वैसे भी उत्तराखण्ड राज्य आपदा की दृष्टि से पूर्व से ही संवेदनशील रहा है। राज्य बनने के बाद तो राज्य को आपदाग्रस्त राज्य घोषित ही किया गया। इस हेतु सामान्य अवस्था में एक हेक्टेयर तक तथा आपदा ग्रस्त क्षेत्रों में 05 हेक्टेयर तक वन भूमि हस्तान्तरण का राज्य को अधिकार प्राप्त था, जो नवम्बर 2016 में समाप्त हो गया है। इस बात की पुष्टि सरकार ने नीति आयोग के समक्ष प्रस्तुत करके इसकी समय सीमा बढ़ाए जाने की पैरवी की है। स्वयं मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने पूर्व की व्यवस्था को राज्यहित में औचित्य पूर्ण बताते हुए कहा कि आपदा की दृष्टि से आपदाग्रस्त लोगों को त्वरित राहत पहुँचाने में यह व्यवस्था जरूरी है।
बता दें कि जब-जब उत्तराखण्ड राज्य में आपदा आई है तब-तब लोग एक छत के लिये मोहताज हुए हैं। क्योंकि राज्य में अधिकांश वनभूमि है। आपदा से बे-घरबार हुए लोगों को वनभूमि पर ही घर बनाना होता है। इसलिये लोगों को जिलाधिकारी के मार्फत भूमि हस्तान्तरण में कोई समस्या नहीं आती है। आपदा के वक्त लोगों को सर छुपाने के लिये त्वरित व्यवस्था होती है या सुरक्षित जगह उपलब्ध होती है तो यह राहत का सबसे बड़ा पक्ष होता है। ऐसे में भूमि हस्तान्तरण की ही समस्या खड़ी हो जाती है। लिहाजा पूर्व की सामान्य अवस्था में एक हेक्टेयर तक तथा आपदा ग्रस्त क्षेत्रों में 05 हेक्टेयर तक वन भूमि हस्तान्तरण का राज्य को जो अधिकार प्राप्त थे वे बहाल कर दिये जाये। सचिवालय में हुई नीति आयोग के साथ बैठक में यह बातें वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह, अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश, प्रमुख सचिव राधा रतूड़ी, मनीषा पंवार, आनंद बर्द्धन ने भूमि हस्तान्तरण के व्यावहारिक पक्ष को रखा।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि हर राज्य की परिस्थिति के अनुरूप योजनाओं का निर्माण किया जाना जरूरी है। कहा कि सरकार पर्यटन तथा ऑर्गेनिक कृषि व हॉर्टीकल्चर आधारित गतिविधियों को बढ़ावा देने की पक्षधर है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में ऊँचाई पर बसे ग्रामों के लिये प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में रोपवे का प्रावधान भी जोड़ा जाए। ताकि सड़क निर्माण में पहाड़ों की क्षति न हो और इस योजना को प्रधानमंत्री ग्राम संपर्क योजना के तौर पर जाना जाए। उन्होंने यह बात नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार से मुलाकात के दौरान कही।
उपाध्यक्ष नीति आयोग राजीव कुमार ने कहा कि नीति आयोग और राज्य सरकार के बीच सीधा संबंध जरूरी है। वे राज्य सरकार की प्राथमिकताओं को जानने के लिये आए हैं। यदि केंद्र सरकार के स्तर से राज्य सरकार की किसी परियोजना में कोई सहायता करनी हो तो इसके लिये भी नीति आयोग कदम उठाएगा। राज्य सरकार की ओर से सचिव नियोजन अमित नेगी ने राज्य के प्रमुख मुद्दों पर एक संक्षिप्त प्रस्तुतिकरण दिया। राज्य सरकार ने नीति आयोग के समक्ष विभिन्न क्षेत्रों के लिये परामर्शीय विशेषज्ञ सेवाओं की मांग भी की। इसमें विभागों के एकीकरण, राज्य योजनाओं के युक्तिसंगतीकरण, सॉलिड-वेस्ट मैनेजमेंट, नए पर्यटक स्थल, होम स्टे, पर्वतीय औद्योगिक नीति तथा रोपवे स्थापना के विषय प्रमुख हैं।
बैठक में वन भूमि हस्तांतरण के कारण परियोजनाओं में होने वाले विलंब पर भी चर्चा हुई। वन सचिव अरविंद सिंह हयांकी ने कहा कि केंद्रीय परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिये क्षतिपूरक वृक्षारोपण में शिथिलता प्रदान की जाती है। इसी तर्ज पर राज्य की परियोजनाओं के लिये भी छूट प्रदान की जानी चाहिए। सामान्य अवस्था में एक हेक्टेयर तक तथा आपदा ग्रस्त क्षेत्रों में 05 हेक्टेयर तक वन भूमि हस्तान्तरण का राज्य को अधिकार प्राप्त था, जो नवम्बर 2016 में समाप्त हो गया। इसकी समय सीमा बढ़ाया जाना औचित्य पूर्ण होगा।
नीति आयोग से पर्यावरणीय सेवाओं के सापेक्ष ग्रीन बोनस प्रदान करने की मांग भी की गई। सचिव ऊर्जा राधिका झा ने बताया कि पर्यावरणीय कारणों से राज्य की कुल जल विद्युत उत्पादन क्षमता का 20 प्रतिशत उपयोग भी नहीं हो पा रहा है। इससे लगभग 40 हजार करोड़ का निवेश प्रभावित हो रहा है। इसके अतिरिक्त अधिकारियों द्वारा ईको सेंस्टिव जोन, आपदा प्रभावित 398 ग्रामों के विस्थापना, राज्य की गौचर, नैनी सैनी व चिन्यालीसौंड हवाई पट्टियों को रीजनल कनेक्टिविटी स्कीम के अन्तर्गत जोड़ेने की बात भी उठाई गई।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष द्वारा प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना के बारे में रुचि व्यक्त की गई। सचिव शहरी विकास द्वारा अवगत कराया गया कि प्रधानमंत्री आवास योजना का सर्वे 31 अक्टूबर को समाप्त हुआ है तथा लगभग एक लाख पाँच हजार परिवार चिन्हित कर लिये गए हैं। इस योजना में बैंकों की सक्रियता बढ़ाने के लिये उनके लिये लक्ष्य भी निर्धारित किया जा रहा है।
ज्ञात हो कि 2013 की आपदा ने लोगों की कमर तोड़कर रख दी है। आज भी आपदाग्रस्त क्षेत्रों में लोग एक अदद छत के लिये मोहताज हैं। यही वजह है कि आपदा प्रभावित 398 ग्रामों के विस्थापना की समस्या खड़ी हो रखी है। सवाल इस बात का है कि जब सामान्य अवस्था में एक हेक्टेयर तक तथा आपदा ग्रस्त क्षेत्रों में 05 हेक्टेयर तक वन भूमि हस्तान्तरण का राज्य को अधिकार प्राप्त था तो इसे तत्काल प्रभावी क्यों नहीं बनाया गया। इस व्यवस्था पर बार-बार नीति आयोग के उपाध्यक्ष जानना चाह रहे थे कि आपदा प्रभावित 398 ग्रामों के विस्थापना की समस्या अब तक समाप्त हो जानी चाहिए थी। यही नहीं राज्य के ऊँचाई के क्षेत्रों में बसे गाँव आज भी यातायात जैसी सुविधा से पिछड़ गये हैं। इसलिये इसकी व्यावहारिकता को समझते हुए नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने मुख्यमंत्री की मांग को दोहराते हुए कहा कि वे भी प्रयास करेंगे कि ऊँचाई पर बसे ग्रामों के लिये प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में रोपवे का प्रावधान भी जोड़ा जाना चाहिए। ताकि सड़क निर्माण में पहाड़ों की क्षति भी ना हो और लोग यातायात सुविधा से जुड़ सके। इधर सॉलिड-वेस्ट मैनेजमेंट के बजट का सद्पयोग हो इसके लिये अधिकारियों के स्तर पर भी सक्रियता को बढाने की बात नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने कही। कहा कि तभी हम स्वच्छ भारत के मिशन को पूरा कर पायेंगे।