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कुरुक्षेत्र, जुलाई 2012
राजस्थान के मेवाड़ अंचल में सोलहवीं शताब्दी में तत्कालीन महाराणा राजसिंह ने भीषण अकाल, पेयजल की आपूर्ति, नगर के सौन्दर्यीकरण एवं रोजगार को ध्यान में रखकर राजसमन्द झील का निर्माण कराया था। पिछले तीन दशक में मार्बल खनन एवं प्रसंस्करण उद्योग के कचरे ने झील के जलागम क्षेत्र को अवरुद्ध कर दिया था। नतीजतन यह जलाशय लगभग सूख गया था। ऐसी स्थिति में कछु बुद्धिजीवियों ने झील की सफाई एवं गोमती नदी के जलप्रवाह में अवरोध हटाने का बीड़ा उठाया और वह अभियान बनकर सामने आया। सामूहिक प्रयास से झील में फिर से पानी की आवक हुई।
झील की सफाई में अहम भूमिका अदा करने वाले श्रीमाली किसान, मजदूर और आम आदमी के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं।
राजस्थान के राजसमन्द जिले के मजां गांव में 12 दिसम्बर, 1965 में जन्मे दिनेश श्रीमाली कहते हैं-मुझे अपने नाना स्वतंत्रता सेनानी ओंकारलाल जी से समाज सेवा के संस्कार विरासत में मिले। इन्हीं संस्कारों ने मुझे विश्वप्रसिद्ध राजसमंद झील और गोमती नदी के जलागम क्षेत्र में हुए खनन के विरोध में 1989 में वैचारिक जन-जागरुकता में सक्रिय भागीदारी अदा करने की शक्ति प्रदान की। सफलता के मुकाम तक पहुंचने में आई समस्याओं और कठिनाइयों के बारे में लेखक ने श्री श्रीमाली से बातचीत की।
प्रारंभ में किस तरह की कठिनाइयां आई और लोगों का साथ कैसा रहा।
शुरुआत के वर्षों में जनता का कोई विशेष सहयोग नहीं मिला हालांकि बाद में नागरिकों ने भरपूर साथ दिया। प्रारंभ में स्थानीय समाचार-पत्रों में मेरे लेख प्रकाशित होने पर मुझे खदान मालिकों एवं उनके लोगों से धमकियां भी कम नहीं मिली। लेकिन मैंने इसकी परवाह किए बिना अभियान चालू रखा। इस बीच सांस्कृतिक एवं साहित्यिक रंगमंचों के माध्यम से तथा पत्र- पत्रिकाओं और समूह चर्चा कर जनमानस तैयार करने का अभियान भी जारी रखा।
प्रशासन का सहयोग कब मिला? वर्ष 1991 में राजसमन्द नया जिला बना। इससे पूर्व यह क्षेत्र उदयपुर जिले में आता था। मेरे द्वारा 1991 और 1992 में लिखे लेखों का असर सामने आया और तत्कालीन जिला कलेक्टर ने मामले की गंभीरता को देख मार्बल अपशिष्ट एवं स्लरी निस्तारण के लिए पहली बार डम्पिंग यार्ड निर्धारित किए।
स्थानीय जनता पूरी तरह से इस अभियान के साथ कब जुड़ी।
बीसवीं सदी का अंतिम साल व्यावहारिक आंदोलन बना। चूंकि वर्ष 2000 में ऐतिहासिक राजसमंद झील अपने निर्माण के 324 साल बाद पूरी सूख गई थी। मार्बल खनन एवं प्रसंस्करण से निकलने वाली स्लरी ने पारिस्थितिकी तंत्र को बुरी तरह से प्रभावित कर दिया था। जमीन बंजर होने से पशुपालकों के लिए चारे तक का संकट पैदा हो गया। हमने गायत्री परिवार के साथ मिलकर झील का पणा दोहन और सफाई अभियान चलाया जिसमें नगर के सभी लोगों ने श्रमदान किया। इसमें किसानों ने भी पूरी भागीदारी निभाई। झील का पणा सिल्ट काश्तकारों के लिए खाद के रूप में काम आ गया।
इस अभियान में कोई खास समर्थन।
जी हां, मीडिया का पूरा सहयोग मिला। श्रमदान के समाचार बाहर भी छपे जिससे आंदोलन को नैतिक समर्थन मिला। झील जलागम क्षेत्र का जायजा लेने प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं ‘राजस्थान की रजत बूंदें’ जैसे उत्कृष्ट लेख देने वाले अनुपम मिश्र, सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय, मेधा पाटेकर डॉ. महेश भट्ट सहित अनेक नामचीन हस्तियां यहां आई और हमारे अभियान को उन्होंने अपना नैतिक समर्थन प्रदान किया। बाद में जिला प्रशासन भी जागरूक हुआ।
कठिन परिश्रम, सफलता और खुशी के क्षण के बारे में क्या कहेंगे।
हमने आपरेशन भागीरथ के तहत वर्ष 2004 से 2006 तक झील एवं नदी के जलागम क्षेत्र में सफाई कर अपशिष्ट हटाए एवं जलमार्ग ठीक किए। इस कार्य में सभी का भरपूर सहयोग मिला। आखिर हमारी मेहनत रंग लाई और बारह साल बाद गोमती नदी में पानी बहा। राजसमंद झील जो पूरी तरह सूख चुकी थी उसमें 2006 में 19 फुट पानी आया। इससे क्षेत्र के अनेक गांव खेती से जुड़ गए। नदी, झील एवं क्षेत्र के छोटे तालाबों में पानी रहने से भूमिगत जल का स्तर भी नीचे गिरने से बचा रहा। हमारे अभियान में जून 2006 सबसे सुखद रहा। बचे अवरोधों को हटाने के लिए 2009 से 2011 के दरम्यान हमने फिर अभियान चलाया और जलागम क्षेत्र की बंद पुलियाओं को खोला गया। कई पक्के चेम्बर एवं नाली बना जलप्रवाह झील की ओर मोड़े गए। इस अभियान में मुझे फिर अग्रिम पंक्ति में रहने का अवसर मिला।
अब तक कितने प्रतिशत सफलता मिली?
हमें अब तक 60 से 65 प्रतिशत सफलता मिली है। सृजन और विनाश का दौर लगातार जारी है, तथा रहेगा इसलिए हमें हरदम सजग रहना पड़ेगा। गोमती नदी की सफाई के बाद खनन अपशिष्ट वापस नदी के जल प्रवाह में न डालें इसके लिए आसपास के गांवों में ग्रामीण चौपालें कर स्थानीय लोगों को चौकसी की जिम्मेदारी सौंपी है ताकि जल की खेती सही दिशा में होती रहे।
लेखक संवाद समिति, यूनीवार्ता में कार्यरत हैं।
झील की सफाई में अहम भूमिका अदा करने वाले श्रीमाली किसान, मजदूर और आम आदमी के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं।
राजस्थान के राजसमन्द जिले के मजां गांव में 12 दिसम्बर, 1965 में जन्मे दिनेश श्रीमाली कहते हैं-मुझे अपने नाना स्वतंत्रता सेनानी ओंकारलाल जी से समाज सेवा के संस्कार विरासत में मिले। इन्हीं संस्कारों ने मुझे विश्वप्रसिद्ध राजसमंद झील और गोमती नदी के जलागम क्षेत्र में हुए खनन के विरोध में 1989 में वैचारिक जन-जागरुकता में सक्रिय भागीदारी अदा करने की शक्ति प्रदान की। सफलता के मुकाम तक पहुंचने में आई समस्याओं और कठिनाइयों के बारे में लेखक ने श्री श्रीमाली से बातचीत की।
प्रारंभ में किस तरह की कठिनाइयां आई और लोगों का साथ कैसा रहा।
शुरुआत के वर्षों में जनता का कोई विशेष सहयोग नहीं मिला हालांकि बाद में नागरिकों ने भरपूर साथ दिया। प्रारंभ में स्थानीय समाचार-पत्रों में मेरे लेख प्रकाशित होने पर मुझे खदान मालिकों एवं उनके लोगों से धमकियां भी कम नहीं मिली। लेकिन मैंने इसकी परवाह किए बिना अभियान चालू रखा। इस बीच सांस्कृतिक एवं साहित्यिक रंगमंचों के माध्यम से तथा पत्र- पत्रिकाओं और समूह चर्चा कर जनमानस तैयार करने का अभियान भी जारी रखा।
प्रशासन का सहयोग कब मिला? वर्ष 1991 में राजसमन्द नया जिला बना। इससे पूर्व यह क्षेत्र उदयपुर जिले में आता था। मेरे द्वारा 1991 और 1992 में लिखे लेखों का असर सामने आया और तत्कालीन जिला कलेक्टर ने मामले की गंभीरता को देख मार्बल अपशिष्ट एवं स्लरी निस्तारण के लिए पहली बार डम्पिंग यार्ड निर्धारित किए।
स्थानीय जनता पूरी तरह से इस अभियान के साथ कब जुड़ी।
बीसवीं सदी का अंतिम साल व्यावहारिक आंदोलन बना। चूंकि वर्ष 2000 में ऐतिहासिक राजसमंद झील अपने निर्माण के 324 साल बाद पूरी सूख गई थी। मार्बल खनन एवं प्रसंस्करण से निकलने वाली स्लरी ने पारिस्थितिकी तंत्र को बुरी तरह से प्रभावित कर दिया था। जमीन बंजर होने से पशुपालकों के लिए चारे तक का संकट पैदा हो गया। हमने गायत्री परिवार के साथ मिलकर झील का पणा दोहन और सफाई अभियान चलाया जिसमें नगर के सभी लोगों ने श्रमदान किया। इसमें किसानों ने भी पूरी भागीदारी निभाई। झील का पणा सिल्ट काश्तकारों के लिए खाद के रूप में काम आ गया।
इस अभियान में कोई खास समर्थन।
जी हां, मीडिया का पूरा सहयोग मिला। श्रमदान के समाचार बाहर भी छपे जिससे आंदोलन को नैतिक समर्थन मिला। झील जलागम क्षेत्र का जायजा लेने प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं ‘राजस्थान की रजत बूंदें’ जैसे उत्कृष्ट लेख देने वाले अनुपम मिश्र, सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय, मेधा पाटेकर डॉ. महेश भट्ट सहित अनेक नामचीन हस्तियां यहां आई और हमारे अभियान को उन्होंने अपना नैतिक समर्थन प्रदान किया। बाद में जिला प्रशासन भी जागरूक हुआ।
कठिन परिश्रम, सफलता और खुशी के क्षण के बारे में क्या कहेंगे।
हमने आपरेशन भागीरथ के तहत वर्ष 2004 से 2006 तक झील एवं नदी के जलागम क्षेत्र में सफाई कर अपशिष्ट हटाए एवं जलमार्ग ठीक किए। इस कार्य में सभी का भरपूर सहयोग मिला। आखिर हमारी मेहनत रंग लाई और बारह साल बाद गोमती नदी में पानी बहा। राजसमंद झील जो पूरी तरह सूख चुकी थी उसमें 2006 में 19 फुट पानी आया। इससे क्षेत्र के अनेक गांव खेती से जुड़ गए। नदी, झील एवं क्षेत्र के छोटे तालाबों में पानी रहने से भूमिगत जल का स्तर भी नीचे गिरने से बचा रहा। हमारे अभियान में जून 2006 सबसे सुखद रहा। बचे अवरोधों को हटाने के लिए 2009 से 2011 के दरम्यान हमने फिर अभियान चलाया और जलागम क्षेत्र की बंद पुलियाओं को खोला गया। कई पक्के चेम्बर एवं नाली बना जलप्रवाह झील की ओर मोड़े गए। इस अभियान में मुझे फिर अग्रिम पंक्ति में रहने का अवसर मिला।
अब तक कितने प्रतिशत सफलता मिली?
हमें अब तक 60 से 65 प्रतिशत सफलता मिली है। सृजन और विनाश का दौर लगातार जारी है, तथा रहेगा इसलिए हमें हरदम सजग रहना पड़ेगा। गोमती नदी की सफाई के बाद खनन अपशिष्ट वापस नदी के जल प्रवाह में न डालें इसके लिए आसपास के गांवों में ग्रामीण चौपालें कर स्थानीय लोगों को चौकसी की जिम्मेदारी सौंपी है ताकि जल की खेती सही दिशा में होती रहे।
लेखक संवाद समिति, यूनीवार्ता में कार्यरत हैं।