लेखक
तकरीबन दो सौ किमी के दायरे में फैला खतरनाक बीहड़ एवं उसमें पनपने वाले तमाम खूंखार डकैतों के कारण यहां भक्तों की अपेक्षित संख्या नहीं पहुंच पाती। यमुना, चंबल, क्वारी, सिंधु और पहुज के इस संगम स्थल की सुरक्षा के लिए सरकारों ने भी कोई ठोस इंतजामात नहीं किए हैं। चंबल घाटी क्षेत्र में नदियों की गहराई सारे देश की अन्य नदियों से अधिक है। जिसके कारण ही यहां बाढ़ के खतरे कमोवेश कम ही रहते हैं। सरकार की उपेक्षा का ही परिणाम है कि यह स्थान विकास से कार्यों से पूरी तरह से उपेक्षित है। दुनिया में दो नदियों के संगम तो कई स्थानों पर है जब कि तीन नदियों के दुर्लभ संगम प्रयागराज, इलाहबाद को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण समझा जाता है लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि पांच नदियों के इस संगम स्थल को त्रिवेणी जैसा धार्मिक महत्व नहीं मिल पाया है। खूखांर डाकुओं की शरणस्थली चंबल घाटी मे दुनिया का इकलौता पांच नदियों का संगम स्थल है लेकिन अर्से से सरकारी उपेक्षा का शिकार पंचनदा को देश का सबसे बड़ा पर्यटन केंद्र बनवाने के लिये चंबल के वासिंदे अब लामबंद हो चले है। पंचनद स्थल को सरसव्य बनवाने के लिये इलाकाई लोगों ने उत्तर प्रदेश के पर्यावरण प्रेमी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से इस इलाके को पर्यटन केंद्र बनाने की गुहार की है। कालेश्वर महापंचायत के अध्यक्ष बाबू सहेल सिंह परिहार ने चंबल के विकास के साथ साथ पंचनदा को पर्यटक स्थल बनाने संर्दभित एक मांग पत्र मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नाम भेजा है। बापू ने इलाकाई लोगों की भावनाओं को मांग पत्र मे उल्लेखित करते हुये बताया है कि इस इलाके का वैसे तो बहुत ही महत्व है लेकिन खूखांर डाकुओं के प्रभाव के कारण अब सरकारों की ओर से इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया है इसी वजह से इस दुर्गम इलाके के लोग मूल विकास से अब तब वंचित रहे हैं लेकिन अब ऐसे उम्मीद बन पड़ी है कि पर्यावरण प्रेमी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जरूर ही इस इलाकों को विकास के क्रम मे जोड़ेंगे।
पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के सचिव डा.राजीव चौहान का कहना है कि पांच नदियों के दुलर्भ स्थल का वैसे तो अपने आप मे खासा महत्व है लेकिन अगर उत्तर सरकार पंचनदा को पर्यटन केंद्र के तौर पर स्थापित कराती है तो इससे बेहतर कोई दूसरी बात नहीं हो सकती है क्योंकि यह इलाक़ा एक अर्से से डाकुओं के प्रभाव के कारण विकास से वंचित रहा है। पांच नदियों का यह स्थल महाभारत कालीन सभ्यता से जुड़ा हुआ माना जाता है क्योंकि यहां पर पांडवों से अज्ञातवास इसी इलाके मे बिताया था। पांडवों के यहां पर अज्ञातवास बिताने के प्रमाण भी मिलते है महाभारत मे जिस बकासुर नामक राक्षस का ज्रिक किया जाता है उसे भीम ने इस इलाके के एक ऐतिहासिक कुएं मे मार करके डाला था
।प्रयाग का त्रिवेणी संगम पूर्णतः धार्मिक मान्यता पर आधारित है क्योंकि धर्मग्रन्थों में वहां पर गंगा,यमुना के अलावा अदृश्य सरस्वती नदी को भी स्वीकारा गया है,यह माना जाता है कि कभी सतह पर बहने वाली सरस्वती नदी अब भूमिगत हो चली है बहराहल तीसरी काल्पनिक नदी को मान्यता देते हुये त्रिवेणी संगम का जितना महत्व है उतना साक्षात पांच नदियों के संगम को प्राप्त नहीं हैं। अरुणमय मधुमय देश हमारा, जहां पहुंच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा.....। स्पष्ट है कि शीर्षस्थ छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद ने भारत की श्रेष्ठता का बखान करने के लिए इन पंक्तियों की रचना की होगी। प्रसाद के इन्हीं उद्गारों के अनुरुप प्रकृति ने इस देश को एक ऐसी भी अनूठी श्रेष्ठता प्रदान की है कि कोई भी अन्य देश उसकी बराबरी तो क्या उससे दो तीन सीढ़ी नीचे तक नहीं पहुंच सका है और भारत की यह विशेषता है कि यहां दो, तीन, चार नहीं बल्कि पांच-पांच नदियों का संगम होना।
पांच नदियों का यह संगम उत्तर प्रदेश में इटावा जिला मुख्यालय से 70 किमी दूर बिठौली गांव में है। जहां पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान राज्य के लाखों की तादात में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है। इस संगम को पंचनदा या पंचनद भी कहा जाता है,यहां के प्राचीन मंदिरों में लगे पत्थर आज भी दुनिया के इस आश्चर्य और भारत की श्रेष्ठ सांस्कृतिक धार्मिक विरासत का बखान कर रहे है। सारे विश्व में इटावा का पंचनद ही एक स्थल है,जहां पर पाचं नदियों का संगम हैं,ये नदियां हैं यमुना, चंबल, क्वारी, सिंधु और पहुज।
800 ईसा पूर्व पंचनदा संगम पर बने महाकालेश्वर मंदिर पर साधु-संतों का जमावड़ा लगा रहता है। मन में आस्था लिए लाखों श्रद्धालु कालेश्वर के दर्शन से पहले संगम में डुबकी अवश्य लगाते हैं। यह वह देव शनि है जहां भगवान विष्णु ने महेश्वरी की पूजा कर सुदर्शन चक्र हासिल किया था। इस देव शनि पर पांडु पुत्रों को कालेश्वर ने प्रकट होकर दर्शन किए थे। इसीलिए हरिद्वार, बनारस, इलाहाबाद छोड़कर पंचनदा पर कालेश्वर के दर्शन के लिए साधु-संतों की भीड़ जुटती है। महत्वपूर्ण यह है कि यह दुनिया का एकमात्र वह स्थान है जहां एक साथ पांच नदियों का संगम है। पंचनदा के नाम से ख्याति अर्जित करने वाली इस तीर्थस्थली के बारे में बेशक लोगों को अधिक जानकारी न हो परंतु यह वह स्थान भी है जहां तुलसीदास ने कालेश्वर के दर्शनोपरांत राम चरित मानस के कुछ महत्वपूर्ण अंशों की रचना की थी। इसलिए श्रद्धालुओं को मानना है कि पचनदा जैसी दूसरी कोई तीर्थस्थली भारत में कहीं अन्यत्र हो ही नहीं सकती है।
इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इतने पावन स्थान को यदि उस प्रकार से लोकप्रियता हासिल नहीं हुई जिस प्रकार से अन्य तीर्थस्थलियों को ख्याति नहीं मिली तो इसके लिए यहां का भौगोलिक क्षेत्र कसूरवार है। यहां तकरीबन दो सौ किमी के दायरे में फैला खतरनाक बीहड़ एवं उसमें पनपने वाले तमाम खूंखार डकैतों के कारण यहां भक्तों की अपेक्षित संख्या नहीं पहुंच पाती। यमुना, चंबल, क्वारी, सिंधु और पहुज के इस संगम स्थल की सुरक्षा के लिए सरकारों ने भी कोई ठोस इंतजामात नहीं किए हैं। चंबल घाटी क्षेत्र में नदियों की गहराई सारे देश की अन्य नदियों से अधिक है। जिसके कारण ही यहां बाढ़ के खतरे कमोवेश कम ही रहते हैं। सरकार की उपेक्षा का ही परिणाम है कि यह स्थान विकास से कार्यों से पूरी तरह से उपेक्षित है।पंचनद के एक प्राचीन मंदिर को बाबा मुकुंदवन की तपस्थली भी माना जाता है।
जनश्रुति के अनुसार संवत 1636 के आसपास भादों की अंधेरी रात में यमुना नदी के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास कंजौसा घाट पहुंचे थे और उन्होंने मध्यधार से ही पानी पिलाने की आवाज लगाई थी, जिसे सुनकर बाबा मुकुंदवन ने कमंडल में पानी लेकर यमुना की तेज धार पर चल कर गोस्वामी तुलसीदास को पानी पिलाकर तृप्त किया था। बाद में रामभक्त महाकवि उनके आश्रम पर रुके और जगम्मनपुर किले के मैदान में उन्होंने भगवान राम की कथा सुनाई थी। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि बाबा की अलौकिक शक्तियां उनकी रक्षा करती हैं जिसका प्रमाण है कि यहां पर कभी भी उपलवृष्टि नहीं हुई है। इसी के निकट काली मंदिर है जिसमें बाबा के चरण बने हुए हैं जिन पर पान या पांच बतासे रखकर श्रद्धालु माथा टेकते हैं। इस स्थल को विकसित करने की भी योजनायें भी बनाई गई लेकिन खूखांर डाकूओं के आंतक के चलते कोई भी विकास योजना सतह पर प्रभावी नहीं हो सकी।
पंचनद बांध बीहड़ के सपनों में शामिल है। सपना जो सत्ताधारी यहां की जनता को बीते तीन दशकों के दिखा रहे हैं। पंचनद मध्यप्रदेश के भिंड और उत्तर प्रदेश के इटावा, जालौन, औरैया जिले की सीमा पर यमुना और उसकी सहायक नदियों चंबल, क्वारी, पहुंच और सिंध का मिलन स्थल है। इस जगह पर ही वह प्रसिद्ध मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि तुलसीदास ने यहां प्रवास किया हो। आज तो यह स्थल बीहड़ में अपराध और गरीबी के बीच सांसे ले रही जनता और उपजाऊ होने के बाद भी बेकार पड़ी बीहड़ की जमीन को एक नई जिंदगी दे सकता है। इस बांध पर सबसे पहली योजना 1986 में बनी थी। यहां बांध बनाने की बात इंदिरा गांधी ने कही थी। पंचनद बांध योजना के तहत उत्तर प्रदेश के औरैया जनपद में यमुना नदी पर औरैया घाट से 16 किमी अपस्ट्रीम में सढरापुर गांव में बैराज का निर्माण प्रस्तावित है। इस स्थल के अपस्ट्रीम में चंबल, क्वारी, सिंध और पहुज नदियां मिलती हैं।
प्रस्तावित पंचनद बांध के डाउन स्ट्रीम में कम से कम 3000 क्सूसेक के डिस्चार्ज अवश्य छोड़ा जाना चाहिए। न्यूनतम 3000 क्यूसेक की क्षमता का जल विद्युत स्टेशन प्रस्तावित किया जाए। पंचनदा पर बने द्वापरकालीन महाकालेश्वर मंदिर को सुदर्शन तीर्थ के नाम से भी ख्याति अर्जित की है। इसी स्थान पर ओम कालेश्वर व महाकालेश्वर दोनों शिवलिंग एक ही स्थान पर स्थापित हैं। जो समूचे विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं देखे जा सकते हैं। इसका उल्लेख पूर्ण पुराण के 82वें अध्याय में उल्लिखित है। जिसकी सूक्ष्म कथा देवी भागवत में भी देखने को मिलती है। यहां पहले कभी सोवरण मंदिर हुआ करता था जो कलियुग के आरंभ होने के साथ ही पंचनदा के कुंड में चला गया और पुनः पाषाण पूजा में महाकालेश्वर की प्रतिमा प्रकट हुई जो आज इस मंदिर में स्थापित है। इसे देव स्थान की संज्ञा इसी से मिलती है कि यहां ग्वालियर स्टेट के बादशाह को भी नतमस्तक होकर पश्चाताप करना पड़ा और यहां के दैवीय चमत्कार को आत्मसात होते देख बादशाह ने यहां मठ की स्थापना की।
पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के सचिव डा.राजीव चौहान का कहना है कि पांच नदियों के दुलर्भ स्थल का वैसे तो अपने आप मे खासा महत्व है लेकिन अगर उत्तर सरकार पंचनदा को पर्यटन केंद्र के तौर पर स्थापित कराती है तो इससे बेहतर कोई दूसरी बात नहीं हो सकती है क्योंकि यह इलाक़ा एक अर्से से डाकुओं के प्रभाव के कारण विकास से वंचित रहा है। पांच नदियों का यह स्थल महाभारत कालीन सभ्यता से जुड़ा हुआ माना जाता है क्योंकि यहां पर पांडवों से अज्ञातवास इसी इलाके मे बिताया था। पांडवों के यहां पर अज्ञातवास बिताने के प्रमाण भी मिलते है महाभारत मे जिस बकासुर नामक राक्षस का ज्रिक किया जाता है उसे भीम ने इस इलाके के एक ऐतिहासिक कुएं मे मार करके डाला था
।प्रयाग का त्रिवेणी संगम पूर्णतः धार्मिक मान्यता पर आधारित है क्योंकि धर्मग्रन्थों में वहां पर गंगा,यमुना के अलावा अदृश्य सरस्वती नदी को भी स्वीकारा गया है,यह माना जाता है कि कभी सतह पर बहने वाली सरस्वती नदी अब भूमिगत हो चली है बहराहल तीसरी काल्पनिक नदी को मान्यता देते हुये त्रिवेणी संगम का जितना महत्व है उतना साक्षात पांच नदियों के संगम को प्राप्त नहीं हैं। अरुणमय मधुमय देश हमारा, जहां पहुंच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा.....। स्पष्ट है कि शीर्षस्थ छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद ने भारत की श्रेष्ठता का बखान करने के लिए इन पंक्तियों की रचना की होगी। प्रसाद के इन्हीं उद्गारों के अनुरुप प्रकृति ने इस देश को एक ऐसी भी अनूठी श्रेष्ठता प्रदान की है कि कोई भी अन्य देश उसकी बराबरी तो क्या उससे दो तीन सीढ़ी नीचे तक नहीं पहुंच सका है और भारत की यह विशेषता है कि यहां दो, तीन, चार नहीं बल्कि पांच-पांच नदियों का संगम होना।
पांच नदियों का यह संगम उत्तर प्रदेश में इटावा जिला मुख्यालय से 70 किमी दूर बिठौली गांव में है। जहां पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान राज्य के लाखों की तादात में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है। इस संगम को पंचनदा या पंचनद भी कहा जाता है,यहां के प्राचीन मंदिरों में लगे पत्थर आज भी दुनिया के इस आश्चर्य और भारत की श्रेष्ठ सांस्कृतिक धार्मिक विरासत का बखान कर रहे है। सारे विश्व में इटावा का पंचनद ही एक स्थल है,जहां पर पाचं नदियों का संगम हैं,ये नदियां हैं यमुना, चंबल, क्वारी, सिंधु और पहुज।
800 ईसा पूर्व पंचनदा संगम पर बने महाकालेश्वर मंदिर पर साधु-संतों का जमावड़ा लगा रहता है। मन में आस्था लिए लाखों श्रद्धालु कालेश्वर के दर्शन से पहले संगम में डुबकी अवश्य लगाते हैं। यह वह देव शनि है जहां भगवान विष्णु ने महेश्वरी की पूजा कर सुदर्शन चक्र हासिल किया था। इस देव शनि पर पांडु पुत्रों को कालेश्वर ने प्रकट होकर दर्शन किए थे। इसीलिए हरिद्वार, बनारस, इलाहाबाद छोड़कर पंचनदा पर कालेश्वर के दर्शन के लिए साधु-संतों की भीड़ जुटती है। महत्वपूर्ण यह है कि यह दुनिया का एकमात्र वह स्थान है जहां एक साथ पांच नदियों का संगम है। पंचनदा के नाम से ख्याति अर्जित करने वाली इस तीर्थस्थली के बारे में बेशक लोगों को अधिक जानकारी न हो परंतु यह वह स्थान भी है जहां तुलसीदास ने कालेश्वर के दर्शनोपरांत राम चरित मानस के कुछ महत्वपूर्ण अंशों की रचना की थी। इसलिए श्रद्धालुओं को मानना है कि पचनदा जैसी दूसरी कोई तीर्थस्थली भारत में कहीं अन्यत्र हो ही नहीं सकती है।
इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इतने पावन स्थान को यदि उस प्रकार से लोकप्रियता हासिल नहीं हुई जिस प्रकार से अन्य तीर्थस्थलियों को ख्याति नहीं मिली तो इसके लिए यहां का भौगोलिक क्षेत्र कसूरवार है। यहां तकरीबन दो सौ किमी के दायरे में फैला खतरनाक बीहड़ एवं उसमें पनपने वाले तमाम खूंखार डकैतों के कारण यहां भक्तों की अपेक्षित संख्या नहीं पहुंच पाती। यमुना, चंबल, क्वारी, सिंधु और पहुज के इस संगम स्थल की सुरक्षा के लिए सरकारों ने भी कोई ठोस इंतजामात नहीं किए हैं। चंबल घाटी क्षेत्र में नदियों की गहराई सारे देश की अन्य नदियों से अधिक है। जिसके कारण ही यहां बाढ़ के खतरे कमोवेश कम ही रहते हैं। सरकार की उपेक्षा का ही परिणाम है कि यह स्थान विकास से कार्यों से पूरी तरह से उपेक्षित है।पंचनद के एक प्राचीन मंदिर को बाबा मुकुंदवन की तपस्थली भी माना जाता है।
जनश्रुति के अनुसार संवत 1636 के आसपास भादों की अंधेरी रात में यमुना नदी के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास कंजौसा घाट पहुंचे थे और उन्होंने मध्यधार से ही पानी पिलाने की आवाज लगाई थी, जिसे सुनकर बाबा मुकुंदवन ने कमंडल में पानी लेकर यमुना की तेज धार पर चल कर गोस्वामी तुलसीदास को पानी पिलाकर तृप्त किया था। बाद में रामभक्त महाकवि उनके आश्रम पर रुके और जगम्मनपुर किले के मैदान में उन्होंने भगवान राम की कथा सुनाई थी। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि बाबा की अलौकिक शक्तियां उनकी रक्षा करती हैं जिसका प्रमाण है कि यहां पर कभी भी उपलवृष्टि नहीं हुई है। इसी के निकट काली मंदिर है जिसमें बाबा के चरण बने हुए हैं जिन पर पान या पांच बतासे रखकर श्रद्धालु माथा टेकते हैं। इस स्थल को विकसित करने की भी योजनायें भी बनाई गई लेकिन खूखांर डाकूओं के आंतक के चलते कोई भी विकास योजना सतह पर प्रभावी नहीं हो सकी।
पंचनद बांध बीहड़ के सपनों में शामिल है। सपना जो सत्ताधारी यहां की जनता को बीते तीन दशकों के दिखा रहे हैं। पंचनद मध्यप्रदेश के भिंड और उत्तर प्रदेश के इटावा, जालौन, औरैया जिले की सीमा पर यमुना और उसकी सहायक नदियों चंबल, क्वारी, पहुंच और सिंध का मिलन स्थल है। इस जगह पर ही वह प्रसिद्ध मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि तुलसीदास ने यहां प्रवास किया हो। आज तो यह स्थल बीहड़ में अपराध और गरीबी के बीच सांसे ले रही जनता और उपजाऊ होने के बाद भी बेकार पड़ी बीहड़ की जमीन को एक नई जिंदगी दे सकता है। इस बांध पर सबसे पहली योजना 1986 में बनी थी। यहां बांध बनाने की बात इंदिरा गांधी ने कही थी। पंचनद बांध योजना के तहत उत्तर प्रदेश के औरैया जनपद में यमुना नदी पर औरैया घाट से 16 किमी अपस्ट्रीम में सढरापुर गांव में बैराज का निर्माण प्रस्तावित है। इस स्थल के अपस्ट्रीम में चंबल, क्वारी, सिंध और पहुज नदियां मिलती हैं।
प्रस्तावित पंचनद बांध के डाउन स्ट्रीम में कम से कम 3000 क्सूसेक के डिस्चार्ज अवश्य छोड़ा जाना चाहिए। न्यूनतम 3000 क्यूसेक की क्षमता का जल विद्युत स्टेशन प्रस्तावित किया जाए। पंचनदा पर बने द्वापरकालीन महाकालेश्वर मंदिर को सुदर्शन तीर्थ के नाम से भी ख्याति अर्जित की है। इसी स्थान पर ओम कालेश्वर व महाकालेश्वर दोनों शिवलिंग एक ही स्थान पर स्थापित हैं। जो समूचे विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं देखे जा सकते हैं। इसका उल्लेख पूर्ण पुराण के 82वें अध्याय में उल्लिखित है। जिसकी सूक्ष्म कथा देवी भागवत में भी देखने को मिलती है। यहां पहले कभी सोवरण मंदिर हुआ करता था जो कलियुग के आरंभ होने के साथ ही पंचनदा के कुंड में चला गया और पुनः पाषाण पूजा में महाकालेश्वर की प्रतिमा प्रकट हुई जो आज इस मंदिर में स्थापित है। इसे देव स्थान की संज्ञा इसी से मिलती है कि यहां ग्वालियर स्टेट के बादशाह को भी नतमस्तक होकर पश्चाताप करना पड़ा और यहां के दैवीय चमत्कार को आत्मसात होते देख बादशाह ने यहां मठ की स्थापना की।