शराब-कारख़ाने में अपशिष्ट न्यूनीकरण

Submitted by admin on Mon, 10/27/2008 - 09:25

डब्ल्यूएमसी आसवनी(शराब-कारख़ाना) इकाई में अपशिष्ट न्यूनीकरण स्थिति का जायज़ा-

 


..1.एक परिचय
शराब-कारख़ाने को चीनी उद्योग से संबंधित उद्योग समझा जाता है क्योंकि चीनी उद्योग से कच्चे माल एवं मद्य उत्पाद के शीरे मिल जाते हैं। भारत में बहुतेरे शराब-कारख़ाने शीरे को कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
बहुत से कारख़ाने पर्यावरण और कारख़ाने के अपशिष्ट के निपटान के मुद्दे को झेल रहे हैं। बहुतेरे तकनीकी तरीके अपशिष्ट के निस्तारण के लिए आज़माएं गये हैं। लेकिन इन सारी विधियों में कोई भी विधि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा स्थापित मानक के अनुसार असरकारक और किफ़ायती साबित नहीं हुए।

कम्पोस्टीकरण तकनीक अच्छे विकल्पों में से एक है। यह शून्य प्रदूषण में भागीदार साबित हो सकता है। अतिरिक्त कम्पोस्ट प्रक्रिया में बहुमूल्य कार्बनिक और अकार्बनिक संघटकों से मिट्टी की उर्बरक क्षमता बढ़ती है। हलांकि, इस विधि को लम्बी अवधि के लिए अपनाने पर जगह की कमी पड़ जाती है।

2.उद्योग के संदर्भ में
मै. एण्ड सन्स एसएसके डिसटिलरी, अकलुज, शराबख़ाने की एक इकाई है जो 30 के एलपीडी क्षमता के साथ मद्य उत्पादन करती है।
आसवनी गाद की अभिक्रिया की समस्या के मद्दे नज़र रेगुलेटरी स्टैण्डर्ड को बनाये रखने के लिए इकाई ने परिष्कृत किण्वन प्रक्रिया ''द्वयात्मक बायोफर्मसेन प्रक्रिया'' गाद निर्माण की मात्रा को कम करने के लिए अपनाया है। तकनीक के इस बदलाब से गाद निर्माण में 40% की कमी हुई है और उत्पादन क्षमता में 100% की बढ़ोतरी हुई है।

3.निर्माण प्रक्रिया
चीनी उद्योग से प्राप्त शीरे नियमित यीस्ट के द्वारा एलकोहल निर्माण के लिए किण्वित किया जाता है। चीनी शीरे के डिकाराइड के रूप में यीस्ट से एलकोहल में परिवर्तित इस प्रतिक्रिया के द्वारा होता है।
C6H12O6 + Yeast 2CO2 + 2C2H5OH
100 kg 48.89 kg + 51.11 kg
ग्लूकोज CO2 एथनॉल
किण्वन प्रतिक्रिया को प्रभावित करने वाले तत्त्व और उनके प्रभाव की जानकारी संक्षित रूप में नीचे दी जा रही है।

तापक्रम
किण्वन के लिए आवश्यक तापक्रम 320 डिग्री सेलसियस और यीस्ट के निर्माण के लिए 280 डिग्री सेलसियस होता है। 320 डिग्री सेलसियस से ज्यादा तापक्रम में बढ़ोतरी किण्वन प्रक्रिया की क्षमता को कम करने की प्रवृति मानी जाती है। वैसे भी यीस्ट को उच्च तापक्रम पर हैण्डल नहीं किया जा सकता है। और तो और यह लैक्टोबैसिलस की वृद्धि को बढ़ाता है, लैक्टोबैसिलस, मुख्य सूक्ष्मजीव यीस्ट से मुकाबला करता है। लैक्टोबैसिलस लैकटीक एसिड को पैदा करने के लिए ग्लूकोज को नष्ट कर देता है जो कि किण्वन के माध्यम से एलकोहल निर्माण को प्रभावित करने वाली दूसरी बड़ी कारक होती है।
यीस्ट, किण्वन के दौरान कुछ कार्बनिक एसिड का उत्पादन करता है लेकिन उसकी सांद्रता लैक्टोबैसिलस और अन्य संदूशक जीवाणु द्वारा उत्पादित एसिड की सांद्रता की तुलना में अपेक्षाकृत कम होता है। जब लैक्टोबैसिलस प्राप्त होता है तब लैक्टिक एसिड का निर्माण मूलत: आवश्यक अम्लता को बढाता है और प्राय: यही उच्च एसिड स्तर यीस्ट किण्वन को विशेष रूप से कम करने या धीमा करने का कारण बनता है।
किण्वन में एलकोहल की सांद्रता
उच्च एलकोहल बियर अपरिपक्व अवस्था में किण्वन कम करने की प्रवृति को रखता है। ऐसा देखा गया है कि जब यीस्ट जननीय अवस्था में होता है तो यह तीस गुणा तेज़ी से सामान्य दर की अपेक्षा अधिक उत्पादित करता है।

3. पारंपरिक बनाम द्वयात्मक बायोफर्मसेन प्रक्रिया
एस. पोम्ब यीस्ट के शीरे के किण्वन से एलकोहल उत्पादित होता है। पारंपरिक प्रक्रिया में तो सिर्फ एक ही किण्वक का प्रयोग होता है। जैसे ही एलकोहल की सांद्रता समय के साथ बढ़ती है, प्रतिक्रिया की दर धीमी होने लगती है और आवश्यक एलकोहल की सांद्रता 7%ही होनी चाहिए थी। द्वयात्मक बायोफर्मसेन प्रक्रिया में दो किण्वकों और एक गाद वाली टैंक का प्रयोग होता है। इस प्रकार से पहले किण्वक में प्रतिक्रिया की दर तेज़ हो जाती है और दूसरे किण्वक में एलकोहल की सांद्रता 9% तक बढ़ जाती है।
दूसरे किण्वक की एलकोहल आसवन भाग में और यीस्ट क्रीम हटाने के लिए फिलटर के छन्ना में आंशिक रूप से पंप किया जाता है और पहले किण्वक में यीस्ट की खपत कम करने के लिए रिसाइकल किया जाता है। स्वच्छ किण्वित गाद, गाद वाली टैंक में जमा हो जाता है और एलकोहल प्राप्त करने के लिए आसवन भाग में पंप किया जाता है।

इस प्रक्रिया में गाद के पांच प्रतिशत आसवन भाग में रिसाइकल होता है और किण्वन के लिए इस्तेमाल होता है और इस प्रकार से बराबर मात्रा में जल प्रयोग में कमी से अच्छा उत्पाद प्राप्त होता है। आसवन भाग के गाद के सांद्रण के लिए रिवॉलर अपनाने से बाहरी अपशिष्ट द्रव्य में अतिरिक्त 15% की किमी होती है। इस प्रकार से 40% अपशिष्ट न्यूनीकरण को प्राप्त किया जाता है।

4.प्रक्रिया की लाभ
क) उच्च किण्वन क्षमता रेन्ज 89-90%
ख) उच्च एथनॉल सांद्रता 8- 8.5% v/v किण्वित गाद
ग) 25%गाद किण्वन प्रक्रिया के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं जिसके फल स्वरूप कम पानी का उपयोग होता है।
घ) निर्मित बहिर्गत मात्रा कम होती है और गाद के अभिकरण के मूल्य को विशेष रूप से कम किया जा सकता है।
च) भरावन आसवन गाद के अपशिष्ट जल से भिगोकर फिर कम्पोस्ट बनाया जाता है। घान प्रक्रिया में गाद के पानी का उत्पादन उच्च मात्रा में होता है और आवश्यक भरने वाले द्रव्य की मात्रा उपलब्ध नहीं हो पाता है। परिणाम स्वरूप आसवन मात्र 200 दिनों तक चलता है। नयी प्रक्रिया के गाद पानी में कमी आसवन इकाई को 300 दिनों तक चलने में मदद करता है और इस तरह से पूरे साल लाभ बढ़ता चला जाता है।
छ) शीरे का पूर्व-निर्मलीकरण आवश्यक नहीं है।
ज) प्रक्रिया सामान्य और मितव्ययी है।
झ) घान प्रकार के प्लांट में बेकार यीस्ट का संकलन अति आवश्यक नहीं है।

4.0 पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ
बड़ी रक़म की ख़पत आसवन भाग का परिवर्तन द्वयात्मक प्रक्रिया में = 70 लाख रूपयेलाभ एलकोहल उत्पादन में वृद्धि की वजह सेएलकोहल उत्पादन में वृद्धि =1000 लि. प्रति दिन (10 लि. प्रति शीरे की टन पर)
बचत वृद्धि एलकोहल उत्पादन की वजह से= 15,00,000 प्रतिवर्ष (5रू. प्रति लि.एलकोहल की दर से)
=लाभ उत्पादन का समय बढ़ जाने से, कम्पोस्टिंग के फिलर कम होने सेलाभ में बढ़ोतरी की वजह से
बढ़ा हुआ उत्पादन=प्रतिदिन 15,000 रू (प्रति लिटर 0.25रू और 60के एल पी डी उत्पादन)इस प्रकार उपलब्ध लाभ में कुल वृद्धि
=15,00,000 रू. प्रतिवर्ष(100 दिन अधिक उत्पादन की वजह से)
पैसा वापसी की अवधि प्रक्रिया में परिवर्तन के लिए = 2 वर्ष और 4 महीना

5.0 उपसंहार
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि आसवन प्रक्रिया अनुभाग को द्वयात्मक प्रक्रिया में परिवर्तित करने से केवल आर्थिक लाभ ही नहीं होता अपितु प्रदूषण में कमी भी होता है जिसे पर्यावरण में उत्सर्जित किया जा सकता है।
पारंपरिक प्रक्रिया के ऊपर लाभ के सारांश नीचे की सारणी में दिये गये हैं।

 


 

पैरामीटर

पारंपरिक

द्वयात्मक बायोफर्मसेन

किण्वन क्षमता

80-83%

89-90%

एथनॉल सांद्रता

7%

8-8.5 % v/v

गाद पानी का उत्पादन

172 m3/day

134.5 m3/ दिन

% अपशिष्ट पुनर्प्रयुक्त

कुछ नहीं

25%

वाष्पप्रयुक्त

59.3 T/d

51.9 T/d

बहिरगत उत्पादन

450 m3/ दिन

240 m3/ दिन