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यह सच है कि देश में भयावह हो चुकी वायु प्रदूषण की समस्या से मुक्ति की राह आसान नहीं है। कानून बनाने से लेकर उसे लागू करने तक इसमें कई बाधाएँ सामने आएँगी। इस बीच अहम सवाल यह है कि इस दौर में हम जियेंगे कैसे?देश में प्रदूषण मुक्ति की दिशा में बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक अभूतपूर्व निर्णय लिया गया। वह यह कि देश में 31 मार्च के बाद भारत स्टेज-3 यानी बीएस-3 वाहनों की बिक्री नहीं होगी और एक अप्रैल से समूचे देश में बीएस-4 यानी भारत स्टेज एमिशन स्टैंडर्ड के वाहन बेचे जाएँ। प्रदूषण मुक्ति की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसकी प्रशंसा की ही जानी चाहिए क्योंकि माना जाता है कि बीएस-3 के मुकाबले बीएस-4 स्तर के वाहनों से प्रदूषण कम होगा। तात्पर्य यह कि बीएस-3 के बनिस्बत बीएस-4 के वाहनों से वायु प्रदूषण बढ़ाने वाले पार्टिकुलेट मैटर का उर्त्सजन तकरीब 80 फीसदी कम हो जायेगा। लेकिन सबसे बड़ी और अहम बात तो यह है कि 31 मार्च तक जिस तेजी से बीएस-3 वाहनों की बड़े-बड़े ऑफरों के नाम पर और रियायत के चलते अंधाधुंध बिक्री हुई है, वे और देश में जो लाखों की तादाद में बीएस-3 गाड़ियाँ सड़कों पर दौड़ रही हैं, वे तो आने-वाले तकरीब 18-20 सालों तक देश में दौड़ेंगी।
जाहिर है कि वे निर्बाध गति से प्रदूषण फैलाती रहेंगी और राजधानी क्षेत्र दिल्ली ही नहीं, पूरे देश की जनता इनसे निकले जहरीले प्रदूषण को झेलने को विवश होगी। समूचे देश के लिये बहुत बड़ा खतरा और गंभीर चुनौती है। वह बात दीगर है कि भारत स्टेज एमिशन स्टैंडर्ड को हमारे यहाँ इस सदी की शुरुआत में जब ऑटोमोबाइल के मानकों को कड़े करने की कवायद की जा रही थी, तब अपनाना शुरू किया था। इसे यूरोप के लिये बने एमिशन स्टैंडर्ड के आधार पर तैयार किया गया था जो एक तरह से पूरी दुनिया का मानक है। हम दावे कितने भी करें असलियत है कि हम इस मामले में भी विकसित देशों से कितना पीछे हैं, यह इससे जाहिर हो जाता है कि जब हम अपने देश में बीएस-4 लागू करने की प्रक्रिया शुरू करने के दौर में हैं, तब पूरी दुनिया में बीएस-6 की विदाई का दौर जारी है। इससे साफ है कि इस मामले में हम विकसित देशों से तकरीबन आठ साल पीछे चल रहे हैं और यह कि वायु प्रदूषण से फिलहाल मुक्ति नहीं मिलने वाली।
इसका सबसे बड़ा कारण वाहनों की बढ़ती तादाद है जो दिनों-दिन तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। हवा में लैड और हाइड्रोकार्बन की मात्रा दोगुनी होने का सबसे बड़ा कारण दुपहिया वाहन है। ट्रकों के बाद प्रदूषण फैलाने में दोपहिया वाहन सबसे आगे हैं। क्योंकि इनकी कुल वाहनों में तकरीब 60 फीसदी हिस्सेदारी है। आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट प्रमाण है कि अकेले दिल्ली में 88 लाख गाड़ियाँ पंजीकृत हैं। 56 लाख दोपहिया वाहन हैं जो तेजी से बढ़ रहे हैं। 26 लाख से ज्यादा कारें हैं। उनमें 14 लाख रोजाना सड़कों पर निकलती हैं। समस्या की विकरालता का अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में पूरी दुनिया में भारत का स्थान दूसरा है। इसका खुलासा ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज की 2017 की रिपोर्ट करती है।
देखा जाये तो प्रदूषण का असर हर उम्र के बच्चों पर पड़ता है। नवजात बच्चों का विकास प्रभावित होता है। वे फेफड़ों में संक्रमण और फेफड़े सम्बंधी बीमारियों के चलते एक से दो माह के भीतर असमय मौत के मुँह में चले जाते हैं। दो से 6 साल तक के बच्चों में अस्थमा, कफ, फेफड़ों की क्षमता कम होने, उनका समयानुसार विकास न होने से वे कई घातक बीमारियों के चंगुल में फँस जाते हैं। स्कूल जाने वाले 6 से 12 साल के बच्चों में अस्थमा, कफ, सांस और फेफड़े की क्षमता कम होने की समस्या पाई जाती है। 12 से 18 साल के बच्चे फेफड़ों सम्बंधी बीमारियों के शिकार होते हैं। आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि दिल्ली की जहरीली हो चुकी हवा में 100 से भी ज्यादा जहरीले रसायन घुले हुए हैं। सीएनजी वाहनों के कारण वायु प्रदूषण पर पड़ा सकारात्मक असर बहुत पहले खत्म हो चुका है। उसके अनुसार दिल्ली एनसीआर में प्रदूषकों के स्तर में कमी लाने हेतु तथा इलाके की हवा को सुरक्षित मानकों में लाने के लिये कड़े हस्तक्षेप की जरूरत है। इसमें 76 फीसदी तक कमी की बेहद जरूरत है।
जहाँ तक ओजोन का सवाल है, दिल्ली की हवा में ओजोन का स्तर तीन गुणा बढ़ चुका है। यह गंभीर खतरे का संकेत है। इस मामले में हम समूची दुनिया में सबसे पहले पायदान पर हैं। दिल्ली में गर्मी बीते 13 साल का रिकॉर्ड तोड़ चुकी है। यहाँ तेज गर्मी और हवा के तेजी से बढ़ते प्रदूषण के चलते ओजोन का स्तर बढ़ रहा है। हवा जहरीली हो रही है। वैज्ञानिक महीनों पहले से चेता रहे हैं कि दिल्ली के लोग रेगिस्तान की झुलसा देने जैसी गर्मी के लिये तैयार हो जायें। यहाँ पारा चढ़ने के साथ-साथ हवा भी जहरीली होगी। मानक के अनुसार ओजोन का स्तर 100 एक्यूआई से ज्यादा नहीं होना चाहिए जबकि बीते दिनों राजधानी के विभिन्न इलाकों में ओजोन का स्तर 300 से अधिक था। हवाई अड्डे के आस-पास की हवा में ओजोन का स्तर 321 से पार पहुँच गया था। गुरूग्राम और उसके आस-पास के इलाके में इसका स्तर 317 के करीब था। असलियत यह है और वैज्ञानिक भी इसकी पुष्टि करते हैं कि हवा में गाड़ियों से निकलने वाली गैसौं व हाइड्रोकार्बन की मात्रा अधिक होने पर तापमान 40 डिग्री से अधिक हो जाता है, ऐसी स्थिति में गैसें आपस में क्रिया करके घातक ओजोन गैस बनाती हैं। नतीजतन प्रदूषण के स्तर में बढ़ोत्तरी होती है।
ओजोन सांस की बीमारी से पीड़ित रोगियों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। यह सांस के जरिये रोगी के शरीर के विभिन्न हिस्सों में पहुँच कर सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि ओजोन को नियंत्रित करने के लिये तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। गाड़ियों से निकलने वाले धुएँ पर नियंत्रण के साथ ही पॉवर प्लांट, फ़ैक्टरियों-कारखानों के धुएँ पर भी लगाम लगायी जानी चाहिए। अमेरिकी शोधकर्ताओं के अनुसार जिन इलाकों में वायु प्रदूषण की मात्रा अधिक होती है, वहाँ रहने वाली महिलाओं को स्तन कैंसर होने का खतरा ज्यादा होता है। शोधकर्ता कहते हैं कि ऊतकों का घनत्व बढ़ने से कैंसर पनपने का खतरा रहता है।
असलियत में वायु प्रदूषण की समस्या से कमोबेश समूचा देश जूझ रहा है। कोई महानगर, शहर, कस्बा, धार्मिक स्थल ऐसा नहीं है जो प्रदूषण की मार से बचा हो। हाँ दिल्ली की हवा में ज्यादा प्रदूषण है, इसे झुठलाया नहीं जा सकता। नीति आयोग भी इसकी पुष्टि करता है। आयोग की मानें तो कोयला आधारित बिजली संयंत्रों, ईंट भट्टों, खासकर डीजल से चलने वाले वाहनों, खाना पकाने, हीटिंग आग जो जलाते हैं, धूल और उत्तर भारत में खासकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यू.पी. में फसलों के अवशेषों को जलाने ये वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं। उसके अनुसार देशभर में सुधारात्मक कार्यवाही के साथ-साथ विभिन्न प्रतिबंधों और यातायात कानूनों का सख्ती से पालन बेहद जरूरी है।
इस पर अंकुश के लिये आयोग का मानना है कि वह पाँच सूत्रीय एजेंडा जिसमें पेट्रोल-डीजल पर अधिक टैक्स, उच्च पार्किंग दर, कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को बंद करना, बैटरी चालित वाहनों का इस्तेमाल और सार्वजनिक परिवहन शामिल है, को बढ़ावा देकर आगामी तीन साल में वायु प्रदूषण पर काफी हद तक रोक लगायी जा सकती है। वैसे यह सच है कि देश में भयावह हो चुकी वायु प्रदूषण की समस्या से मुक्ति की राह आसान नहीं है। कानून बनाने से लेकर उसे लागू करने तक इसमें कई बाधाएँ सामने आएँगी। इस बीच अहम सवाल यह है कि इस दौर में हम जियेंगे कैसे?
ज्ञानेन्द्र रावत
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं पर्यावरणविद अध्यक्ष, राष्ट्रीय पर्यावरण सुरक्षा समिति, ए-326, जीडीए फ्लैट्स, फर्स्ट फ्लोर, मिलन विहार, फेज-2, अभय खण्ड-3, समीप मदर डेयरी, इंदिरापुरम, गाजियाबाद-201010, उ.प्र. मोबाइल: 9891573982, ई-मेल: rawat.gyanendra@rediffmail.comrawat.gyanendra@gmail.com