सुपौल जिला के ग्रामीणों और ग्राम्यशील द्वारा 200 एकड़ प्रत्यक्ष जल जमाव क्षेत्र एवं अप्रत्यक्ष 1000 एकड़ जमीन की फसल को बर्बाद होने से बचाया गया। फलतः 300 निर्धनतम किसानों की कृषि आधारित आजीविका विकसित हुई। इतने बड़े महत्वपूर्ण कार्य में जहाँ सरकार के कई लाख रुपए की योजना बनकर खर्च होती वहीं ग्राम्यशील ने इस कार्य को एक दाता संस्था और जन सहयोग से इस कार्य को पूरा किया। उत्तर बिहार में जल जमाव का कुल क्षेत्र 8.32 लाख हेक्टेयर है जो इसके कुल क्षेत्रफल का 10 प्रतिशत है इनमें से ज्यादातर भूमि को कृषि योग्य बनाया जा सकता है।
बिहार नदियों का प्रदेश है। इस प्रदेश में नदियों का जाल बिछा है। यहाँ मुख्य 35 नदियाँ एवं लगभग 85 धाराएँ हैं। उत्तर बिहार को तो इतिहास में नदी मातृक देश के नाम से पुकारा गया है। उत्तर बिहार की प्रमुख नदियों में कोसी, गण्डक, बूढ़ी गण्डक, बागमती कमला, बलान, महानन्दा, घाघरा, सुरसर आदि प्रमुख हैं।कोसी नदी को दुनिया की सबसे ऊँची पर्वत, एवरेस्ट और कंचनजंघा से निकलने का गौरव प्राप्त है। फिर भी असन्तुलित विकासवादियों ने इसे शोक नदी का नाम दिया। बिहार को नदियों का प्रदेश और उत्तर बिहार को नदी मातृक देश कहने के पीछे यहाँ के जनों का प्रकृति के साथ लगाव व प्रकृति आधारित सहजीवन का परिचायक है। इसी सोच के कारण बिहार का अतीत गौरवमयी परिपुष्ट और अनुकरणीय है।
प्राकृतिक नियमों व स्वभाव की मर्यादा को बिहार के जनमानस ने सहर्ष स्वीकारा है। वर्तमान में बिहार खासकर उत्तर बिहार का प्रकृति आधारित जीवनचक्र कई चुनौतियों के बीच खड़ा है। यह चुनौतियाँ उत्तर बिहार खासकर कोसी क्षेत्र की विरासत, संसाधन, मानवीय जीवन चक्र को नष्ट कर सकता है।
नदियों पर तटबन्ध बनने का जो सिलसिला आजादी के बाद आरम्भ हुआ और लगातार बढ़ता ही गया उससे उत्तर बिहार का कोसी क्षेत्र बाढ़ मुक्त क्षेत्र के बजाय बाढ़ और जल जमाव की समस्या से गहराता रहा। तटबन्ध के बाहर का इलाका नदी के बाढ़ के प्रकोप से मुक्त हो गया, लेकिन इन तथाकथित बाढ़ मुक्त इलाकों में होने वाली वर्षा का प्राकृतिक निकास अवरुद्ध हो गया।
इस कारण से कथित बाढ़ मुक्त इलाके जल जमाव की विकट समस्यओं से पीड़ित हुआ। कुछ दिनों में बह जाने वाला पानी अब बरसात के बाद कई माह तक जमा रहने लगा। कई इलाका तो 9 माह और वर्षभर के जल जमाव का क्षेत्र बन गया। ऐसे इलाकों की खेती और पशुपालन चौपट हो गया। दूसरे उद्योग धन्धे का विकास नहीं हुआ। लोगों के पास जब रोजगार का कोई उपाय नहीं बचा तो लोगों ने रोजगार के लिए पलायन की नियति स्वीकार कर ली।
विगत् 15/20 वर्षों में राज्य से पलायन करने वाले कामगारों की संख्या में गुणात्मक वृद्धि हुई है। फिलहाल राज्य के कामगार देश के दूसरे राज्यों-शहरों में रोजगार पाकर अपने कुटुम्ब की आजीविका चला रहे हैं। कोसी तटबन्ध के कारण ही 368 गाँव के करीब 10 लाख लोग प्रत्येक वर्ष बाढ़ की विभीषिका झेलते हैं। इसके कारण उसकी आजीविका के साथ-साथ स्वास्थ्य, आवागमन, शिक्षा, बिजली, सड़क, आदि सुविधाएँ नदारद हैं।
वर्तमान में उत्तर बिहार की चर्चा होते ही बाढ़ और जल जमाव का दृश्य सामने आ जाता है। बिहार की आर्थिक सर्वे 2006-07 के अनुसार बिहार के कुल क्षेत्र का 73.06 प्रतिशत भाग बाढ़ प्रभावित है। अर्थात् देश के कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 17.2 प्रतिशत भाग बिहार में है। उत्तर बिहार का 86.4 प्रतिशत भाग बाढ़ प्रभावित है। जबकि यहाँ की जनसंख्या घनत्व 754 व्यक्ति प्रति कि.मी. है।
उत्तर बिहार में आठ मुख्य नदियाँ हैं, जिसमें कोसी, कमला, बागमती, गण्डक, अधवारा समूह की नदियाँ, बूढ़ी गण्डक, घाघरा एवं महानन्दा ये सभी नदियाँ अपने प्रवाह में प्रारम्भिक दौर से गुजर रही हिमालय की मिट्टी तथा रेत बहाकर लाती है। नदियाँ जब पहाड़ों से उतर कर बिहार के मैदानों में उतरती है तो उसका जल वेग तीव्र हो जाता है जिससे नदी में मिट्टी और रेत जमने लगता है। तटबन्धों के कारण जहाँ धीरे-धीरे नदियाँ उथली होने लगती हैं। जिसके कारण कमजोर तटबन्ध या तो टूट जाती है या तटबन्ध के ऊपर से पानी बहने लगता है।
बिहार की शोक कोसी नदी 250 वर्षों में 112 कि.मी. पश्चिम की ओर खिसक चुकी है। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग 1980 द्वारा यह शिनाख्त किया गया है कि बिहार राज्य देश का सबसे अधिक बाढ़ प्रवण राज्य है।
दिनोंदिन इसका क्षेत्रफल बढ़ता ही जा रहा है। यदि 2007 के बाढ़ को ले तो सूचनानुसार 22 जिलों के 264 प्रखण्ड के 12610 गाँवों में रहने वाले 2.48 करोड़ लोगों एवं 16.13 लाख क्षेत्रफल के खरीफ फसल को अपनी चपेट में ले लिया। 7 लाख 37 हजार घर गिरे और 960 लोग बाढ़ में मरे।
यदि पूर्व के एक और उदाहरण पर गौर करें तो 1987 में मौजूदा बिहार की आबादी 5.23 करोड़ थी तब 23 हजार 812 गाँवों में रहने वाले 2.82 करोड़ लोग बाढ़ की चपेट में आए। 10 लाख हेक्टेयर खरीफ फसल और 46.68 लाख हेक्टेयर का इलाका बाढ़ में डूबा। 1373 लोग इसमें मरे। 1682 लाख घर धरासाई हुए। 2008 की कोसी त्रासदी में 7 जिलों के 30 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए उत्तर बिहार के 3 लाख 40 हजार हेक्टेयर जमीन जल प्रलय में डूब गया।
250 लोगों की मृत्यु सरकार ने पुष्टि की। कुल मिलाकर तटबन्ध बनने के बाद जान माल की भयंकर तबाही उत्तर बिहार प्रत्येक वर्ष कमोबेश झेलते रहे हैं, इसी प्रकार बाढ़ के साथ जल जमाव की समस्या जिसका उत्तर बिहार में जल जमाव का कुल क्षेत्र 8.32 लाख हेक्टेयर है जो इसके कुल क्षेत्रफल का 10 प्रतिशत है इनमें से ज्यादातर भूमि को कृषि योग्य बनाया जा सकता है।
जल जमाव की समस्या ने कोसी क्षेत्र के सामाजिक, आर्थिक, मानवीय, पर्यावरणीय आदि परिदृश्य के लिए चुनौती बनता जा रहा है। जल जमाव की इस समस्या के समाधान हेतु जल प्रबन्धन कर कृषि आधारित आजीविका संवर्धन हेतु कई सफल प्रयास हुए हैं। ऐसा ही एक प्रयास कोसी क्षेत्र की प्रसिद्ध संस्था ग्राम्यशील जो विगत् 20 वर्षों से परम्परागत ज्ञान, क्षमता, संसाधन, सहजीवन और ग्राम निर्माण के लिए लगे कार्य में प्रयासरत है के द्वारा एक अभिनव प्रयोग हुआ है।
बिहार के सुपौल जिला अन्तर्गत सुपौल प्रखण्ड में वीणा पंचायत है। पंचायत में धरनीपट्टी नाम का एक टोला है। सुपौल जिला मुख्यालय से 9 की.मी. दूरी पर यह टोला अवस्थित रहने के बावजूद काफी पिछड़ा हुआ है। यहाँ के प्रायः लोगों की आजीविका कृषि व पशुपालन है। टोले के पूर्वी, दक्षिणी भाग से कोसी की एक धारा खैरदाहा नदी बहती है। उसी के समीप गिदहा चाप है।
इस चाप के कारण करीब 200 एकड़ जमीन जल जमाव से प्रत्येक वर्ष प्रभावित होती थी। बरसात के समय नदी में पानी बढ़ने से करीब 1000 एकड़ जमीन में पानी भर जाता था। परिणामस्वरूप फसल की बर्बादी के साथ जल जनित कई बीमारियाँ होती थी। इस समस्या के समाधान हेतु 1973 में जल निकास विभाग द्वारा चर के पानी निकालने हेतु नाला का निर्माण तो किया लेकिन वह कुछ ही वर्षों में कार्य करना बन्द कर दिया, धीरे-धीरे यह मृतप्राय हो गया।
ग्रामीणों ने इसके पुननिर्माण हेतु सम्बन्धित सरकारी विभागों, पंचायत प्रतिनिधियों और राजनीतिक दल के नेताओं से सहयोग माँगा लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके। ग्राम संगठन निर्माण के कार्य के दौरान ग्रामीणों ने इस समस्या को ग्राम्यशील के समक्ष रखा। ग्राम्यशील के पास भी इस समस्या के समाधान का ज्ञान और तकनीक नहीं था। ग्राम्यशील के सचिव चन्द्रशेखर जी बताते हैं कि फिर ग्राम्यशील ने प्रसिद्ध जल विशेषज्ञ और बाढ़ जल प्रबन्धनकर्ता दिनेश कुमार मिश्र के समक्ष इस प्रसंग को रखा। श्री मिश्र ने अपने अन्य विशेषज्ञों के साथ इसका अध्ययन करवा कर एक दाता संस्था के आंशिक और ग्रामीणों के जन सहयोग से जल निकास का यह कार्य आरम्भ किया।
मार्च 2008 में करीब 1000 फीट नाला बनकर तैयार हो गया, जिससे 200 एकड़ प्रत्यक्ष जल जमाव क्षेत्र एवं अप्रत्यक्ष 1000 एकड़ जमीन की फसल को बर्बाद होने से बचाया गया। फलतः 300 निर्धनतम किसानों की कृषि आधारित आजीविका विकसित हुई। इतने बड़े महत्वपूर्ण कार्य में जहाँ सरकार के कई लाख रुपए की योजना बनकर खर्च होती वहीं ग्राम्यशील ने इस कार्य को एक दाता संस्था और जन सहयोग से इस कार्य को पूरा किया। ग्राम्यशील संस्था के चन्द्रशेखर का मानना है कि पूरे कोसी क्षेत्र के जल जमाव क्षेत्र के जल निकास हेतु इसे प्राथमिक कार्य मानकर निरन्तर ईमानदारीपूर्वक पहल करने की नितान्त आवश्यकता है।
उत्तर बिहार में जल जमाव का कुल क्षेत्र 8.32 लाख हेक्टेयर है जो इसके कुल क्षेत्रफल का 10 प्रतिशत है इनमें से ज्यादातर भूमि को कृषि योग्य बनाया जा सकता है। इस जल के समुचित प्रबन्धन करने की तरकीब ग्राम्यशील ने प्रसिद्ध जल विशेषज्ञ डाॅ. दिनेश कुमार मिश्र से सीख कर सुपौल प्रखण्ड के वीणा पंचायत अन्तर्गत धरनीपट्टी गाँव के गिदहा चर जो 1973 में बनकर मृतप्राय हो गया था।
1000 फीट नाला का जीर्णोंद्धार मार्च 2008 में पूरा कर 200 एकड़ प्रत्यक्ष जल जमाव क्षेत्र एवं अप्रत्यक्ष 1000 एकड़ जमीन की फसल को बर्बाद होने से बचाया। फलतः 300 निर्धनतम किसानों की कृषि आधारित आजीविका विकसित हुई।
गौरतलब है कि इतने बड़े महत्वपूर्ण कार्य में जहाँ सरकार के कई लाख रुपए की योजना बनकर खर्च होती वहीं ग्राम्यशील ने इस कार्य को एक दाता संस्था के सहयोग से पूरा किया। संस्था कार्यकर्ता शम्भूनाथ का मानना है कि पूरे कोसी क्षेत्र के जल जमाव क्षेत्र के जल निकास हेतु इसे प्राथमिक कार्य मानकर निरन्तर ईमानदारीपूर्वक पहल करने की नितान्त आवश्यकता है।