
राजधानी में पानी की कमी का सबसे बड़ा कारण खराब प्रबन्धन और लोगों का जागरूक न होना है। दिल्ली में कुआँ, तालाब, बावड़ी समेत 629 जल स्रोत हैं। इसमें से 15 एएसआई के पास, डीडीए के पास 118, दिल्ली सरकार के पास 469 व सीपीडब्ल्यूडी और पीडब्ल्यूडी के पास 4-4 हैं। मगर कोई भी इन जल निकायों की सूध लेने वाला नहीं है। हाँ कुछ लोग ज़रूर हैं जिन्होंने इन जल निकायों के संरक्षण के लिये आवाज़ बुलन्द करना शुरू कर दिया है।
नैनी झील के प्रति लोगों को जागरूक करने और इसको साफ और स्वच्छ बनाने के लिये मॉडल टाउन में एक जागरुकता रैली आयोजन किया गया। इस रैली में विभिन्न संस्थानों से जुड़े विशेषज्ञ, पर्यावरणविद्, पत्रकारों के अलावा स्थानीय समेत तकरीबन 200 लोगों ने हिस्सा लिया। हाथों में पोस्टर लिये लोग नैनी झील के संरक्षण के लिये आवाज़ बुलंद करते नज़र आये।
नैनी झील एक प्राकृतिक जल निकाय है जो कभी विभिन्न पक्षियों, मेढ़क और दूसरे प्राणियों का बसेरा हुआ करती थी। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसकी हालत इतनी बदतर हो गई कि यहाँ पक्षियों की चहचहाहट और मेढक की टर्र-टर्र की आवाज़ कभी सुनाई नहीं देती।
साल 2000 में नैनी झील का काफी बड़ा वेटलैंड क्षेत्र हुआ करता था जो गूगल अर्थ प्रो इमेज के ज़रिए साफ पता चलता है। लेकिन आज नैनीझील कंक्रीट की दीवार में तब्दील होकर रह गई है। आधुनिकीकरण के कारण हुए निर्माण की वजह से झील के इनलेट और आउटलेट स्रोत बन्द हो चुके हैं जिसकी वजह से बरसात का पानी भी पूरी तरह से झील में नहीं जा पाता।
रैली को सम्बोधित करते हुए जल निकाय विशेषज्ञ और फील्ड बायोलॉजिस्ट फयाज खुदसर ने कहा कि झील को पुर्नजीवित करने के लिये ज़्यादा पैसे की ज़रूरत नहीं है, बस इसके लिये मंशा और विशेषज्ञता की ज़रूरत है। जिस दिन इसमें बारिश का पानी जाना शुरू हो जाएगा वह झील के संरक्षण की दिशा में एक नई शुरूआत होगी। इसके अलावा उन्होंने कहा कि झील में ऑक्सीजन का कम स्तर होने की वजह से जलीय जन्तुओं का झील में जीवित रह पाना काफी मुश्किल हो रहा है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से झील में मछलियाँ मर रही हैं।
‘सेव नैनी लेक’ कैम्पेन की शुरुआत करने वाली जूही चौधरी कहती हैं कि दिल्ली सरकार के पर्यटन मंत्री कपिल मिश्रा ने झील के पुनरुद्धार का वादा किया है। उन्होंने बताया कि पर्यटन मंत्री इस बात पर सहमत हैं झील अपनी खस्ताहाली की वजह से पर्याप्त पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पा रही है। इसलिये समय आ गया हम लोग झील के बारे में बात करें और इसके संरक्षण के लिये आगे आएँ।

लोगों को यह भी समझना चाहिए कि जल निकायों के संरक्षण की ज़िम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही नहीं है। सरकार के अलावा जल निकायों का संरक्षण हम सबकी ज़िम्मेदारी हैै। अगर सरकार के साथ-साथ स्थानीय लोग जल निकायों के संरक्षण के लिये आगे नहीं आये तो हमारी आने वाली पीढ़ी को कुदरत के अनमोल तोहफे पानी के साथ-साथ स्वच्छ वातावरण से भी वंचित रहना पड़ सकता है।