फ्लोराइड प्रभावित ग्राम बांदेडी की कहानी

Submitted by Hindi on Tue, 03/11/2014 - 15:13
जिस संस्था ने बांदेड़ी में फ्लोराइड मुक्त पेयजल का प्लांट लगाया है, उसी ने जिले के अन्य तीन स्थानों लेबड़, मनावर के समीप जाजमखेड़ी और कुक्षी के समीप बडग्यार गांव में भी ऐसे ही प्लांट स्थापित किए थे। किंतु यह भी बंद ही है और ग्रामीणों को इनका कोई लाभ नहीं मिल रहा है। जब कि इन प्लांटो की स्थापना के पूर्व संस्था ने मीडिया के माध्यम से काफी ढ़िंढ़ोरा भी पिटा था। वैसे भी जिले में फ्लोराइड उन्मूलन के नाम पर अरबों करोड़ो रू. खर्च किए किंतु हालात में कोई खास सुधार नहीं आया है। धार । पानी के नाम पर ग्रामीणों के साथ छलावा हो रहा है। वहीं शासन की हालत यह है, कि गांव के समीप ही पेयजल के लिए साधन उपलब्ध होने के बाद भी पिछले कई वर्षों से ग्रामीण पानी के लिए मशक्कत करते नजर आ रहे हैं। जबकि ग्रामीणों ने करीब 10 वर्ष पूर्व शासन को जनभागीदारी के तौर पर पीएचई विभाग को 1.20 लाख रू. तक जमा करवा दिए थे, किंतु विभाग ने ग्राम धार जिले के फ्लोराइड प्रभावित ग्राम बांदेडी की ओर कोई ध्यान नहीं दिया।

धार जिला मुख्यालय से करीब 22 कि.मी. दूर सरदारपुर विकासखंड़ के अंतर्गत ग्राम बांदेड़ी है। मांगोद बंगले से इसकी दूरी मात्र एक कि.मी. है और यह दसई मार्ग पर है। इस गांव की जनसंख्या करीब 3500 है। इस गांव की विशेषता है कि यह चारों तरफ से पानी के स्रोतों से घिरे होने के बाद भी पिछले कई वर्षों से प्यासा है और गर्मी के दिनों में तो पानी खरीदना तक पड़ता है। वहीं जितने भी भूमिगत जलस्रोत है, उनमें फ्लोराइड युक्त जल आने से वह पीने योग्य नहीं है। इस गांव के लोगों को जहां शासन के द्वारा आज तक पीने का पानी उपलब्ध नहीं करवाया गया, वहीं एक अन्य संस्था के द्वारा भी पेयजल के नाम पर पिछले डेढ़ वर्ष से छलावा किया जा रहा है।

पैसे से भी नहीं उपलब्ध पेयजल


करीब डेढ़ वर्ष पूर्व इस ग्राम बांदेड़ी के ग्रामीणों को फ्लोराइड मुक्त पेयजल उपलब्ध के लिए भोपाल की एक संस्था द्वारा यहां पर एक प्लांट लगाया। इस प्लांट से ग्रामीणों को फ्लोराइड मुक्त पेयजल मात्र 15 पैसे लीटर की दर से उपलब्ध करवाया जाना था। किंतु डेढ़ वर्ष बीतने के बाद भी इस प्लांट से ग्रामीणों को पेयजल नहीं मिल रहा है। जिसके कारण ग्रामीण जाने-अनजाने फ्लोराइड वाला जल ही पीने को मजबूर हैं। उक्त संस्था के द्वारा ग्रामीणों को एक कार्ड भी बनाकर दिया जाना था, किंतु वह भी आज तक एक भी ग्रामीण को नहीं दिया। इस कार्ड से एटीएम मशीन की भांति पानी मशीन से बाहर आता है । संस्था ने इस मशीन के लिए एक बोरवेल भी अधिग्रहित कर लिया, जिसके कारण वह अब ग्रामीणों के उपयोग नहीं आ रहा है।

कई स्रोतों के बावजूद प्यासा


ऐसा नहीं है, कि बांदेड़ी के आस-पास कोई जलस्रोत नहीं है। बांदेड़ी से 4 कि.मी. दूर ग्राम सगवाल तक कालीकिराय बांध की पाइपलाईन आ चुकी है। इस लाईन को यदि आगे यहां तक कर दिया जाए, तो परेशानी दूर हो सकती है। इसी प्रकार 2 कि.मी. दूर ग्राम आंतेड़ी के तालाब से भी पाइपलाईन आ सकती है। वहीं अमेझरा के मेस्को डेम से मांगोद तक, जो बांदेड़ी से मात्र 1 कि.मी. है, किसानों ने निजी लाईनें डाल रखी है। अतः यहां से भी लाईंन गांव तक लाई जा सकती है। इसी प्रकार गांव में ही एक विशाल तालाब है। यदि इसका जीर्णोद्धार कर दिया जाए, तो कहीं दूर से पानी लाने की कवायद ही न करना पड़े। इस तालाब के जीर्णोद्धार के लिए ग्रामीणों ने कई बार जिला पंचायत को लिख दिया, किंतु जिला पंचायत द्वारा इस ओर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है।

कुछ नहीं किया


जहां एक ओर पेयजल के नाम पर एक संस्था ने ग्रामीणों के साथ छलावा किया, वहीं शासन के पीएचई विभाग ने ग्रामीणों की इस समस्या को ध्यान नहीं दिया। ग्रामीणों ने बताया कि, करीब 10 वर्ष पूर्व पीएचई के तत्कालीन कार्यपालन मंत्री को सभी ग्रामीणों ने एक-एक हजार रू. इकट्ठा कर 1.20 लाख की राशि जनभागीदारी के लिए जमा करवाई थी, किंतु आजतक कोई योजना गांव में लागू नहीं की गई। वहीं पेयजल के लिए गांव में टंकी तो बना दी गई, किंतु उसे भरने के लिए मांगोद बंगले से जो लाईन बिछाई गई थी, वह चोरी हो चुकी है। इसी प्रकार गांव में भी वर्तमान में एक पाइपलाईन बिछाई जा रही है, जिसके संबंध में ग्रामीणोें ने आरोप लगाया कि, पूर्व में भी प्लाॅस्टिक और फिर जीआई लाईन बिछाई गई थी। जिससे आज तक पानी की एक बूंद तक नसीब नहीं हुई।

जिस संस्था ने बांदेड़ी में फ्लोराइड मुक्त पेयजल का प्लांट लगाया है, उसी ने जिले के अन्य तीन स्थानों लेबड़, मनावर के समीप जाजमखेड़ी और कुक्षी के समीप बडग्यार गांव में भी ऐसे ही प्लांट स्थापित किए थे। किंतु यह भी बंद ही है और ग्रामीणों को इनका कोई लाभ नहीं मिल रहा है। जब कि इन प्लांटो की स्थापना के पूर्व संस्था ने मीडिया के माध्यम से काफी ढ़िंढ़ोरा भी पिटा था। वैसे भी जिले में फ्लोराइड उन्मूलन के नाम पर अरबों करोड़ो रू. खर्च किए किंतु हालात में कोई खास सुधार नहीं आया है।

ये कैसा तरीका


केंद्र सरकार को दिल्ली में बड़े-बड़े सपने दिखाकर फ्लोराइड से मुक्ति की योजनाएं बनाती हैं। इसके बाद उनके द्वारा बनाए गए फिल्टर व अन्य साधन भेज दिए जाते हैं। मैदानी स्तर पर इन फिल्टर सिस्टमों का उपयोग ही नहीं हो पाता है। वजह यह है कि ये एनजीओ केवल मैदानी स्तर पर पंचायत के कुछ लोगों को प्रशिक्षण देकर इस योजना को चलाने के लिए कह देते हैं जबकि तकनीकी रूप से उसे चलाना ग्रामीणों के बस की बात नहीं है।

जिले के अड़वी, सलकनपुर, बांदेड़ी सहित अन्य कई गांवों में इस तरह के फिल्टर सिस्टम अलग-अलग तकनीकी एनजीओ द्वारा लगाए गए थे। जिस समय इनकी स्थापना की गई थी तब यह बताया गया था कि इनके माध्यम से लोगों को बहुत ही सस्ते में और कम खर्च पर फ्लोराइडमुक्त पानी मिलना शुरू हो जाएगा।

क्या है फ्लोराइड की समस्या


दरअसल फ्लोराइडयुक्त पानी की समस्या जिले भर में है। अधिकांश विकासखंडों में हालात खराब है। न केवल उक्त तीन ग्रामों में बल्कि अन्य गांवों में भी इस तरह के संयत्र लगाए गए थे। जिसके तहत लेबड़, जाजमखेड़ी, बड़ग्यार में भी इन संयत्रों को स्थापित किया गया था। हालांकि इन स्थानों पर भी कोई विशेष उपलब्धि नहीं है। अधिकांश स्थानों पर बंद जैसी हालत है। समस्या यह है कि तकनीकी रूप से इसे चला पाना संभव नहीं है। इसके लिए कुशल व तकनीकी कर्मचारियों की आवश्यकता है। जिससे कि उनका नियमित रख-रखाव हो सके। यहां पर योजना इसी कारण से विफल हो जाती है।