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सर्वोदय प्रेस सर्विस, अगस्त 2013
नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा जारी विज्ञप्ति में आलोक अग्रवाल ने बताया कि नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा ओंकारेश्वर परियोजना प्रभावितों के विषय में राज्य सरकार द्वारा घोषित पुनर्वास पैकेज के विषय में दायर अवमानना याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर दिया है और आदेश देते हुए इस याचिका की सुनवाई धाराजी सहित 5 गाँवों के संबंध में दायर अवमानना याचिका के साथ करना नियत किया है।
उल्लेखनीय है कि गत 7 जून 2013 को राज्य सरकार ने ओंकारेश्वर बांध प्रभावितों के लिए एक विशेष पुनर्वास पैकेज की घोषणा की थी। इस पैकेज में किसानों को प्रति एकड़ 2 लाख रुपए देने की घोषणा की गई थी। साथ ही पैकेज में यह शर्त है कि विस्थापित को यह शपथ पत्र देना होगा कि वह पुनर्वास नीति के अनुसार ज़मीन के बदले ज़मीन नहीं मांगेगा। किसानों के लिए यह पैकेज सर्वोच्च न्यायालय के आदेश 11 मई 2011 के खिलाफ है, जिसमें स्पष्ट आदेश है कि सभी किसानों को ज़मीन के बदले ज़मीन और न्यूनतम 5 एकड़ कृषि ज़मीन दी जाए। आदेश में यह भी स्पष्ट किया है कि ज़मीन न उपलब्ध होने की दृष्टि में या तो विस्थापित को निजी ज़मीन खरीदने में मदद की जाए अन्यथा 5 एकड़ से कम ज़मीन वाले विस्थापितों 5 एकड़ और सभी हरिजन-आदिवासियों को जितनी ज़मीन उतनी ज़मीन खरीदने के लिए राशि दी जाए।इन प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन करते हुए सरकार द्वारा न्यूनतम 1 एकड़ के लिए पैकेज दिया है और तय 2 लाख रुपए एकड़ की राशि बाजार मूल्य से आधी भी नहीं है। सरकार ने जानबूझकर शिकायत निवारण प्राधिकरण की सुनवाई बार-बार रोककर विस्थापितों के पक्ष में आदेश आने नहीं दिए और जो लगभग 1700 आदेश आए हैं। उनमें से एक भी विस्थापित को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार उपजाऊ व अन-अतिक्रमित ज़मीन नहीं दी गई है। दबाव के अंतर्गत विस्थापितों को यह पैकेज लेने पर मजबूर किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि गत 19 अगस्त को धाराजी सहित 5 गाँवों के मुद्दे पर आंदोलन द्वारा दायर अवमानना याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को नोटिस जारी करते हुए 3 सप्ताह बाद सुनवाई का आदेश दिया था। सरकार जवाब देने का आदेश देते हुए न्यायालय ने कहा कि आज की अवमानना याचिका भी उसी याचिका के साथ सुनी जाएगी।
उल्लेखनीय है कि गत 7 जून 2013 को राज्य सरकार ने ओंकारेश्वर बांध प्रभावितों के लिए एक विशेष पुनर्वास पैकेज की घोषणा की थी। इस पैकेज में किसानों को प्रति एकड़ 2 लाख रुपए देने की घोषणा की गई थी। साथ ही पैकेज में यह शर्त है कि विस्थापित को यह शपथ पत्र देना होगा कि वह पुनर्वास नीति के अनुसार ज़मीन के बदले ज़मीन नहीं मांगेगा। किसानों के लिए यह पैकेज सर्वोच्च न्यायालय के आदेश 11 मई 2011 के खिलाफ है, जिसमें स्पष्ट आदेश है कि सभी किसानों को ज़मीन के बदले ज़मीन और न्यूनतम 5 एकड़ कृषि ज़मीन दी जाए। आदेश में यह भी स्पष्ट किया है कि ज़मीन न उपलब्ध होने की दृष्टि में या तो विस्थापित को निजी ज़मीन खरीदने में मदद की जाए अन्यथा 5 एकड़ से कम ज़मीन वाले विस्थापितों 5 एकड़ और सभी हरिजन-आदिवासियों को जितनी ज़मीन उतनी ज़मीन खरीदने के लिए राशि दी जाए।इन प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन करते हुए सरकार द्वारा न्यूनतम 1 एकड़ के लिए पैकेज दिया है और तय 2 लाख रुपए एकड़ की राशि बाजार मूल्य से आधी भी नहीं है। सरकार ने जानबूझकर शिकायत निवारण प्राधिकरण की सुनवाई बार-बार रोककर विस्थापितों के पक्ष में आदेश आने नहीं दिए और जो लगभग 1700 आदेश आए हैं। उनमें से एक भी विस्थापित को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार उपजाऊ व अन-अतिक्रमित ज़मीन नहीं दी गई है। दबाव के अंतर्गत विस्थापितों को यह पैकेज लेने पर मजबूर किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि गत 19 अगस्त को धाराजी सहित 5 गाँवों के मुद्दे पर आंदोलन द्वारा दायर अवमानना याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को नोटिस जारी करते हुए 3 सप्ताह बाद सुनवाई का आदेश दिया था। सरकार जवाब देने का आदेश देते हुए न्यायालय ने कहा कि आज की अवमानना याचिका भी उसी याचिका के साथ सुनी जाएगी।