बनाएं पर्यावरण अनुकूल घर

Submitted by Hindi on Tue, 11/02/2010 - 09:37
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समय डॉट लाइव, 2 नवम्बर 2010

प्राचीन काल में हमारी वास्तुकला काफी उन्नत थी।
तब प्राकृतिक स्रोतों का कुशलतापूर्वक उपयोग कर टिकाऊ और सुविधायुक्त भवन बनाए जाते थे। हर निर्माण सामग्री की गुणवत्ता का सूक्ष्म अध्ययन किए जाने के बाद ही उनका उपयोग होता था इसलिए इमारतें दीर्घकाल टिकाऊ होती थीं। कई सौ साल पुराने भवन और किले इसीलिए आज भी मौजूद हैं। लेकिन समय के साथ हम प्रकृति से दूर भागते गए और हमारे भवनों की औसत आयु भी क्षीण होती गई। पहले मकान बनाने में मिट्टी, बांस, लकड़ी और ईंट का उपयोग होता था, अब यह पूरी तरह सीमेंट, कंक्रीट और लोहे पर आधारित है। पहले के मकानों में सूर्य से गर्मी व प्रकाश तथा हवा से ठंडक की व्यवस्था की जाती थी। इनका स्थान आज एयर कंडीशनर, कूलर, हीटर और आंखों को चौंधियाने वाले बल्ब एवं सीएफएल ने लिया है। इन परिवर्तनों ने हमारे पर्यावरण को काफी क्षति पहुंचाई है।

विद्युत ऊर्जा के उत्पादन से काफी प्रदूषण फैलता है। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ाने में आधुनिक भवनों की ऊर्जा व्यवस्था का बड़ा हाथ माना गया है। इस्पात, तांबा, एल्युमीनियम और कंक्रीट के उपयोग से मकानों में ऊर्जा की खपत काफी बढ़ जाती है। भवन निर्माण सामग्री के लिए लौह अयस्क, बॉक्साइट आदि का अत्यधिक खनन होता है। जिससे हवा और पानी में प्रदूषित पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है। चिमनी में पकाई जाने वाली ईंटों के निर्माण में मूल्यवान कृषि भूमि का उपयोग होता है। इसकी निर्माण प्रक्रिया भी काफी प्रदूषणकारी होती है।

पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से अच्छे भवनों के निर्माण के लिए तीन मुख्य उपायों पर ध्यान दिया जा सकता है। शीत या तापकरण के लिए सूर्य और वायु जैसे प्राकृतिक स्रोतों का अधिकाधिक उपयोग, जलवायु नियंत्रण के लिए कुशल उपकरणों का चयन और परिष्कृत निर्माण सामग्री का इस्तेमाल। सूर्य की स्थिति को ध्यान में रखकर मकान बनाए जाने से उसमें मौसम के अनुकूल सुविधाएं सहज उपलब्ध हो जाती हैं और उनके लिए ऊर्जा की खपत भी नहीं होती। शीत-ताप नियंत्रण व्यवस्था में उत्तर रुख के मकान उपयुक्त माने गए हैं। खिड़कियों की स्थिति सूर्य के अनुरूप होने से कमरों में रोशनी का समुचित प्रबंध संभव है। ऋतुओं के अनुकूल डिजाइन की खिड़कियां घरों में हीटर और एयरकंडीशनर की जरूरत खत्म कर सकती हैं। पश्चिमी देशों के वास्तुविदों ने घर को हवादार बनाने के लिए रोशनदानों का कुशलतापूर्वक उपयोग किया है। साथ ही झरोखे आदि के माध्यम से प्रकाश के प्राकृतिक साधनों का अधिकाधिक उपयोग किया जाने लगा है।

अमेरिका और यूरोप के कई देशों में मौसम के अनुकूल खिड़कियों का निर्माण होने लगा है। इनमें ऐसे शीशे लगाए जा रहे हैं जिससे सूर्य का स्वच्छ प्रकाश अंदर आ सकता है लेकिन गर्मी पैदा करने वाली पराबैगनी (अल्ट्रा वॉयलेट) और अवरक्त (इंफ्रारेड) किरणें उसकी सतह से टकराकर लौट जाती हैं। जर्मनी की एक कंपनी ने खिड़की के ऐसे शीशे बनाए हैं जिनसे सौर ऊर्जा भी उत्पन्न की जा सकती है। मकानों में ताप व्यवस्था के लिए सौर ऊर्जा के उपयोग का प्रचलन बढ़ा है। इसके लिए खिड़कियों के साथ-साथ छतों में भी विशेष प्रकार की टाइल्स का उपयोग किया जा रहा है। यह सौर ऊर्जा हमारे घर के अंदर की अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति में भी सहायक हो सकती है।

गर्मी बढ़ने से आधुनिक भवनों की छतें और दीवारें गर्म हो जाती हैं। इसके लिए अब ऊष्मारोधी दीवारें बनाई जाने लगी हैं। इसमें हल्के रंग की छतें काफी उपयोगी पाई गई हैं, क्योंकि सूर्य की किरणें इससे टकराकर लौट जाती हैं। भवनों में प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों के बेहतर उपयोग से ऊर्जा की खपत में 60 प्रतिशत तक की बचत आंकी है। जलवायु के अनुकूल भवनों के निर्माण के लिए परिष्कृत डिजाइनों के साथ-साथ निर्माण सामग्रियों के चयन में भी सावधानी आवश्यक है। अनुसंधानों से पता चला कि मिट्टी के मकान पर्यावरण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं तथा इनमें ऊर्जा की खपत कम होती है। अमेरिका जैसे देशों में अब भवन निर्माताओं ने पुआल का भी उपयोग शुरू कर दिया है। यह श्रेष्ठ ऊष्मारोधी होता है। चिमनियों में पकी ईंटों और कंक्रीट के भी अब कई विकल्प तैयार किए जा रहे है। हमारे यहां भी कैल्शियम सिलीकेट की ईंटें बनाई जाने लगी हैं।

निर्माण सामग्रियों के आकलन में भवन में रहने वालों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखना आवश्यक है। आजकल कई ऐसी सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत घातक हैं। पीवीसी पाइप के उत्पादन में प्रदूषण को देखते हुए जर्मनी और अमेरिका में इसका उपयोग नहीं किए जाने के सुझाव दिए गए हैं। दीवार, फर्श, फर्नीचर, प्लाइवुड आदि में इस्तेमाल किए गए पेंट से भी खतरनाक कार्बनिक पदार्थों का उत्सर्जन होता है। एयर कंडीशनरों के लिए बंद किए गए कमरों के अंदर इससे कैंसर के खतरे बढ़े हैं। पेट्रोलियम पेंट की जगह अलसी तेल से बने पेंट का इस्तेमाल कर इस घातक प्रदूषण से बचा जा सकता है। पर्यावरण अनुकूल भवनों के निर्माण के प्रति थोड़ी सजगता सृष्टि की रक्षा में सहायक हो सकती है।