पीना पड़ रहा है फ्लोराइड वाला पानी

Submitted by RuralWater on Mon, 08/22/2016 - 16:21

आदिवासियों को फ्लोराइडयुक्त पानी से निजात दिलाने के लिये गाँव में कुछ और अन्य स्थानों पर हैण्डपम्प लगाने का तय किया। एक बार फिर लाखों रुपए खर्च कर हैण्डपम्प खनन कराए गए पर नतीजा फिर वही ढाँक के तीन पात। गाँव में कराए गए इन हैण्डपम्प के पानी में भी फ्लोराइड की निर्धारित मात्रा 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से काफी अधिक थी। इस तरह अब गाँव में नए और पुराने मिलकर करीब 15 हैण्डपम्प हैं लेकिन एक भी ऐसा नहीं जिसका पानी पीने योग्य निरापद हो।

पौड़ी गाँव का पानी जाँचा गया तो उसमें फ्लोराइड जरूरत से ज्यादा मात्रा में मिला है, इसीलिये ग्रामीणों को ताकीद की गई है कि वे यहाँ के पानी को नहीं पीएँ। इसके लिये दीवारों पर सूचना भी चस्पा की गई है। गाँव के लोग भी जानते हैं कि यह पानी उनके स्वास्थ्य के लिये ठीक नहीं है और इसमें कुदरती प्रदूषक फ्लोराइड की अधिकता है, जिससे उनके दाँत और हड्डियाँ खराब हो सकते हैं। बावजूद इसके गाँव में साफ पानी के लिये कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई है। साफ पानी नहीं मिलने से आदिवासियों को मजबूरी में फ्लोराइडयुक्त पानी पीना पड़ रहा है।

इस गाँव में आदिवासियों को साफ पीने का पानी तक नहीं मिलने से फ्लोराइडयुक्त दूषित पानी पीना इनकी नियति बन चुकी है। लम्बे समय से इनकी कोई सुनवाई नहीं हो पा रही है। इस पानी से कुछ बच्चों के दाँतों पर असर भी हो रहा है पर गाँव में पानी की किसी वैकल्पिक व्यवस्था को लेकर प्रशासन अब भी गम्भीर नहीं है। यहाँ तक कि स्कूल में भी बच्चों को हैण्डपम्प का ही दूषित पानी पीना पड़ रहा है।

मध्य प्रदेश के रायसेन जिले की तहसील सिलवानी का एक छोटा सा गाँव है पौड़ी। इस आदिवासी बाहुल्य गाँव में पीने के पानी के लिये सरकार ने कुछ सालों पहले हैण्डपम्प लगवाए थे। लेकिन इन हैण्डपम्प का पानी पीने वाले बच्चों के धीरे-धीरे दाँत खराब होने लगे। यह बात कोई 10 साल पुरानी है।

पहले तो गाँव के लोग बच्चों को यहाँ-वहाँ दिखाते रहे पर बाद में जब कुछ रोगी जिला अस्पताल पहुँचे तो पता लगा कि यह तो इन बच्चों में फ्लोरोसिस बीमारी का प्राथमिक लक्षण है। बाद में बात लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अफसरों तक भी पहुँची तो उन्होंने उन हैण्डपम्प का पानी पीने से गाँव वालों को रोक दिया।

ग्रामीण रामाधार के मोहल्ले में 4-5 बच्चे फ्लोरोसिस बीमारी से ग्रस्त हो चुके हैं। वे बताते हैं कि हमारे मोहल्ले में पानी सबसे बड़ी फजीहत बना हुआ है। फ्लोराइडयुक्त पानी हमें बीमार बनाता है पर हमारे घरों में पीने के लिये साफ पानी भी तो नहीं है। हम कहाँ जाएँ और क्या करें... कुछ समझ नहीं आता। वे बताते हैं कि कुछ बच्चों के तो सिर्फ दाँत ही खराब हुए हैं पर कुछ बच्चों के तो हाथ-पैर भी टेढ़े होने लगे हैं।

यहाँ के माध्यमिक विद्यालय में पढ़ने वाली छात्रा प्रियंका बताती है कि स्कूल के आसपास भी पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं हैं। मजबूरी में विद्यार्थी हैण्डपम्प का खराब पानी ही पी रहे हैं। यहाँ की आँगनबाड़ी कार्यकर्ता राजन बी कहती हैं कि दूषित पानी पीने से बच्चे बीमार हो रहे हैं। बच्चों की बीमारी की जाँच करने डॉक्टर भी आते हैं पर पीने के लिये साफ पानी अब भी नहीं मिल पा रहा है।

यहाँ के लोग बताते हैं कि ये पता लगने के बाद कि गाँव के हैण्डपम्प का पानी दूषित हो गया है तो गाँव वाले जैसे-तैसे अपने पानी का यहाँ-वहाँ से इन्तजाम करने लगे। कुछ लोग तालाब का गन्दा पानी पीने को मजबूर थे तो कुछ कई किमी पैदल चलकर खेतों पर बने कुओं और ट्यूबवेल से पानी लाते रहे।

इस बीच सरकार ने आदिवासियों को फ्लोराइडयुक्त पानी से निजात दिलाने के लिये गाँव में कुछ और अन्य स्थानों पर हैण्डपम्प लगाने का तय किया। एक बार फिर लाखों रुपए खर्च कर हैण्डपम्प खनन कराए गए पर नतीजा फिर वही ढाँक के तीन पात। गाँव में कराए गए इन हैण्डपम्प के पानी में भी फ्लोराइड की निर्धारित मात्रा 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से काफी अधिक थी। इस तरह अब गाँव में नए और पुराने मिलकर करीब 15 हैण्डपम्प हैं लेकिन एक भी ऐसा नहीं जिसका पानी पीने योग्य निरापद हो।

ग्रामीणों ने इसकी शिकायत 35 किमी दूर सिलवानी में तहसील के अधिकारियों तक पहुँचाई। वहाँ से बात जिले के बड़े अफसरों तक पहुँची तब कहीं जाकर पीएचई के अफसरों ने फिर से स्थिति का आकलन किया। इस बार यह तय किया गया कि गाँव में एक कुआँ बना दिया जाये ताकि लोगों को साफ पानी मिल सके।

आनन-फानन में कुआँ बनाने का प्रस्ताव बनाकर भोपाल भेज दिया गया। थोड़े ही दिनों में वहाँ से भी प्रस्ताव को हरी झंडी मिल गई और पैसा भी मंजूर हो गया। इसके बाद लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने गाँव में कुआँ बनाने का काम शुरू कर दिया।

गाँव वाले बताते हैं कि कुआँ बनाने में शुरू से ही ध्यान नहीं दिया गया। न तो ठीक ढंग से इसकी खुदाई की गई और ना ही पक्का बनाने में निर्धारित मानकों का पालन किया गया लिहाजा कुआँ अभी पूरा बना भी नहीं था कि पिछली बारिश में ही उसका एक बड़ा हिस्सा ढह गया। अब यह कुआँ मलबे में तब्दील हो चुका है। ठेकेदार से कई बार गाँव वालों ने कहा भी लेकिन कोई असर नहीं हुआ।

इतना ही नहीं सरकार के पीएचई विभाग ने यहाँ लाखों की लागत से नल-जल योजना भी स्वीकृत कराई। पूरे गाँव में पाइपलाइन बिछाई गई और गाँव के पास एक ट्यूबवेल से इसे जोड़कर लोगों को इसके जरिए पानी देने की योजना शुरू भी की गई लेकिन थोड़े ही महीनों में यह योजना भी ढेर हो गई। जैसे गाँव वालों की किस्मत में साफ पानी लिखा ही नहीं हो। अब तक सरकार इस गाँव को साफ पानी देने के लिये करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा चुकी है पर आज भी यहाँ के लोग एक-एक मटके पानी के लिये भटक रहे हैं।

अब हालत यह है कि गाँव में 15 हैण्डपम्प हैं, नल-जल योजना है और अधूरा बना कुआँ भी, पर यहाँ के लोगों की प्यास कोई नहीं बुझा पा रहा है। एक तरफ हैण्डपम्प फ्लोराइडयुक्त पानी उलीच रहे हैं। नल-जल योजना दिखती तो है पर चलती नहीं तो दूसरी तरफ कुआँ मलबा हो चुका है। अब गाँव वालों की परेशानी यह है कि वे करें तो करें क्या।

पानी तो हर दिन चाहिए होता है। सुबह से शाम तक लोग पानी के लिये भटकते देखे जा सकते हैं। कई बालिकाएँ अपने स्कूल जाने की जगह पानी के बन्दोबस्त में जुटी रहती हैं। कई परिवारों की पानी के चक्कर में मजदूरी छूट जाती है वहीं महिलाएँ भी दूर-दूर खेतों पर जाकर अपने सिर पर घड़े उठाकर लाती हैं।

पौड़ी गाँव के लखनलाल बताते हैं कि यहाँ पीने के पानी की बहुत समस्या है। हैण्डपम्प पर लाल निशान बना दिया गया है और दीवार पर इसकी सूचना भी लिख दी गई है पर फिर भी कई बार बच्चे इससे पानी पी लेते हैं। सूचना पढ़ना सबको तो आता नहीं इसलिये कुछ लोग यही पानी उपयोग कर लेते हैं। शराफत अली बताते हैं कि कुआँ जब बनना शुरू हुआ, तभी से मनमाना काम किया जा रहा था। हमने इसे लेकर विभाग के अफसरों को बताया भी था पर किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। अब कुआँ धँस गया तो इसका खामियाजा तो हमें ही उठाना पड़ रहा है न। हम अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर कहाँ जाएँ।

इस सम्बन्ध में जब सिलवानी के एसडीएम अनिल जैन से बात की तो उन्होंने कहा कि पीएचई से जानकारी लेनी होगी फिर जानकारी लेने के बाद उन्होंने बताया कि विभाग ने गाँव में एक और बड़ा कुआँ तथा नल-जल योजना के लिये प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा है। इस पर स्वीकृति मिलते ही काम शुरू कर सकेंगे।

इससे स्पष्ट है कि फिलहाल तो पौड़ी के लोगों को फ्लोराइडयुक्त दूषित पानी से ही अपना काम चलाना पड़ेगा।