रिसर्च : पेय-भूजल गुणवत्ता निर्धारण में अस्पष्टीकरण से स्पष्टीकरण (फजी लॉजिक) विधियों की भूमिका

Submitted by RuralWater on Tue, 12/01/2015 - 16:26
Source
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की, पाँचवीं राष्ट्रीय जल संगोष्ठी, 19-20 नवम्बर, 2015

सारांश


आधुनिक युग में किसी समस्या अथवा अस्पष्टता की स्थिति में पारम्परिक सिद्धान्तों का प्रयोग प्रायः कम-से-कम किया जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर संसार की समस्याएँ जटिल होती हैं तथा वास्तविक व स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं हो पाती हैं। इसके मुख्य कारण-प्रयुक्त तत्वों की अनिश्चितता, परस्पर निर्भरता तथा परिस्थितियाँ होती हैं। इस प्रकार की जटिल समस्याओं का हल निकालने में फज़ी लॉजिक का उपयोग उपयुक्त हो सकता है। दूसरे शब्दों में अस्पष्ट स्थिति अथवा इनके समूह के द्वारा स्पष्ट स्थिति की अपेक्षा की जा सकती है। इस सिद्धान्त को अस्पष्टता में स्पष्टता का सिद्धान्त कहते हैं। फज़ी लॉजिक विधियाँ तीन चरणों में कार्यान्वित होती हैं, अस्पष्टीकरण, निष्कर्ष व स्पष्टीकरण। यह समस्या को आंकिक मानों के पारस्परिक सम्बन्धों के सन्दर्भ में प्रस्तुत न करके, समस्या का प्राकृतिक व भाषाई चित्र प्रस्तुत करती हैं। जटिल समस्याओं को सरलता से हल करने के कारण यह तर्क व्यापक रूप से डिसिजन सपोर्ट सिस्टम में प्रयोग किया जाता है। फज़ी लॉजिक प्राकृतिक व पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन व हल निकालने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस शोध पत्र में पेय-भूजल की गुणवत्ता, मात्रा व उपलब्धता को ज्ञात करने में प्रयोग होने वाली फज़ी लॉजिक विधियों, सुपरवाइज्ड व इंटीग्रेटेड सुपरवाइज्ड फज़ी लॉजिक विधियों की समीक्षा विस्तारपूर्वक की गई है। सुपरवाइज्ड फज़ी लॉजिक, पेय-भूजल की पूर्व जानकारी जैसे भौतिक, रासायनिक व जैविक लक्षणों पर आधारित है। सुपरवाइज्ड फज़ी लॉजिक विधि एक संकर पद्धिति है। जिसमें आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क का समावेश किया जा सकता है। इस विधि में तंत्र की आन्तरिक क्रिया प्राणाली में हस्तक्षेप किया जा सकता है तथा परिणाम आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क के आन्तरिक क्रियात्मक सिद्धान्तों पर निर्भर होता है। यह शोध पत्र निश्चित करता है कि पेय-भूजल गुणवत्ता निर्धारण में फज़ी लॉजिक परम्परागत सिद्धान्तों से क्यों और कैसे उत्कृष्ट है।

मुख्य शब्द : फज़ी लॉजिक, पेय-भूजल, फ़जि़फिकेशन, सुपरवाइज्ड व इंटीग्रेटेड सुपरवाइज्ड फज़ी लॉजिक।

Abstract


In modern era, to solve real world problems or to deal with ambiguous situations, traditional principles and methods are rarely adopted. Scientifically, real world problems are complex and are not well defined. The main reasons of these problems are the uncertainties, interdependencies and situations of elements under consideration. Fuzzy logic may be appropriate to solve such complex problems and it provides an acceptable solution in an ambiguous environment. In other words, using fuzzy logic, a real and clear solution of a problem can be drawn from an ambiguous situation. This principle is called fuzzy logic. Fuzzy logic methodology executes in three steps, fuzzification, inference and defuzzification. It represents a problem in natural and linguistic terms rather than representing the problem by the relationships between crisp values. Fuzzy logic is often used in decision making systems as it can solve complex problems in an easy way. Fuzzy logic plays an important role in solving and analyzing natural and environmental problems. In this research paper the fuzzy logic, supervised and unsupervised fuzzy logic methods, used for drinking groundwater quality and availability assessment, have been reviewed in detail. Supervised fuzzy logic requires a prior knowledge about physical, chemical and biological information of drinking groundwater. Supervised fuzzy logic is a hybrid methodology, which may integrates capability and functionality of Artificial Neural Network. In this methodology working of system can be controlled by user and the result of system depends on internal functioning of Artificial Neural Network. This research paper ensures that how and why fuzzy logic is superior to traditional methods of drinking groundwater quality assessment.

Keywords : Fuzzy Logic, Drinking groundwater, Fuzzification, Supervised and Unsupervised fuzzy logic

प्रस्तावना (Introduction)


प्रत्येक शोधकार्य की सफलता निश्चितता व अनिश्चितता के बीच होती है। अतः सदैव एक ऐसी तकनीक या विधि के निर्माण की आवश्यकता रहती है जिसमें अनिश्चित परिणाम को निश्चित परिणाम में बदलने की क्षमता हो। इसी क्रम में शोधकर्ताओं द्वारा फज़ी लॉजिक को गणितीय व सांख्यिकीय विधियों की तुलना में एक नई एवं सुदृढ़ तकनीक या विधि के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो किसी भी शोध समस्या को उसकी अनिश्चितता की स्थिति से एक निश्चित परिणाम में बदलने की क्षमता रखती है। पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं का हल निकलने के फज़ी लॉजिक को गणितीय व सांख्यिकीय विधियों की तुलना में अधिक सुदृढ़ माना जाता है तथा शोधकर्ता भी इस विधि पर विश्वास करते हैं। सामान्यतः पारम्परिक गणितीय विधियाँ (पा.ग.वि.) पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं को सही रूप से हल नहीं कर पाती हैं क्योंकि इस प्रकार की समस्याओं के लिये मानवीय अनुभव की भाषाई शब्दों में आवश्यकता होती है। पेय-भूजल गुणवत्ता निर्धारण (पे.भू.गु.नि.), विभिन्न पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं में से एक अत्यन्त ज्वलनशील समस्या है। किसी भी विकासशील देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिये भूजल एक सम्भावित स्रोत है। यद्यपि, भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में, कृषि, औद्योगिक, प्रौद्योगिकी विकास एवं जनसंख्या विकास के कारण, पेय-भूजल गम्भीर प्रदूषण जैसी भयावह स्थिति में है। घरेलू, कृषि और औद्योगिक क्रियाओं में पानी की अधिक आवश्यकता होती है जिसके कारण भूजल का दोहन अत्यधिक बढ़ जाता है। भूजल की इस अत्यधिक आवश्यकता के कारण, भूजल प्रबन्धन का कार्य अत्यन्त कठिन हो जाता है।

पूर्व में किये गए शोध कार्यों द्वारा यह सिद्ध किया गया है कि भारत में पेय-भूजल गुणवत्ता में निरन्तर ह्रास हुआ है जिसके मुख्य कारक घरेलू अपशिष्ट पदार्थ, अत्यधिक उर्वरक एवं कीटनाशकों का अनावश्यक प्रयोग, औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन और मिट्टी संशोधन हैं। अतः अन्त में, इन सामग्रियों का भूमि में रिसाव, भूजल की गुणवत्ता को गिराने का एक मुख्य कारण बन जाता है।

यद्यपि, पे.भू.गु.नि. एक जटिल भूजल प्रदूषण मूल्यांकन मॉडल के रूप में माना और प्रस्तावित जा किया सकता है जिसमें अनेक मापदण्ड जैसे भौतिक (पी.एच., रंग, स्वाद, आदि), रासायनिक (कैल्शियम, सोडियम, क्लोरीन, आदि), मिट्टी का प्रकार, भूगोल, भूजल सतह की गहराई, आदि होते हैं। कभी-कभी ये मापदण्ड एक दूसरे पर निर्भर भी होते हैं और इनमें अनिश्चितता (आँकड़ों में अनिश्चितता, नमूने की अनिश्चितता, विश्लेषण अनिश्चितता और प्रतिरूपण की अनिश्चितता) तथा जटिलता भी शामिल होती हैं [1]।

इस शोधपत्र में पारम्परिक पे.भू.गु.नि. विधियों जैसे कि कारक विश्लेषण (Factor Analysis), मुख्य घटक विश्लेषण (मु.घ.वि.), ड्रास्टिक (DRASTIC) तथा एकीकृत विधियोंः फज़ी लॉजिक, एडेप्टिव न्यूरो फज़ी इनफरेंस सिस्टम (अनफिस) (ANFIS) आदि की समीक्षा की गई है । यहाँ पर प्रस्तुत शोध कार्य पे.भू.गु.नि. हेतु, संयत संगणन (Soft Computing) (फज़ी लॉजिक, कृत्रिम तंत्रिका संजाल और आनुवंशिक कलनविधि), भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS), दूरस्थ संवेदन (Remote Sensing), गणित और सांख्यिकीय विधियों के संयुक्त उपयोग से सम्बन्धित व उन पर केन्द्रित है।

इस शोधपत्र का मुख्य उद्देश्य यह सिद्ध करना है कि पे.भू.गु.नि. में निरीक्षिय व संयुक्त-निरीक्षिय फज़ी लॉजिक ‘‘क्यों? और ‘‘कैसे? सक्षम और उपयोगी हैं। साथ ही, पे.भू.गु.नि. के लिये एक संकर प्रतिरूप (Model) भी प्रस्तावित किया गया है।

2. फज़ी लॉजिक की अवधारणा (Concept of Fuzzy Logic)


वास्तविक दुनिया की परिमाणात्मक समस्याएँ, जिन्हें गणितीय विधियों द्वारा हल किया जाता है, नियतात्मक विधियों से सम्बन्धित हैं। यह विधि परम्परागत तर्क, जो संख्यात्मक समूहों का उपयोग करता है, द्वारा प्रबलित है। इस विधि में अक्रमित अनिश्चितताओं (Random Uncerpanipies), जो विभिन्न अवलोकनों में आती हैं, को नियंत्रित करने के लिये सांख्यिकीय और गणितीय विधियों का प्रयोग होता है। किन्तु वास्तविकता में जन सामान्य एवं शोध जैसी जटिल समस्याओं में अनिश्चितता सांख्यिकीय रूप में नहीं होती है, साथ ही प्रायिकता के स्थान सम्भावना के प्रयोग पर बल देती हैं। ऐसी परिस्थिति में वास्तविक समस्याओं की जटिलता एवं अनिश्चितता को नियंत्रित करने के लिये फज़ी लॉजिक का प्रयोग किया जा सकता है। साठवें दशक के अन्तिम समय में ऐसे तर्कसंगत विचार, जो कि यथार्थ न होकर अस्पष्ट होते हैं, के सम्बन्ध में ‘फज़ी लॉजिक’ को प्रस्तुत किया गया था [11]।

फज़ी लॉजिक, जिसे बहु-मान तर्क भी कहा जाता है, बहुमुखी समस्याओं, जिनमें अनिश्चित तथा अस्पष्ट तथ्य होते हैं, को हल करने के लिये प्रयोग किया जाता है [10] यह पारम्परिक तर्क का एक उच्च समूह (Super Set) होता है। पारम्परिक तर्क के फलन एक समूह के सदस्यों और गैर-सदस्यों को भिन्न करने के लिये उन्हें क्रमश (कोलन) 1 और 0 अंक देते हैं। दूसरी ओर, फज़ी लॉजिक के फलन (सदस्यता फलन) एक समूह के सदस्यों और गैर-सदस्यों को भिन्न करने के लिये सदस्यता श्रेणी देते हैं। सदस्यता श्रेणी, समूह के सदस्यों को दिया एक मान होता है जो कि समूह के सदस्यों की सदस्यता अंक को इंगित करता है। एक सदस्य की सदस्यता अपने सदस्यता अंक के अनुपाति होती है [11]। इस प्रकार के फलन को सदस्यता फलन और समूह को अस्पष्ट समूह कहा जाता है। फज़ी लॉजिक की कार्यप्रणाली को चित्र-1 में दिखाया गया है।

चित्र-1 फजी लॉजिक की कार्यप्रणाली2.1 अस्पष्टीकरण (Fuzzification)अस्पष्टीकरण विधि में उपयुक्त सदस्यता फलन का प्रयोग करके, आँकिक मूल्यों को अस्पष्ट मूल्यों में इस प्रकार परिवर्तित करता है कि सभी अस्पष्ट मान 0 और 1 के बीच में हो जाते हैं। सदस्यता फलन एक दिये गए संख्यात्मक समूह (Crisp Set) ‘अ’ के प्रत्येक ‘ब ∈ स’ को एक मूल्य ‘µअ’ प्रदान करती है जिसे प्रतीक के रूप में निम्न प्रकार दिखाया जाता है-

µअ : स -> [0,1] ......(1)

जहाँ ‘स’ एक सार्वभौमिक (Universal) समूह और [0,1] वास्तविक अन्तराल को दिखाता है। सार्वभौमिक समूह के तत्वों को आवंटित मान का सदस्यता अंक या सदस्यता कोटि कहते हैं।

प्रायः अस्पष्टीकरण प्रक्रिया में दो चरण में सम्पन्न होते हैं। पहला, निवेशित/परिणामित (Input/Output) चरों के लिये सदस्यता फलन का निर्माण तथा दूसरा, निवेशित/परिणामित चरों को भाषाई शब्दों में व्यक्त करना।

सदस्यता फलन विभिन्न प्रकार के होते हैं जैसे कि त्रिकोणीय (Traiangular), विषम चतुर्भुजी (Trapezoidal), गौसीअन (Gaussian), घंटी आकार (Bell Shaped), अवग्रहाकार (Sigmoidal) और S आकार। उपयुक्त सदस्यता फलन का चुनाव समस्या के प्रकार पर निर्भर करता है [13]।

2.2 अस्पष्ट अनुमान (Fuzzy Inferce)


अस्पष्ट अनुमान में अस्पष्ट नियमों का प्रयोग करके, एक अस्पष्ट निवेश ‘क’ के अनुरूप एक अस्पष्ट परिणाम ‘ख’ प्राप्त किया जाता है। अनुमान प्रणाली, अस्पष्ट नियमों तथा मानव के निर्णय लेने की क्षमता का अनुकरण करते हुए, अनुमानित अस्पष्ट परिणामों की सम्भावनाओं को बताती है। इस प्रणाली में अस्पष्ट समूह की क्रियाओं द्वारा प्रत्येक नियम के लिये एक अस्पष्ट सम्बन्ध परिभाषित किया जाता है। सभी अस्पष्ट नियमों के परिणामों को एकत्रित करके प्रणाली के परिणाम को प्राप्त किया जाता है [12]।

फज़ी लॉजिक प्रणाली की क्षमता; अस्पष्ट नियम समूह द्वारा वर्णित होती है, जो कि नियम आधार (Ule Base) स्थापित करता है। एक आदर्श अस्पष्ट नियम निम्न प्रकार का होता है-

यदि X है Y, तो P है Q

जहाँ, X और Y भाषाई चर हैं जबकि P और Q उनके भाषाई मान हैं। इस स्थिति में ‘X है Y’ को पूर्व पद (Antecedent) T है Q को निष्कर्ष (Concequence) कहा जाता है। एक अस्पष्ट ‘यदि-तो’ (IF-THEN) नियम, अस्पष्ट ज्ञान को व्यक्त करने की, एक ज्ञान प्रस्तुतीकरण पद्धति है। अस्पष्ट नियमों के दो प्रकार के होते हैं; अस्पष्ट प्रतिचित्रण नियम (Fuzzy Mapping Rule) और अस्पष्ट अनुमान नियम (Fuzzy Inference Rule)। एक अस्पष्ट प्रतिचित्रण नियम, भाषाई चरों के माध्यम से, निवेश व परिणाम के बीच के कार्यात्मक प्रतिचित्रण सम्बन्ध को परिभाषित करता है जबकि अस्पष्ट अनुमान नियम, अस्पष्ट नियमों के संघटन के अनुसार परिणाम देता है [14]।

2.3 स्पष्टीकरण (Defuzzification)


अस्पष्ट अनुमान प्रणाली के परिणाम भाषाई शब्द होते हैं तथा वास्तविक अनुप्रयोगों के लिये उपयुक्त नहीं होते हैं। अतः अस्पष्ट परिणाम को संख्यात्मक मूल्यों में परिवर्तित करना आवश्यक हो जाता है। अस्पष्ट परिणाम को संख्यात्मक मूल्यों में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को स्पष्टीकरण कहते हैं। औपचारिक रूप से, स्पष्टीकरण में, एक अस्पष्ट परिणाम को संख्यात्मक मूल्यों में प्रतिचित्रित किया जाता है [12]। स्पष्टीकरण के लिये अनेक सिद्धान्त जैसे कि क्षेत्र का केन्द्र (Center of Area), योग का केन्द्र (Center of Sums) सबसे बड़े क्षेत्र का केन्द्र (Center of Largest Area), उच्चिष्ठ का प्रथम (First of Maxima), उच्चिष्ठ का अन्तिम (Last of Maxima), उच्चिष्ठ का मध्य (Middle of Maxima), ऊँचाई स्पष्टीकरण (Hight Defuzzification), प्रयोग किये जा सकते हैं [21]।

2.4 निरीक्षिय फज़ी लॉजिक पद्धति (Supervised Fuzzy method)


निरीक्षिय फज़ी लॉजिक पद्धति में उपयोगकर्ता, अस्पष्टीकरण, अस्पष्ट अनुमान और स्पष्टीकरण के लिये उपयुक्त विधि का चयन कर सकता है तथा कार्यप्रणाली को नियंत्रित कर सकता है अर्थात उपयोगकर्ता प्रतिरूप की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप कर सकता है। उदाहरण के लिये, भूजल प्रवणता मानचित्र (Groundwater Vulnerability Map) के सभी बिन्दुओं का वर्गीकरण करने के लिये, उपयोगकर्ता मानचित्र में कुछ बिन्दुओं का एक नमूना तैयार करता है और फिर सॉफ्टवेयर को वर्गीकरण करने का निर्देश देता है। अतः निरीक्षिय अस्पष्ट पद्धति में सदस्यता वर्ग की श्रेणियों का पूर्वज्ञान होता है, परन्तु अनिरीक्षिय फज़ी लॉजिक पद्धति में सदस्यता वर्ग की श्रेणियों का पूर्वज्ञान नहीं होता है साथ ही यह उचित सदस्यता श्रेणीयों को उत्पन्न करने का प्रयास करता है।

2.5 संयुक्त-निरीक्षिय फज़ी लॉजिक पद्धति (Integrated Supervised Fuzzy logic)


फज़ी लॉजिक की अवधारणा को संयुक्त निरीक्षिय अस्पष्ट पद्धति के रूप में विकसित किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत अस्पष्टीकरण, अस्पष्ट अनुमान, स्पष्टीकरण एवं निरीक्षिय अस्पष्ट पद्धतियों का समावेश होता है। इस नवीन फज़ी लॉजिक पद्धति में नियमों की आनुवंशिकता का प्रभाव एकीकृत कर नए अस्पष्ट नियम व उन पर आधारित उन्नत विधियों का निर्माण किया जा सकता है। जो पारम्परिक शोध विधियों जैसे जल-गुणवत्ता तालिका, संतृप्ति सूचकांक, मु.घ.वि. [18] और कारक विश्लेषण [15] इत्यादि से अधिक प्रभावशाली व शुद्ध परिणाम दे सकते हैं।

संयुक्त-निरीक्षिय फज़ी लॉजिक पद्धति में फज़ी लॉजिक व अन्य वैज्ञानिक विधियों के एकीकरण द्वारा किसी समस्या को सुलझाया जाता है। उदाहरण के लिये, वर्तमान अनुसन्धान परिदृश्य में भौगोलिक सूचना प्रणाली- फज़ी लॉजिक [22], दूरस्थ संवेदन-अस्पष्ट तर्क [1], भौगोलिक सूचना प्रणाली-दूरस्थ संवेदन-अस्पष्ट तर्क [25], कृत्रिम तंत्रिका संजाल- फज़ी लॉजिक [1] के संयुक्त रूप का प्रयोग अपनी प्रारम्भिक स्थिति में है।

3. भूजल सन्दूषण व निर्धारण (Groundwater Contamination and Assessment)


भूमि में चट्टानों के नीचे और मिट्टी के कणों के बीच एकत्र जल को उपसतह जल या भूजल कहते हैं। भूजल में अनेक खनिज प्राकृतिक रूप से उपस्थित होते हैं तथा इन्हें भूजल के अभिन्न अंग के रूप में माना जाता है (जैसे सोडियम, कैल्शियम व आयरन) [6]। जिनकी सन्तुलित मात्रा मानव स्वास्थ्य के लिये आवश्यक होती है, किन्तु अधिक मात्रा मानव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक व विषाक्त भी होती है [7]। कृषि अपशिष्ट, मानवजनित अपशिष्ट, उद्योग अपशिष्ट और कभी-कभी भूगर्भीय परिवर्तन, भूजल सन्दूषण के प्रमुख स्रोत माने जाते हैं [8]। सामान्यतः भूजल सन्दूषण तीन प्रकार का होता है [27]।

पहला- शहरीकरण जो कि घरेलू अपशिष्ट व मलजल के अनुचित एवं अव्यवस्थित निकास के कारण भूजल सन्दूषण को बढ़ाता है [4]।

दूसरा- कृषि जो कि भूजल में लवण, उर्वरक, कीटनाशक, पशु अपशिष्ट की अनुचित प्रवेश के लिये उत्तरदायी है [9]।

तीसरा- उद्योग जो कि औद्योगिक अपशिष्ट जल भंडारण, निकास व रिसाव, रासायनिक अपशिष्ट उत्सर्जन के कारण भूजल सन्दूषण को बढ़ाता है [19]।

3.1 परम्परागत विधियाँ (Classical Methods)


यद्यपि आधुनिक पे.भू.गु.नि एक उन्नत तकनीक है जो परिष्कृत विश्लेषण और निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करती है। यह विधा परम्परागत गणितीय विधियों से उन्नत की गई है, जो कि सभी आधुनिक विधियों के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाती है। परम्परागत पे.भू.गु.नि विधि मुख्य रूप से भूमि मानचित्र, भौतिक-रासायनिक क्रियाओं, संख्यात्मक एवं विभिन्न गणितीय समीकरणों का उपयोग करते हुए शोध समस्याओं का समाधान करने में सक्षम और सार्थक होती है।

वर्तमान एवं पूर्व में किये गए शोध कार्यों से यह ज्ञात होता है कि कूड़े-कचरे, घरेलू अवशिष्ट, भारी धातुओं (जैसे- कॉपर, निकिल, लेड इत्यादि) और रासायनिक खाद में उपस्थित नाइट्रेट आदि के रिसाव से भूजल प्रदूषण की समस्या [3] शहरी भूजल सन्दूषण, कृषि भूजल सन्दूषण एवं औद्योगिक भूजल सन्दूषण [4] के रूप में जाने जाते हैं। जिस कारण पेट का कैंसर [2] जैसी जानलेवा बीमारियाँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। उपरोक्त सन्दूषणों के रासायनिक घटकों, मात्रा, स्थिति, सान्ध्रता आदि का अध्ययन एवं विश्लेषण करने के लिये ड्रास्टिक [1], जल गुणवत्ता तालिका (ज.गु.ता.), संतृप्ति सूचकांक, मु.घ.वि. [18] और कारक विश्लेषण [15], ट्राई-लीनियर विश्लेषण [16], क्रिगिंग [17] आदि परम्परागत विधियों को प्रयोग किया गया है।

इन सभी विधियों को मूल रूप से पा.ग.वि. माना जा सकता है क्योंकि ये विधियाँ पे.भू.गु.नि. के लिये गणितीय विश्लेषण का उपयोग करती हैं। पा.ग.वि., पे.भू.गु.नि. से जुड़ी अनिश्चितताओं को सही रूप में नियंत्रित नहीं कर सकती हैं तथा इस कारण पे.भू.गु.नि. के परिणामों को सही रूप से प्रदर्शित करने में असक्षम होती हैं।

3.2 संयुक्त विधियाँ


फज़ी लॉजिक, पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं से सम्बन्धित अनिश्चितताओं को सरलता से नियंत्रित कर सकता है। फज़ी लॉजिक के इसी गुण के कारण इसको पे.भू.गु.नि.में प्रायः प्रयोग किया जाता है। समान्यतः पे.भू.गु.नि में दो प्रकार की अनिश्चितताएँ होती हैं [20]। पहली- भौगोलिक परिवर्तन तथा दूसरी- मानवजनित अनिश्चितताएँ जैसेः निवेश, मापदंड का मूल्य, प्रतिरूपण, विश्लेषण आदि में अनिश्चितता। अब तक भारत में, एक अस्थिर वातावरण में पे.भू.गु.नि. की अनिश्चितताओं का निर्धारण करने के लिये बहुत कम निरीक्षिय व संयुक्त-निरीक्षिय फज़ी लॉजिक विधियाँ प्रयोग की गई हैं। परम्परागत गणितीय विधियों के विपरीत बहुत कम शोधकार्यों, पेय भूजल गुणवत्ता व उपयुक्तता [20] [22.24] [26], दोषपूर्णता [1] [20], भूजल प्रदूषण के खतरे का मूल्यांकन [14], जलभृत प्रदूषण [19], कृषि गतिविधियों द्वारा प्रदूषण [21], नाइट्रेट सान्द्रता का आकलन तथा भूजल सन्दूषण पदार्थों का वितरण [5], द्वारा पेय-भूजल गुणवत्ता का अपरम्परागत विधियों से आकलन किया गया है। इन शोधकार्यों में विभिन्न विधियों जैसे कि फज़ी ड्रास्टिक प्रतिरूप [1] [19], फज़ी संख्यात्मक अनुरूपण [20], फज़ी निर्णय समर्थन प्रणाली [14] [25], फज़ी सीपेज प्रतिरूप [21], फज़ी कृत्रिम मूल्यांकन, फज़ी सिमुलिंक प्रतिरूप [24], अनफिस, ताकागी-सुगेनो फज़ी प्रतिरूप [25], ममदानी फज़ी प्रतिरूप [26], का प्रयोग किया गया है। दो कारणों से ये सभी विधियाँ संयुक्त-निरीक्षिय फज़ी लॉजिक विधियाँ कहलाती हैं। पहला, इन सभी विधियों में दो या दो से अधिक विधियों का समायोजन किया गया है। दूसरा, ये विधियाँ निरीक्षिय हैं, क्योंकि-

1. अस्पष्ट नियम आधार बनाने में विशेषज्ञों के लेखों एवं शोध कार्यों का प्रयोग किया गया है।
2. अस्पष्ट अनुमान करने से पहले सभी अस्पष्ट नियमों को एक अंक दिया गया है।
3. विशेषज्ञों के शोध के आधार पर, पेय-भूजल की गुणवत्ता के मापदंड वर्गों को पूर्व निर्धारित किया गया है।

4. उपसंहार


इस शोध पत्र में पे.भू.गु.नि. की पारम्परिक और आधुनिक विधियों का एक व्यवस्थित सर्वेक्षण किया गया है। पूर्व में विकसित भूजल प्रतिरूप पारम्परिक गणितीय विधियों पर आधारित हैं। पूर्व में किये गए शोध कार्यों की समीक्षा से ज्ञात होता है कि पे.भू.गु.नि में संयुक्त-निरीक्षिय फज़ी लॉजिक विधियों का प्रयोग भारत वर्ष में बहुत कम किया गया है, साथ ही कुछ निश्चित मापदंडों को केन्द्र में रखते हुए शोधकार्य किये गए हैं। यह शोध पत्र पे.भू.गु.नि. के लिये परम्परागत विधियों के साथ-साथ फज़ी लॉजिक की उपयोगिता को दर्शाता है। साथ ही जानकारी एवं सूचना के आभाव, अनिश्चितता व स्पष्टता की स्थिति में फज़ी लॉजिक के महत्त्व को सिद्ध करता है। प्रत्येक एकल विधि सभी जटिल स्थितियों में सही परिणाम नहीं दे पाती है।

उदहारण के लिये ड्रास्टिक, जल गुणवत्ता तालिका, सीपेज प्रतिरूप, अनिश्चितताओं का सफल रूप से निर्धारण नहीं कर सकते हैं। उक्त विधियों की यह असफलता फज़ी लॉजिक द्वारा दूर की जा सकती है। किन्तु फज़ी लॉजिक भौगोलिक निर्णय/विश्लेषण करने में असमर्थ होता है। फज़ी लॉजिक की यह कमी भौगोलिक सूचना प्रणाली व दूरस्थ संवेदन विधि द्वारा दूर की जा सकती है। इस प्रकार के संयोजन से एक संकर प्रतिरूप की रचना होती है। जिसमें सभी समायोजित विधियों की विशेषताएँ समाहित होती हैं।

हमारा निष्कर्ष यह है कि पे.भू.गु.नि के सही व निश्चित आकलन के लिये एक ऐसे संकर प्रतिरूप का प्रयोग किया जाना चाहिए जिसमें गणितीय, सांख्यिकीय, संयत संगणन, भौगोलिक सूचना प्रणाली व दूरस्थ संवेदन का संयोजन किया गया हो। इस प्रकार विकसित संकर प्रतिरूप सभी संयोजित विधियों की क्षमताओं को एक ही मंच पर एकत्र करके किसी समस्या के हल के प्रत्येक पहलू पर विचार करता है। इस सुदृढ़ संकर प्रतिरूप के द्वारा पेय-भूजल गुणवत्ता का मात्रात्मक और गुणात्मक अध्य्यन किया जा सकता है।

5. सन्दर्भः


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[19] ई. कैमरॉन, जी.एफ. पेलोसो, 2001, ‘‘एन एप्लीकेशन ऑफ़ फजी लॉजिक टू द असेसमेंट ऑफ़ एक्विफर्स पॉल्यूशन पोटेंशियल’’, एनवॉयरनमेंट जियोलॉजी, वॉल्यूम 40 : 1305-1315।

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[24] नटराजन वेंकट कुमार, सेमसन मैथ्यू, गणपतिराम स्वामीनाथन, 2010, ‘‘अ हाइब्रिड एप्रोच टुवर्ड द असेसमेंट ऑफ़ ग्राउंडवॉटर क्वॉलिटी फॉर पोटेबिलिटीः अ फजी लॉजिक एंड जीआईएस बेस्ड केस स्टडी ऑफ़ तिरुचिराप्पली सिटी, इण्डिया’’, जर्नल ऑफ़ जियोग्राफिक इनफार्मेशन सिस्टम, वॉल्यूम 2 : 152-162।

[25] सईद फरहद मौसवी, मोहम्मद जावेद अमीरी, 2012, ‘‘मॉडलिंग नाइट्रेट कंसंट्रेशन ऑफ़ ग्राउंडवॉटर यूजिंग अडाप्टिव न्यूरल-बेस्ड फजी इनफरेंस सिस्टम’’, सॉइल एंड वॉटर रिसर्च, वॉल्यूम 7(2) : 73-83।

[26] अ. साबेरी नसर, एम. रेज़ाए, एम. दष्टि बर्मकी, 2012, ‘‘एनालिसिस ऑफ़ ग्राउंडवॉटर यूजिंग ममदामी फजी इनफरेंस सिस्टम (एमएफआईएस) इन य़ज्द प्रोविंस, ईरान’’, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ कम्प्यूटर एप्लीकेशन्स, वॉल्यूम 59(7) : 45-53।

[27] ओ टी एन सिलिलो, आए सी सायमन, 2001, ‘‘ग्राउंडवॉटर वल्नेरेबिलिटी टू पोलुशन इन अर्बन कैचमेंट्स’’, रिपोर्ट टू द वॉटर रिसर्च कमीशन, डिपार्टमेंट ऑफ़ जिओलॉजी, यूनिवर्सिटी ऑफ़ केप टाउन, डब्लूआरसी प्रोजेक्ट न. 1008/1/01, आईएसबीएनः 1 86845 783 4।

गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार,

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