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साप्ताहिक पंचायतनामा, 9 जून 2014
झारखंड श्रीविधि (एसआरआइ) से खेती करने के लक्ष्य से काफी पीछे है। पिछले खरीफ मौसम 2013-14 में झारखंड ने पांच लाख हेक्टेयर भूमि पर श्रीविधि से खेती करने का लक्ष्य रखा था। लेकिन इसके बनिस्पत राज्य मात्र 67804.842 हेक्टेयर भूमि पर श्रीविधि से खेती कर सका। यानी लक्ष्य का मात्र 14 ही राज्य हासिल कर सका।
अगर सामान्य सिद्धांत के अनुसार 30 प्रतिशत अंक को पास मार्क माना जाए, तो कह सकते हैं कि झारखंड श्रीविधि के लक्ष्य को हासिल करने में फेल हो गया है। हालांकि विभाग ने इसके लिए अपर्याप्त बारिश को जिम्मेवार ठहराया है। श्रीविधि से खेती करने के लिए 1535.68639 लाख रुपए आवंटित किए गए थे। जिसमें 971.55462 लाख रुपए खर्च हुए और 564.13177 लाख रुपए लौटा दिए गए।
पिछले साल दुमका 30770 हेक्टेयर में श्रीविधि से धान की खेती का लक्ष्य था, लेकिन वहां यह आंकड़ा शून्य रहा है। पलामू, गढ़वा, देवघर, पाकुड़, गिरिडीह व कोडरमा ऐसे जिले हैं, जो श्रीविधि से खेती करने में सबसे पीछे रहे। वहीं, पूर्वी सिंहभूम, रांची, खूंटी, सिमडेगा, गोड्डा, पश्चिमी सिंहभूम, बोकारो व धनबाद जिले श्रीविधि से खेती करने के लक्ष्य को हासिल करने में बेहतर रहे।
श्रीविधि की खेती करने को लेकर झारखंड के किसानों में काफी उत्साह है। जो किसान एक बार श्रीविधि से खेती कर लेता है, वह इसी तरीके से खेती करना चाहता है। राज्य सरकार का कृषि विभाग भी मानता है कि उपज बढ़ाने व किसानों की आर्थिक उन्नति के लिए इस विधि को प्रभावशाली ढंग से अपनाना जरूरी है। परंपरागत विधि की तुलना में यह विधि किसानों के लिए अधिक कारगर व लाभदायक है।
इस विधि से खेती करने पर सात से दस मैट्रिक टन धान का प्रति हेक्टेयर में उत्पादित किया जा सकता है, जबकि परंपरागत विधि से ढाई से तीन मैट्रिक टन धान प्रति हेक्टेयर में उत्पादित किया जा सकता है। इस साल 2014-15 में राज्य ने 194283 हेक्टेयर भूमि में श्रीविधि से धान की खेती करने का लक्ष्य रखा है। विभाग के द्वारा तय किए गए लक्ष्य के अनुसार प्रति एक हजार हेक्टेयर भूमि में 900 हेक्टेयर पर श्रीविधि से एवं 100 हेक्टेयर भूमि पर डीएसआर (डायरेक्ट सिडेड राइस) यानी सीधे धान के बीज की बोआई करने की योजना है।
कृषि विभाग ने 1000 रुपए प्रति हेक्टेयर इंसेंटिव के रूप में किसानों को श्रीविधि से खेती करने के लिए दो किस्तों में देने की योजना बनाई है। 500 रुपए बोआई के लिए और 500 रुपए फसल को तैयार करने के लिए देने की योजना है। यह राशि किसानों को स्थानीय कृषि विकास केंद्र की रिपोर्ट पर दी जाएगी। किसानों से श्रीविधि की खेती कराने के लिए एनजीओ व कृषक मित्रों को जिम्मेवारी दी जा रही है। इसके लिए उन्हें 200 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से दिए जाएंगे। बोआई के लिए 100 रुपए व फसल तैयारी के बाद 100 रुपए की राशि दी जाएगी।
पिछले साल के लक्ष्य को हासिल करने के प्रतिकूल रहे नतीजों के बाद इस साल कृषि विभाग ने श्रीविधि के लक्ष्य को कम कर लिया है। पिछले साल के पांच लाख हेक्टेयर भूमि की तुलना में इस बार सरकार ने दो लाख 19 हजार 470 लाख हेक्टेयर भूमि पर श्रीविधि से खेती करने का लक्ष्य रखा है। इस साल के लक्ष्य में सरकार ने खूंटी, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला, पलामू, चतरा, गिरिडीह, जामताड़ा, गोड्डा को प्राथमिकता दी है।
यहां अपेक्षाकृत अधिक भूमि पर एसआरआइ से धान की खेती करने का लक्ष्य रखा गया है। वहीं, लोहरदगा, देवघर, पाकुड़ में अपेक्षाकृत लक्ष्य छोटा रखा गया है। इस बार श्रीविधि से खेती करने के लिए 24.285 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया है। जिसमें 19.42 करोड़ किसानों के बीच वितरित किया जाएगा। जबकि 3.88 करोड़ एनजीओ व कृषक मित्रों को प्रोत्साहन राशि के रूप में दिए जायेंगे और शेष राशि अन्य मद में खर्च की जाएगी।
अगर सामान्य सिद्धांत के अनुसार 30 प्रतिशत अंक को पास मार्क माना जाए, तो कह सकते हैं कि झारखंड श्रीविधि के लक्ष्य को हासिल करने में फेल हो गया है। हालांकि विभाग ने इसके लिए अपर्याप्त बारिश को जिम्मेवार ठहराया है। श्रीविधि से खेती करने के लिए 1535.68639 लाख रुपए आवंटित किए गए थे। जिसमें 971.55462 लाख रुपए खर्च हुए और 564.13177 लाख रुपए लौटा दिए गए।
पिछले साल दुमका 30770 हेक्टेयर में श्रीविधि से धान की खेती का लक्ष्य था, लेकिन वहां यह आंकड़ा शून्य रहा है। पलामू, गढ़वा, देवघर, पाकुड़, गिरिडीह व कोडरमा ऐसे जिले हैं, जो श्रीविधि से खेती करने में सबसे पीछे रहे। वहीं, पूर्वी सिंहभूम, रांची, खूंटी, सिमडेगा, गोड्डा, पश्चिमी सिंहभूम, बोकारो व धनबाद जिले श्रीविधि से खेती करने के लक्ष्य को हासिल करने में बेहतर रहे।
श्रीविधि की खेती करने को लेकर झारखंड के किसानों में काफी उत्साह है। जो किसान एक बार श्रीविधि से खेती कर लेता है, वह इसी तरीके से खेती करना चाहता है। राज्य सरकार का कृषि विभाग भी मानता है कि उपज बढ़ाने व किसानों की आर्थिक उन्नति के लिए इस विधि को प्रभावशाली ढंग से अपनाना जरूरी है। परंपरागत विधि की तुलना में यह विधि किसानों के लिए अधिक कारगर व लाभदायक है।
इस विधि से खेती करने पर सात से दस मैट्रिक टन धान का प्रति हेक्टेयर में उत्पादित किया जा सकता है, जबकि परंपरागत विधि से ढाई से तीन मैट्रिक टन धान प्रति हेक्टेयर में उत्पादित किया जा सकता है। इस साल 2014-15 में राज्य ने 194283 हेक्टेयर भूमि में श्रीविधि से धान की खेती करने का लक्ष्य रखा है। विभाग के द्वारा तय किए गए लक्ष्य के अनुसार प्रति एक हजार हेक्टेयर भूमि में 900 हेक्टेयर पर श्रीविधि से एवं 100 हेक्टेयर भूमि पर डीएसआर (डायरेक्ट सिडेड राइस) यानी सीधे धान के बीज की बोआई करने की योजना है।
प्रोजेक्ट को हासिल करने की रणनीति
कृषि विभाग ने 1000 रुपए प्रति हेक्टेयर इंसेंटिव के रूप में किसानों को श्रीविधि से खेती करने के लिए दो किस्तों में देने की योजना बनाई है। 500 रुपए बोआई के लिए और 500 रुपए फसल को तैयार करने के लिए देने की योजना है। यह राशि किसानों को स्थानीय कृषि विकास केंद्र की रिपोर्ट पर दी जाएगी। किसानों से श्रीविधि की खेती कराने के लिए एनजीओ व कृषक मित्रों को जिम्मेवारी दी जा रही है। इसके लिए उन्हें 200 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से दिए जाएंगे। बोआई के लिए 100 रुपए व फसल तैयारी के बाद 100 रुपए की राशि दी जाएगी।
इस साल का लक्ष्य
पिछले साल के लक्ष्य को हासिल करने के प्रतिकूल रहे नतीजों के बाद इस साल कृषि विभाग ने श्रीविधि के लक्ष्य को कम कर लिया है। पिछले साल के पांच लाख हेक्टेयर भूमि की तुलना में इस बार सरकार ने दो लाख 19 हजार 470 लाख हेक्टेयर भूमि पर श्रीविधि से खेती करने का लक्ष्य रखा है। इस साल के लक्ष्य में सरकार ने खूंटी, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला, पलामू, चतरा, गिरिडीह, जामताड़ा, गोड्डा को प्राथमिकता दी है।
यहां अपेक्षाकृत अधिक भूमि पर एसआरआइ से धान की खेती करने का लक्ष्य रखा गया है। वहीं, लोहरदगा, देवघर, पाकुड़ में अपेक्षाकृत लक्ष्य छोटा रखा गया है। इस बार श्रीविधि से खेती करने के लिए 24.285 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया है। जिसमें 19.42 करोड़ किसानों के बीच वितरित किया जाएगा। जबकि 3.88 करोड़ एनजीओ व कृषक मित्रों को प्रोत्साहन राशि के रूप में दिए जायेंगे और शेष राशि अन्य मद में खर्च की जाएगी।
वित्तीय वर्ष 2013-14 में कैसा रहा श्रीविधि का हाल
जिले का नाम | लक्ष्य | उपलब्धि |
रांची | 49370 | 3045.24 |
खूंटी | 21470 | 4976.64 |
गुमला | 53270 | 1180.97 |
सिमडेगा | 26870 | 3196 |
लोहरदगा | 13670 | 572.69 |
पू सिंहभूम | 38570 | 11890 |
प. सिंहभूम | 34370 | 2291.8 |
सरायकेला | 27770 | 6843 |
पलामू | 13370 | 563.4 |
गढ़वा | 15770 | 1100 |
लातेहार | 7390 | 327.2 |
हजारीबाग | 23870 | 2649 |
रामगढ़ | 9170 | 2648 |
चतरा | 10370 | 6750 |
कोडरमा | 4670 | 1639 |
गिरिडीह | 23570 | 1660 |
धनबाद | 16370 | 2222.3 |
बोकारो | 9770 | 2296.602 |
दुमका | 30770 | शून्य |
जामताड़ा | 13370 | 1550 |
देवघर | 14870 | 757 |
गोड्डा | 13070 | 6571 |
साहेबगंज | 13970 | 2250 |
पाकुड़ | 14270 | 825 |
कुल | 500000 | 67804.842 |
खरीफ 2014-15 में खरीफ के लिए लक्ष्य
जिला | लक्ष्य | श्रीविधि लक्ष्य |
(90%) | ||
रांची | 6000 | 5400 |
खूंटी | 20000 | 18000 |
गुमला | 3000 | 2700 |
सिमडेगा | 3000 | 2700 |
लोहरदगा | 1200 | 1080 |
पू सिंहभूम | 4000 | 3600 |
प. सिंहभूम | 30000 | 27000 |
सरायकेला | 27200 | 24480 |
पलामू | 14000 | 12600 |
गढ़वा | 15000 | 13500 |
लातेहार | 1000 | 900 |
हजारीबाग | 3000 | 2700 |
रामगढ़ | 3000 | 2700 |
चतरा | 10800 | 9720 |
कोडरमा | 4000 | 360 |
गिरिडीह | 24000 | 21600 |
धनबाद | 5000 | 4500 |
बोकारो | 4000 | 360 |
दुमका | 4000 | 3600 |
जामताड़ा | 15000 | 13500 |
देवघर | 1200 | 1080 |
गोड्डा | 13070 | 11763 |
साहिबगंज | 6000 | 5400 |
पाकुड़ | 2000 | 1800 |
कुल | 219470 | 194283 |