पिथौरागढ़। दावानल की प्रचण्ड ज्वालाएं सुनहरी घाटियों के लिये अभिशाप बन गयी हैं, पहाड़ों में जंगलों में लगी आग के कारण वनों का सौन्दर्य नष्ट होता जा रहा है। खाक में विलय होते वन पर्यावरण जगत में गहरे संकट का कारण बनते जा रहे हैं, वन्य जीव-जन्तुओं का अब वनों में रहना दुश्वार हो गया है। सूखते जल स्रोतों ने लोगों के माथे की चिंताएं बढ़ा दी हैं। अनेक भागों में इनके सूखने से गहरा जल संकट उत्पन्न होने लगा है। ठंडी हवाओं की बहारें गर्मी की तपिस में तब्दील होने से लोग परेशान होने लगे हैं। वनों में आग लगने से इन दिनों समूचे उत्तराखण्ड में हाहाकार मचा हुआ है, जिस कारण पर्यटन एवं तीर्थ व्यवसाय भी बुरी तरह प्रभावित हो गया है।
आग बुझाने के लिये पहली बार सेना व हेलिकॉप्टरों का सहारा लिया जा रहा है। अनेक इलाकों में सूर्य की रोशनी दिन भर धुंध के आवरण में सिमटकर मायूसी का माहौल पैदा किये हुए है। जिन हरी-भरी वादियों को देखकर लोगों को सुकून मिलता था, वे वादियाँ आँखों के लिये पीड़ा बन गयी हैं। वर्षा के अभाव में अधिकांश खेत चौपट हो गये हैं, सूखे की मार से फसल के दानों को लोग तरस गये हैं। हिमालयी भूमि के साथ छेड़छाड़ के नतीजे सामने आने लगे हैं। नदियों के गिरते जल स्तर व सूखते जल स्रोंतों ने त्राहि-त्राहि मचाकर रख दी है। बीते सालों में दावाग्नि की भेंट चढ़े जंगलों को आबाद करने की ठोस नीति न बनने के कारण जंगल उजड़ते जा रहे हैं। आग का कहर इस बार इतना रौद्र रूप ले लेगा यह कल्पना भी नहीं थी। आग बुझाते हुए लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ेगी ये किसी ने सोचा भी नहीं था। वन्य जीव जन्तुओं के लिये ये आग दुर्भाग्य की लकीर बन गयी है।
लंबे-चौड़े भाषण देने वाले पर्यावरण के पहलुओं का कहीं कोई अता-पता नहीं है। लगता है आग बुझने के बाद इनके सेमिनार व भाषणबाजी का दौर फिर शुरू हो जाएगा। इन दिनों सबकी निगाहें खामोश हैं। पहाड़वासियों के लिये वनों की दावाग्नि अभिशाप बन गयी है। अनेक क्षेत्रों में लोग खुद ही इसके जिम्मेदार हैं, जो लोग पिरुल में आग लगाकर जंगलों को उजाड़ रहे हैं उन पर कड़ी नजर रखने की आवश्यकता है। इन्हीं लोगों के कारण लाखों हेक्टेयर वन भूमि स्वाहा हो चुकी है।
गौरतलब है कि यहाँ के वन स्थल केवल पर्यावरण से ही नहीं अपितु तीर्थ के नजरिये से भी महत्त्वपूर्ण हैं। वनों की मोहकता खत्म होने से इसका सीधा असर तीर्थ व्यवसाय पर भी पड़ेगा। राज्य के प्रमुख स्थलों के भ्रमण को आने वाले सैलानियों की कमी का कारण भी दावाग्नि को ही माना जा रहा है। गंगोलीहाट, बेरीनाग, डीडीहाट, पिथौरागढ़, थल, मुन्स्यारी के जंगलों का हाल बड़ा बुरा है। आग के कारण जीवनदायिनी औषधियाँ खाक में विलय हो गयी हैं। महत्त्वपूर्ण जंगल अभी भी धधक रहे हैं। आज यहाँ की धरती की प्राकृतिक सुंदरता को दावाग्नि का ग्रहण लगा हुआ है। हिमालय की गोद में बसा पहाड़ प्रकृति की अनमोल धरोहर है, लेकिन अब यह सुरक्षित नहीं है।
उत्तराखण्ड में बेतरतीब विकास व जंगलों के अवैध कटान के दुष्परिणाम आज सामने आने लगे हैं। उत्तराखण्ड के पहाड़ी जनपदों पिथौरागढ़, चमोली, टिहरी, पौड़ी, अल्मोड़ा, चम्पावत व नैनीताल के पर्वतीय इलाकों में कंक्रीट के जंगल विकसित हो गए हैं, जिससे पहाड़ के जंगलों का विनाश भी हो रहा है।
उत्तराखण्ड के हिमालयी अंचल में स्थित बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री से लेकर वरुणावत पर्वत में जिस प्रकार पर्वतमालाओं में हलचल मची है, आने वाले दिनों में वह शुभ नहीं कहा जा सकता है। बद्रीनाथ चोटी के पास नीलकंठ पर्वत पर जो दरार दिख रही है उसे पर्यावरणविदों में चिन्ता व्याप्त हो गई है। यदि हिमालय नहीं बचेगा तो भारत के अस्तित्व के लिये भी गम्भीर जल संकट पैदा हो जाएगा।
हिमालय में विकास की नीतियाँ बनाने वालों को इस बात का कोई मतलब नहीं है कि हिमालय से गम्भीर रूप से छेड़छाड़ दुनिया के लिये खतरनाक साबित हो सकता है। भूकम्प और प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से उत्तराखण्ड का हिमालयी क्षेत्र नाजुक व संवेदनशील क्षेत्र है। पिछले 50-60 सालों में पेड़ों के अंधाधुंध कटान होने से जंगलों का जो विनाश हुआ है, उसे पहाड़ के वानस्पतिक तंत्र को गम्भीर नुकसान पहुँचा है। भूकम्प की दृष्टि से उत्तराखण्ड क्षेत्र सिस्मिक जोन 5 के अंतर्गत आता है। यहाँ पर भारी निर्माण का कार्य जोरों पर चल रहा है, जिसमें बिजली प्रोजेक्ट, टिहरी बाँध का निर्माण, सुरंगों के निर्माण के अलावा सड़क मार्गों के निर्माण से यहाँ की जमीन को कमजोर किया है। बाँध निर्माण योजनाओं में विस्फोटकों के प्रयोग से पहाड़ के अंदरूनी हिस्से बुरी तरह कांप उठे हैं। बड़ी मशीनों के प्रयोग से पहाड़ों की जमीन को जिस प्रकार रोंदा जा रहा है वह भविष्य के लिये खतरे की घंटी बन सकती है। बेतरतीब खुदान कार्य करने से प्रति वर्ष अनेकों लोग दुर्घटनाओं के शिकार हो रहे हैं।
गौरतलब है कि उत्तराखण्ड पर्यावरण के अनेक सशक्त हस्ताक्षर हुए हैं, जिनमें गौरा देवी, चण्डी प्रसाद भट्ट, सुन्दरलाल बहुगुणा आदि प्रमुख हैं। इन लोगों ने यहाँ के पर्यावरण के लिये उल्लेखनीय कार्य किये हैं, लेकिन सरकार ने विकास कार्यों के आड़ में इनकी सिफारिशों पर अमल नहीं किया जिस कारण यहाँ पर पर्यावरण के लिये गम्भीर खामियाँ देखने को मिल रही हैं।
संवेदनशील स्थानों में यात्रियों के बढ़ते दबाव ने भी खतरा पैदा कर दिया है। विशेषकर केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री तीर्थ यात्राएँ होने के कारण आजकल वहाँ पर अंधाधुंध निर्माण कार्यों से क्षेत्र की स्थिति गम्भीर होती जा रही है। जबकि यह क्षेत्र भूकम्प की दृष्टि से अत्यंत नाजुक क्षेत्रों में शुमार है। हिमालय के पर्यावरण और पारिस्थितिकी महत्व को समझे बिना यहाँ के विकास की नीतियाँ बनायी गई हैं। यहाँ की वनस्पतियों का विशेष महत्व है। हिमालयी क्षेत्र में वृक्षों की अधिकता होने के कारण मौसम पर भी असर पड़ता था। आज ग्लोबल वार्मिंग की विश्वव्यापी समस्या का जो खतरा मंडरा रहा है उससे निपटने के लिये हिमालय के वन संरक्षक थे। लेकिन पिछले 60 वर्षों में जिस प्रकार हिमालयी क्षेत्रों में वनों का अंधाधुंध दोहन एवं विनाश हुआ है वह गम्भीर खतरे की तरफ इंगित करता है। लकड़ी माफिया व लीसा माफियाओं ने बड़ी बेदर्दी से जंगलों का कत्ल किया है। इसके अलावा आग लगने से प्रति वर्ष जंगलों में करोड़ो रुपये की सम्पत्ति नष्ट होती जाती है।
भारत के लिये हिमालय व पर्यावरण को बचाना जरूरी है। हालाँकि प्रति वर्ष हिमालय को बचाने के लिये तथाकथित एनजीओ करोड़ों रुपये डकार जाते हैं और कितने ही पर्यावरणविदों को पुरस्कृत किया जाता है, लेकिन सच्चाई कुछ और ही बयां करती है। जब तक व्यावहारिक प्रयास नहीं किए जाएंगे तब तक यहाँ के पर्यावरण पर विशेष असर नहीं पड़ता है। हिमालय बचाने के नाम पर वातानुकूलित कमरों से निकलकर वास्तविक धरातल पर कार्य करना होगा, जिससे हिमालय बच सकता है। अगर हिमालय बचेगा तो देश भी बचा रहेगा। इसलिए वनों को आग से बचाने के लिये ठोस प्रयास होने चाहिए क्योंकि उत्तराखण्ड विविधताओं वाला राज्य माना जाता है। उत्तराखण्ड अनेक शिखरों, नदियों, पौराणिक, धार्मिक व प्राकृतिक स्थानों को अपने में समेटे हुए है। महर्षि वेदव्यास ने यहीं वेदों की रचना की थी। इसी रास्ते पाण्डवों ने स्वर्गारोहण किया और महाभारत के अनेक पात्रों के सिद्धिस्थल और मंदिर आज भी यहाँ विद्यमान हैं। महाकवि कालिदास की जन्मस्थली भी यहीं है और उन्होंने यहाँ की रमणीय पर्वत शृंखलाओं, नदी-निर्झरों आदि पर अनेक काव्यों में शृंगार और जीवन की सृष्टि की। आदि शंकराचार्य ने यहाँ की यात्रा की। गुरू नानक की भी तपःस्थली यहीं पर है।
प्राकृतिक संसाधनों के क्षेत्र में उत्तराखण्ड को धनी राज्य माना जाता है। पानी, पर्यटन, जड़ी-बूटी के मामले में राज्य के पास काफी संभावनाएँ विद्यमान तो हैं, लेकिन नीति नियामकों ने इन सबकी अनदेखी कर ज्वलंत समस्याओं के समाधान के बजाय केवल इसे वाद-विवाद का मुद्दा बनाने में ही दिलचस्पी दिखाई।
उत्तराखण्ड में वनों की अपार सम्भावनाएँ हैं। यहाँ चीड़, सागौन, देवदार, शीशम, साल, बुरांश, सेमल, बांझ, साइप्रस, फर तथा स्प्रूश आदि वृक्षों से आच्छादित इस वन क्षेत्र से ईंधन तथा चारे के अतिरिक्त इमारती तथा फर्नीचर के लिये लकड़ी, लीसा, कागज इत्यादि का उत्पादन प्रचुर मात्रा में किया जा सकता है। इसके अलावा वनों में जड़ी-बूटियाँ काफी मात्रा में मौजूद हैं। जरूरत है इनके संवर्द्धन की। अगर राज्य सरकार जड़ी-बूटी की तरफ नीति में संशोधन करे तो राजस्व में अच्छी खासी वृद्धि हो सकती है। इसके लिये वनों को आबाद करना व बचाना अत्यन्त आवश्यक है।
नैनीताल जनपद में वनों की आग बुझाने के लिये एमआई-17 हेलिकॉप्टरों ने उड़ान भरकर आल्माखान स्नोव्यू में बकेट द्वारा पानी की बौछार कर आग बुझाई। जिलाधिकारी दीपक रावत के निर्देशन में जहाँ-जहाँ रिहायशी क्षेत्रों में वनाग्नि आ रही थी, उन क्षेत्रों की वनाग्नि को प्राथमिकता से बुझाया गया, ताकि किसी प्रकार की कोई जनहानि न हो। एअरफोर्स के विंग कमाण्डर वीके सिंह 7 सदस्यी दल एमआई-17 के साथ वनाग्नि बुझाने हेतु नैनीताल जनपद पहुँचे। जिलाधिकारी दीपक रावत ने विंग कमाण्डर वीके सिंह को निर्देशित किया कि वे रिहायशी इलाकों के साथ ही जंगलों में आग को भी त्वरित गति से बुझाएं।
विभागीय महकमों के साथ ही हेलिकॉप्टर से भी जनपद में आग बुझाई गई। एमआई-17 रविवार प्रातःकाल में घोड़ाखाल सैनिक स्कूल हैलीपैड से हेलिकॉप्टर द्वारा उड़ान भरकर भीमताल झील से बकेट में पानी भर आल्माखान स्नोव्यू पहुँचकर पानी की बौछारों से वहाँ लगी आग को बुझाया गया। भीमताल झील से पानी भरने की उड़ान को देखते हुये जिलाधिकारी दीपक रावत ने भीमताल क्षेत्र में अग्रिम आदेशों तक पैराग्लाइंडिंग करने पर रोक लगा दी। उन्होंने कहा कि जो भी पैराग्लाइडिंग करते व कराते हुए देखा जाएगा, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करते हुये कड़ी कार्यवाही अमल में लायी जाएगी।
जनपद में वनाग्नि को बढ़ते देख जिलाधिकारी दीपक रावत की मांग पर हेलिकॉप्टर एमआई-17 आग बुझाने हेतु जनपद में पहुँचा। उन्होंने बताया कि वनाग्नि बुझाने हेतु एक और हेलिकॉप्टर हल्द्वानी कैण्ट मंगाया गया है। उन्होंने बताया कि घोड़ाखाल बेस कैम्प वाला एमआई-17 भी अब हल्द्वानी ही बना दिया गया है। अब दोनों हेलिकॉप्टर हलद्वानी कैण्ट से ही उड़ान भरकर वनाग्नि को बुझाएंगे। जिलाधिकारी दीपक रावत ने कहा कि वनाग्नि पर काबू पाने हेतु वन, राजस्व, पुलिस, एसडीआएफ, होमगार्ड, पीआरडी, ग्राम्य विकास, आदि विभागीय महकमों द्वारा भी सक्रियता से कार्य किया गया। भीमताल झील से बकेट में पानी भरकर हेलिकॉप्टर ने आल्माखान के साथ ही किलबरी नलेना, ज्योलीकोट, ओखलकाण्डा, रामगढ़, धारी, भीमताल, खुर्पाताल, आदि क्षेत्रों की आग बुझाई। हेलिकॉप्टर द्वारा एक उड़ान में बकेट में 5000 लीटर पानी भरकर आग बुझाई गई। |