“परिकल्पना-निष्कर्ष” विधि सभी वैज्ञानिक गतिविधियों का मूल प्रस्थान बिंदु है। वैज्ञानिक प्रगति प्रयोग योग्य परिकल्पनाओं के निर्धारण से ही विज्ञान की प्रगति होती है। दूसरे शब्दों में हर वैज्ञानिक परिकल्पना एक बयान पर आधारित होती है जिसकी प्रयोगों के आधार पर पुष्टि या खंडन किया जाता है। अगर उसे स्वीकार किया जाता है तो वह उन स्थितियों को वैध ठहराती है जिनके आधार पर वह परिकल्पना की गई होती है। स्वीकार या निषेध किसी भी मामले में हम परीक्षण करने वाली नई परिकल्पनाओं की ओर बढ़ते हैं। एक तरह से परिकल्पनाओं की श्रृंखला बनती है। चाहे उन्हें स्वीकार किया जाए या उनका खंडन हो प्रयोगों का सिलसिला बढ़ता जाता है। यही विज्ञान का मूल है।
विज्ञान ज़ोर देकर कहता है कि (क) सभी परिकल्पनाएं जांच योग्य होनी चाहिए। (ख) जांच बहुत ध्यान से की जानी चाहिए। (ग) जांच के नतीजे प्रक्रिया के प्रति हमारी समझ बढ़ाने वाले हों (घ) आगे भी जांच योग्य परिकल्पनाएं विकसित करनी चाहिए। यह प्रकिया मानव ज्ञान को बढ़ाने में विज्ञान की उल्लेखनीय सफलता के लिए जिम्मेदार है।
विज्ञान ज़ोर देकर कहता है कि (क) सभी परिकल्पनाएं जांच योग्य होनी चाहिए। (ख) जांच बहुत ध्यान से की जानी चाहिए। (ग) जांच के नतीजे प्रक्रिया के प्रति हमारी समझ बढ़ाने वाले हों (घ) आगे भी जांच योग्य परिकल्पनाएं विकसित करनी चाहिए। यह प्रकिया मानव ज्ञान को बढ़ाने में विज्ञान की उल्लेखनीय सफलता के लिए जिम्मेदार है।