मध्यप्रदेश के फ्लोराइडग्रस्त धार जिले के 78 गाँवों में पीने का साफ़ पानी पहुँचाने के लिए करीब 90 करोड़ रुपये खर्चकर एक महती योजना आकार ले चुकी है। यह अनूठी योजना प्रदेश में अपनी तरह की पहली है और इससे करीब 25 से 50 किमी दूर नर्मदा नदी से ग्रेविटी सिस्टम के जरिये इन गाँवों के करीब डेढ़ लाख लोगों को साफ़ पानी मिल सकेगा। कुछ गाँवों तक पानी पहुँच भी गया है वहीं इस साल के आखिर तक यह सभी 78 गाँवों तक पहुँच सकेगा। इसके लिए 600 किमी की पाइप लाइन बिछाई गई है। वहीं नर्मदा किनारे ट्रीटमेंट प्लांट और जगह–जगह 405 पानी की बड़ी टंकियाँ भी बनाई गई है।
बीते लम्बे समय से पेयजल स्रोतों में फ्लोराइड की निर्धारित मात्रा से अधिक होने की वजह से धार जिले की कुक्षी तहसील के चार विकासखंडों में स्थित 78 गाँवों में पीने के पानी की समस्या विकराल रूप ले चुकी थी। निसरपुर, डही, सुसारी और बाग ब्लॉक के इन गाँवों में वैकल्पिक जलस्रोत नहीं होने से ग्रामीणों के सामने यह समस्या थी कि वे अपने लिए जरूरी पानी का इन्तजाम कैसे करें। इस संकट से उबरने के लिए प्रदेश सरकार ने 86 करोड़ 20 लाख रूपये की लागत से करीब 25 किमी दूर नर्मदा के पानी को धरती के गुरुत्वाकर्षण बल से उदवहन कर गाँव–गाँव पहुँचाया जा रहा है। इसमें नर्मदा किनारे चंदनखेड़ी गाँव में ट्रीटमेंट प्लांट बनाया गया है। नदी से पानी लेकर प्लांट में पहले यह शुद्ध होगा और फिर 110 हार्सपॉवर की तीन पम्पसेटों के जरिये 5 किमी दूर दोगाँवा में बने फ़िल्टर प्लांट में पहुँचेगा। यहाँ 5 किमी तक (चंदनखेड़ी से दोगाँवा) 500 एमएम की पाइपलाइन बिछाई गई है। यहाँ से पानी 7 किमी का सफ़र तय करके अंजगाँव की पहाड़ी के नीचे बने टैंक में पहुँचेगा। यहाँ टैंक में इकट्ठा पानी फिर गाँव–गाँव का सफ़र तय करेगा।
गाँव–गाँव तक पानी पहुँचाने के लिए करीब 600 किमी की पाइपलाइन बिछाई गई है। इस योजना में 250 किमी लम्बी मुख्य पाइप लाइन तथा 350 किमी पीवीसी पाइप लाइन भी बिछाई जा चुकी है। मुख्य लाइन में 500 से 200 एमएम के जीआई पाइप और गाँव-बस्तियों तक पानी पहुँचाने के लिए पीवीसी पाइप का सहारा किया गया है। इसी तरह 78 बस्तियों तक पानी निर्बाध रूप से मिलता रहे इसके लिए 500 से 2000 लीटर क्षमता वाली 405 टंकियों का निर्माण भी अन्तिम चरण में है। इसमें से 110 टंकियों से पानी बाँटना शुरू भी हो चुका है।
दरअसल मप्र के कई जिलों में भू-जल दूषित हो जाने से फ्लोराइडयुक्त पानी की समस्या यहाँ आम है। हालत इतने बुरे हैं कि करीब सात हजार से ज्यादा बस्तियों के करीब साढ़े 11 हजार पेयजल स्रोतों में पानी दूषित हो चुका है। वैसे तो प्रदेश के करीब 27 जिले फ्लोराइड से प्रभावित हैं पर सबसे ज्यादा बुरी स्थिति झाबुआ, धार, रतलाम, नीमच, मंदसौर, उज्जैन, शिवपुरी, छिंदवाड़ा, सिवनी, भिंड, मंडला और डिंडौरी जिले में है। यहाँ के जलस्रोतों में फ्लोराइड की मात्रा सामान्य से बहुत अधिक है। आँकड़ों के मुताबिक यहाँ फ्लोराइड की मात्रा 5.56 प्रतिशत तक पहुँच गई है। डॉक्टरों के मुताबिक पीने के पानी में 15 मिलीग्राम प्रति लिटर से अधिक फ्लोराइड मानव शरीर के लिए घातक होती है।
धार जिले के गाँवों में घूमने पर ग्रामीणों ने बताया कि लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग कई जगह हैंण्डपम्प तो लगवा देता है लेकिन इस बात की जाँच नहीं की जाती कि यह पानी ग्रामीणों के लिए पीने योग्य है या नहीं। ऐसी दशा में ग्रामीण पानी पीते रहते हैं लेकिन जब इस पानी के दुष्प्रभाव सामने आने लगते हैं तब कहीं अफसर जागते हैं। कुछ गाँवों में तो लोगों को इस पानी का खामियाजा भी उठाना पड़ा है। कई जगह बच्चों के दाँत खराब हुए हैं तो कहीं कोई विकलांग भी हुए हैं। बताया जाता है कि जन्म से अच्छे बच्चे अचानक इसकी चपेट में आ जाते हैं और उनका जीवन बर्बाद हो जाता है।
इस योजना का काम देख रहे कुक्षी तहसील के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग में पदस्थ गुणवत्ता नियंत्रक बीएस उइके ने बताया कि यह अब तक की प्रदेश की सबसे बड़ी ग्रेविटी सिस्टम आधारित योजना है और इसका काफी काम हो चुका है। बाकी बचा हुआ काम भी अगले 6 महीनों में पूरा हो जायेगा। फिलहाल 110 टंकियों तक पानी पहुँचाया भी जा रहा है। मुख्य लाइन की टेस्टिंग का काम भी पूरा ही चुका है। दोगाँवा का फ़िल्टर प्लांट भी शुरू हो चुका है। यहाँ बिजली कटौती पानी के रास्ते में बाधक नहीं बने, इसके लिए अलग से बिजली ग्रीड भी बनाया गया है। फिलहाल योजना को पूरा करने और इसके संधारण में कुक्षी पीएचई के 65 अधिकारी–कर्मचारी लगे हैं। इसके लगातार संचालन– संधारण के लिए भी कार्य योजना बनाई गई है। फिलहाल तो योजना इस फ्लोराइड बहुल इलाके के लिए संजीवनी मानी जा रही है पर देखना होगा कि इसका आगे संचालन कैसा होगा। यदि यह अपने लक्ष्यों के अनुरूप काम कर पाई तो इलाके की दशा–दिशा बदलने में कामयाब साबित हो सकेगी।