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नर्मदा समग्र
म0प्र0 की जीवन रेखा कहलाने वाली नर्मदा नदी प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भारत की सात सर्वाधिक पवित्र नदियों में से एक है । हिन्दुओं के छोटे-बडे सभी धार्मिक संस्कारों और देवी-देवताओं के पूजन में स्नान के लिए चढाए जाने वाले जल को अभिमंत्रित करने के लिए छः अन्य पवित्र नदियों के साथ नर्मदा का भी आव्हान किया जाता है । यद्यपि ऋग्वेद में नर्मदा का उल्लेख नहीं मिलता, परन्तु इस बारे में विद्वानों का मत है कि उत्तर भारत में आर्यों का जो पहला दल आया था वह सघन वनों के कारण सम्भवतः प्रायद्वीप में गंगा-सिन्धु के मैदान से आगे नहीं बढ सका था। अतः ऋग्वेद के रचयिता आर्यों ने नर्मदा देखी ही नहीं थी । ऋग्वेद की बात छोड जी जाए तो अन्य अनेक प्राचीन ग्रंथों में नर्मदा का उल्लेख मिलता है । कई पुराणों में नर्मदा की उत्पत्ति और महिमा के बारे में विस्तार से जानकारी मिलती है जबकि प्रसिद्ध स्कंद पुराण का रेवा खण्ड तो पूरी तरह से नर्मदा की उत्पत्ति और महिमा के वर्णन को ही समर्पित है । नर्मदा पुराण तो नर्मदा को लेकर अलग से रचा गया ग्रन्थ है ही । इसके अतिरिकत अनेक अन्य प्राचीन ग्रंथों में जिनमें वाल्मीकि रामायण और कालिदास का मेघदूत सम्मिलित हैं, नर्मदा का वर्णन आता है । यूनानी विद्वान टॉलमी ने इसे नोम्माडोस या नम्माडियस कहा है । नर्मदा को उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच की सीमा भी माना जाता है।
नर्मदा की उत्पत्ति के संबंध में अनेक किंवदंतियाँ हैं । कहीं इसे भगवान शिव के शरीर से बहे स्वेद (पसीने) से उत्पन्न मानते हुए शांकरी कहा गया है तो कहीं मैकल पर्वत से उत्पन्न होने के कारण ऋक्षपादप्रसूता या मैकलसुता भी कहा गया है । चन्द्रमा से उत्पन्न होने की मान्यता के कारण कुछ लोगों ने इसे सोमोद्भवा का नाम भी दिया है । देवताओं को आह्लाद देने वाली होने के कारण इसे ’नर्म-ददाति इति नर्मदा‘ कहा गया है । स्कंदपुराण में ही अन्यत्र इसे सात कल्पों के क्षय होने पर भी नष्ट न होने वाली ’सप्तकल्पक्षयेक्षीणे न मृता तेन नर्मदा‘ (न मृता या न मरने वाली अतः नर्मदा) कहा गया है । इस प्रकार हम देखते हैं कि उत्पत्ति और गुणों के आधार पर इस महान नदी को समय-समय पर अनेक नामों से पुकारा गया । पन्द्रह नाम तो स्ंकद पुराण के रेवाखण्ड में ’नर्मदापंचदशनामवर्णन‘ में एक साथ मिलते हैं । डा0 अयोध्या प्रसाद द्विवेदी ने अपनी पुस्तक ’संस्कृति स्त्रोतस्विनी नर्मदा‘ (1987) तथा डा0 के0 शंकरन उन्नी (1996) ने भी नर्मदा के अनेक नामों की उत्पत्ति पर प्रकाश डाला है । कुछ संशयात्मक या विरोधाभाषी नामों को छोड कर नर्मदा के जितने नाम ज्ञात हो सके हैं वे निम्नानुसार हैं ः-
भारत माता के कटि प्रदेश को सुंदर करधनी की भांति सुशोभित करने वाली अनेक नामधारी नर्मदा को देश की पवित्रतम नदियों की गिनती में शामिल होने के साथ-साथ यह गौरव भी प्राप्त है कि वह किसी स्थान विशेष में पुण्यदायिनी न होकर सर्वत्र पुण्य प्रदान करती है । मत्स्य पुराण में उल्लेख है कि गंगा कनखल में और सरस्वती कुरूक्षेत्र में पुण्य प्रदान करने वाली है परन्तु नर्मदा तो ग्राम हो या वन, सर्वत्र पुण्य प्रदान करने वाली है । लोक मान्यता यह भी है कि यमुना का जल सात दिनों में, गंगा का जल उसी समय परन्तु नर्मदा का जल तो दर्शन मात्र से पवित्र कर देता है । गंगा से भी करोडों वर्ष पुरानी नदी नर्मदा के बारे में वर्णन आता है कि यह कभी नष्ट नहीं होती । कई बाद अत्यन्त विषम परिस्थितियों में जब पूरी धरती पर अनावृष्टि और अकाल से जीवन समाप्तप्रायः हो चला और सारे जलस्त्रोत सूख गए तब भी नर्मदा बनी रही।
नर्मदा पुराण में यह विवरण आता है कि एक समय सभी लोकों में हाहाकार मचाने वाला बहुत लंबा विनाशकारी सूखा पडा। एक शताब्दी से अधिक समय तक वर्षा न होने से संपूर्ण लोक नष्ट हो गया, वृक्षों, लताओं आदि का विनाश हो गया, समुद्र, नदी, तालाब आदि सब सूख गए तथा समस्त जंगल जलने लगा । इस काल में सारी सृष्टि भस्म हो गई, परन्तु नर्मदा फिर भी बनी रही । स्कंद पुराण में उल्लेख है कि गंगा आदि नदियाँ कल्पों के बीत जाने पर समाप्त होकर पुनः उत्पन्न होती हैं, परन्तु नर्मदा तो सात कल्पों तक भी क्षय नहीं होती । मत्स्य पुराण में उल्लेख है कि नर्मदा नदियों में श्रेष्ठ और सब पापों का नाश करने वाली है । वह चर-अचर सभी को तारने वाली है ।
नर्मदा की उत्पत्ति के संबंध में अनेक किंवदंतियाँ हैं । कहीं इसे भगवान शिव के शरीर से बहे स्वेद (पसीने) से उत्पन्न मानते हुए शांकरी कहा गया है तो कहीं मैकल पर्वत से उत्पन्न होने के कारण ऋक्षपादप्रसूता या मैकलसुता भी कहा गया है । चन्द्रमा से उत्पन्न होने की मान्यता के कारण कुछ लोगों ने इसे सोमोद्भवा का नाम भी दिया है । देवताओं को आह्लाद देने वाली होने के कारण इसे ’नर्म-ददाति इति नर्मदा‘ कहा गया है । स्कंदपुराण में ही अन्यत्र इसे सात कल्पों के क्षय होने पर भी नष्ट न होने वाली ’सप्तकल्पक्षयेक्षीणे न मृता तेन नर्मदा‘ (न मृता या न मरने वाली अतः नर्मदा) कहा गया है । इस प्रकार हम देखते हैं कि उत्पत्ति और गुणों के आधार पर इस महान नदी को समय-समय पर अनेक नामों से पुकारा गया । पन्द्रह नाम तो स्ंकद पुराण के रेवाखण्ड में ’नर्मदापंचदशनामवर्णन‘ में एक साथ मिलते हैं । डा0 अयोध्या प्रसाद द्विवेदी ने अपनी पुस्तक ’संस्कृति स्त्रोतस्विनी नर्मदा‘ (1987) तथा डा0 के0 शंकरन उन्नी (1996) ने भी नर्मदा के अनेक नामों की उत्पत्ति पर प्रकाश डाला है । कुछ संशयात्मक या विरोधाभाषी नामों को छोड कर नर्मदा के जितने नाम ज्ञात हो सके हैं वे निम्नानुसार हैं ः-
नर्मदा | ’नर्म ददाति‘ इति नर्मदा आनन्द या हर्ष पैदा करने वाली । नर्मदा को देखकर विषादग्रस्त देवताओं को अत्यन्त हर्ष हुआ अतः हर्षदायिनी । |
उमारूद्रांगसंभूता | उमा और शिव के स्वेद (पसीने) से उत्पन्न |
चित्रकूटा/त्रिकूटा | चित्रकूट या त्रिकूट पर्वत से उत्पन्न |
रेवा | ’रेवते इति रेवा‘ जो उचक-उचक कर, उछल-उछल कर गमन करे वह रेवा है /’रव‘ या शब्द करने वाली। |
ऋक्षपादप्रसूता | ऋक्ष पर्वत से उत्पन्न सोमोद्भवा सोमवंशी राजा पुरूरवा के द्वारा धरती पर अवतारित होने के कारणों / सोम अर्थात अमृत जिस नदी से उत्पन्न होता है । चन्द्र पर्वत से निकली होने के कारण / सोम अर्थात चन्द्रमा से उत्पन्न / भगवान शिव की सोमकला से बने जल बिन्दु से प्रकट । |
दशार्णा | दशों दिशाओं में प्रवाहित होने के कारण । |
शांकरी | भगवान शंकर की पुत्री । |
दक्षिणगंगा | दक्षिण में गंगा जैसी पापमोचिनी होने से । |
मुरन्दला | संस्कृत हिन्दी कोष में उल्लेखित नाम । |
मुरला | अमरकंटक से समीप क्षेत्र में प्रचलित नाम । |
इन्दुभवा | चन्द्रमा से उत्पन्न / चन्द्र की पुत्री । |
महार्णवा | महासमुद्र को पार कर शीघ्रता से मृत्युलोक में आने वाली । |
तमसा | नीली जलराशि वाली नर्मदा जो प्रलय की निबिड निशा में भी अवस्थित रहती है । |
विदशा | अन्य नदियों की अपेक्ष विशिष्ट दशा वाली । |
करभा | हाथियों के साहचर्य से युक्त / चन्द्र कि किरणों के समान शीतल जल से विश्व को प्रमुदित करने वाली। |
मुना | गहरे नीले जल वाली नदी (उत्तर भारत की यमुना नदी से भिन्न ) |
चित्रोत्पला | विचित्र सुंदर कमलों से युक्त । |
विपाशा | अनेक दुःखद पाशों में बंधे मनुष्यों को बंधन से मुक्त करने वाली । |
रंजना | संपूर्ण लोक का रंजन (प्रसन्न) करने वाली । |
बालुवाहिनी | बालू (रेत) बहाकर लाने वाली । |
कृपा | सभी के ऊपर कृपा करने वाली । |
विपापा | अनेक पापों को काटने वाली नर्मदा । |
विमला | स्वच्छ जलराशि वाली । |
अमृता | कभी नष्ट न होने वाली । |
शोण | भगवान शंकर के त्रिशूल के अग्रभाग से जल बिन्दु गिरने से उत्पन्न । |
महानद | महादेव की अनुमति से तीव्र वेग से प्रवाहित / महान पापों को नष्ट करने वाली । |
सरसा/सुरसा | सुंदर स्वादिष्ट, स्वच्छ जल वाली । |
मन्दाकिनी | सारे संसार के जल निमग्न हो जाने पर सतयुग के समय दिव्य मदारपुष्यों से अलंकृत / मन्थर गति से प्रवाहित । |
भारत माता के कटि प्रदेश को सुंदर करधनी की भांति सुशोभित करने वाली अनेक नामधारी नर्मदा को देश की पवित्रतम नदियों की गिनती में शामिल होने के साथ-साथ यह गौरव भी प्राप्त है कि वह किसी स्थान विशेष में पुण्यदायिनी न होकर सर्वत्र पुण्य प्रदान करती है । मत्स्य पुराण में उल्लेख है कि गंगा कनखल में और सरस्वती कुरूक्षेत्र में पुण्य प्रदान करने वाली है परन्तु नर्मदा तो ग्राम हो या वन, सर्वत्र पुण्य प्रदान करने वाली है । लोक मान्यता यह भी है कि यमुना का जल सात दिनों में, गंगा का जल उसी समय परन्तु नर्मदा का जल तो दर्शन मात्र से पवित्र कर देता है । गंगा से भी करोडों वर्ष पुरानी नदी नर्मदा के बारे में वर्णन आता है कि यह कभी नष्ट नहीं होती । कई बाद अत्यन्त विषम परिस्थितियों में जब पूरी धरती पर अनावृष्टि और अकाल से जीवन समाप्तप्रायः हो चला और सारे जलस्त्रोत सूख गए तब भी नर्मदा बनी रही।
नर्मदा पुराण में यह विवरण आता है कि एक समय सभी लोकों में हाहाकार मचाने वाला बहुत लंबा विनाशकारी सूखा पडा। एक शताब्दी से अधिक समय तक वर्षा न होने से संपूर्ण लोक नष्ट हो गया, वृक्षों, लताओं आदि का विनाश हो गया, समुद्र, नदी, तालाब आदि सब सूख गए तथा समस्त जंगल जलने लगा । इस काल में सारी सृष्टि भस्म हो गई, परन्तु नर्मदा फिर भी बनी रही । स्कंद पुराण में उल्लेख है कि गंगा आदि नदियाँ कल्पों के बीत जाने पर समाप्त होकर पुनः उत्पन्न होती हैं, परन्तु नर्मदा तो सात कल्पों तक भी क्षय नहीं होती । मत्स्य पुराण में उल्लेख है कि नर्मदा नदियों में श्रेष्ठ और सब पापों का नाश करने वाली है । वह चर-अचर सभी को तारने वाली है ।