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समय डॉट लाइव, 4 नवम्बर 2010
हवा-पानी व खाद्य पदार्थों में घुल-मिल रहे प्रदूषण से हम ही नहीं, बल्कि दुनिया के अधिसंख्य देश जूझ रहे हैं।
दुनिया का सबसे शक्तिशाली अमेरिका भी इससे अछूता नहीं है। मिसीसिपी अमेरिका की सबसे लंबी नदी है। 'गल्फ ऑफ मैक्सिको' व उसके आसपास के इलाके में आयल इंडस्ट्री, मेडिसिन व अन्य उद्योगों के खतरनाक रासायनिक उत्प्रवाह ने मिसीसिपी को जहरीला बना दिया है और इसके आसपास की बड़ी आबादी कैंसर जैसे घातक रोग की गिरफ्त में है। यही स्थिति अमेरिका की एक अन्य नदी कलोराडो की भी है। अमेरिका के सोसल सांइटिस्ट मानते हैं कि जल प्रदूषण को खत्म करने के लिए मौजूदा समय में किए जा रहे उपाय नाकाफी हैं।
बहरहाल किसी भी देश में केवल कानून बना देने से उक्त समस्या का समाधान नहीं हो सकता। उद्योगों का खतरनाक रासायनिक कचरा या उत्प्रवाह नदियों में न गिरने पाए, इसके लिए हर आम और खास को जागरूक होना होगा। उद्योगपति जहां संकल्प करें कि रासायनिक कचरा नदियों में नहीं डालेंगे वहीं नागरिकों में भी जल संरक्षण के प्रति सिविक सेंस डेवेलप होना चाहिए।
अमेरिका की अर्बन यूनिवर्सिटी की एंथ्रोपोलॉजी डिपार्टमेंट की प्रोफसर व सोशल सांइटिस्ट डॉ. केली डी एली इस बारे में कहती हैं कि मिसीसिपी में खतरनाक औद्योगिक कचरा गिरने से रोकने की कोशिशें हो रही हैं लेकिन प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। डा. केली डी एली गंगा के जल प्रदूषण का जायजा लेने के लिए कुछ समय पहले कानपुर व बनारस सहित कई शहरों का दौरा कर चुकी हैं। वह डेढ़ दशक के दौरान गंगा पर एक पुस्तक 'आन द बैंक आफ गंगा' भी लिख चुकी हैं जिसमें उन्होंने गंगा के दर्द को परत दर परत खोला है। डा. केली के अनुसार अमेरिका की सबसे बड़ी नदी मिसीसिपी भी प्रदूषण से मुक्त नहीं है। यह गल्फ ऑफ मैक्सिको में गिरती है जिस कारण उसके आसपास का करीब पचास वर्ग किलोमीटर का एरिया खतरनाक औद्योगिक कचरे के कारण संक्रमित या प्रदूषित हो चुका है। हालांकि इसको नियंत्रित करने के लिए इंवायरमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी है लेकिन उसके कानून मजबूत न होने के कारण दिक्कतें हो रही हैं।
आज मैक्सिको के इस इलाके को डेड जोन, कैंसर जोन, कैंसर प्रभावित एरिया, कैंसर सड़क के नाम से जाना जाता है। हालांकि अमेरिका व हिंदुस्तान सहित सभी देशों में औद्योगिक कचरे को ट्रीट किया जा रहा है लेकिन स्थिति नियंत्रण में नहीं है। नदियों व जल से लगाव रखने वाली डॉ. केली बताती हैं कि वर्ष 1994 के दौरान वह गंगोत्री से गोमुख की यात्रा कर चुकी हैं। उन्होंने विभिन्न शहरों में गंगा के प्रदूषण को बहुत नजदीक से देखा है। अपने कानपुर दौरे के दौरान उनका कहना था कि वर्तमान में 80 प्रतिशत रासायनिक कचरा सीधे गंगा में गिर रहा है और 20 प्रतिशत ही ट्रीट हो पा रहा है जबकि गंगा को प्रदूषणमुक्त होने के लिए इसे शत-प्रतिशत ट्रीट होना चाहिए। कानपुर में सबसे खराब व गम्भीर स्थिति है। इसमें सुधार होना चाहिए।
वाटर सिक्योरिटी व फूड सिक्योरिटी मानव जीवन से जुड़ा सबसे अहम मसला है लेकिन वाटर व फूड की सेंस्टीविटी को ही बर्बाद किया जा रहा है। देश-दुनिया में ऐसा जहां भी हो रहा है भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। बहरहाल सुंदरलाल बहुगुणा के 'गंगा बचाओ, हिमालय बचाओ' आंदोलन या वाटरमैन राजेन्द्र सिंह द्वारा गंगा को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए आयोजित यात्रा जैसे अभियानों की सार्थकता तभी है जब देश-दुनिया का कॉमनमैन गंगा, मिसीसिपी व अन्य नदियों को साफ-सुथरा रखने के लिए संकल्पित हो और औद्योगिक कचरे सहित अन्य खतरनाक गंदगी को नदियों में न गिरने दे। ईमानदार संकल्प के बिना कुछ भी नहीं होगा। तभी प्रदूषित नदियों की निर्मलता वापस लौट पाएगी।