संजीव/जनसत्ता/मुजफ्फरनगर/17 जन.09
प्रदूषित होते पानी का असर फसल पर भी अब पड़ रहा है। जहर बनते नदियों के पानी व जल संरक्षण नहीं होने से आने वाले समय में प्रदूषित पानी को लेकर समस्या अधिक गहरी हो जाएगी।
जनपद में बागपत व बरनावा तक पहुंचने वाली कृष्णा नदी का यहां हिंडन में मिलन होता है। भूगर्भ जल संकट के कारण करीब सात साल पहले कृष्णा नदी में जल संभरण योजना शुरु की गई थी। इसका बजट 1.85 करोड़ रुपए था। इस योजना के तहत नदी के कोर्स में आठ सीट पाई चैक डैम बनाए गए।
जनपद के सुन्ना, सलका, काबड़ौत, कुडाना, बनत, कैड़ी, गोसगढ़ में डैम बने थे। चेक डैम से नदी में दो मीटर ऊंचाई तक पानी रोका गया तो दोनों साइड में दो सौ से सात सौ मीटर क्षेत्र में भूजल स्तर आठ फीट तक ऊपर आ गया था। नदी के किनारे वाले क्षेत्र में ही तीन सौ से अधिक नलकूप पानी देने लगे थे, जो जल स्तर निम्न होने के कारण बंद हो गए थे। लेकिन कुछ दिनों के बाद ही स्थिति खराब होती चली गई। जनपद की औद्योगिक इकाईयों के प्रदूषित जल ने नदियों का पानी जहरीला कर दिया है। हैंडपम्प का पानी भी स्वास्थ्य मानकों पर खरा नहीं है। कृषि वैज्ञानिक डॉ सत्यप्रकाश कहते हैं कि इस इलाके में कृष्णा नदी का पानी इतना दूषित हो गया है कि अगर किसान कृष्णा नदी के जल से सिंचाई करते हैं तो उन्हें दूसरी सिंचाई भूजल से करनी होगी, क्योंकि प्रदूषण का असर फसल में आ जाएगा।
सहारनपुर व मुजफ्फरनगर में चल रही चीनी और पेपर मिल का प्रदूषित पानी नदी में गिरने से पानी जहरीला हो रहा है। सहारनपुर से आ रही हिंडन नदी में अपना पानी तो सूख गया है, उसमें औद्योगिक इकाईयों का प्रदूषित पानी नाले के रूप में बह रहा है। काली नदी का भी यही हाल है। अधिक जल दोहन के कारण जनपद के शाहपुर व ऊन ब्लाक में हर साल 10-70 सेमी की जलस्तर गिरावट आ रही है। गाँवों में जहाँ कुंए, तालाब, पोखर समाप्त हो रहे हैं वहीं किसान भी पानी का अधिक दोहन कर रहे हैं। भूगर्भ जल संरक्षण विभाग ने 2006-07 में 96 तालाबों की खुदाई करने का दावा किया है। तालाब के किनारे पर पेड़ लगवाने में प्रति तालाब पर सवा लाख व कुल दो करोड़ रुपए खर्च किए गए। पर्यावरण विद डॉ देवराज पवार का कहना है कि जल संरक्षण के लिए सरकारी प्रयास बगैर जन जागरूकता के निष्प्रभावी हैं।
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प्रदूषित होते पानी का असर फसल पर भी अब पड़ रहा है। जहर बनते नदियों के पानी व जल संरक्षण नहीं होने से आने वाले समय में प्रदूषित पानी को लेकर समस्या अधिक गहरी हो जाएगी।
जनपद में बागपत व बरनावा तक पहुंचने वाली कृष्णा नदी का यहां हिंडन में मिलन होता है। भूगर्भ जल संकट के कारण करीब सात साल पहले कृष्णा नदी में जल संभरण योजना शुरु की गई थी। इसका बजट 1.85 करोड़ रुपए था। इस योजना के तहत नदी के कोर्स में आठ सीट पाई चैक डैम बनाए गए।
जनपद के सुन्ना, सलका, काबड़ौत, कुडाना, बनत, कैड़ी, गोसगढ़ में डैम बने थे। चेक डैम से नदी में दो मीटर ऊंचाई तक पानी रोका गया तो दोनों साइड में दो सौ से सात सौ मीटर क्षेत्र में भूजल स्तर आठ फीट तक ऊपर आ गया था। नदी के किनारे वाले क्षेत्र में ही तीन सौ से अधिक नलकूप पानी देने लगे थे, जो जल स्तर निम्न होने के कारण बंद हो गए थे। लेकिन कुछ दिनों के बाद ही स्थिति खराब होती चली गई। जनपद की औद्योगिक इकाईयों के प्रदूषित जल ने नदियों का पानी जहरीला कर दिया है। हैंडपम्प का पानी भी स्वास्थ्य मानकों पर खरा नहीं है। कृषि वैज्ञानिक डॉ सत्यप्रकाश कहते हैं कि इस इलाके में कृष्णा नदी का पानी इतना दूषित हो गया है कि अगर किसान कृष्णा नदी के जल से सिंचाई करते हैं तो उन्हें दूसरी सिंचाई भूजल से करनी होगी, क्योंकि प्रदूषण का असर फसल में आ जाएगा।
सहारनपुर व मुजफ्फरनगर में चल रही चीनी और पेपर मिल का प्रदूषित पानी नदी में गिरने से पानी जहरीला हो रहा है। सहारनपुर से आ रही हिंडन नदी में अपना पानी तो सूख गया है, उसमें औद्योगिक इकाईयों का प्रदूषित पानी नाले के रूप में बह रहा है। काली नदी का भी यही हाल है। अधिक जल दोहन के कारण जनपद के शाहपुर व ऊन ब्लाक में हर साल 10-70 सेमी की जलस्तर गिरावट आ रही है। गाँवों में जहाँ कुंए, तालाब, पोखर समाप्त हो रहे हैं वहीं किसान भी पानी का अधिक दोहन कर रहे हैं। भूगर्भ जल संरक्षण विभाग ने 2006-07 में 96 तालाबों की खुदाई करने का दावा किया है। तालाब के किनारे पर पेड़ लगवाने में प्रति तालाब पर सवा लाख व कुल दो करोड़ रुपए खर्च किए गए। पर्यावरण विद डॉ देवराज पवार का कहना है कि जल संरक्षण के लिए सरकारी प्रयास बगैर जन जागरूकता के निष्प्रभावी हैं।
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