सभ्यता के विकास का माध्यम रही है, परन्तु आज ये मृतप्राय सी हो गई है जिसे जीवन्त बनाना हमारा कर्तव्य एवं धर्म है। ज्ञात हो कि गंगा नदी पर उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड में अनेक बाँध एवं बराज तथा ऊपरी भाग में अनेक सहायक नदियों पर जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण कर इसे मृत अवस्था में परिवर्तित कर दिया गया तथा बिहार में आकर नदी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। गंगा नदी के लगभग 75 प्रतिशत जलग्रहण क्षेत्र बिहार के ऊपरी राज्यों में पड़ता है, और बांग्लादेश को वर्ष 1996 के एकरारनामा के अनुसार जल उपलब्ध कराने हेतु फरक्का बराज पर 1500 Cumec जल की बाध्यता बिहार सरकार पर थोपी जाती है और इसी कारणवश गंगा जल के उपयोग हेतु बिहार की कोई योजना स्वीकृत नहीं की जाती है। बिहार सरकार द्वारा गंगा में अविरल धारा प्रवाह हेतु ऊपर के राज्यों के हिस्सेदारी तय करने हेतु भारत सरकार से वर्ष 1995 से ही अनुरोध किया जाता रहा है। वर्ष 2009 में भी गंगा नदी घाटी प्राधिकरण की बैठक में ऊपरी सहघाटी राज्यों के जल प्रवाह में प्रमुख बिन्दुओं पर हिस्सेदारी सुनिश्चित करने हेतु भारत सरकार से आग्रह किया गया था। आपके द्वारा भी गंगा में अविरल प्रवाह सुनिश्चित करने की बात प्रमुखता से कही जा रही है। इस सम्बन्ध में यह अनिवार्य है कि गंगाजल की अविरल धारा में सभी सहघाटी राज्यों की हिस्सेदारी तय करने हेतु अविलम्ब एक बैठक आहूत की जाय।
भवदीय से यह अपेक्षा है कि अपना निजी ध्यान देकर वर्णित सभी समस्याओं के समाधान हेतु आवश्यक निर्देश करने की कृपा करेंगे।
सादर
जीतन राम मांझी
(मुख्यमंत्री, बिहार)
पत्र को पढ़ने के लिए अटैचमेंट भी देख सकते हैं।