रेत में एक हरी और लंबी दीवार

Submitted by Hindi on Tue, 07/26/2011 - 15:53
Source
द पब्लिक एजेंडा, 16-30 जुलाई 2011

अफ्रीका का "द ग्रेट ग्रीन वाल"अफ्रीका का 'द ग्रेट ग्रीन वाल'सहारा के रेतीले विस्तार को रोकने के लिए ग्यारह अ़फ्रीकी देशों द्वारा साढ़े सात हज़ार किलोमीटर लंबी हरी दीवार बनाने की परियोजना पर्यावरण को बचाने की एक बड़ी कोशिश है। उत्तर अफ्रीका के देशों को संयुक्त राष्ट्र की वर्षों पहले दी हुई नसीहत अब याद आने लगी है। कई साल पहले जब संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया के दूसरे सबसे बड़े मरुस्थल सहारा के विस्तार की बाबत अफ्रीकी देशों को चेताया था तो उसकी यह चेतावनी नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित हुई थी लेकिन अब अफ्रीकी देशों को एहसास हो चला है कि सहारा का पांव पसारना उनके लिए खतरे की घंटी है। सहारा से सटे साहेल गलियारे में बारिश की कमी और सिकुड़ती हुई चाड झील के कारण ग्यारह अफ्रीकी देशों ने सहारा के आसपास एक महत्वाकांक्षी परियोजना 'द ग्रेट ग्रीन वॉल' -विशाल हरित दीवार-पर काम करना शुरू कर दिया है। इस परियोजना के तहत पेड़ों की साढ़े सात हजार किलोमीटर लंबी वृक्ष-दीवार बनाने की योजना पर काम चल रहा है।

यह जब पूरी बनकर तैयार होगी तो चीन की महान दीवार (आठ हजार आठ सौ इक्वायन किलोमीटर) के बाद मनुष्य द्वारा निर्मित दूसरी सबसे लंबी दीवार होगी। तकरीबन 91 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले सहारा मरुस्थल का विस्तार उत्तरी अफ्रीका के कई देशों में है। कई साल पहले संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि यह मरुस्थल हर साल करीब एक वर्ग किलोमीटर की रफ्तार से दक्षिण दिशा की ओर बढ़ रहा है। इस फैलाव का मुख्य कारण रेतीले तूफान, लंबे समय तक पड़ने वाले सूखे और ग्लोबल वार्मिंग को बताया गया। समय के साथ इस फैलाव ने अफ्रीकी महादेश के कई देशों की एक बड़ी आबादी को अपनी चपेट में ले लिया है। अस्सी के दशक में अफ्रीकी देश बुरकिना फासो के प्रमुख थॉमस संकारा ने सबसे पहले सहारा और उससे सटे साहेल क्षेत्र में पेड़ लगाने की इस अनोखी योजना की चर्चा की थी।

सन् 2005 में इस योजना पर काम करने की जरूरत तब महसूस की गयी, जब नाइजीरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति ओलुसेगन ओबासांजो ने अफ्रीकी यूनियन के नेताओं के सामने 'ग्रेट ग्रीन वॉल' से संबंधित प्रस्ताव पेश किया। इसके तहत उत्तरी अफ्रीका के ग्यारह देशों को पेड़ लगाने के लिए चुना जाना था। काफी विचार-विमर्श के बाद इसे अफ्रीकी देशों ने हरी झंडी तो दे दी लेकिन मामला धन के इंतजाम पर अटक गया। गरीब अफ्रीकी देश करीब साढ़े सात हजार किलोमीटर लंबे और पंद्रह किलोमीटर चौड़ी पेड़ों की इस दीवार पर अरबों डॉलर के खर्च का जुगाड़ कर पाने में असमर्थ थे। कई देशों ने इस परियोजना को महज एक 'सनक' माना और इसकी खिल्ली उड़ायी। कई राष्ट्राध्यक्षों ने इसकी तुलना अपोलो मिशन, पनामा नहर और अमेरिका की हूवर डैम परियोजना से करके इस पर सवालिया निशान लगा दिये थे लेकिन चाड, नाइजर, नाइजीरिया और सेनेगल जैसे देशों ने प्रयास जारी रखा। माना जाता है कि पिछले तीन दशकों में साहेल में पहले के मुकाबले 25 से 40 फीसद कम बारिश हो रही है और ये हालात भविष्य में और भयावह होंगे।

इससे साहेल इलाके में पलायन बढ़ा है। इस इलाके की सत्तर फीसद से भी अधिक आबादी खेती पर निर्भर है। इलाके की बिगड़ती पारिस्थितिकी को चाड झील के लगातार सिकुड़ने से जोड़कर भी देखा जा रहा है। चार दशक पहले साढ़े नौ हजार वर्गमीटर में फैली चाड झील आज महज डेढ़ सौ वर्गमीटर में सिमटकर रह गयी है। जब साहेल देशों ने मामले पर विचार किया, तो उनके सामने चीन की हरी दीवार के साथ-साथ अमेरिका के शेल्टरबेल्ट परियोजना का उदाहरण भी था। अमेरिका में सन् 1934 में शुरू की गयी शेल्टरबेल्ट परियोजना के तहत बारह सौ मील लंबी और सौ मील चौड़ी पेड़ों की दीवार से कुछ साल के अंदर ही वहां प्रभावित इलाकों में साठ फीसद तक मिट्टी का कटाव रोकने में सफलता मिली थी। हाल के वर्षों तक गोबी मरुस्थल से उठते धूल के गुबार से परेशान चीन ने राजधानी पेइचिंग के बाहरी इलाके से मंगोलिया के भीतरी इलाके तक पेड़ों की दीवार बनायी।

इससे काफी हद तक 'येलो ड्रैगन' के नाम से मशहूर इस धूल भरी आंधी से चीन को छुटकारा मिला। आने वाले वर्षों में चीन की योजना इस आंधी को पूरी तरह से रोकने की है। काफी मशक्कत के बाद अफ्रीकी यूनियन ने सन् 2006 में इस परियोजना को पारित कर दिया था लेकिन फंड की कमी के कारण यह अधर में लटकी रही बाद में यूरोपियन यूनियन और एक सौ बयासी सदस्य देशों वाले संगठन ग्लोबल इन्वायरमेंट फसीलिटी (जीइएफ) ने इस परियोजना को तकरीबन 500 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता देना मंजूर किया। सेनेगल के राष्ट्रपति अब्दुलाये वाडे परियोजना के बारे में की जा रही आलोचना के सवाल पर कहते हैं, 'कई देश इसे सनकी परियोजना कह रहे हैं, लेकिन हम आलोचनाओं से बेखबर होकर ऐसी चीजों पर काम करने को तैयार हैं, जिसके बारे में पहले कभी गंभीरता से सोचा ही नहीं गया।' ग्रेट ग्रीन वॉल के लिए चयनित ग्यारह देशों में से सेनेगल ही ऐसा देश है, जहां काम में तेजी देखी जा रही है और इसके लिए राष्ट्रपति वाडे ने काफी तत्परता दिखायी है। सेनेगल के विशेष अनुरोध पर आये फ्रांस के सैनिकों को स्थानीय लोगों के साथ वृक्षारोपण और जल-संरक्षण के कामों में कंधे से कंधा मिलाकर काम करते देखा जा सकता है। सेनेगल में अब तक 535 किलोमीटर लंबी वृक्ष-दीवार बन भी चुकी है।

 

 

'द ग्रेट ग्रीन वाल'




“द ग्रेट ग्रीन वाल” जब पूरी बनकर तैयार होगी तो चीन की महान दीवार (आठ हजार आठ सौ इक्वायन किलोमीटर) के बाद मनुष्य द्वारा निर्मित दूसरी सबसे लंबी दीवार होगी। तकरीबन 91 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले सहारा मरुस्थल का विस्तार उत्तरी अफ्रीका के कई देशों में है। कई साल पहले संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि यह मरुस्थल हर साल करीब एक वर्ग किलोमीटर की रफ्तार से दक्षिण दिशा की ओर बढ़ रहा है। इस फैलाव का मुख्य कारण रेतीले तूफान, लंबे समय तक पड़ने वाले सूखे और ग्लोबल वार्मिंग को बताया गया है।

 

 

 

 

वीडियो साभारः-


http://www.rareconservation.org

 

 

 

 

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