परिकल्पना:
कम प्रदूषण स्तर वाले पानी में मछली की प्रजातियों की विविधता कहीं अधिक होती है।
कारण:
किसी खास क्षेत्र में जीवों के विशेष समुदाय मसलन पौधे, मछली या सरिसृप की विविधता का स्तर किन बातों पर निर्भर करता है इस पर कई परिकल्पनाएं हैं। विविधता के उच्च स्तर के लिए पर्यावरण अधिक उत्पादक और स्थिर होना चाहिए। इसी तरह ऐसे पर्यावरण जहां लंबे समय तक समुदायों का उद्भव हुआ हो, वहां भी विविधता का उच्च स्तर होने की उम्मीद की जाती है। अचानक हुए किसी बड़े बदलाव से विविधता का स्तर घटने की संभावना होती है क्योंकि बहुत कम प्रजातियों को नई परिस्थितियों के अनुरूप ढलने का मौका मिल पाता है। हाल के दशकों में देखा गया है कि साफ पानी के बहुत से स्रोतों में प्रदूषक तत्वों का स्तर बड़ी मात्रा में बढ़ा है। ऐसा कस्बों और शहरों के सीवेज का पानी और कृषि उर्वरकों के मिश्रित होने के कारण हुआ है। इन स्थितियों में जहां मछलियों की बहुत कम प्रजाति के फलने फूलने के अवसर होते हैं वहां कुछ शैवाल प्रजाति का बड़े पैमाने पर उद्भव देखा गया है। परिणामस्वरूप उच्च प्रदूषण स्तर वाले पानी में मछली की प्रजातियों की सीमित उपलब्धता की अपेक्षा की जा सकती है।
कार्यप्रणाली:
हमारा लक्ष्य नदी के जल में प्रदूषक तत्वों के स्तर के आधार पर मछली या सीप की उपस्थिति की तुलना करना है। मूठा और मूला नदियों में अपने उद्गम स्थल यानी पश्चिमी घाट के पास प्रदूषण स्तर कम है। वहीं सीवर का पानी मिलने के कारण पुणे शहर के पास प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक होता है। तुलना के लिए मूला नदी में २० और मूठा में २० स्थानों का चुनाव किया जा सकता है। अगर संभव हो सके तो जीपीएस यंत्र की सहायता से चुने गए स्थान की सही स्थिति यानी अक्षांश और देशांतर की जानकारी रखनी चाहिए। डिजिटल कैमरे के इस्तेमाल से बहुस सावधानी से उस जगह की प्रकृति की जांच की जानी चाहिए। नदी के हर हिस्से में भोई समुदाय मछलियां पकड़ता है। उनसे संपर्क करके किसी खास जगह कितनी मछलियां पकड़ी जाती हैं इसकी जानकारी जुटानी चाहिए। ज़रूरत पड़ने पर मछुआरों से मछलियों के नमूने भी ख़रीदे जा सकते हैं। इसके अलावा छात्र खुद एक खास समय में सीपियों की खोज कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर चार छात्र एक घंटे तक या दो छात्र दो घंटे तक खोजबीन कर सकते हैं। मछली/सीपियों के आंकड़े उनके स्थानीय नाम और डिजिटल कैमरे से खींची गई तस्वीरों के आधार पर जुटाए जाने चाहिए। साथ-साथ पानी के नमूने एकत्रित करके सीओडी, बीओडी , एन और पी तत्वों तथा अपारदर्शिता के आधार पर उसका विश्लेषण होना चाहिए। यह पूरी गतिविधि मॉनसून के बाद यानी अक्टूबर-नवंबर में करना सबसे अच्छा रहता है।
आंकड़े की सूची
इस परियोजना में तीन तरह आंकड़े जुटाए जाएंगे। पहला हर क्षेत्र, दूसरा हर प्रजाति और तीसरा हर सीप/मछली और क्षेत्र दोनों के आधार पर।
क्षेत्र आधारित आंकड़े
क्षेत्र # | नदी | अक्षांश | देशांतर | नमूना लेने की तारीख | सीओडी | बीओडी | अस्पष्टता | N | P |
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align='left'>प्रजाति आधारित आंकड़े
प्रजाति # | वैज्ञानिक नाम | स्थानीय नाम | अध्ययन के दौरान मिले सबसे बड़े मछली/सीप का आकार | |
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| शरीर की लंबाई | वज़न |
1 |
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2 |
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प्रजाति और स्थान दोनों के आधार पर आंकड़े
मछलियों की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आंकड़े उपयुक्त हैं। सीपों के मामले में संख्या दर्ज की जा सकती है।
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| स्थान # | 1 | 2 | .. | .. |
| 34 | 40 |
प्रजाति |
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1 |
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2 |
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अगला कदम:
यह देखना दिलचस्प होगा कि जिस अनुपात में ए और पी तत्व और पानी का गंदापन एक दूसरे में मिलते हैं उसी अनुपात में मछलियों की विविधता में बदलाव नज़र आता है। कोई भी प्रदूषण के उच्च स्तर पर मछलियों की सहनशीलता के गुण की जांच कर सकता है।