गहराते वैश्विक खाद्य संकट में डूबती सभ्यता

Submitted by Hindi on Tue, 01/29/2013 - 14:10
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सप्रेस/थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क, जनवरी 2013

विश्व भर में गहराता खाद्य संकट अब विध्वंस की ओर बढ़ रहा है। अमेरिका एवं अन्य खाद्य निर्यातक देशों में सूखे की निरंतरता के माध्यम से जलवायु परिवर्तन की भयावहता अब पूरी तरह से अभिव्यक्त होने लगी है। यदि अमीर देशों के सामान्य नागरिक भी बढ़ती खाद्य कीमतों की पूर्ति कर पाने में असमर्थ हैं तो विकासशील एवं अविकसित देशों के नागरिकों की स्थिति की कल्पना ही डरावनी प्रतीत होती है।

अमेरिका एवं अन्य खाद्यान्न निर्यातक देशों में विपरीत मौसम की वजह से खाद्यान्न उत्पादन में आई गिरावट की वजह से विश्व अन्न भंडार में जबरदस्त कमी आई है। दि आब्जर्वर में छपी जान विडाल की चेतावनी रिपोर्ट के अनुसार अगले वर्ष विश्व भूख के गंभीर संकट में उलझ सकता है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि अमेरिका, युक्रेन एवं अन्य देशों में मौसम की वजह से खाद्यान्न उत्पादन में कमी आई है और इसका भंडारण सन् 1974 के बाद के निम्नतम स्तर पर पहुंच गया है। अमेरिका में मक्का का भंडारण अब ऐतिहासिक निम्न स्तर 6.5 प्रतिशत पर पहुंच गया है, खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के वरिष्ठ वैज्ञानिक अब्दोलरेजा अब्बासिन का कहना है ‘हम उतना भी उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं जितना कि हम उपभोग करते हैं। विश्व में खाद्यान्न आपूर्ति में कमी आई है एवं भंडारण बहुत कम बचे हैं। अतएव अगले वर्ष संभाव्य किसी अनपेक्षित घटना के लिए हमारे पास कुछ बाकी नहीं है।

पिछले 11 वर्षो में से 6 वर्षो में खाद्यान्न उत्पादन उपभोग से कम हुआ है। इस वजह से देशों का भंडारण 107 दिन के उपभोग की बजाए महज 74 दिन का रह गया है। मुख्य खाद्य फसलों जैसे गेहूं और मक्का की कीमतें सन् 2008 की रिकार्ड कीमतों के समकक्ष पहुंच रही हैं, जिसकी वजह से उस दौरान 25 देशों में दंगे भड़क उठे थे। एफ. ए. ओ द्वारा जारी आकड़ों से ज्ञात होता है कि विश्वभर में 87 करोड़ लोग कुपोषित हैं और मध्य पूर्व एवं अफ्रीका में खाद्य समस्या गहराती जा रही है। ऐसी संभावना है कि गेहूं के उत्पादन में सन् 2011 की तुलना में 5.2 प्रतिशत की कमी आएगी और चावल को छोड़कर अन्य सभी फसलों के उत्पादन में भी कमी आएगी।

इन आंकड़ों के सामने आते ही विश्व के प्रमुख पर्यावरणविदों ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि वैश्विक खाद्य आपूर्ति प्रणाली कभी भी धराशायी हो सकती है, जिसकी वजह से करोड़ों अतिरिक्त लोग भूखे हो जाएंगे और इसके परिणामस्वरुप न केवल दंगे भड़क सकते हैं बल्कि सरकारें भी गिर सकती हैं। अमेरिका में वाशिंगटन डी.सी. स्थित अर्थ पालिसी इंस्टिट्यूट के अध्यक्ष लीस्टर ब्राउन का कहना है “चैकाने वाले इस नए आकलन के बाद खाद्यान्न की आवश्यकताओं की पूर्ति के बारे में नए सिरे से सोचना होगा। जलवायु अब विश्वसनीय नहीं रह गई है और भोजन की मांग इतनी तेजी से बढ़ रही है कि यदि तुरंत कार्यवाही नहीं की गई तो आपूर्ति का धराशायी होना अवश्यंभावी है।’’

आक्सफेम ने हाल ही कहा है कि मुख्य अनाज जिसमें गेहूं एवं चावल शामिल हैं की कीमतें अगले 20 वर्षों में दुगुनी हो सकती हैं जिसके उन गरीब लोगों पर विध्वंसकारी परिणाम पड़ सकते हैं जो कि अपनी आमदनी का बड़ा हिस्सा भोजन पर ही खर्च करते हैं। ब्राउन का कहना है कि हम बढ़ते खाद्यान्न मूल्यों एवं फैलती भूख वाले नए काल में प्रवेश कर रहे हैं। हर जगह खाद्य आपूर्ति सिकुड़ती जा रही है और चूंकि विश्व खाद्य प्रचुरता के समय से निकलकर, कमी के युग में प्रवेश कर रहा है ऐसे में भूमि सर्वाधिक वांछित वस्तु बन गई है। इतना ही नहीं अब तेल की वैश्विक राजनीति पर भोजन की वैश्विक राजनीति तेजी से हावी होती जा रही है।’’ उनकी चेतावनी ऐसे समय सामने आई है जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ एवं विश्व सरकारें बता रही हैं कि अमेरिका एवं अन्य प्रमुख खाद्य निर्यातक देशों में अत्यधिक गर्मी एवं सूखे की वजह से फसलें चौपट हो गई हैं एवं कीमतें आसमान छू रही हैं। इस पर ब्राउन का कहना है “हम किसी अस्थाई परिस्थिति में निवास नही कर रह रहे हैं अब ऐसा हमेशा ही होगा। जलवायु अब अतिरेक पर है और इसके सामान्य बने रहने की कोई गुंजाइश नहीं है। हमें अनेक नए स्थानों पर खाद्यान्न असंतोष का सामना करना पड़ेगा। हथियारबंद, आक्रामकता अब हमारे भविष्य के लिए प्रमुख खतरा नहीं रह गई है। इस शताब्दी के बड़े खतरे जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि, फैलता जलसंकट एवं बढ़ते खाद्य मूल्य हैं। विश्व भर के कृषि मंत्री विश्व के प्रमुख खाद्य निर्यातक देशों अमेरिका में पिछले 50 वर्षों का सबसे भयानक सूखे एवं आस्ट्रेलिया में इस वर्ष पड़ रहे सूखे के मद्देनजर रोम में मिल रहे है एवं वहां वे इस वजह से खाद्य आपूर्ति पर बढ़ते संकट पर विचार करेंगे। अमेरिका में मक्का के उत्पादन में लगातार तीसरे वर्ष आई कमी से इसके इस्तेमाल पर अंकुश लगाना पड़ रहा है।

ऐसा अनुमान है कि इस वर्ष महज 1.5 अरब बुशैल (8 गैलन सूखी तौल का मापना) का ही निर्यात हो पायेगा जो कि पिछले 37 वर्षों में न्यूनतम है। पांच वर्ष पूर्व यह मात्रा 2.4 अरब बुशैल थी। इस बीच 75 करोड़ बुशैल मक्का का आयात का अनुमान लगाया गया है। जो कि औसत से तीन गुना ज्यादा है। वहीं अमरिकी कृषि विभाग ने यूरोपियन यूनियन में मक्का की फसल में 2.6 प्रतिशत की कमी की भविष्यवाणी की है। विभाग ने आगे कहा है कि सूखे की वजह से आस्ट्रेलिया में गेहूं की फसल में एक माह पूर्व के अनुमान से 12 प्रतिशत की और कमी आएगी। रूस के गेहूं उत्पादन में भी 3 प्रतिशत की अतिरिक्त कमी आ सकती है। इतना ही नहीं वैश्विक गेहूं भंडारण में भी अगले वर्ष 13 प्रतिशत की कमी आएगी। वहीं ब्राजील एवं अर्जेंटीना में सोयाबीन की जबरदस्त फसल की वजह से अमेरिका में आई कमी की पूर्ति संभव हो सकती है।

खाद्यान्न एवं पेय के मूल्य ही तय करते हैं हम क्या उपयोग में ला सकते हैं। ब्रिटेन में पिछले 5 वर्षों में अन्य वस्तुओं की तुलना में खाद्यान्न की कीमतों में 12 प्रतिशत की अतिरिक्त वास्तविक वृद्धि हुई है। तेल की बढ़ती कीमतों ने आग में घी डालने का काम किया है। इतना ही ब्रिटेन में प्रतिकूल मौसम की वजह से पैदावार में 14 प्रतिशत की कमी आई है। वहां सब्जियों के उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। प्रतिकुल मौसम की वजह से ब्रिटेन की सर्वाधिक प्रिय सब्जी मटर के उत्पादन में 45 प्रतिशत की कमी आई है और इसका आयात करना पड़ा है। इतना ही नहीं सन् 2007 एवं 2012 के मध्य ब्रिटेन में खाद्य मूल्यों में 32 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसकी वजह से वहां निम्न व मध्यम वर्ग परिवारों को फल एवं सब्जियों की अपनी खपत में एक तिहाई से अधिक की कमी करना पड़ा है।

वही दूसरी ओर इंटरनेट पर खाद्यान्न बेचने वाली कंपनियां इस स्थिति को ‘अभूतपूर्व’ बताते हुए भविष्य पर निगाह रखते हुए काफी कम कीमतों पर आपूर्ति कर रही हैं। ब्रिटेन की लेबर सांसद एवं छाया पर्यावरणीय सचिव मेरी क्रीएग ने वर्तमान स्थिति को राष्ट्रीय स्केंडल बताते हुए कहा है “हालांकि हम दुनिया के सातवें सबसे अमीर देश हैं लेकिन हम भूख की छुपी महामारी खासकर बच्चों में इसका सामना कर रहे हैं। स्वयं को ठीक से भोजन उपलब्ध करा पाना लोगों का मौलिक अधिकार है। लेकिन सरकारी आंकड़े बताते हैं कि कम आय वाले व्यक्ति पांच वर्ष पूर्व के हिसाब से फल, दूध, चीज आदि कम खरीद एवं उपभोग कर रहे हैं एवं अंडों की कीमतों में 30 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है।’’ उम्मीद ही की जा सकती है कि खाद्यान्न संकट वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु जमीन तैयार कर पाएगा।