फलोत्पादन से रुका गाँव का पलायन

Submitted by RuralWater on Sat, 02/24/2018 - 13:29


गोविन्द वल्लभ पंतगोविन्द वल्लभ पंतउत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ के गोविन्द वल्लभ पन्त किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वे पूर्व सैनिक हैं। प्रगतिशील किसान है। उद्यान पंडित हैं। इसके अलावा और जो कुछ है तो वे एक चलती-फिरती कृषि विज्ञान की संस्था भी है। गोविन्द वल्लभ पन्त कोई कृषि विशेषज्ञ जैसे वैज्ञानिक तो नहीं है पर वह जैविक उत्पादों के जानकार हैं।

जानकार का मतलब यह है कि सैनिक सेवा से निवृत्ति के बाद वह शहर की तरफ नहीं बल्कि गाँव की तरफ रुख कर गए। रुख ऐसा कि गाँव में पहुँचने के पश्चात लोगों को उनके द्वारा स्वरोजगार मिल गया। स्वरोजगार भी पहाड़ी कृषि उत्पादों से। इस हेतु गोविन्द ने गाँव में सर्वप्रथम सिंचाई और पेयजल की सुविधा दुरुस्त की है। यही वजह है कि बेरीनाग गाँव के अधिकांश किसान नगदी और फलोत्पादन से जुड़ गए हैं।

सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ के धौलकटिया गाँव निवासी गोविन्द फौजी ने ग्रामीणों को नगदी फसल और अन्य फलोत्पादन से जोड़कर स्वरोजगार की दिशा में उनकी आर्थिकी को मजबूती दी है। उनके बेरीनाग के फल बागान में गाँव के 15 ग्रामीण स्थायी रूप से यानि बारहों महीने रोजगार पा रहे हैं। जबकि, 35 से 40 लोगों को समय-समय पर रोजगार मिलता रहता है। यही नहीं वे लोग अपने खेतों को भी सरसब्ज करने में लगे हैं।

अब उन्हें दोनों तरफ से खेती का मुनाफा दिखाई दे रहा है। जबकि पहले वे ग्रामीण मजदूरी के लिये यदा-कदा भटकते रहते थे और उन्हें खेती का काम घाटे का ही लगता था। क्योंकि उनके सामने पहाड़ी उत्पादों को लेकर बाजार की समस्या खड़ी हो जाती थी। लेकिन अब गाँव में ही उन्हें कृषि के काम से रोजगार प्राप्त हो गया है। कृषि कार्य करने वाले ग्रामीण गोविन्द के बगीचे के उत्पाद और फल से तैयार उत्पाद बाजारों तक पहुँचाने की जिम्मेदारी भी वे खुद सम्भाल रहे हैं।

असम राइफल में 26 वर्ष की सेवा के बाद गोविन्द अब अपने गाँव में ही एक नई कहानी की पटकथा कृषि कार्य को स्वरोजगार बनाकर लिख रहे हैं। अन्य पूर्व सैनिकों की तरह वे सेवानिवृत्ति के बाद किसी कस्बे या नगर में नहीं बसे। वे वापस गाँव आकर अपने पुश्तैनी कृषि कार्य में जुट गए। बस अन्तर मौजूदा समय में इतना है कि पुश्तैनी कृषि कार्य को नगदी फसल में उन्होंने तब्दील कर दिखाया। फलस्वरूप उन्होंने गाँव को पलायन व विपन्नता से उबारने की पूरी कोशिश कर डाली।

धौलकटिया गाँव के खेतसौ नाली भूमि में उन्होंने बाग तैयार किया, जिसमें आम, लीची, अमरूद, नींबू, जामिर, कटहल, हरड़, च्यूरा, इलायची आदि के लगभग 700 पेड़ अब फल देने लगे हैं। जिनकी अच्छी खासी कीमत बाजार में मिल रही है। अब इनकी देखा देखी में गाँव के अन्य लोग भी फलोत्पादन के क्षेत्र में कदम बढ़ा रहे हैं। गोविन्द कहते हैं कि वह फलों को सिर्फ बाजार तक नहीं पहुँचाता वह तो बेकार फलो को जैम, चटनी, आचार के रूप में इस्तेमाल करता है। जिसकी बाजार में अच्छी कीमत मिल रही है। कुल मिलाकर बिना सरकारी सहायता के गोविन्द ने ऐसा करके दिखाया, जिसके लिये आम लोग सरकार के दरवाजे पर खड़े रहते है। अब वे यहाँ फलोत्पादन के क्षेत्र में उदाहरण बन चुके हैं।

 

 

गुजरात तक पहुँची फलों की खुश्बू


उल्लेखनीय हो कि सेवानिवृत्त फौजी, गोविन्द वल्लभ पन्त के बगीचे की फलों की खुश्बू गुजरात तक पहुँच चुकी है। गुजरात के अहमदाबाद निवासी रवींद्र मजूमदार बेरीनाग आये थे और यहाँ उनकी भेंट गोविन्द से हो गई। उनके बाग को देख मजूमदार खासे प्रभावित हुए। गुजरात पहुँचकर उन्होंने गोविन्द के बाग का धौलकटिया बायो डाइवर्सिटी फार्म एंड रिसर्च सेंटर के नाम से पंजीकरण करवाया और केसीटी (कुमाऊँ चैरिटेबल ट्रस्ट) से उन्हें आर्थिक मदद दिलवाई।

मजूमदार ने इस फौजी की मेहनत को देखते हुए इसे मॉडल गार्डन बनाने का दावा किया है। बगीचे से उत्पादित फलों से उत्पाद तैयार कर उन्हें देश के अन्य राज्यों में बेचने की योजना बनाई गई है। इसके लिये यहाँ पर उपकरण और मशीनें पहुँच चुकी हैं। इस वर्ष पहली बार आधा क्विंटल जामीर का आचार तैयार कर गुजरात के बाजार तक पहुँच चुका है।

 

 

 

 

एक प्रयास ऐसा, जो दे रहा लोगों को पैसा


पिथौरागढ़ जिले के ग्राम प्रधान संगठन के अध्यक्ष चारु पंत का कहना है कि पूर्व सैनिक के प्रयासों से बेरीनाग, धौलकटिया के आस-पास कई लोगों को फलोत्पादन से रोजगार मिल रहा है। क्षेत्र के लोगों को उनके बगीचे से जैविक उत्पाद भी मिल रहे हैं और रोजगार भी। जबकि उत्तराखण्ड के पहाड़ी जिलों से रोजगार के अभाव में लोग पलायन के लिये मजबूर हैं। यही हाल बेरीनाग में भी बने हुए थे। लेकिन इसी पहाड़ में ऐसे भी लोग हैं, जो पलायन करने वालों को आइना दिखा रहे हैं।

धौलकटिया गाँवग्रामीणों को गाँव में रोजगार के साधन मुहैया कराकर और युवाओं को जैम आदि बनाने का मुफ्त प्रशिक्षण भी देते रहे। उन्हीं के प्रयासों से आज गाँव के कई युवा फलोत्पाद तैयार कर अपनी आजीविका को सुरक्षित कर चले हैं।

मेरे पास रिटायरमेंट का कुछ पैसा आया था। हमारे अधिकांश साथी रिटायरमेंट के बाद या तो गाड़ी खरीदते हैं या ऐसा मकान बनाकर तैयार करते है जो भविष्य में किराए के रूप में इस्तेमाल हो। मैंने सोचा कि ऐसा काम किया जाये जिससे एक बड़ा समूह जुड़े और वह समूह भी रोजगार की दिशा में आगे बढ़े। सैनिक सेवा में अपने देश के कोने-कोने में रहने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न लोगों को समझने का भी मौका मिला। अपने देश में ग्रामीण अर्थव्यवस्था बहुत ही चरमराई हुई है। मुझे लगा कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये गाँव में ही स्वरोजगार के साधन उपलब्ध करवाने पड़ेंगे। हमारे क्षेत्र में फलोत्पादन की असीम सम्भावनाएँ है। इन सम्भावनाओं को तरासने के लिये फल बागान के रूप में एक छोटा सा प्रयास किया गया। आज यह प्रयास सौ फीसदी सफल है। बस एक सवाल कौतुहल का विषय बना हुआ है कि सरकार का ध्यान इस ओर नहीं है जिसका मलाल सताता रहेगा। वैसे हमारा उत्तराखण्ड ‘फलोत्पादन विकास’ क्षेत्र में अग्रणी राज्य बन सकता है... गोविन्द वल्लभ पंत, धौलकटिया बायो डाइवर्सिटी फार्म एंड रिसर्च सेंटर, बेरीनाग, बर्षायत-धौलकटिया गाँव।