खेतों के पास से एक वर्षा से आच्छादित होने वाला नाला निकलता है जिसका बेतरतीब बहने वाला पानी खेतों को नहीं मिल पाता था मैंने उस नाले का पानी का प्रयोग अपने तालाब को भरने में किया और उसका इनलेट इस तरह से बनाया कि जितना हमारा तालाब गहरा है उतना ही पानी उसमें जा सके। यह कमाल सिर्फ इनलेट का है जो नाले का वर्षाजल हमारे खेतों को नुकसान नहीं कर पाता है। जिन किसानों के पास धन की व्यवस्था नहीं है उन किसानों को भी यह जान लेना चाहिए कि पानी वर्षाजल संचयन के लिये तालाब से बेहतर कोई उपाय नहीं है।
पिता से विरासत में मिली जमीन को खुशी-खुशी जब मैं जोतने चला तो खेत की स्थिति देख दंग रह गया। समझ नहीं आया काम कहाँ से शुरू करुँ। अपनी ही जमीन पहाड़ जैसी लगने लगी। लेकिन घर से तो खेत जोतने को चले थे, लौटकर घर में क्या कहता? सो स्टार्ट किया ट्रैक्टर और शुरू किया ढालूदार खेत को समतल करना। समतल करने से निकली कंकड़ वाली मिट्टी से मेड़ बनाना।बुन्देलखण्ड की वीर भूमि महोबा जिले के ग्राम बरबई के ऊर्जावान किसान बृजपाल सिंह ने अपनी आप बीती सुनाते हुए कहा कि असिंचित एवं ढालूदार जमीन होने के कारण जमीन लगभग ऊसर हो चुकी थी। ट्रैक्टर चलाने के शौक ने खेत पर पहुँचा दिया। ढालूदार जमीन को समतल करने का सबसे पहले मन बनाया सो जोतने वाला औजार निकाल समतल करने वाला सूपा ट्रैक्टर में लगवाया और खेत को समतल करना शुरू किया। खेतों को समतल करने के बाद सोचा कि खेतों में पैदावार होती नहीं है और जो होती भी है तो लागत से भी कम। उस समय यूकेलिप्टस के पौधे वन विभाग दे रहा था सो मेड़ों पर यूकेलिप्टस लगा दिये। मैं जानता था कि यह पौध पानी बहुत खाती है फिर भी यह पौध भरपाई के लिये लगा दी।
मन बना चुका था खेती ही करनी है तो सोचा कि खेती के लिये पानी जरूरी है बिना पानी खेती करना सम्भव नहीं है। मैंने खेत में बोरिंग करवाई लेकिन बोरिंग सफल नहीं हुई। 680 फीट गहरी बोरिंग करवाई उसके बावजूद पानी नहीं मिला। जब देखा कि वर्षा भी कम होने लगी है और खेतों को पानी के बिना गुजारा नहीं होगा।
थक हार कर मैंने वर्ष 2004 में तालाब खुदवाने का मन बना लिया जिससे वर्षाजल को संचय कर प्रभावी खेती की जाय। अपने खेत को तीन छोटे-छोटे चकों में बाँटा सबसे आखिरी में तालाब के लिये जगह रखी। तालाब खुदवाना शुरू किया तालाब से निकलने वाली उपजाऊ मिट्टी को खेतों में डाला और कंकड़ वाली मिट्टी से खेतों की मेड़ें बना दी।
खेतों में वर्षा का पानी लाने के लिये पक्के इनलेट और आउट लेट बनवाए। इनलेट और आउटलेट को इस तरह से बनवाया कि जब पहला खेत भर जाय तभी दूसरे खेत में पानी जाना शुरू हो खेतों में पानी भरने के बाद तालाब में पानी भरे। तालाब बनवाने की पहली साल हमारे तालाब में केवल 5 फीट पानी ही बमुश्किल भर पाया। लेकिन खुशी की बात यह थी कि हमारे खेत के तालाब में पानी था आसपास के किसी खेत के लिये पानी नहीं था।
पानी की कमी को देखते हुए मैंने कम पानी में पैदा होने वाली फसल मसूर बो दी। तालाब के पानी से एक पानी देकर मसूर की खेती की। मसूर की पैदावार उम्मीद से कहीं ज्यादा हुई और तालाब में तीन फीट पानी मौजूद था। जो किसान तालाब खुदवाने को लेकर मेरा मजाक बना रहे थे वही किसान पैदावार देख सकते में थे।
बस मेरा जोश तालाब ने बढ़ा दिया और शुरू हुई कभी न खत्म होने वाली उत्साही जंग। फिर क्या था मैंने अपने दूसरे खेत जो रास्ते के उस पर हैं उन खेतों पर भी तालाब बनाने की प्रक्रिया शुरू की तालाब की उपजाऊ मिट्टी खेतों में फैला दी और जो कंकड़ वाली मिट्टी थी उससे मेड़ें बना वर्षाजल संचयन किया।
इसी खेत पर पर्यावरण को ठीक करने के लिये आँवले का बाग लगाया आश्चर्य करेंगे इस भयंकर सूखे में भी 70 कुन्तल आँवला इस बगीचे से मिला। लगभग 500 पेड़ सागौन के लगे हैं। अमरूद के लगभग 250 पेड़ हैं तालाब से एक और लाभ मिला खेत में एक कुआँ है जिसका पानी नीचे उतर गया था। पानी को खत्म होते देख मैंने इसके अन्दर एक और कुआँ खुदवाया लेकिन 20 फीट पर ही पत्थर आ गया और मुझे काम बन्द करना पड़ा। लेकिन जैसे ही तालाब में वर्षाजल का संचयन हुआ कुआँ लबालब भर गया। तालाब का पानी खेतों में दिया, बाग के लिये कुएँ ने पानी दिया जो अभी भी अनवरत दे रहा है। हालात ये हैं कि गाँव में कोई भी कुआँ पानी देने लायक नहीं है हैण्डपम्प सूख गए हैं लेकिन यह एक मात्र कुआँ है पूरे गाँव को पानी दे रहा है।
उन्होंने बताया कि एक बीघा खेत की सिंचाई को 160 घन मीटर पानी खर्च होता है 160 घन मीटर का मतलब होता है 5500 घन फीट, 5500 घन फीट मिट्टी को निकलने के लिये एक जेसीबी 5-6 घंटे लेती है 5500 घन फीट मिट्टी का गड्ढा खोदने में 5000 रुपए खर्च आता है। इस खोदे गए गड्ढे में जो पानी भरेगा वो एक बीघा खेत के लिये एक पानी देने को पर्याप्त होगा।
5000 रुपए खर्च कर हम एक पानी वाली फसल करते है तो हमें जो फसल प्राप्त होती है वो लगभग दुगना लाभ दे जाती है। अगर खेत को व्यापारिक ढंग से किसान देखें तो ऐसी कोई दुकान नहीं है जिसमें एक लाख रुपए कोई लगाए और उसे दो लाख रुपए अगले वर्ष मिल जाय।
खेतों के पास से एक वर्षा से आच्छादित होने वाला नाला निकलता है जिसका बेतरतीब बहने वाला पानी खेतों को नहीं मिल पाता था मैंने उस नाले का पानी का प्रयोग अपने तालाब को भरने में किया और उसका इनलेट इस तरह से बनाया कि जितना हमारा तालाब गहरा है उतना ही पानी उसमें जा सके। यह कमाल सिर्फ इनलेट का है जो नाले का वर्षाजल हमारे खेतों को नुकसान नहीं कर पाता है।
जिन किसानों के पास धन की व्यवस्था नहीं है उन किसानों को भी यह जान लेना चाहिए कि पानी वर्षाजल संचयन के लिये तालाब से बेहतर कोई उपाय नहीं है। किसान के पास यदि 5000 रुपए हैं तो वह 160 घन मीटर का तालाब खोद सकता है लेकिन बोरिंग में ये सम्भव नहीं है। तालाब खुदवाने में आपके पास जितना धन है उसी के हिसाब से तालाब खुदवा सकते हैं। मौसम को देखते हुए असिंचित जमीन को सींचने के लिये जरूरी है कि वह वर्षाजल का संचयन करे। क्योंकि पानी के बिना खेती करना सम्भव है ही नहीं।
आज हमारी खेती को देख कर गाँव के किसान तालाब बनाने को उत्साहित हुए हैं