“यह कितना विचित्र है कि लोग यह नहीं समझते कि महत्व का हर पर्यवेक्षण, किसी विचार के पक्ष या विपक्ष में होता है।”
चार्ल्स डार्विन, 1861
पानी या जैव विविधता की वेबसाइटों के शैक्षिक खंड में छात्रों के लिए कुछ दिलचस्प परिकल्पनाओं को ख़ास तौर पर शामिल किया जाना चाहिए। दरअसल पर्यावरण के बारे में जागरुकता दुनिया के सीधे संपर्क में रह कर प्रकृति को समझने से आ सकती है।
विज्ञान ने प्रकृति को गहराई से समझने के कहीं अधिक सार्थक सवाल पूछने के लिए प्रभावशाली तरीका विकसित किया है। इस तरह की वैज्ञानिक गतिविधियां क्या हो सकती हैं (मूर 1993)?
1) विज्ञान बिना किसी ईश्वरीय शक्ति पर भरोसा किए, क्षेत्र, प्रयोगशाला में जुटाए गए आंकड़े के विश्लेषण या प्रयोग पर आधारित होता है।
किसी खास सवाल का जवाब तलाशने के लिए आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं और किसी निष्कर्ष को पुख्ता करने या उसके खिलाफ़ साबित करने के लिए उनका विश्लेषण किया जाता है।
किसी तरह के पूर्वाग्रह से बचने के लिए वस्तुनिष्ठ तरीके अपनाने चाहिए।
परिकल्पनाएं उपलब्ध पर्यवेक्षण और विषय की आम समझ के मुताबिक होनी चाहिए।
सभी परिकल्पनाओं की जांच की जानी चाहिए। अगर संभव हो तो प्रतिस्पर्धी परिकल्पनाएं विकसित की जानी चाहिए। इसके साथ ही उनकी समस्या सुलझाने की क्षमता की तुलना की जानी चाहिए।
किसी खास विज्ञान में सामान्यीकरण हर जगह वैध होने चाहिए। अनूठी घटनाओं को बिना किसी ईश्वरीय शक्ति से जोड़े छात्रों को वैज्ञानिक तरीके से समझाना चाहिए।
किसी भी गलती की संभावना पूरी तरह ख़त्म करने के लिए किसी तथ्य या खोज को तभी पूरी तरह स्वीकार करना चाहिए जब उसकी पुष्टि अन्य प्रयोगों में भी हो।
विज्ञान की ख़ासियत है कि वह लगातार वैज्ञानिक सिद्धांतों में सुधार करता रहता है। ऐसा वह त्रुटिपूर्ण या अधूरे सिद्धांतों को बदल कर और उलझी हुई समस्याओं के समाधान से करता है।
माधव गाडगिल
आगरकर शोध संस्थान, पुणे 411004
madhav.gadgil@gmail.com
चार्ल्स डार्विन, 1861
पानी या जैव विविधता की वेबसाइटों के शैक्षिक खंड में छात्रों के लिए कुछ दिलचस्प परिकल्पनाओं को ख़ास तौर पर शामिल किया जाना चाहिए। दरअसल पर्यावरण के बारे में जागरुकता दुनिया के सीधे संपर्क में रह कर प्रकृति को समझने से आ सकती है।
विज्ञान ने प्रकृति को गहराई से समझने के कहीं अधिक सार्थक सवाल पूछने के लिए प्रभावशाली तरीका विकसित किया है। इस तरह की वैज्ञानिक गतिविधियां क्या हो सकती हैं (मूर 1993)?
1) विज्ञान बिना किसी ईश्वरीय शक्ति पर भरोसा किए, क्षेत्र, प्रयोगशाला में जुटाए गए आंकड़े के विश्लेषण या प्रयोग पर आधारित होता है।
किसी खास सवाल का जवाब तलाशने के लिए आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं और किसी निष्कर्ष को पुख्ता करने या उसके खिलाफ़ साबित करने के लिए उनका विश्लेषण किया जाता है।
किसी तरह के पूर्वाग्रह से बचने के लिए वस्तुनिष्ठ तरीके अपनाने चाहिए।
परिकल्पनाएं उपलब्ध पर्यवेक्षण और विषय की आम समझ के मुताबिक होनी चाहिए।
सभी परिकल्पनाओं की जांच की जानी चाहिए। अगर संभव हो तो प्रतिस्पर्धी परिकल्पनाएं विकसित की जानी चाहिए। इसके साथ ही उनकी समस्या सुलझाने की क्षमता की तुलना की जानी चाहिए।
किसी खास विज्ञान में सामान्यीकरण हर जगह वैध होने चाहिए। अनूठी घटनाओं को बिना किसी ईश्वरीय शक्ति से जोड़े छात्रों को वैज्ञानिक तरीके से समझाना चाहिए।
किसी भी गलती की संभावना पूरी तरह ख़त्म करने के लिए किसी तथ्य या खोज को तभी पूरी तरह स्वीकार करना चाहिए जब उसकी पुष्टि अन्य प्रयोगों में भी हो।
विज्ञान की ख़ासियत है कि वह लगातार वैज्ञानिक सिद्धांतों में सुधार करता रहता है। ऐसा वह त्रुटिपूर्ण या अधूरे सिद्धांतों को बदल कर और उलझी हुई समस्याओं के समाधान से करता है।
माधव गाडगिल
आगरकर शोध संस्थान, पुणे 411004
madhav.gadgil@gmail.com