पाहिनि खड़ाऊँ खेतु निरावै

Submitted by Hindi on Thu, 03/25/2010 - 10:30
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घाघ और भड्डरी

पाहिनि खड़ाऊँ खेतु निरावै, ओढ़ि रजाई झोंकैं।

घाघ कहै ई तीनों भकुआ, बेमतलब की भौंकैं।।


भावार्थ- घाघ का मानना है कि खड़ाऊँ पहन कर खेत की निराई करने वाला और रजाई ओढ़-कर भाड़ झोंकने वाला, निरुद्देश्य बोलने वाला, ये तीनों ही मूर्ख हैं।