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दैनिक भास्कर
जलवायु परिवर्तन के खतरे और बढ़ती लागत से जंग लड़ रहे उत्पादक
बढ़े तापमान, सूखे मौसमों के लंबे अंतराल और बारिश के ढर्रे में बदलाव का असर
पूरी दुनिया में चाय के मशहूर ब्रांड असम टी पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडराने लगा है। विशेषज्ञों का कहना है कि तापमान और बारिश में हो रहे बदलाव के साथ सामंजस्य बिठाने में उत्पादन लागत बढ़ रही है, लेकिन उत्पादक बाजार में प्रतियोगिता के चलते दाम नहीं बढ़ा सकते हैं।
गौर हो कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश है और इसके कुल उत्पादन का आधा हिस्सा असम से आता है। वैज्ञानिक और चाय उत्पादक बताते हैं कि असम में सामान्य तापमान बढ़ चुका है। यहां सूखे मौसमों की अंतराल लंबा होने लगा है और बारिश के ढर्रे में लगातार बदलाव हो रहा है। पहले यहां एक समान बारिश होती थी, लेकिन एक दशक से कभी भी भारी बारिश हो जाती है और बगीचे की सतह की मिट्टी बह जाती है।
यही नहीं सूखे मौसमों के लंबे हो जाने से फसलों पर कीट पतंगों का खतरा बढ़ रहा है। ऐसे में ज्यादा कीटनाशक इस्तेमाल करने से लागत बढ़ती जा रही है।
आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर अरूप कुमार शर्मा के अनुसार, शोध में मिले नतीजे बताते हैं कि इन इलाकों में सूखे मौसम का अंतराल लंबा होगा और मानसून में भी भारी बारिश की बारंबारता बढ़ेगी। यह चाय उत्पादन को प्रभावित करेगी। अभी बारिश का प्रमुख समय जून या जुलाई है, जबकि आंकड़े बताते हैं कि भविष्य में यह महीना सितंबर हो जाएगा। ऐसे में स्थितियां और मुश्किल हो जाएंगी। चाय का कारोबार करने वाले मौसम की इस मार से काफी परेशान हैं।
बढ़े तापमान, सूखे मौसमों के लंबे अंतराल और बारिश के ढर्रे में बदलाव का असर
पूरी दुनिया में चाय के मशहूर ब्रांड असम टी पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडराने लगा है। विशेषज्ञों का कहना है कि तापमान और बारिश में हो रहे बदलाव के साथ सामंजस्य बिठाने में उत्पादन लागत बढ़ रही है, लेकिन उत्पादक बाजार में प्रतियोगिता के चलते दाम नहीं बढ़ा सकते हैं।
गौर हो कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश है और इसके कुल उत्पादन का आधा हिस्सा असम से आता है। वैज्ञानिक और चाय उत्पादक बताते हैं कि असम में सामान्य तापमान बढ़ चुका है। यहां सूखे मौसमों की अंतराल लंबा होने लगा है और बारिश के ढर्रे में लगातार बदलाव हो रहा है। पहले यहां एक समान बारिश होती थी, लेकिन एक दशक से कभी भी भारी बारिश हो जाती है और बगीचे की सतह की मिट्टी बह जाती है।
यही नहीं सूखे मौसमों के लंबे हो जाने से फसलों पर कीट पतंगों का खतरा बढ़ रहा है। ऐसे में ज्यादा कीटनाशक इस्तेमाल करने से लागत बढ़ती जा रही है।
और मुश्किल होते जाएंगे हालात
आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर अरूप कुमार शर्मा के अनुसार, शोध में मिले नतीजे बताते हैं कि इन इलाकों में सूखे मौसम का अंतराल लंबा होगा और मानसून में भी भारी बारिश की बारंबारता बढ़ेगी। यह चाय उत्पादन को प्रभावित करेगी। अभी बारिश का प्रमुख समय जून या जुलाई है, जबकि आंकड़े बताते हैं कि भविष्य में यह महीना सितंबर हो जाएगा। ऐसे में स्थितियां और मुश्किल हो जाएंगी। चाय का कारोबार करने वाले मौसम की इस मार से काफी परेशान हैं।