राष्ट्रीय जल मिशन ने मानसून से पहले वर्षा जल संग्रहण के ढांचों को तैयार करने हेतु राज्यों और हितधारकों को प्रोत्साहित करने के लिए पैन इंडिया के आधार पर ‘‘कैच द रेन’’ अभियान शुरू किया था। फरवरी 2020 को ‘कैच द रेन, जहां वह गिरती है, जब वह गिरती है’’ टैगलाइन के साथ शुरू किए गए इस अभियान के अंतर्गत चेकडैम, वाटर हार्वेस्टिंग पिट्स, रूफटाॅप बनाने के साथ-साथ चैकडैम, तालाब, बांध में पानी का अधिक से अधिक भंडारण हो, इसके लिए वहां अतिक्रमण हटाने का भी अभियान चलाया जाएगा। साथ ही कुओं की मरम्मत और खराब बोरवेल तथा अप्रयुक्त कुओं को भी उपयोग में लाया जाएगा। ये सभी कार्य भूजल को रिचार्ज करने के उद्देश्य से किए जाएंगे।
अभियान का उद्देश्य लोगों की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से गतिविधियों को समय पर पूरा करना है। गतिविधियों को सुविधाजनक बनाने के लिए, राज्यों से अनुरोध किया गया है कि वे प्रत्येक जिले में - कलेक्ट्रेट/नगर पालिकाओं या ग्राम पंचायतों के कार्यालयों में ‘रेन सेंटर्स’ खोलें।
इस अवधि के दौरान इन ‘रेन सेंटर्स’ के पास एक समर्पित मोबाइल फोन नंबर होगा और इसे इंजीनियर या आरडब्ल्यूएचएस (रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम) में प्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा उपयोग किया जाएगा। जहां और जब बारिश का पानी गिरता है, उसे कैसे पकड़ा जाए, ये बताने के लिए केंद्र जिले में सभी के लिए एक तकनीकी मार्गदर्शन केंद्र के रूप में कार्य करता है।
अभियान के अंतर्गत ये सुनिश्चित करने के भी प्रयास किए गए हैं कि जिले की सभी इमारतों में आरडब्ल्यूएचएस (रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम) हो और छतों पर गिरने वाला बारिश का अधिकांश पानी इनमें एकत्रित हो। इसका बुनियादी उद्देश्य बारिश के पानी को केवल सीमित मात्रा में ही परिसर से बाहर निकलने देना है। ऐसे में अधिक पानी एकत्रित होने पर इससे मिट्टी में नमी बढ़ेगी और भूजल स्तर पर भी बढ़ेगा। ये शहरी क्षेत्रों में सड़कों पर पानी के जमाव को कम करेगा और शहरों में बाढ़ को रोकेगा।
कैच द रेन अभियान के अंतर्गत जिलों के सभी जल निकायों की गणना की जानी है (राजस्व रिकाॅर्ड के साथ) और अतिक्रमण हटाए जाने हैं। सभी जिला कलेक्टरों, भारतीय संस्थान प्रबंधन, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, केंद्रीय विश्वविद्यालयों, निजी विश्वविद्यालयों, रेलवे, हवाई अड्डा प्राधिकरण, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल आदि जैसे संस्थानों के पास भूमि के बड़े भूखंड हैं, उनसे कैच द रेन को अपनाने का अनुरोध किया गया है। यानी ये संस्थान भी बारिश के पानी को संरक्षित करने के उपाय करें।
जल संरक्षण गतिविधियों को शुरू करने के लिए उद्योगों व काॅर्पोरेट जैसे विभिन्न हितधारकों की सक्रिय भागदारी की भी जरूरत है, क्योंकि उद्योग आदि न केवल बड़े पैमाने पर पानी का दोहन करते हैं, बल्कि इनके पास जल संरक्षण के लिए उचित स्थान भी होता है और ये सीएसआर के माध्यम से कार्य भी कर सकते हैं। ऐसे में अभियान में इनकी सक्रिय भागीदारी के लिए राष्ट्रीय जल मिशन ने अभियान को आगे बढ़ाने हेतु फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ काॅमर्स एंड इंडस्ट्री (एफआईसीसीआई) के साथ सहभागिता की है। एफआईसीसीआई में एक जल विभाग है, जो लंबे समय से जल क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रहा है और पानी के भंडारण को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय जल मिशन के साथ जुड़ा हुआ है। एफआईसीसीआई का उद्देश्य जल संचयन और जल संरक्षण उपायों के बारे में अलग-अलग काॅर्पोरेट अनुभव लाना है, ताकि इन्हें अन्यों के साथ साझा किया जाए और वें देखें कि इनमें से किस अच्छे प्रयास को वे कैसे लागू कर सकते हैं।
जल पर चर्चा
एफआईसीसीआई के सहयोग से राष्ट्रीय जल मिशन द्वारा जुलाई 2020 में चार वेबिनार आयोजित किए गए थे। कैच द रेन अभियान की प्रस्तावना के साथ वेबिनार की श्रृंखला की शुरुआत की गई थी, जिसमें जल संरक्षण के लिए ‘बुनियादी ढांचा तैयार करने और जागरुकता पैदा करने’ के बारे में भी बताया गया था। दूसरा ‘वेबिनार भूजल पुनर्भरण और जलभृत प्रबंधन’ तथा तीसरा वेबिनार ‘जल संरक्षण के 3 आर - रिड्यूज़, रियूज़ और रिसाइकल’ विषय पर आधारित था। चौथा बेबिनार ‘कृषि क्षेत्र में पानी की बढ़ती दक्षता’ पर आधारित था, जिसका विषय/थीम ‘सही फसल’ था।
वेबिनार में वक्ताओं और पैनलिस्टों में एफआईसीसीआई जल मिशन की चेयरमेन नैना लाल किदवई, हेड सीएसआर एंड सस्टेनेबिलिटी संगीता ठकराल, बायोम एनवायरनमेंटल ट्रस्ट के सलाहकार एस विश्वनाथ, प्रो ए.के. गोसाईं, आईआईटी दिल्ली के प्रो. एके गोसाईं आदि शामिल थे।
पानी की सुरक्षा
भारत में भूजल निष्कर्षण चीन और अमरीका जैसे देशों में बहुत अधिक है। इसलिए भारत की आबादी और जल की मांग को देखते हुए भूजल को फिर से भरना महत्वपूर्ण है। चूंकि भूजल का सबसे ज्यादा उपयोग सिंचाई में किया जाता है, इसलिए कृषि-जलवायु परिस्थितियों के आधार पर उपयुक्त फसलों का उपयोग करने के लिए राज्यों को ‘सही फसल’ पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। कृषि में 10 प्रतिशत पानी के उपयोग में कमी से पानी की महत्वपूर्ण बचत हो सकती है और इसलिए जल संरक्षण दक्षता जल संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।
बड़े पैमाने पर पानी की पुनःपूर्ति करने के लिए सफल कार्यान्वयन हेतु स्थानीय सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है, जिसमें तालाबों का जीर्णोद्धार, चेकडैम का निर्माण, बोरवेल, डोर टू डोर कनेक्शन और वाटर एटीएम की स्थापना आदि शामिल हैं। शहर, राज्य और जल उपयोगिता स्तर पर जल संचयन के लिए उपनियम जारी करना और जल संचयन, उप-जलग्रहण और उप-जलभृत पर वर्षा के आंकड़ों का अभिगम जल संचयन पहल को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए, कर्नाटक राज्य में वर्षा जल संचयन के लिए उपनियम तीन शासकीय स्तरों पर बनाए गए हैं, जिनमें राज्य प्राधिकरण, जल उपयोगिता और नगर निगम को जिम्मा सौंपा गया है। इससे कार्य लयबद्ध/श्रेणीबद्ध तरीके हो सकेगा।
वर्षाजल को जमीन के अंदर पहुंचाने के लिए स्टाॅर्मवाॅटर ड्रेन सिस्टम को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है। रिचार्ज कुओं को स्टाॅर्मवाॅटर ड्रेन में बनाने की आवश्यकता है। इससे फुटपाथ या सड़कों पर बहने वाला सारा पानी नाले में बह सकता है और फिर फिल्टर होकर जमीन में समा सकता है। यह सदियों से कुओं की खुदाई कर रहे विभिन्न समुदायों को आजीविका और रोजगार के अवसर भी प्रदान करता है।
कुछ प्रमुख काॅर्पोरेट्स के पास अपने काॅर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के अंतर्गत जल संरक्षण के विभिन्न कार्यक्रम हैं। वें पहले से ही पानी का उचित व उत्पादक उपयोग करने, सिंचाई प्रथाओं में सुधार, विभिन्न राज्यों में जल पुनर्भरण संरचनाओं का निर्माण, एकीकृत जल प्रबंधन कार्यक्रम और पुनःपूर्ति योजनाएं (जैसे रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, तालाब की सफाई, तालाब निर्माण) जैसे विभिन्न कार्य कर रहे हैं। इसका एक भाग होने के नाते वे गैर सरकारी संगठनों, ग्राम पंचायतों, गांव की वाटरशेड समितियों के साथ कार्य कर रहे हैं और पानी के भंडारण कार्यक्रमों की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई जल संरचनाओं को ग्राम पंचायतों को सौंपा जा रहा है।
वेबिनार की श्रृंखलाओं से सामने आए कुछ मुख्य बिंदू -
- भूजल पुनर्भरण के उद्देश्य से वर्षा जल को जमीन के अंदर तक पहुंचाने के लिए शहरी क्षेत्रों के स्टाॅर्मवाॅटर ड्रेनेज सिस्टम लगाना।
- सूखा सहने वाली फसलों के उपयोग को संस्थागत बनाना। ये ऐसी फसल होती हैं, जिसे कम पानी की जरूरत होती है और इसे जल की कम उपलब्धता वाले इलाकों में उगाया जा सकता है।
- सक्रिय लोगों की भागीदारी के साथ जल संरक्षण गतिविधियों के लिए ग्राम स्तर के नियंत्रण को बढ़ावा देना।
- भूमि पर सिंचाई हेतु जल उपयोग दक्षता में सुधार के लिए इसके महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाए। इसके बाद गरीब और सीमांत किसानों को सब्सिडी वाली सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली प्रदान करें।
- वर्षा जल संचयन के उपनियमों को राज्य प्राधिकरण, जल उपयोगिता और नगर निगम जैसे तीनों स्तरों पर लयबद्ध/श्रेणीबद्ध तरीके से अनिवार्य किया जा सकता है।
- क्षेत्र में जल संरक्षण कार्यों के विकास के बाद पीजोमीटर का उपयोग करके भूजल स्तर में परिवर्तन की नियमित निगरानी की जा सकती है।
- अधिक एंबेसडर और ग्राम चैंपियन बनाएं, जो ‘कैच द रेन’ अभियान को बढ़ाने के लिए प्रचारक हो सकते हैं।
यहां पढ़ें मूल लेख - Banking on rainwater harvesting