उत्तराखण्ड हिमालय में जल संरक्षण के लिये चाल-खाल की पारम्परिक पद्धति है, जो आज भी कई जगह पर विद्यमान है। पर इसके इतर ‘जियो टैंक’ नाम से एक नई तकनीक हिमालय एक्शन रिसर्च सेंटर (हार्क संस्था) नौगाँव, उत्तरकाशी ने ईजाद की है। इस तकनीक का प्रयोग वे किसानों के साथ उत्तरकाशी के बाद भविष्य में बागेश्वर में करने जा रहे हैं।
संस्था का मानना है जलवायु परिवर्तन के कारण पहाड़ में जल संकट गहराता जा रहा है, कारण इसके पहाड़ में सिंचाई के अभाव में नगदी फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। जियो टैंक से किसानों को काफी हद तक सुविधा मिलेगी। यह एक प्रकार की सस्ती और सुलभ तकनीक है जिसे आम किसान खुद ही तैयार कर सकता है।
बता दें कि चाल-खाल का आकार-प्रकार जमीन के भीतर गड्ढेनुमा के आकार का होता है। इससे पानी को सिंचाई के लिये खेतों में पहुँचाने तक मोटरपम्प की आवश्यकता पड़ती है। कुछ लोगों ने इस चाल-खाल को पॉलिथीन से कवर करके जल एकत्रिकरण के नए तरीके भी अपनाए, फिर भी कुछ महंगा साबित हुआ। अब ‘जियो टैंक’ ऐसी तकनीक आई है जिसे स्थानान्तरणीय और सस्ती व सुलभ कही जा रही है।
हिमालय एक्शन रिसर्च सेंटर (हार्क) के संस्थापक महेन्द्र कुँवर का मानना है कि हिमालय एक बहुत ही संवेदनशील भौगोलिक संरचना है। जहाँ भूमि धँसाव एवं भूगर्भीय हलचलें एक आम बात है। जिसका ज्वलन्त उदाहरण 06 दिसम्बर 2017 को आये 5.2 तीव्रता का भूकम्प है।
इन भूगर्भिक हलचलों के कारण मध्य हिमालय में जलस्रोतों का अपने स्थान से परिवर्तित होना एक स्वाभाविक बात है। ऐसे में वहाँ निवास करने वाले लोगों के सामने जल संकट का होना भी सामान्य बात है। उनका यह भी मानना है कि पिछले तीस-चालीस साल के विकास ने अनियंत्रित जलवायु परिवर्तन से हमारे प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता को बहुत ही अनुपयोगी बना दिया है।
अब हालात ऐसे बन चुके हैं कि एक ओर जल संसाधन सिमटते ही जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर जल आपूर्ति की माँग भी दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। जिसका अत्यधिक प्रभाव कृषि क्षेत्र में स्पष्ट दिखाई दे रहा है। उन्होंने कहा कि भूमि धँसाव के कारण सीमेंट से बनी संरचनाएँ जल संग्रहण के लिये स्थायी समाधान नहीं हो सकते हैं। इसलिये पहाड़ के गाँवों के लिये सिंचाई बाबत ‘जियो टैंक’ ही सबसे अधिक उपयोगी प्रक्रिया हो सकती है।
ज्ञात हो कि बढ़ते पर्यावरण के खतरे, जलवायु परिवर्तन की समस्या, प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थिति के कारण उत्तराखण्ड हिमालय में जल संकट तेजी से गहराता जा रहा है। अतः यह अत्यन्त आवश्यक है कि जल के सीमित संसाधनों का सुव्यवस्थित व वैज्ञानिक तरीके से समुचित उपयोग करना आज की आवश्यकता है। इसके अलावा वर्षाजल को संग्रहण कर बड़ी मात्रा में उपयोग में लाया जा सकता है।
पिछले दो दशकों में हिमालय एक्शन रिसर्च सेंटर ने जल संग्रहण की सस्ती एवं उपयोगी तकनीकों का विकास किया है। जिसका उपयोग उत्तरकाशी की यमुनाघाटी के किसान कर ही रहे हैं अपितु यह तकनीक अब पहाड़ के अन्य जिलों में भी विकसित करने का हार्क संस्था के पास विशेष कार्यक्रम है। संस्था का मानना है कि उत्तराखण्ड के पहाड़ी और ऊँचाई के क्षेत्रों में जियो टैंक भविष्य में सिंचाई की समस्या का स्थायी समाधान हो सकता है।
उल्लेखनीय हो कि जल संग्रहण की नई तकनीक जियो टैंक का निर्माण प्रर्दशन हिमालय एक्शन रिसर्च सेंटर (हार्क) के नौगाँव परिसर में पहली बार किया गया था जो पूरी तरह सफल रहा। फलस्वरूप लोग इस विधि को अब अपने-अपने खेतों और फल बागानों में खूब कर रहे हैं। इस तकनीक से जुड़े जानकारों ने बताया कि ‘जियो टैंक’ को हर किसान आसान तरीके से खुद ही तैयार कर सकता है। इसे बनाने में कोई दिन नहीं लगते। इस टैंक में खास बात यह है कि इसका निर्माण मात्र चार घंटे में कर लिया जाता है और साथ ही इसे कहीं भी स्थानान्तरित किया जा सकता है।
पिछले एक दशक से यमुनाघाटी बहुउद्देशीय किसान फेडरेशन, यमुनाघाटी महिला विकास किसान फेडरेशन सहित स्योरी फल पट्टी, जरमोला बाग, मोरी, नौगाँव, पुरोला क्षेत्र के हजारों किसान सिंचाई बाबत ‘जियो टैंक’ जैसी तकनीक को इस्तेमाल कर रहे हैं।
इस विधि का सर्वाधिक उपयोग फल बागानों में हो रहा है। इसमें एक तरफ बरसात का पानी एकत्रित होता है और दूसरी तरफ यदि पास में छोटा सा भी जलस्रोत हो तो उसे निकासी करके टैंक तक पहुँचाया जाता है। इस तरह लोग इस टैंक में जल एकत्रिकरण करके सिंचाई के साधनों की पूर्ति कर रहे हैं।
यमुना घाटी फल एवं सब्जी उत्पादन फेडरेशन के अध्यक्ष जगमोहन सिंह चन्द का कहना है कि किसान इतने बड़े टैंक का स्थायी निर्माण अपने छितरे और बिखरे खेतों में अलग-अलग रूप से नहीं कर सकता है। जियो टैंक ने किसानों की यह समस्या समाप्त कर दी है। क्योंकि एक ही बार टैंक का निर्माण कर दिया और जहाँ-जहाँ सिंचाई की आवश्यकता होती है वहाँ-वहाँ टैंक की सामग्री पहुँच जाती है और जल एकत्रित करके सिंचाई सुलभ हो जाती है।
क्या कहते हैं यमुना घाटी के किसान
यमुना घाटी के प्रगतिशील किसान भरत सिंह राणा का कहना है कि सीमेटेंड पारम्परिक सिंचाई टैंक बहुत ही महंगा और खर्चीला है। जिसे आम किसान अपने खेतों में नहीं बना सकता है। जियो टैंक तकनीक जो कुँवर साहब ने इस क्षेत्र में लाये वह यहाँ के किसानों के लिये लाभदायक बनती जा रही है। कहा कि छोटे व मंझौले किसान इस जियो टैंक तकनीक का सर्वाधिक इस्तेमाल कर रहे हैं। महिला किसान राजकुमारी का कहना है कि गरीब व छोटे-छोटे किसानों ने कभी भी अपने खेतों में सिंचाई के टैंक नहीं बना पाये। सरकारी टैंक भी बने तो वे प्रभावशाली लोगो के खेतों में ही बनाए गए। उन्होंने कहा कि हार्क संस्था ने जियो टैंक तकनीक का क्षेत्र में जो प्रयोग किया है, उससे उनकी यह सबसे कठीन समस्या का समाधान अब जाकर हो गया है। मंजियाली गाँव के युवा किसान हरी मोहन चौहान का कहना है कि ‘जियो टैंक’ से उनके खेतों में हरियाली बनी रहती है। जब चाहे और जितना चाहे वे उस टैंक का पानी इस्तेमाल कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि जियो टैंक बनने से उनकी फसल में दोगुना बदलाव आया है। पहले या तो बरसात पर निर्भर रहना होता था या पास में कोई चाल-खाल, गूल हो तो उस पर निर्भर रहना होता था। वे भी कई बार धोखा इसलिये दे बैठते थे कि सूखा और अत्यधिक गर्मी के कारण गूलें व चाल-खाल सूख जाते हैं। परन्तु जियो टैंक में जो जलपूँजी जमा होती है, उसे वे काश्तकार आवश्यकता के अनुरूप इस्तेमाल करते हैं।
कैसे बनता है जियो टैंक
जल संग्रहण की नई तकनीक जियो टैंक का निर्माण प्रर्दशन हार्क के नौगाँव परिसर में किया गया है। जियो टैंक के लिये पहले जमीन के ऊपरी हिस्से में 50 स्क्वायर फीट या इससे कम की समतल जगह की आवश्यकता होती है। यहाँ पर 11 x03x50 फीट के हिसाब से एक टैंक का निर्माण किया जाता है। इस टैंक के भीतर पॉलिथीन का उपयोग होता है। टैंक के जल भण्डारण की क्षमता 10 से 200 लीटर तक होती है। यह कोई महंगी प्रक्रिया नहीं है। इसकी लागत लगभग 03 से 50 रु. प्रतिलीटर आती है।
जियो टैंक ही जल बैंक है
यह तकनीक एक सस्ती और सुलभ है। किन्तु इस तकनीक से सिंचाई में रोपाई के काम नहीं हो सकते हैं मगर अन्य सिंचाई जैसे टपक, छिड़काव और खेतों में नमी पहुँचाना यानि नगदी फसल के लिये फल एवं सब्जी उत्पादन में जियो टैंक की सिंचाई कारगर साबित हो रही है। कह सकते हैं कि यह एक प्रकार का जल बैंक ही है, जिसकी जमाराशि अगली बरसात होगी।
इसलिये जियो टैंक को किसानों द्वारा अपनाना उन क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण रूप से लाभकारी होगा जहाँ पानी लघु-सिंचाई के लिये एक समस्या बन गया है और पानी की नमी की उपलब्धता और मृदा नमी की कमी आदि जैसी समस्याओं को सुलझाना जो एक साथ गुणवत्ता वाले फसल उत्पादन में परिणाम और किसानों को अच्छी कमाई प्रदान कराती है। सुदूरवर्ती दुर्गम क्षेत्र जहाँ रास्ते आज भी नहीं है वहाँ के लिये ये तकनीक बहुत उपयोग होगी। हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर की इस तकनीक का प्रदर्शन उत्तरकाशी के बाद अब बागेश्वर जिले में भी करने की योजना है...महेन्द्र कुँवर संस्थापक निदेशक हार्क संस्था