श्रीपद्रे केरल में वानी नगर के निवासी पद्रे का जन्म 10 नवम्बर 1955 में हुआ था। वैसे तो श्रीपद्रे पेशे से एक किसान हैं, लेकिन वे शिक्षा जगत के एक बहु प्रतिभाशाली व्यक्तित्व भी हैं, जिन्होंने अपने क्षेत्र के जल संकट से निपटने के लिए हमारी पारंपरिक जल व्यवस्था का मोल समझा और पिछले कईं सालों से इस पारंपरिक ज्ञान का प्रचार- प्रसार करने में जुटे हुए हैं। श्रीपद्रे ने वर्षाजल संग्रहण पर अब तक छह किताबें लिखीं हैं, जिनमें पांच पुस्तकें अंग्रेजी भाषा में लिखीं। श्रीपद्रे दुनियाभर में वर्षाजल संग्रहण की सफल कहानियों को तलाशकर जरूरतमंद लोगों के बीच इनका प्रचार- प्रसार कर रहे हैं। वे पिछले 12 वर्षों से कर्नाटक की एक कन्नड़ पत्रिका 'अदिके पत्रिके' का संपादन कर रहे हैं। इसी पत्रिका से प्रेरित होकर 7-8 जिलों के सैकड़ों किसान वर्षाजल का संग्रहण करने लगे हैं। इन दिनो श्रीपद्रे कन्नड़ भाषा के एक दैनिक अखबार 'हनीगुड सोना' के एक साप्ताहिक कॉलम में वर्षाजल संग्रहण पर नियमित रूप से लेख लिखते हैं। इससे पहले वे दो साल तक एक कन्नड़ दैनिक अखबार 'सुजलाम सुफलाम' के साप्ताहिक कॉलम में वर्षा जल संग्रहण पर लेख लिखते रहे हैं।
'द हिन्दू' और एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका 'इलेयिया' में भी वर्षाजल संग्रहण पर इनके लेख छपे हैं। इन्होंने वर्षाजल संग्रहण पर 300 आकर्षक स्लाइडों का संग्रह बना लिया है और दक्षिणी कर्नाटक और उत्तरी केरल के चप्पे-चप्पे में इन्होंने 250 स्लाइड शो का प्रदर्शन किया है।
इसके अलावा ये जल पंढाल विकास की विशेषज्ञ समिति के सदस्य हैं, और वे मैसूर स्थित अब्दुल नजीर साहब राज्य स्तरीय प्रशिक्षण केंद्र के विभागीय सदस्य हैं। इनके काम और प्रतिभा के कारण ही जर्मन में लिखी 'द रैनवॉटर टैक्नोलॉजी हैंडबुक' की कार्यकर्ता सूची में उनका नाम दर्ज किया गया है।
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श्री पद्रे, वानीनगर, वाया पेरिया, केरल, फोन : 0825- 647234
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