खुले में शौच से मुक्ति कब होगी यह कोई नहीं बता सकता। यहाँ सरकार बता रही है कि फलां गाँव व शहर शौचालययुक्त हो गये हैं या ओडीएफ घोषित कर दिये हैं। इसी तरह उत्तराखण्ड राज्य के 14 नगर निकायों को केन्द्र सरकार ने खुले में शौच से मुक्ति के लिये चयन किया है। लोगो में खास उत्साह है कि उनके वार्ड और रास्ते सरकारी बजट से साफ-सुथरे रहेंगे। हर व्यक्ति के पास शौचालय होगा, तो हर सार्वजनिक स्थलों पर शौचालय सहित अन्य सुविधा मुहैया होगी। क्योंकि केन्द्र सरकार ने जो इन नगर निकायों का खुले में शौच से मुक्ति के लिये विशेष तौर पर चयन किया है।
यह रही सरकारी योजनाओं की कहानी, सुनने में बहुत ही अच्छी और जनहितकारी लगती है। किन्तु ऐसी योजनाओं का जमीन पर उतरने से पहले ही शौचालय विहीन जैसी बदबू इन पर आने लगती है। खैर स्वच्छता के लिये प्रधानमंत्री मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है। शायद यह कार्य जमीनी रूप ले सकता है। यहाँ राज्य की अस्थाई राजधानी देहरादून का उदाहरण ही काफी है कि इसे शौचालययुक्त कैसे बनाया जायेगा। देहरादून शिवालिक पहाड़ियों के बीच में बसा है। लाजमी है कि शहर से छोटी-छोटी नदियाँ निकलती हैं। हालाँकि ये नदियाँ अब नाले के रूप में बहती है, फिर भी शहर की बसावट इन्हीं के इर्द-गीर्द ही है। इन्हीं नदी-नालों के किनारे वर्तमान में अकेले देहरादून नगर निगम के अंतर्गत लगभग 5000 परिवारों की अलग-अलग नामों से बस्तीयाँ बसी हैं।
यह बस्तीयाँ क्रमशः बिन्दाल नदी, रिस्पना नदी, सुसुवा नदी, सौंग आदि कि किनारों पर रहती हैं। शहर में कूड़े उठाने के लिये एक मात्र डम्पिंग यार्ड है। अभी हाल ही में एक ट्रचिंग ग्राउण्ड का निर्माण अन्तिम स्टेज पर है। यह ट्रचिंग ग्राउण्ड भी निर्माण से पहले विवादों में आ चुका है। इसी तरह शौचालयों की दुर्दशा है। देहरादून नगर निगम के अंतर्गत आने वाले ऐसे 5000 परिवार हैं जिनके पास शौचालय नहीं है। ये परिवार जहाँ रहते हैं शहर का 50 प्रतिशत कूड़ा-कचरा इन्हीं बस्तीयों के किनारे उड़ेल दिया जाता है। बिन्दाल, रिस्पना, सुसुवा के किनारे बसी बस्तीयाँ कच्चे घरों में रहती है। शौच ये लोग खुले में ही जाते है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वे इन बस्तीयों को पहले खुले में शौच से मुक्त कराये। तभी आने वाले समय में कहा जा सकता है कि देहरादून नगर निगम खुले में शौच से मुक्त हो गया है।
इधर केन्द्र सरकार के फरमान के बाद उत्तराखण्ड सरकार ने भी कसरत करना आरम्भ कर दी है। शासन स्तर पर खुले में शौच से मुक्ति के लिये पूर्व तैयारी जोरों पर है। इसके लिये मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने सचिवालय में स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) की राज्य स्तरीय समिति बैठक करवा दी है। बैठक में उन्होंने सभी अधिकारियों को 31 मार्च 2018 तक राज्य के 14 नगर निकाय शहरों को ओडीएफ (खुले में शौच से मुक्त) करने के निर्देश दिए हैं। बताया गया कि 14 नगर निकायों को भारत सरकार द्वारा ओडीएफ घोषित कर दिया गया है। अन्य 8 निकायों के दावे भारत सरकार को भेजे गए हैं। सभी 25 निकायों के दावों का परीक्षण किया जा रहा है। बैठक में बताया गया कि 742 वार्डों में से 534 वार्डों में डोर टू डोर कूड़ा इकट्ठा का कार्य शुरू हो गया है। शेष वार्डों में दिसम्बर 2017 तक कूड़ा इकट्ठा करने का लक्ष्य रखा गया है। राज्य सरकार के अनुरोध पर भारत सरकार ने व्यक्तिगत शौचालय की धनराशि 4000 रुपये से 10,800 रुपये कर दिये हैं।
इसके अलावा हंस फाउंडेशन द्वारा 5000 व्यक्तिगत और 300 सीट सार्वजनिक शौचालय बनाये जायेंगे। भेल हरिद्वार द्वारा सीएसआर से 276 सीट के 15 सार्वजनिक शौचालय बना दिए गए हैं। बताया गया कि 27640 व्यक्तिगत घरेलू शौचालय बनाने के लक्ष्य के सापेक्ष 5853 शौचालय बना दिए गए हैं, और 8610 शौचालयों का निर्माण कार्य चल रहा है। इसके अलावा 2000 सीट के सार्वजनिक शौचालय के सापेक्ष 267 का निर्माण हो गया है, 35 का निर्माण कार्य चल रहा है। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में बताया गया कि राज्य ने सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लान बना लिया है। 13 नगरों में अपशिष्ट से कंपोस्ट बनाने का कार्य शुरू कर दिया गया है। देहरादून व हरिद्वार में कंपोस्ट बनाने का कार्य प्रगति पर है, हल्द्वानी एवं रुड़की क्लस्टर में कार्रवाई चल रही है। सचिव शहरी विकास नीतेश झा, एडीजी राम सिंह मीना, सचिव पेयजल अरविंद सिन्हा, अपर सचिव विनोद सुमन जैसे वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों ने इस कार्य की जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि वे जहाँ खुले में शौच से मुक्ति के लिये योजनाओं का क्रियान्वयन करवायेंगे वहीं वे जन सहभागीता को भी इस कार्य के साथ जोड़ेंगे ताकि लोगों को यह कार्य सरकारी मात्र ना लगे लोग आगामी समय में भी इसकी देख-रेख में आगे आ पायेंगे।
देहरादून की आमवाला, धोरण, दीपनगर की बस्ती में निवास करने वाले लोगों का कहना है कि उनके पास में जो बड़े-बड़े फ्लैट बन हुए हैं वहाँ के लोग अधिकांश समय में अपने घर का कूड़ा कचरा यहाँ फेंक देते हैं। दूसरा यह कि उनके पास शौचालय नहीं है। यहाँ तक कि उनकी बस्तियों में कोई सार्वजनिक शौचालय भी नहीं है। बिन्दाल नदी के किनारे रहने वाले बिन्देश कुमार का कहना है कि वैसे तो वह नगर निगम के शौचालय में काम करता है परन्तु जहाँ वह निवास करता है वह बस्ती पूर्ण रूप से शौचालय विहीन है। हालात ऐसी है कि आस-पास के लोग भी अपने घरों का छोटा-छोटा कूड़ा कचरा भी इसी बिन्दाल नदी में उड़ेल देते हैं। अब उनकी बस्ती में दो तरह की समस्या हो गयी है। एक तो वहाँ शौचालय नहीं है दूसरा वहाँ पर लोग कूड़े कचरे का ढेर लगा देते हैं।
मैड संस्था के अभिजीत सिंह नेगी का सुझाव है कि सरकार को पहले हर बस्ती में सार्वजनिक शौचालय बना देने चाहिए और इन्हीं बस्तीयों में कूड़े-कचरे के डस्टबीन भी लगा देने चाहिए। यही नहीं जो बस्ती या अन्य जगहों पर कूड़े-कचरे को उड़ेलते हुऐ देखा जाये उससे जुर्माना वसूला जाना चाहिए तथा किसी के घर के पास कूडा-कचरा दिखाई दिया तो वह भी जुर्माना के दायरे में आना चाहिए। कहा कि हमें सीखना होगा कि चण्डीगढ में तो दो-दो प्रदेशों की राजधानी हैं। पर क्या मजाल कि कोई वहाँ पर गन्दगी को फैलाये। यहाँ रहने वाले लोग बार-बार इस बात की दुहाई देते रहते हैं कि राजधानी के कारण देहरादून की आबोहवा प्रदूषित हो गयी है। कहा कि हमारा खुद का दिमाग प्रदूषित होता जा रहा है। कुल मिलाकर देहरादून और अन्य शहरों की स्थिति इसलिए बिगड़ती जा रही है कि कूड़ा-कचरा और शौचालयों के लिये कोई व्यवस्थित प्रबन्धन सामने नहीं आ पा रहा है। उदाहरण के लिये फ्लैटों में रहने वाले लोग बस्ती को कूड़े का डस्टबीन समझ लेते हैं। यही दुर्भाग्यपूर्ण है।