सामूहिक प्रयास से बंधी निर्माण

Submitted by Hindi on Fri, 04/05/2013 - 11:47
Source
गोरखपुर एनवायरन्मेंटल एक्शन ग्रुप, 2011
समाज की मुख्य धारा से कटे आदिवासी भुईया जाति के 55 परिवारों ने स्वयं के प्रयास से बसनीया नाला पर बंधी निर्माण किया और अपनी सिंचाई की समस्या हल की।

संदर्भ


ऊँचे पहाड़ व उबड़-खाबड़ ज़मीन पर खेती करने वालों के लिए सबसे बड़ी समस्या सिंचाई की होती है। यहां पर रहने वालों के लिए जितना मुश्किल पानी संग्रह करना होता है, उससे अधिक मुश्किल पानी का उपयोग करना होता है। कुछ ऐसी ही स्थिति सोनभद्र जिले के दुद्धी विकासखंड अंतर्गत कलिंजर ग्राम सभा की है। बसनीया नाला के दोनों तरफ उबड़-खाबड़ जमीनों पर स्थित ग्राम सभा कलिंजर में 55 आदिवासी परिवार भुईया जाति के रहते हैं। ये भूमिहीन आदिवासी परिवार पूर्वजों से ही धारा-20 के अंतर्गत पट्टा की भूमि पर रहते हैं, खेती करते हैं। विडम्बना ही है कि बरसों बीत जाने के बाद भी जमीनों का हक इनको नहीं मिल पाया है। कुछ तो इनकी अज्ञानता और कुछ सरकारी उपेक्षा ने इन्हें भूमिहीनों की कतार में खड़ा किया है। बसनीया नाला भी गांव वालों के कब्ज़े में है। गहरी एवं संकरी प्रवृत्ति वाले बसनीया नाला में पानी रोकने हेतु पतला व कमजोर मेड़ था, जो पानी के बहाव को सह नहीं पाता और टूट जाता था। परिणामतः खेती व जानवरों हेतु पानी का कोई भी उपयोग नहीं हो पाता था। पानी का एक स्रोत होते हुए भी इन्हें दिक्कतें झेलनी पड़ती थीं। इसे ही देखते हुए लोगों ने बसनीया नाले पर सामूहिक रूप से श्रमदान कर बंधी निर्माण करने पर विचार किया और फिर इसे कार्यरूप में बदला।

प्रक्रिया


नाले की पृष्ठभूमि
वर्ष 1946 में पट्टा होने के दौरान बसनीया नाला गांव के बुद्धू व बिरजू पुत्र दशरथ के नाम पर हुआ। किंतु वे इसका कोई लाभ नहीं ले सके, क्योंकि इसकी मेड़ बहुत पतली तथा कमजोर होने के कारण पानी ऊपर से अथवा तोड़कर निकल जाता था। उनके मन में बहुत बार यह आता था कि यदि इस नाले पर बंधी बना दिया जाए तो बड़ी मात्रा में पानी संग्रह किया जा सकता है और फिर खेती तथा मवेशियों के लिए सिंचाई व पीने हेतु इसका उपयोग कर अच्छा लाभ लिया जा सकता है। वर्ष 1995-96 के दशक में जब सूखे का प्रकोप अधिक था, लोग अपने परिवार एवं पशुओं को लेकर अन्यत्र पलायन करने लगे, तब इनकी इस सोच को और बल मिला और इन दोनों भाइयों ने अपने इस विचार को गांव वालों से बाँटा भी। पर हर बार की तरह इस बार भी अर्थ समस्या आड़े आई।

बंधी बनाने की शुरूआत


पंचायती राज कानून में 73वां संशोधन होने के साथ ही इन आदिवासियों को वर्ष 2001 में पंचायत चुनाव से जोड़ा गया। इन लोगों ने अपने गांव सभा कालिंजर से श्री राजाराम पुत्र श्री भरथी को ग्राम पंचायत प्रतिनिधि के तौर पर खड़ा किया और ये चुनाव जीत भी गए। चुनाव जीतने के बाद वर्ष 2001 में ही ग्राम पंचायत प्रतिनिधि के खाते में सूखा राहत नाम की निधि आवंटित हुई। इस निधि में 10 मेड़बंदी हेतु धन था। श्री राजाराम ने पंचायत प्रतिनिधि के तौर पर खुली बैठकर कर बसनीया नाला पर बंधी निर्माण का प्रस्ताव रखा, जिसे पूरे गांव द्वारा सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया। पुनः इस पर बंधी निर्माण का कार्य शुरू किया गया।

बंधी बनाने में आई कठिनाईयां


निर्माण कार्य को प्रारम्भ हुए अभी मात्र 4 ही दिन हुआ था कि वन विभाग द्वारा इस कार्य को रोक दिया गया। इनके ऊपर केस कर दिया गया। नतीजतन 6 लोग परमेश्वर पुत्र बुद्दू, राजाराम पुत्र भरथी, शिवप्रसाद पुत्र भरथी, रामलक्षन पुत्र लोचन, कर्मू पुत्र जगदेव, अशर्फी पुत्र मंगरू को जेल जाना पड़ा, परंतु सूखे की इस घटना से विभीषिका को झेलते इन आदिवासियों का मनोबल कम होने के बजाय और बढ़ा ही। इन लोगों ने रणनीति बनाई कि-दिन में वन विभाग का डर रहता है, तो हम लोग रात्रि में काम करेंगे और इस प्रकार इन्होंने रात का समय देकर बंधी को पूरा कराया।

तैयार बंधी का आकार


बसनीया नाले की दूरी- 5 किमी. (जाम पानी से निकल कर बोम होते हुए कलिंजर के बीचों-बीच से गुजरती हुई कनहर नदी में जाकर मिलती है।)

बसनीया नाले की चौड़ाईः 40
मीटर बसनीया नाले की गहराई 30 मीटर
बंधी की लम्बाई 100 मीटर
बंधी की चौड़ाई 15 मीटर
बंधी की गहराई 60 मीटर
नाला से बंधी के बीच की लम्बवत् ऊंचाई 80 मी.
स्थाई पानी रुकने का स्तर 9 मीटर
स्थाई जल स्तर की चौड़ाई 50 मीटर
स्थाई जल स्तर की लम्बाई 200 मीटर की दूरी तक (बसनीया नाला U के आकार का नाला है। जहां बंधी का निर्माण हुआ है, उसके दोनों तरफ करारनुमा है। बंधी की 20 मीटर ऊंचाई के बाद ही लोग बसे हुए हैं।)

बंधी बनाने में लगने वाला समय


कुल 3 माह में बसनीया नाले पर बंधी तैयार हुई।

लाभ


बंधी निर्माण हो जाने के बाद से 25 एकड़ भूमि की सिंचाई स्वयं अपना-अपना पंप लगाकर इन आदिवासी परिवारों द्वारा किया जाता है। सबसे बड़ा लाभ तो यह है कि जहां पहले लोग रबी की फसल से एकदम महरूम थे। अब वे रबी सीजन में फसल की बुवाई, सिंचाई कर अच्छा उत्पादन लेते हैं।
मई जून के महीनों में भी पानी की कोई दिक्कत नहीं होती। पशुओं के पीने हेतु पानी की पर्याप्त उपलब्धता रहती है।
जायद सीजन में सब्जियों की खेती कर लेते हैं, जिससे इनकी आय में वृद्धि हुई है।
अधिकांशतः परिवार अपने उपयोग हेतु सब्जी की खेती, जिसमें आलू, टमाटर, मिर्च आदि का उत्पादन कर ले रहे हैं।

लागत लाभ विश्लेषण


बंधी निर्माण में लगे श्रम का मूल्यांकन तो नहीं किया जा सकता। यह कहा जा सकता है कि पूरे खर्च का आंकलन करते हुए निर्माण कार्य में लगी कुल धनराशि का 35 प्रतिशत भाग पंचायत द्वारा वहन किया गया, जबकि शेष 55 प्रतिशत आदिवासी परिवारों के श्रम का मूल्य है। पर रबी सीजन में होने वाला उत्पाद जो कि पूर्णतः बंधी निर्माण के कारण है, उसके मूल्य का आंकलन कर बदलती स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।

रबी फसल का विवरण