‘रेलनीर’ : जितना निकालें, उतना संजोयें

Submitted by Hindi on Tue, 03/05/2013 - 11:46
रेल, किराया और पानी के रिश्ते को ठीक से समझना हो, तो आप लंबी दूरी की जनरल बोगी में सफर अवश्य करें। एक ट्रेन में जनरल बोगी के डिब्बे भले ही चार से छह लगते हों, लेकिन उनमें लदी भीड़ क्षमता की ढाई गुनी तक होती है। प्लेटफॉर्म पर जाकर नल से पानी लाना तो दूर, कई बार डिब्बे में अपनी जगह से हिलने तक की नौबत नहीं होती। आखिर लोग रिजर्वेशन का पैसा बचाने के उद्देश्य से ही जनरल बोगी के कष्ट सहते हैं। खासकर लंबी दूरी की ट्रेनों की हकीक़त यह है कि यात्री जनरल में सफर से जितना पैसा बचाते नहीं, उतना पैसा उन्हें बोतलबंद पानी खरीदकर पीने में खर्च करना पड़ता है। माननीय रेलमंत्री जनाब पवन कुमार बंसल जी संप्रग सरकार के इसी पंचवर्षीय कार्यकाल में एक नहीं, दो-दो बार जलसंसाधन मंत्री भी रह चुके हैं। श्री बंसल की छवि दायित्व के प्रति गंभीर रहने वाले व्यक्ति की हैं। अतः रेल बजट 2013-14 ने प्लेटफॉर्म क्षीर की चिंता भले ही न की हो,रेलनीर को आठ रुपये की घटी हुई कीमत पर मुहैया कराने की चिंता अवश्य की है। इसके लिए छह जगह रेल नीर बॉटलिंग संयंत्र लगाने की घोषणा भी कर दी है। गरीब के पानी की चिंता नहीं, मजबूरी के पानी पर नज़रे-इनायत! खैर! आपत्तिजनक यह है कि मंत्री जी ने वहां से भी पानी निकाल लेने की ‘बहादुरी’ दिखाई है, बेपानी होने के कारण जिस इलाके में आत्महत्याएँ हुईं...पलायन हुए। प्रश्न यह है कि क्या पूर्व में लगे रेलनीर संयंत्र जितना पानी निकालते हैं, उतना पानी धरती को वापस लौटा रहे हैं? क्या जिनके हिस्से का पानी निकालकर रेलनीर बोतलों में बंद होता है, रेलवे.. रेलनीर की कमाई का कोई जायज़ और तयशुदा हिस्सा उनकी खेती-पानी-आजीविका को बेहतर बनाने में खर्च करता है? यह सब नहीं होना आपत्तिजनक है। इसमें दो राय नहीं कि रेलनीर संयंत्र आगे चलकर ललितपुर के कितने ही गाँवों को पूरी तरह बेपानी बना देगा। रेलवे रेलनीर से पैसा कमा रही है...किसकी कीमत पर? किसके हिस्से का पानी मारकर? किसका कुआं सुखाकर? प्लाचीमाड़ा -मेंहदीपुर-कालाडेरा शीतल पेय संयंत्रों को लेकर उठा सवाल यही तो था।

बेपानी बुंदेलखंड में रेलनीर संयंत्र: तोहफा या दण्ड?


गौरतलब है कि ‘रेलनीर’ के छह संयंत्रों में से एक जिला ललितपुर में लगेगा। ललितपुर.. बुंदेलखंड का हिस्सा है। कितना विरोधाभासी कदम है यह! एक ओर सरकार कहने को बेपानी बुंदेलखंड को पानीदार बनाने के लिए पिछले पांच साल में सिर और पैर एक किए बैठी है। योजना! दौरे! बुंदेलखंड पैकेज ! करोड़ों का धन आवंटन!! बावजूद इसके बीती गर्मियों तक आत्महत्या के आंकड़ों को शून्य बनाने में सफल नहीं हो सकी है। कारण कुछ भी हो....एक बात स्पष्ट है कि बुंदेलखंड अभी पानीदार होने के लक्ष्य से काफी दूर है। ऐसे में ललितपुर में ‘रेलनीर’ बॉटलिंग संयंत्र लगाने के फैसले को आप कितने नंबर देंगे? आप जाने, लेकिन इसे लेकर स्थानीय जनता द्वारा खुशी जाहिर करने की खबर छापने वालों से यह ज़रूर पूछना चाहिए कि क्या यह वाकई खुशी की बात है? मेरी निगाह में यह ललितपुर के लिए तोहफ़ा तभी यही होगा, जबकि जितना निकाले, उससे अधिक वर्षाजल संजोये रेलनीर संयंत्र प्रबंधन।

उल्लेखनीय है कि रेलनीर संयंत्रों को लेकर ऐसी घोषणा पिछले बजट में तत्कालीन रेलमंत्री सुश्री ममता बैनर्जी ने भी की थी। संयंत्र के लिए घोषित स्थानों में राहुल गांधी का चुनाव क्षेत्र-अमेठी भी था। यह बात और है कि संयंत्र लगना तो दूर, अभी तक उसके लिए जगह ही तलाशी नहीं जा सकी है। यह एक तरह से अच्छा ही हुआ। अमेठी का पानी भी तेजी से उतर रहा है। अमेठीवासियों के पास अभी वक्त है कि वह रेलनीर निकालने वालों से वर्षाजल संजोना पक्का कर लें। रेलवे को यह ज़िम्मेदारी रेलनीर के हर नये-पुराने-प्रस्तावित संयंत्र वाले इलाकों में वर्षाजल संचयन की पूरी ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए। इसकी योजना, प्रबंधन और निगरानी हेतु संयंत्र से प्रभावित होने वाले इलाके के ग्राम पंचायतों/शहरी निकायों और रेलनीर संयंत्र प्रबंधन के साझी होनी चाहिए। तभी किसी रेलनीर संयंत्र को उस इलाके के लिए तोहफा कह सकते हैं।

अशोक गहलोत पहल से सीखें रेलमंत्री


सीखने की जरूरत है कि राजस्थान के वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने पूर्व शासनकाल में एक अधिसूचना जारी कर (6 जून, 2000) पानी की दृष्टि से संकटग्रस्त इलाकों में अधिक जलनिकासी करने वाले चीनी, शराब, कोल्ड ड्रिंक्स और मिनरल वाटर संयंत्रों को अनुमति देने पर रोक लगा दी थी। यह नीतिगत फैसला था। यह फैसला सभी राज्य सरकारों के साथ-साथ स्वयं केन्द्र सरकार के अपनाने योग्य है। एक नजीर! यह बात और है कि उसके बाद आई वसुंधरा राजे सरकार ने 16 जनवरी, 2004 को रोक हटा दी। जुलाई, 2006 में ऐसे 23 संयंत्रों को मंजूरी भी देने में भी जल्दी दिखाई। अंततः जागरूक संगठन और किसानों की पहल पर सरकार को अदालत के सामने नतमस्तक होना पड़ा। गरीब-गुरबा आबादी के सामने जिन कंपनियों को रोलबैक करना पड़ा, उनमें शराब-सुगर लॉबी की ताक़तवर हस्तियां भी थीं। कल को रेल मंत्रालय को भी अदालत में नतमस्तक न होना पड़े; लोगों का पानी बचा रहे और रेलमंत्री का भी.... क्या रेलमंत्री पुनर्विचार करेंगे?

रेलनीर नहीं, प्लेटफार्म क्षीर हो शुद्ध-सुलभ


रेल, किराया और पानी के रिश्ते को ठीक से समझना हो, तो आप लंबी दूरी की जनरल बोगी में सफर अवश्य करें। एक ट्रेन में जनरल बोगी के डिब्बे भले ही चार से छह लगते हों, लेकिन उनमें लदी भीड़ क्षमता की ढाई गुनी तक होती है। प्लेटफॉर्म पर जाकर नल से पानी लाना तो दूर, कई बार डिब्बे में अपनी जगह से हिलने तक की नौबत नहीं होती। आखिर लोग रिजर्वेशन का पैसा बचाने के उद्देश्य से ही जनरल बोगी के कष्ट सहते हैं। खासकर लंबी दूरी की ट्रेनों की हकीक़त यह है कि यात्री जनरल में सफर से जितना पैसा बचाते नहीं, उतना पैसा उन्हें बोतलबंद पानी खरीदकर पीने में खर्च करना पड़ता है। छोटे स्टेशनों के प्लेटफार्मस् पर और बड़े स्टेशनों के आउटर पर अनधिकृत विक्रेताओं द्वारा पुरानी बोतलों में साधारण पानी को पांच से दस रुपयों में बेचा जाता है। रेलवे का कोई नियंत्रण नहीं।

कहना न होगा कि लोगों को पानी से जीवन चलाने की चिंता है और रेलवे को पानी से पैसा कमाने की। रेलनीर की कीमत घटाकर आठ रुपया लाने का लक्ष्य भी मूल लागत का कई गुना है। यदि हमारी वर्तमान और पूर्व सरकारें लोगों को वाकई पानी पिलाना चाहती, तो रेलवे एक जमाने में रहे ‘पानी पांडे’ के पद को समाप्त नहीं करती। यदि रेलमंत्री जी को यात्रियों को पानी पिलाने की वाकई चिंता है, तो रेलवे स्टेशनों के सभी प्लेटफार्मस् पर ताजे और शुद्ध पानी मुहैया कराने की चिंता करें। तकनीक व संयंत्र ही लगाने हैं, रेलनीर संयंत्र लगाने की बजाय रेलवे नलों में आपूर्ति किए जा रहे पानी को शुद्ध बनाने का संयंत्र लगायें। वह सर्वसुलभ कैसे हो, इस पर गौर फरमायें। पानी बहकर बेकार न जाये, इसकी तकनीक अपनायें। चलती ट्रेन के नल का पानी पीने योग्य बन सके, फिर तो कहना ही क्या! मंत्री जी ने खान-पान सेवा में सुधार की बात कही है।... तो क्या उम्मीद करें कि सफल-सुखद और मंगलमय यात्रा की ख़ातिर वह खान के साथ-साथ पान भी सुधारेंगे? यदि हो सका, तो किराया बढ़ा तो भी यात्रियों का कुछ पैसा तो पानी बचायेगा ही। वरना रास्ता वही है। रेलवे का भरोसा छोड़ें। अपना पानी घर से खुद साथ ले जायें। वाई-फाई उनका और पानी अपना।