राजस्थान की सीमाएं पश्चिम व उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान द्वारा, उत्तर व पूर्वोत्तर में पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश द्वारा, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात द्वारा और दक्षिण-पूर्व में मध्य प्रदेश द्वारा आबद्ध है। पाकिस्तान के साथ संलग्न अंतरराष्ट्रीय सीमा लगभग 1070 किलोमीटर लंबी है।
1. प्राकृतिक विशिष्टताएं
राजस्थान की प्रमुख प्राकृतिक विशिष्टता अरावली पर्वतमाला है। यह राज्य को दो भागों में विभक्त करती है। अरावली के पश्चिम की ओर का क्षेत्र पश्चिमी रेतीले मैदान थार रेगिस्तान के नाम से जाना जाता है, जबकि अरावली के पूर्व की ओर का क्षेत्र मध्यवर्ती पठारी क्षेत्र के उत्तरी भाग के अंतर्गत आता है। अरावली पर्वतमाला अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी से उठने वाली मानसूनी धाराओं के मध्य जल विभाजन रेखा का कार्य करती है।
विशाल भारतीय रेगिस्तान, पश्चिमी राजस्थान के बहुत बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, पाली, जालौर, चूरू, झुन्झुनु सीकर तथा नागौर जिले सम्मिलित हैं। पर्वत श्रृंखला के दक्षिण-पूर्व तथा पूर्व में स्थित निचला क्षेत्र, एक उभरा हुआ समतल है जो पश्चिमी पठार कहलाता है।
2. नदियां
राजस्थान का नदीय तंत्र, भारत के विशाल जल-विभाजक (अरावली) से अत्यंत प्रभावित है, जो कि उत्तरी भारत के जल निकास को दो स्पष्ट भागों में विभाजित करता है- एक ओर बंगाल की खाड़ी तथा दूसरी ओर अरब सागर। राज्य के लगभग साठ प्रतिशत क्षेत्र में अंतःस्थलीय जल-अपवहन तंत्र पाया जाता है, तथा यह लगभग संपूर्ण क्षेत्र अरावली विभाजक के पश्चिम में स्थित है।
अरावली अक्ष के पश्चिम व दक्षिण की ओर के जल को छोटी नदियां तथा उनकी सहायक-नदियां अरब सागर तक बहा कर ले जाती हैं। इनमें से लूनी, सूकड़ी, बनास, मितारी, जवाई तथा सागी नदियां अजमेर, पाली, बाड़मेर, जालौर तथा सिरोही जिलों से होकर प्रवाहित होती है।
जल विभाजक के पूर्व की ओर चम्बल व बनास नदियों तथा इनकी सहायक नदियों जैसे खारी, मानसी, मोरे, बिराच, कोटड़ी मेजा तथा बनासेन की धाराएं जयपुर, सवाई-माधोपुर, टोंक अजमेर, भीलवाड़ा, बूंदी, कोटा, झालावाड़, चित्तौड़गढ़ तथा उदयपुर, जिलों का जल निष्कासित करती हैं।
3. वर्षा
राज्य में वर्षा का औसत 528 मि.मी. है। वार्षिक वृष्टि 100 मि.मी. (अथवा कुछ कम) तथा 1000 मि.मी. के मध्य सीमित रहती है। राजस्थान में वर्षा मुख्यतः दक्षिण-पश्चिमी मानसून के कारण होती है जो सामान्यतः जून के मध्य से लेकर सितंबर के अंत तक रुक-रुक कर क्रियाशील रहती है। दक्षिण-पश्चिम से लेकर उत्तर-पूर्व तक वर्षा में कमी होती चली जाती है।
अरावली के पश्चिम में, वर्षा में तेजी से सुस्पष्ट कमी हो जाती है, जिसके कारण पश्चमी राजस्थान सर्वाधिक शुष्क भाग बना हुआ है। यहां वर्षा का औसत जैसलमेर के उत्तर-पश्चिम में 100 मि.मी. से कम (राज्य में न्यूनतम), गंगानगर, बीकानेर तथा बाड़मेर क्षेत्रों में 200 मि.मी. से 300 मि.मी. नागौर जोधपुर, चूरू तथा जालौर क्षेत्रों में 300 से 400 मि.मी. और सीकर, झुन्झुनू, पाली तथा अरावली श्रृंखला के पश्चिमी अंचल में 400 मि.मी. तक रहता है। अरावली पर्वतमाला के पूर्व की ओर, अजमेर में 550 मि.मी. से लेकर झालवाड़ में 1020 मि.मी. तक वर्षा होती है।
4. भूमि के उपयोग
मृदा व जल संसाधनों की उपलब्धता तथा मनुष्य द्वारा इनके प्रयोग के प्रयत्नों के आधार पर राज्य के अनेक भाग, भूमि उपयोग के विभिन्न प्रकार प्रदर्शित करते हैं। राज्य के पश्चिम में जैसलमेर, बीकानेर व बाड़मेर जिलों में रेतीली मिट्टी का विस्तार होने के कारण अकृष्य व बंजर भूमि का प्रतिशत अधिक है।
व्यापक कृषि तथा बढ़ती हुई जनसंख्या की मांग में वृद्धि के कारण, पूर्वी राजस्थान के अर्द्ध-बंजर तथा अल्पार्द भागों में वास्तविक बीजारोपित क्षेत्र का आधिक्य है। भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, कोटा तथा बारां जिलों में पहाड़ी भू-भाग होने के कारण ऐसी भूमि का प्रतिशत अधिक है, जो अकृष्य है अथवा जिसका उपयोग कृषि के लिए नहीं किया जाता है। बाड़मेर, जोधपुर, जालौर तथा नागौर जिलों में चरागाहों का प्रतिशत अधिक है।
सारणी 1.1 भूमि का उपयोग (1997-1998)
क्र. सं | वर्गीकरण | क्षेत्रफल (हेक्टेयर) |
01 | भूमि उपयोग हेतु प्रतिवेदित (रिपोर्टेड) क्षेत्र | 34263978 |
02 | वन | 2528742 |
03 | खेती हेतु अनुपलब्ध क्षेत्र | 4320662 |
04 | अकृषिगत उपयोग में प्रयुक्त क्षेत्र | 1698747 |
05 | बंजर एवं अनुत्पादक भूमि | 2621915 |
06 | परती भूमि के अतिरिक्त कृषि विहीन भूमि | 6754787 |
07 | स्थायी गोचर भूमि एवं अन्य चारागाह | 1722762 |
08 | विभिन्न वृक्षीय फसलों एवं उपवनों के अंतर्गत भूमि जो वास्तविक बीजारोपित क्षेत्र में सम्मिलित नहीं है | 14918 |
09 | उत्पादन योग्य अकृष्य भूमि | 5017107 |
10 | परती भूमि | 3585216 |
11 | वर्तमान में परती भूमि के अतिरिक्त अन्य परती भूमि | 1988225 |
12 | वर्तमान में परती भूमि | 1596991 |
13 | वास्तविक बीजारोपित क्षेत्र | 17074571 |
14 | कुल फसली क्षेत्र | 22325051 |
15 | एक से अधिक बार बीजारोपित क्षेत्र | 525048 |
5. वन
सतही जल के भूमिगत रिसाव में वनों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। कृषि सांख्यिकी के अनुसार, राष्ट्रीय वन नीति के 33 प्रतिशत क्षेत्र के अनुबंध के विपरीत केवल 25,28,742 हेक्टेयर (कुल प्रतिवेदित क्षेत्र का 7.38 प्रतिशत) वैधानिक स्तर पर, वन क्षेत्र के अंतर्गत है। लगभग 70 प्रतिशत से अधिक वन क्षेत्र विकृत अवस्था में है अधिकांशतः पर्वतीय क्षेत्र के अनुरूप है।
राजस्थान के पश्चिमी भाग के 60 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र में वन आच्छादन नगण्य है, जबकि राज्य के दक्षिण-पूर्वी तथा उत्तर-पूर्वी भागों में, जिनके अंतर्गत सिरोही, उदयपुर, बॉसवाड़ा, डूंगरपुर, झालावाड़, कोटा, बूंदी, जयपुर, धौलपुर, भरतपुर तथा अलवर जिले स्थित हैं, मध्यम स्तर का वन आच्छादन पाया जाता है। घने प्राकृतिक वन केवल संरक्षित खंडों में हैं जो अधिकांशतः विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों तथा वन्य जीव अभ्यारण्यों तक सीमित हैं। राज्य के शेष वनों में से अधिकांश में पौधे विकास की विभिन्न अवस्थाओं में हैं।
6. जनसंख्या
राजस्थान की जनसंख्या 56,473,122 है। सन् 1991 से 2001 तक जनसंख्या में 28,33 प्रतिशत का अंतर है जो कि 21.34 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से अधिक है। राजस्थान की जनसंख्या, देश की जनसंख्या की 5.49 प्रतिशत है। जनसंख्या घनत्व 165 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। शहरी जनसंख्या वृद्धि ने सामान्यतः ग्रामीण जनसंख्या वृद्धि के को पीछे छोड़ दिया है। दशक वार्षिक वृद्धि दरें संपूर्ण देश की दरों से अधिक हैं। सन् 1981 में लिंग अनुपात 919 महिलाएं प्रति 1000 पुरूष से घट कर सन् 1991 में 910 महिलाएं प्रति 1000 पुरुष रह गया था, जो 2001 में पुनः बढ़कर 922 महिलाएं प्रति 1000 पुरुष हो गया है।
विभिन्न क्षेत्रों में जनसंख्या का वितरण अनेक कारकों पर निर्भर करता है, जैसे-जलवायु मिट्टी की उर्वता, आवागमन या सम्पर्क साधनों की उपलब्धता एवं विकास तथा व्यापार का विकास। पश्चिम में अल्पतम जनसंख्या युक्त, जैसलमेर, बाड़मेर, एवं बीकानेर हैं, जबकि अधिकतम जनसंख्या वाले जिले, जैसे-भरतपुर, जयपुर, अलवपुर, धौलपुर तथा कोटा, राज्य के पूर्वी अंचल में स्थित हैं।
7. कृषि
राजस्थान एक कृषि प्रधान राज्य है। सन् 1991 की जनगणना में लगभग 70 प्रतिशत लोगों ने कृषि को अपना मुख्य व्यवसाय बताया। ग्रामीण क्षेत्रों में यह अनुपात 82 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। सन् 1990 में लगभग आधे क्षेत्र में खरीफ (मानसून) की फसल के अंतर्गत बाजरा बोया गया, अतः यह सबसे महत्वपूर्ण फसल है। इसके बाद ज्वार व मक्का का स्थान आता है। खरीफ में दालें भी काफी बड़े क्षेत्र में बोई जाती है। रबी (शीतकाल) की मुख्य फसलें गेहूं, सरसों तथा चना हैं। चना अधिकतर वर्षा के बाद बोया जाता है।
सन् 1995-1996 में जोत-क्षेत्रों का औसत माप 3.96 हेक्टेयर था। प्रभावी जोत-क्षेत्र एक तिहाई भाग 4 प्रतिशत से कम क्षेत्र में विस्तृत है। पश्चिमी भागों में जोत-क्षेत्र का माप अधिक है।
8. विकास की स्थिति
राजस्थान की अर्थव्यवस्था के अभिलक्षण धीमी विकास दर, प्रादेशिक व राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति आय में व्यापक अंतर तथा अपर्याप्त आधारभूत संरचना है। राज्य में सन् 1998-1999 में स्थिर मूल्यों पर (1993-1994) अनुमानित प्रति व्यक्ति आय 7694 रु. थी, जो 1999-2000 में घटकर 7141रु. रह गई।
यू.एन.डी.पी. द्वारा विकसित मानव विकास सूचकांक (एच.डी.आई) एक समन्वित सूचक है जो कि जन्म के समय जीवन की सम्भावना, शैक्षणिक योग्यता तथा जीवनस्तर पर आधारित है। राजस्थान के लिए एच.डी.आई. 0.246 (एल) है, जो इसे प्रमुख भारतीय राज्यों में बारहवें स्थान पर स्थापित करती है।
साक्षरता दर जो 1951 में 8 प्रतिशत थी, सन् 2001 तक बढ़ कर 61.03 प्रतिशत हो गई, परंतु 65.38 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से अभी भी कम है। राजस्थान में न की महिला साक्षरता दर प्रमुख भारतीय राज्यों की दरों में सबसे कम है। राजस्थान में स्वास्थ्य सूचकांक संपूर्ण देश के सूचकांकों से निम्न स्तर प्रदर्शित करते हैं। प्रति हजार व्यक्ति जन्म दर 32.1 है, तथा शिशु मृत्यु दर 85 है। दोनों ही राष्ट्रीय औसतों से अधिक है।