पेरियार नदी में कचरा नहीं डलेगाः एनजीटी

Submitted by RuralWater on Mon, 04/22/2019 - 13:19

(पश्चिमी घाट में शिवगिरी की पहाड़ियों से निकलने वाली पेरियार नदी केरल की सबसे लम्बी नदी है। 244 किमी लम्बी पेरियार केरल की जीवनदायिनी है। पर आज प्रदूषण का रोग इस नदी को भी बीमार बना रहा है। फिलहाल पेरियार के प्रदूषण के एक मामले में एनजीटी ने कड़ा रुख अपनाया है। पेरियार नदी में अवैध रूप से गिरने वाले अस्पतालों और उद्योगों के अपशिष्ट व दूषित जल के एक मामले में एनजीटी ने केरल हाईकोर्ट के पूर्व जज आर भास्करन द्वारा लिखे गए एक पत्र को ही रिट-पेटीशन मान लिया है। और एक संयुक्त कमेटी बनाने का आदेश दिया है। यह समिति पर्यावरण को होने वाले नुकसान की तो जांच करेगी ही और उन व्यक्तियों की पहचान करेगी जो पेरियार प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं ताकि नदी को अपनी पुरानी स्थिति में लाने के लिये लगने वाले खर्च की वसूली भी उनसे की जा सके। एक बार फिर ‘पॉल्यूटर पैज़’ (यानी प्रदूषक ही पैसा दे) प्रिंसिपल का सम्मान करते हुए न्यायपालिका ने कानूनी ढाँचे को मजबूत किया है। - संपादक)

पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाले कितने ही मामले रोजाना सामने आते हैं। कुछ मामले कोर्ट तक पहुँच जाते हैं तो कुछ अनदेखे कर दिये जाते हैं। कितनों की सुनवाई कोर्ट में विचाराधीन है। ज्यादातर मामले तो प्रशासन की लापरवाही और अकर्मण्यता की पोल खोलते हैं। हाल ही में ऐसा ही एक मामला सामने आया पेरियार नदी का।

पेरियार नदी केरल की जीवनरेखा मानी जाती है। केरल के एक बड़े भूभाग को सिंचित करती हुई यह नदी केरल की आत्मा बन गई है। बहुत से बड़े शहरों को पेरियार नदी पानी पिला रही है। लोगों को खाना पानी देकर जीवन देने वाली नदी अपने ही जीवन की लड़ाई लड़ रही है। इधर बीच कईं ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें महज कुछ लाभ के लिये पर्यावरणीय कानूनों और नियमों को ताक पर रख दिया गया है । धन लोभियों की भेंट चढ़ती पेरियार नदी की कहानी भी कुछ अलग नहीं है। अस्पतालों और कत्लखानों से निकलने वाला कचरा बेखौफ नदी में बहाया जा रहा है। 25 जनवरी 2019 को दिये गए अपने एक फैसले में नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) ने हाल में एक संयुक्त कमेटी का गठन किया ताकि इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि बायो मेडिकल औऱ ठोस कचरा प्रबंधन नियमों की अवहेलना न हो और सभी नियमों का ठीक से पालन हो। इतना ही नहीं इस कमेटी को यह भी देखना था कि इन सब गैर कानूनी कामों के चलते पर्यावरण को कितना नुकसान हुआ है। पर्यावरण को हुए नुकसान का पता लगाके नुकसान कर्ता से ही भरपाई भी की जाए यह भी इस कमेटी को ही सुनिश्चित करना था।

पेरियार नदी में कचरा डाले जाने का मामला 2015 में सामने आया। केरल उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर. भास्करन ने केरल उच्च न्यायालय को एक पत्र लिखा। जिसमें उन्होंने चिंता जताई कि पेरियार नदी में बड़े पैमाने पर ठोस कचरे की डंपिंग की जा रही है। अस्पतालों और बूचड़खानों का कचरा लगातार नदी में डाला जा रहा है। इस पत्र को केरल हाईकोर्ट ने एक रिट याचिका के रूप में स्वीकार कर लिया और मामले की जाँच और सुनवाई के लिये नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) (एनजीटी), नई दिल्ली को भेज दिया।

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने 7 सितंबर 2015 की सुनवाई में नीरी यानी राष्ट्रीय इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI), नागपुर को आदेश दिया कि वह प्रतिवादियों के आउटलेट से नमूने इकट्ठा कर उनकी जाँच करे। इन प्रतिवादियों में हिंदुस्तान इनसेक्टिसाइड्स लिमिटेड, उद्योगमण्डल एलूर, द फर्टीलाइजर्स एंड केमिकल त्रावनकोट लि., मर्केम लि., एलूर ईस्ट उद्योगमण्डल, कोचीन मिनरल्स एंड रूटाइल्स लि. एडयार, एलूवा आदि शामिल थे। जाँच में धात्विक तत्वों की मात्रा तय मानकों से ज्यादा पाई गई।

संयुक्त समिति का गठन

नीरी की जाँच रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए एनजीटी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) की एक संयुक्त समिति का गठन किया। जनवरी, 2016 में प्राधिकरण ने एस समिति को निर्देश दिया कि संबंधित क्षेत्र का दौरा करें, तथा इसका निरीक्षण करें और साथ ही पानी की जाँच रिपोर्ट के विश्लेषण सहित वर्तमान स्थिति की रिपोर्ट फाइल करें।

क्या कहती है संयुक्त समिति की रिपोर्ट सीपीसीबी और एसपीसीबी की संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि इस क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में 19 स्वास्थ्य केंद्र (छोटे बड़े अस्पताल और अन्य स्वास्थ्य केंद्र) चल रहे हैं जिनमें से 16 कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी (सीबीएमडब्लूटीएफ/ मैसर्स इमेज) के सदस्य हैं। सीबीएमडब्लूटीएफ का काम है बायोमेडिकल वेस्ट का ट्रीटमेंट करना, रीसाइकिल करना और उसे दोबारा उपयोग के लायक बनाना, ज्यादातर स्वास्थ्य केंद्र इसके सदस्य हैं और 2 की तो खुद की ही ट्रीटमेंट फैसिलिटी है फिर भी, बायो-मेडिकल और ठोस कचरे को वन क्षेत्र के ढलान वाले इलाकों और जल निकायों में फेंका जा रहा है। गाड़ियाँ आती है और कचरा डालकर चली जाती हैं।

रिपोर्ट में सामने आए कुछ तथ्य:

  • घरेलू ठोस कचरे को अवैध तरीके से विभिन्न स्थानों पर डाला जा रहा है, ये इलाके एनएच 49 और एसएच 44 से लगे हैं हालांकि रिहायशी नहीं हैं,

  • समिति ने पाया कि राजक्कड़ मेडिकल सेंटर जैव-चिकित्सा अपशिष्टों की अवैध डंपिंग कर रहा है। अस्पताल में समुचित जैव-चिकित्सा अपशिष्टों को संग्रह करने और उपचार की सुविधा नहीं है।

  • बायो मेडिकल वेस्ट की डंपिंग हालांकि दो ही स्थानों पर पाई गई। जिनमें से एक वलारा वाटरफॉल का क्षेत्र था।

  • केरल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पहले ही सभी स्थानीय निकायों को पत्र लिखकर सभी स्वास्थ्य केंद्रों का ब्यौरा माँगा था साथ ही यह भी निर्धेश दिये थे कि जिन केंद्रों ने उचित सहमति पत्र प्राप्त कर रखे हैं केवल उन्हें ही लाइसेंस दिये जाएं। हालांकि अभी तक 50 फीसदी स्थानीय निकायों ने उनके क्षेत्राधिकार में आने वाले ऐसे केंद्रों का कोई ब्यौरा नहीं दिया।

  • मैसर्स सेंट जॉन्स मेडिकल सेंटर, राजक्कड सीबीएमडब्लूएफ का सदस्य होने के बावजूद भी बायोमेडिकल कचरे के साथ साथ म्युनिसिपल कचरे का भी आंशिक निपटान करता है।

  • स्थानीय निकायों  द्वारा कचरों का संग्रहण अनियमित रूप से किया जाता है।

  • यह भी देखा गया कि कचरा ज्यादातर पैकिंग में था। इसमें बूचड़खानों से निकला जानवरों का कचरा, होटलों, रिसोर्ट और अन्य व्यवसायिक प्रतिष्ठानों से आने वाला कचरा शामिल था।

  • चेक पोस्टों की मौजूदगी और निगरानी के बाद भी ठोस कचरे की भारी मात्रा में अवैध डम्पिंग की जाती रही है।

  • स्थानीय निकाय पंचायतों में आधुनिक सुविधाओं को उपलब्ध करवाने में नाकामयाब रहे। जिससे घरेलू कचरे का संग्रहण, पृथक्करण, और निपटारे में अनियमितता बरती गयी। स्थानीय प्रशासन के नकारापन की वजह से इडुक्की जिले के एक बड़े क्षेत्र में कचरे की गैरकानूनी डंपिंग को बढ़ावा मिला है।

  • राज्य सरकार और एसपीसीबी ने नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2010 और जैव चिकित्सा (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 1998 के कार्यान्वयन के लिए कोई कदम नहीं उठाया। तो निजी अस्पताल भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने भी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की आवश्यक अनुमति नहीं ली और नियमों के विरुद्ध कुछ गतिविधियां करते रहे है ।

 

स्वास्थ्य विभाग और वन एवं वन्यजीव विभागों को निर्देश इस रिपोर्ट के बाद, ट्राइब्यूनल ने केरल के स्वास्थ्य विभाग और वन एवं वन्यजीव विभागों को ऐसे सभी अस्पतालों की सूची जारी करने का निर्देश दिया जो नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं और कचरे की ऐसी डंपिंग में शामिल हैं ट्राइब्यूनल ने विभाग को ऐसे अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए ।

कारण बताओ नोटिस

सीपीसीबी और एसपीसीबी की एक अन्य संयुक्त निरीक्षण रिपोर्ट ने राजकड्ड मेडिकल सेंटर तथा सेंट जॉन्स मेडिकल सेंटर का जिक्र किया जो न केवल जैव-चिकित्सा कचरे का आंशिक निपटान ही कर रहे थे बल्कि म्युनिसिपल वेस्ट के साथ बायो-मेडिकल वेस्ट की अवैध डंपिंग कर रहे थे । प्राधिकरण ने इन परिस्थितियों और अवैध कामों को गंभीरता से लिया और उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किए गए। नोटिस में उनसे पूछा गया कि वो स्पष्ट करें कि उन पर "पोल्यूटर्स पेज प्रिंसिपल" को लागू क्यों नहीं किया जाए। दोनों अस्पतालों ने लगातार सुनवाई में अपने जवाब दाखिल किए जिन्हें ट्राइब्यूनल ने अपर्याप्त माना और इस तरह यह स्पष्ट कर दिया कि ये अस्पताल अवैध रूप से जैव-चिकित्सा कचरे को डंप करने के लिए उत्तरदायी हैं।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास निगरानी के लिये लोग नहीं

अस्पतालों द्वारा नियमों की अनदेखी किये जाने को प्राधिकरण नें एसपीसीबी की नाकामी माना। पूछे जाने पर एसपीसीबी के अधिवक्ता ने जवाब में सारा दोष स्थानीय निकायों के मत्थे मढ़कर मामले से पल्ला झाड़ने की कोशिश की। एसपीसीबी और से कहा कि इस तरह की सभी डंपिंग के लिए वो उत्तरदायी नहीं है क्योंकि यह पहले स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी है जो अस्पतालों को इन अवैध गतिविधियों को करने की अनुमति दे रहे हैं। साथ ही यह भी तर्क दिया गया कि एसपीसीबी के पास जिला स्तर पर ही अपने क्षेत्र के कार्यालय हैं और उद्योगों और अन्य इकाइयों की संख्या 4000-8000 तक है, तो इतनी बड़ी संख्या की निगरानी करने लिये उसके पास लोग नहीं है ऐसे में स्थानीय निकायों को जरूरत के समय में उसकी मदद करनी चाहिये। अधिवक्ता ने कहा कि बोर्ड इस क्षेत्र के अस्पतालों और अन्य इकाइयों की लगातार निगरानी करने में असमर्थ था क्योंकि यह क्षेत्र जंगल और पहाड़ी इलाका है, लेकिन अब प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ मुकदमा चलाने और प्रदूषण के लिए निवारक नुकसान की वसूली के लिए कार्रवाई की जाएगी।

बोर्ड का बयान महज उसकी नाकामी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जब अपनी नाकामी का ठीकरा स्थानीय निकायों के सर पर फोड़ना चाहा तो ट्राइब्यूनल ने कहा कि ये सबमिशन कुछ और नहीं बल्कि बोर्ड की नाकामी का एक स्पष्ट प्रमाण है। ट्राइब्यूनल ने आगे कहा कि एक नियामक निकाय यह दलील नहीं दे सकता है कि वह इसके लिए अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है क्योंकि इससे संपूर्ण प्रणाली की विफल हो सकती है। आर्यावर्त फाउंडेशन बनाम मैसर्स वापी ग्रीन एनवायरो लिमिटेड और अन्य मामले में दिये गए निर्णय का हवाला देते हुए प्राधिकरण ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को फिर से सुधारने की जरूरत है।

पॉल्यूटर पेज़ प्रिंसिपल को तरजीह

प्राधिकरण ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में सुधार करने की जरूरत पर जोर दिया ताकि कोई भी नियमों की अनदेखी न कर सके और बोर्ड कुशलता से अपना काम कर सके। इसके लिये प्राधिकरण द्वारा सीपीसीबी, केरल एसपीसीबी और जिला मजिस्ट्रेट की एक संयुक्त समिति गठित करने का आदेश दिया। समिति को यह सुनिश्चित करना है कि सभी पर्यावरणीय कानूनों का पालन हो, विशेष रूप से नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2010 और बायो मेडिकल (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 1998 का पालन किया जाए। समिति को एक महीने के भीतर एक एक्शन प्लान तैयार करने का निर्देश भी दिया गया।

इतना ही नहीं पॉल्यूटर पेज प्रिंसिपल का सम्मान करते हुए प्राधिकरण ने संयुक्त समिति को निर्देश दिया कि वह स्थिति का जायजा ले और पता लगाए कि पर्यावरण को कितना नुकसान हुआ है। पर्यावरण को हुए नुकसान के लिये प्रदूषण करने वाले अस्पताल और इकाईयां ही जिम्मेदार हैं इसलिये इसकी भरपाई भी उन्हें ही करनी होगी।

इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) नें एक बार फिर से यह जता दिया किया कि हवा पानी को गंदा करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। पेरियार नदी में कचरा डंपिंग मामले में एनजीटी का फैसला सभी के लिये एक नजीर है।